Mantra path on Kartik Amavasya for Grah dosh: हिंदू धर्म में अमावस्या और पूर्णिमा तिथियों का विशेष महत्व होता है. धार्मिक रूप से कार्तिक माह बहुत पवित्र माना जाता है और इस माह में कई प्रमुख व्रत और त्योहार आते हैं. इसके साथ ही कार्तिक माह के अमावस्या और पूर्णिमा का भी महत्व बहुत अधिक होता है. कार्तिक अमावस्या (Kartik Amavasya) को हिंदू धर्म का प्रमुख त्योहार दिवाली मनाया जाता है. इस तिथि को कुछ खास उपाय करने से ग्रह दोषों से भी मुक्ति मिलती है. आइए जानते हैं कब है कार्तिक अमावस्या (Date of Kartik Amavasya) और इस अमावस्या को ग्रह मुक्ति के लिए किन मंत्रों का करना चाहिए (Mantra path on Kartik Amavasya) …
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इस दिन है कार्तिक अमावस्या (Date of Kartik Amavasya)
इस वर्ष कार्तिक अमावस्या 31 अक्टूबर गुरुवार को दोपहर 1 बजकर 52 मिनट पर शुरू होकर 1 नवंबर शुक्रवार को शाम 6 बजकर 16 मिनट पर तक रहेगी. कार्तिक अमावस्या 1 नवंबर शुक्रवार को मनाई जाएगी.
कार्तिक अमावस्या को स्नान-दान का मुहूर्त
स्नान और दान का मुहूर्त – प्रातः 4 बजकर 50 मिनट से सुबह 5 बजकर 41 मिनट तक
प्रदोष काल – शाम 5 बजकर 36 मिनट तक रात 8 बजकर 11 मिनट तक
अमावस्या को क्या करें
धार्मिक रूप से अमावस्या के दिन बहुत शुभ माना जाता है. इस दिन पिवत्र नदियों में स्नान करने और जरूरतमंदों को दान करने का बहुत महत्व होता है. इस दिन जप, तप और व्रत करना अत्यंत फलदाई माना गया है. इसके साथ ही इस दिन लहसुन, प्याज और मांस-मदिरा के सेवन से दूर रहना चाहिए.
ग्रह दोष से मुक्ति के लिए इन मंत्रों का पाठ
कार्तिक अमवास्या के दिन प्रात:काल में नवग्रह स्त्रोत का पाठ करना चाहिए. इससे ग्रह संबंधित दोष दूर हो जाते हैं
श्री नवग्रह स्तोत्र पाठ
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महद्युतिं।
तमोरिसर्व पापघ्नं प्रणतोस्मि दिवाकरं।। (रवि)
दधिशंख तुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवं।
नमामि शशिनं सोंमं शंभोर्मुकुट भूषणं।। (चंद्र)
धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांतीं समप्रभं।
कुमारं शक्तिहस्तंच मंगलं प्रणमाम्यहं।। (मंगल)
प्रियंगुकलिका शामं रूपेणा प्रतिमं बुधं।
सौम्यं सौम्य गुणपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहं।। (बुध)
देवानांच ऋषिणांच गुरुंकांचन सन्निभं।
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिं।। (गुरु)
हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरूं।
सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहं।। (शुक्र)
नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजं।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्वरं।। (शनि)
अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्य विमर्दनं।
सिंहिका गर्भसंभूतं तं राहूं प्रणमाम्यहं।। (राहू)
पलाशपुष्प संकाशं तारका ग्रह मस्तकं।
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहं।। (केतु)
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)