11 मिनट पहले
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कितनी भी योजनाएं बना लो, किस्मत से ज्यादा और वक्त से पहले किसी को कुछ नहीं मिलता।’ दीवा ने नई सोसाइटी के वेटिंग एरिया में यह लाइन पढ़ी तो वह मन ही मन गाली देते हुए आगे बढ़ गई। जाहिर है, नए जमाने की इस लड़की को किस्मत से ज्यादा अपनी प्लानिंग पर भरोसा था।
उसने न जाने कितने लड़कों को डेट करने, कितनों के साथ लंबा वक्त गुजारने, कितनों को रिजेक्ट करने के बाद अपने मिस्टर स्पेशल को चूज किया था। लेकिन वो खुश थी कि उसकी पसंद अद्वय ‘ऑलमोस्ट मिस्टर परफेक्ट’ है। भले ही उसे ढूंढने तक दीवा के बालों में चांदी के कुछ तार भी चमकने लगे थे।
‘ऑलमोस्ट मिस्टर परफेक्ट’ इसलिए कि अद्वय में मेल ईगो नहीं है। उसकी एक ‘हां’ के लिए वह पूरे दिन एक पैर पर खड़ा रह सकता था। जॉइंट फैमिली में रहने के लिए कंप्रोमाइज करने का कोई इश्यू नहीं। कमाता भी ठीक है। ओपन माइंडेड है। लड़की उम्र में लड़का से बड़ी है, ये बात पूरी दुनिया ने अद्वय को समझाई, पर उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। दीवा भी आजाद ख्याल लड़की थी, जो अपने पैरों पर खड़े होने के लिए घर से झगड़कर मेट्रो सिटी में आकर बस गई थी। उसे अद्वय में अपना मिस्टर परफेक्ट दिखा था।
लेकिन ऐसा क्यों था कि शादी के एक महीने के अंदर ही दीवा का मन इस रिश्ते से भर गया। अब उसे अद्वय की छोटी-छोटी बातों पर कोफ्त होती। इतनी कोफ्त कि एक कमरे में और एक ही बिस्तर पर रहना भी मुश्किल लगने लगा। रोज करवट लेकर लेटना मुश्किल था तो अब दीवा ने अपनी ऑफिस टाइमिंग ही चेंज करवा ली थी।
शुरुआत इस बात से हुई कि घर का कौन सा काम कौन करेगा। ऐसा नहीं था कि रूम पार्टनर के साथ रहने वाले अद्वय ने कभी घर का काम नहीं किया। ग्रॉसरी लाने, खाना बनाने, साफ-सफाई से लेकर कपड़े धोने तक के सारे काम उसे आते थे। लेकिन शादी के बाद पता नहीं उसका कौन सा स्विच दबा कि वह इन कामों से मुंह सा मोड़ने लगा। हद तो तब हुई जब महीने भर तक अद्वय के दोस्तों का घर आकर आना-जाना खत्म नहीं हुआ।
दीवा को सोशल गैदरिंग से दिक्कत नहीं थी, लेकिन उसे चाहिए था कि एक शादीशुदा घर में लोग थोड़ा तमीज से पेश आएं। ये नहीं कि किसी भी कमरे में सिगरेट पी लो, बेड पर सोफे पर सॉक्स पहने हुए पैरों से बैठ जाओ। अपने मन से टीवी खोल लो, फिर उसे देखना छोड़कर कहीं और बैठ जाओ। वह इन छोटी-छोटी बातों पर अद्वय को समझाती कि अपने दोस्तों को तुमको ही बताना होगा कि थोड़ा ठीक से पेश आएं। अद्वय इस बात पर उखड़ जाता।
एक दो बार दीवा के मुंह से गाली निकल गई तो बात ज्यादा बिगड़ गई। हारकर दीवा ने अद्वय से कुछ भी कहना छोड़ दिया। वह अद्वय के दोस्तों के जाने के बाद चुपचाप सारा सामान सही जगह पर रखती। सोफा कवर और बेडशीट चेंज करती। असल में उसे साफ-सफाई और अपनी चीजों को सलीके से रखने की OCD जैसी जिद थी। एक दिन अद्वय ने इस बात के लिए भी उसे टोका तो उसने कहा कि हफ्ते भर बाद बेडशीट और सोफा कवर तो वैसे भी साफ होने ही हैं। लेकिन जब अद्वय ने इसे छुआछूत से जोड़ दिया। यह हद पार हो चुकी थी। दीवा के ऐसे ख्यालात कभी नहीं थे, यह बात अद्वय भी अच्छे से समझता था। लेकिन शायद उसने बहस में जीतने के लिए यह ब्रह्मास्त्र छोड़ा था, जिससे उनका रिश्ता लहूलुहान हो चुका था, जिसे अब शायद कोई संजीवनी ही बचा सकती थी।
दोनों ऑफिस से थके-हारे लौटते, लेकिन खाना, बर्तन, बिस्तर, डस्टिंग, जरूरी सामान की लिस्ट बनाना और लाना सारे काम दीवा के सिर आ पड़े थे। ऐसा नहीं था कि वह अकेले यह काम नहीं कर सकती थी। लेकिन उसने जिस शादी के लिए इतना इंतजार किया, जिस पार्टनर के लिए इतने सपने देखे, उसका धुंआ निकलता देख उससे रहा नहीं जा रहा था। वह पता नहीं क्या करना चाहती थी, पता नहीं कहां मुंह छिपाना चाहती थी। उसे बार-बार लगता कि यही शादीशुदा जिंदगी होती है तो इस बंधन में बंधना क्यों जरूरी था या फिर नाहक इसे तलाशने में इतना टाइम, इतनी एनर्जी क्यों वेस्ट की।
अब अद्वय दिन में ऑफिस जाता तो दीवा नाइट शिफ्ट में। अब दोनों का वीकली ऑफ भी अलग-अलग दिन था। लेकिन ऐसा चूहे-बिल्ली का खेल कब तक चल सकता है? दीवा अक्सर सोचती कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि उसकी मैरिड लाइफ को एक महीने की खुशी भी नसीब नहीं हो सकी।
एक रात वह नाइट शिफ्ट में इसी उधेड़बुन में थी कि उसके मैनेजर ने उसे एक घंटे की डेडलाइन में एक प्रोजेक्ट रिपोर्ट देने को कहा। वह सर-सर करती रह गई लेकिन बॉस अपने केबिन में लॉक हो चुका था। एक गंदी गाली बुदबुदाकर उसने अपने गृहस्थी के ख्यालों को समेटा और फाइल देखी तो उसका हलक सूख गया और वह एक ही सांस में पूरी बोतल खाली कर गई।
यह देख सामने बैठे रितेश ने कहा, लगता है आप परेशान हैं। मैं कुछ हेल्प करूं क्या?
न चाहते हुए भी दीवा को हां बोलना पड़ा। रितेश ने पांच मिनट तक फाइल देखी और कहा कि मेरे पास इसकी लास्ट प्रोग्रेस रिपोर्ट है। मैं तुमसे शेयर करता हूं। स्टार्टिंग के चार-पांच पॉइंट ऐड कर अपडेट कर देना। पांच मिनट में रिपोर्ट तैयार हो जाएगी।
दीवा ने ऐसा ही किया। एक घंटे का काम दस मिनट में निपटाकर वह कैफेटेरिया चली गई। खराब कॉफी मशीन को देखकर उसके मुंह से गाली निकलने ही वाली थी। वो तो उसने बगल में खड़े रितेश को देख लिया जो अपने फ्लास्क से कॉफी निकालकर उसकी ओर बढ़ा रहा था। उसने कहा, लगता है नाइट शिफ्ट का आइडिया कम है तुमको। खाना तो लाई हो न? कैंटीन भी बंद रहती है।
अब तो दीवा के मुंह से सच में गाली निकल गई। हंसी से लोटपोट होता हुआ रितेश बोला कि लड़कियां वाकई कितनी क्यूट लगती हैं गाली देते हुए। उसे शादी से पहले का अद्वय याद आया कि पहले सभी लड़कों को लड़की के मुंह से गाली अच्छी लगती है लेकिन फिर वही गाली उनके लिए निकले तो बर्दाश्त नहीं कर पाते।
दीवा ने कॉफी का सिप लेते हुए उसे सिर से पैर तक घूरा। उसे रितेश बड़ा चेप किस्म का बंदा लगता था। लेकिन उसे लगा कि बिना इसके रात काटना मुश्किल होगा। इसलिए दीवा ने उसे इनसल्ट करके भगाने का ख्याल फिलहाल मुल्तवी कर दिया।
दीवा को खाना बनाना खास पसंद नहीं था। उसने इस काम को सर्वाइवल स्किल की तरह सीखा था तो फर्स्ट नाइट शिफ्ट में रितेश के खाना ऑफर करने के बाद अब वह रितेश का ही टिफिन शेयर करती थी। रितेश ने उसे दो-तीन दिन बिना टिफिन के देखा तो खुद ही उससे आकर पूछ लेता था- खाने चलें। और अब तो वो उसे अपनी फूड चॉइस भी बताने लगी थी।
कुछ नाइट शिफ्ट साथ बिताकर दीवा को लगा कि रितेश असल में चेप नहीं लोगों को लेकर कंसर्न रहता है। जो कि आज के दौड़भाग वाले शहर में लोगों को बड़ी अजीब सी चीज लगती है। लोगों के टास्क बिना कहे सॉल्व कर देना। कई बार बिना मांगे सजेशन दे देना, किसी को खाना ऑफर कर देना, किसी की वॉटर बॉटल रीफिल कर लाना, न जाने वो ऐसी हरकतें क्यों करता था। शायद इसलिए ऑफिस में सब उसे चेप कहते थे।
एक दिन सब्जी में नमक थोड़ा ज्यादा होने पर वह पूरे टाइम गिल्ट में रहा। दीवा को खीझकर बोलना पड़ा कि हो जाता है यार। तुमको हमेशा परफेक्ट क्यों बनना होता है? उस शिफ्ट में दोनों के बीच कोई बात नहीं हुई।
अगले महीने की शुरुआत में अद्वय ने नाइट शिफ्ट ली थी ताकि वो दीवा के साथ कुछ टाइम बिता सके। दीवा को ये पता चलते ही उसने अपनी शिफ्ट चेंज करवा ली। अद्वय इस बात पर दीवा से नाराज रहा, लेकिन उसे पता नहीं था कि दीवा के मन में क्या-क्या चल रहा है, वरना वो उससे उलझने के बजाए, उसे मनाने और बात को सुलझाने की कोशिश जरूर करता।
ऐसा नहीं था कि दीवा ने उसे हिंट नहीं दिए थे, लेकिन अद्वय अपने रिश्ते के इश्यूज के हिंट पकड़ ही नहीं पा रहा था। इसलिए उनके बीच अब बातचीत लगभग बंद ही थी। जब भी कुछ कहना-सुनना होता तो सरकास्टिक कमेंट, टॉन्ट, एक-दूसरे की हफ्तों, महीनों, सालों पुरानी बातों पर की कमियां निकालने से लेकर दीवा की गालियों और फिर अबोलेपन पर आकर बात खत्म हो जाती।
इधर, अद्वय से झगड़कर जब दीवा डे शिफ्ट में आई तो उसने रितेश की कॉफी, उसके टिफिन, उसके साथ सुट्टा ब्रेक को बड़ा मिस किया। बाद में उसे अहसास हुआ कि वह रितेश को ही मिस कर रही है। उसने रितेश को डे शिफ्ट में आने के लिए कहा, लेकिन रितेश दिन में अपने म्यूजिक एलबम के लिए काम और मीटिंग्स करता, इसलिए उसके लिए ये पॉसिबल नहीं था। दीवा इसी बात पर उससे भी लड़ ली। हालांकि, रितेश ने चुप रहना ही बेहतर समझा।
हां, उसने अपने घर से दीवा के लिए टिफिन भिजवाना शुरू कर दिया। एक शाम दीवा ऑफिस से जल्दी निकलकर बिना बताए रितेश के फ्लैट पर पहुंच गई। अंदर से कुछ आवाजें आती सुनकर वह लौटने को हुई लेकिन फिर उसे ख्याल आया कि अभी घर गई तो अद्वय की शक्ल देखनी पड़ेगी तो उसने डोरबेल बजा ही दी।
दरवाजा एक खूबसूरत लड़की ने खोला, जिसकी आंखों में दीवा के लिए कई सवाल थे। दीवा ने कहा कि उसे रितेश से मिलना है। उस लड़की ने अंदर जाकर रितेश को भेजा। रितेश को गले में गिटार डाले कैजुअल कपड़ों में देख दीवा की हंसी छूट गई। लेकिन उसने नोटिस किया कि फॉरमल्स में रितेश बिल्कुल अलग इंसान लगता है। बिखरे बालों में वह वाकई रॉकस्टार लग रहा था।
रितेश ने उसे अंदर बुलाते हुए कहा कि ये वैष्णवी है, मेरी म्यूजिक पार्टनर। बगल वाले अपार्टमेंट में ही रहती है। हम एक गाने की रिहर्सल कर रहे थे। तुम बताओ कैसे आना हुआ।
दीवा बोली कि यार मैं भयंकर बोर हो रही थी, इसलिए तुमसे मिलने चली आई। रितेश ने तीनों के लिए चाय चढ़ाई और तब तक बर्तन साफ कर पोहा भी बना लिया।
पोहा खाते हुए दीवा ने कहा कि यार तुम्हारी कॉफी बहुत मिस कर रही हूं आजकल। रितेश हंसते हुए बोला कि अभी चाय पी लो। कुछ देर में कॉफी भी बनाऊंगा। हम लोग मूवी देखने जा रहे हैं, तुम चलोगी?
दीवा का मन तो था, लेकिन उसने इनकार कर दिया और एक घंटे बाद यूं ही टहलते हुए घर लौट आई। अद्वय ऑफिस जा चुका था। दीवा ने रितेश को मैसज करके पूछा कि मूवी कैसी थी? उसका जवाब आया- फर्स्ट क्लास। न जाने क्या सोचकर दीवा ने मैसेज भेजा- मेरे साथ देखने चलोगे? फिर उसने वह मैसेज डिलीट भी कर दिया। लेकिन उसे नहीं पता था कि रितेश उस मैसेज को नोटिफिकेशन में ही पढ़ चुका था। मैसेज डिलीट देख रितेश ने चैन की सांस ली कि वह इस मुश्किल सवाल का जवाब देने से बच गया।
अब होता यह कि दीवा अपना काम निपटाकर रोज घर जाने से पहले रितेश के घर पर पहुंच जाती। वैष्णवी ने कुछ दिन दीवा का यह पैटर्न देखा तो उसने रितेश के घर आने की टाइमिंग चेंज कर ली। न जाने क्यों उसे दीवा की नजरों में अपने लिए दोस्त की दोस्त वाली फीलिंग कम और अपनी दुश्मन वाली फीलिंग ज्यादा दिखी।
दीवा रोज शाम को रितेश के घर पर आकर ऑफिस पॉलिटिक्स की बातें करती और रितेश को ऑफिस के लिए तैयार होते, घर को करीने से सजाते, अपना टिफिन बनाते, पैक करते, कॉफी बनाते और ऑफिस की मेल्स चेक करते देखती रहती। यह नजारा उसकी आंखों से ज्यादा उसके दिमाग को सुकून देता था। लेकिन घर पर अद्वय ने कभी ये काम खुद नहीं किए थे। रितेश के घर पर भी मेड आती थी, लेकिन उसे अपने ज्यादातर काम खुद करने पसंद थे। इसके बाद रितेश दीवा को उसके घर ड्रॉप करते हुए ऑफिस निकल जाता। दीवा को इंतजार था कि कब अद्वय डे शिफ्ट में आए और वह नाइट शिफ्ट में रितेश के साथ आए।
एक शाम दीवा को रितेश का वॉशरूम यूज करना पड़ा। उसने रितेश से इसके लिए परमिशन ली तो उसने पहले दीवा के लिए वॉशरूम सैनिटाइज किया तब उसे भेजा। दीवा को उसका यह जेस्चर उसकी दूसरी आदतों की तरह काफी पसंद आया।
इधर, दीवा के रोज लेट घर आने से परेशान अद्वय ने एक शाम को ऑफिस जाते समय उससे बोला कि अगर तुमको मेरे घर में आने का मन नहीं करता तो तुम अलग भी रह सकती हो। रिश्तों की नाजुक डोर इस भारी भरकम लाइन का बोझ न सह सकी। दीवा ने सिर्फ इतना कहा- ठीक है।
अद्वय के ऑफिस जाने के बाद उसने रात में अपना सारा सामान समेट और रितेश को कॉल करके कहा कि सुबह शिफ्ट खत्म होने पर ऑफिस से सीधे मेरे घर आ जाना। हड़बड़ी में आए रितेश ने उसका सामान बंधा देखा तो समझ गया कि शायद फिर दोनों में लड़ाई हो गई। उसे लगा कि दीवा ने शायद उसे रेलवे स्टेशन जाने के लिए बुलाया है। लेकिन दीवा के मन में कुछ और ही चल रहा था। उसने ज्यादा पूछताछ करना ठीक न समझा, जब तक कि दीवा उसे खुद कुछ न बताना चाहे।
उसने रितेश से कहा कि मुझे पीजी में शिफ्ट होना है। मेरा सामान लेकर चलो। रितेश बोला कि इतनी सुबह पीजी नहीं मिलेंगे। तुम फिलहाल मेरे घर चलो। हम तीन-चार घंटे बाद दिन में पीजी ढूंढने निकलेंगे।
रितेश और दीवा ने दर्जनों गर्ल्स पीजी देखे लेकिन रितेश एक के बाद एक सबको रिजेक्ट करता चला गया। उसने कहा कि तुम इतनी कम जगह में, बंद और अंधेरे कमरों में नहीं रह सकती। वो भी शेयर्ड पीजी में। दीवा के लाख मना करने के बावजूद वह बोला कि अगर तुमको कोई प्रॉब्लम न हो तो जब तक रहने का कुछ ठीक नहीं हो जाता तुम मेरे घर चलो। मेरा एक रूम खाली ही पड़ा रहता है। बस मैं ये कहूंगा कि एक बार अद्वय से इस बारे में बात कर लो।
दीवा ने उसे एक गाली बड़बड़ाते हुए उसे ऐसे घूरा कि रितेश को टॉपिक ही बदलना पड़ा। घर आकर रितेश ने दोनों के लिए खाना बनाया और बोला कि मुझे कुछ देर के लिए सोना है। तुम अपना सामान खोल लो। अगर वैष्णवी आए तो तुम उसे बैठा लेना।
यहां आकर दीवा के मन में एक बार ख्याल आया कि उसने घर छोड़कर गलती तो नहीं की। लेकिन उसके कानों और दिमाग से अद्वय की वह बात नहीं जा रही थी कि मेरे घर से चली जाओ। उसने सोचा कि फिर उसका घर कौन सा है? जहां पैदा हुई वो या जहां रहने के लिए मॉम-डैड का घर छोड़ा वो? उसे अचानक अहसास हुआ कि उसका अपना कहने के लिए तो कोई घर ही नहीं है। उसने ठान लिया कि अब जहां उसका दिल कहेगा, वहां रहेगी और उसे ही अपना घर बनाएगी।
एक हफ्ते बाद भी जब अद्वय की तरफ से इश्यूज पर बात करने या माफी मांगने जैसी कोई पहल नहीं हुई तो दीवा ने उसकी ‘घर आ जाओ’ की फरमाइश पर कोई रिस्पॉन्स नहीं दिया। अद्वय ने ये जानने की ज्यादा कोशिश भी नहीं की थी कि दीवा कहां रह रही है। उसे लग रहा था कि वह किसी पीजी में है। दीवा ने भी उसे चुप करने या न जाने चिढ़ाने के लिए बता दिया कि वह रितेश के साथ शिफ्ट हो गई है। उम्मीद के मुताबिक इसके बाद अद्वय ने उससे घर लौट आने के लिए नहीं कहा। इस बात से वह और फुंक गई थी।
खैर, ये बात अद्वय को बताकर उसे मन का बोझ कम महसूस हुआ। जो भी हो, अब उसके पास अपने नाम के रिश्ते में कुछ छिपाने का गिल्ट नहीं था। उस शाम उसने रितेश से कहा कि उसका बीयर पीने का मन है। दोनों ऑफिस से लौटते हुए पार्टी का सामान लेते आए। उन्होंने वैष्णवी को भी बुला लिया था। वीकेंड होने की वजह से सबने देर रात कर म्यूजिक और सिंगिंग के साथ जमकर पार्टी की। लाख मना करने के बावजूद वैष्णवी को अपने घर ही जाना था। इसलिए दोनों पैदल उसे घर तक छोड़ने गए।
वापसी में रितेश ने सड़क क्रॉस करके समय दीवा का हाथ पकड़ा तो उसने रितेश के कंधे पर सिर टिका दिया जो घर पहुंचने तक वैसे ही रहा। नशे का आलम था, अद्वय से नाराजगी थी या उन दोनों का रात के उस वक्त अकेले होना कि दोनों करीब आ गए। उस रात उनके बीच पहली बार वो सब हुआ जो शायद मोरल साइंस के हिसाब से गलत कहा जा सकता है लेकिन इमोशनल, हॉर्मोनल और फिजिकल साइंस के हिसाब से सही-गलत की परिभाषा से ऊपर था।
अगली सुबह पहली बार दोनों ने एक-दूसरे से नजरें चुराई। शायद उनकी आंखों में एक-दूसरे के लिए जो था, वो समझ नहीं पा रहे थे कि उसे अभी जाहिर करें या नहीं। रितेश ने कॉफी बनाई और दीवा से सटकर बैठ गया। दीवा ने इसका बुरा नहीं माना। लेकिन अगले ही पल जैसे उसे कुछ याद सा आया हो। उसने थोड़ा परे खिसकते हुए रितेश का हाथ थाम लिया ताकि उसे बुरा न लगे और थोड़ी दूरी भी बनी रहे।
अगले कुछ दिन दीवा और रितेश के उलझन में बीते। दीवा की उलझन थी कि वह इस बहाव में खुद को बहने दे या नहीं। रितेश की उलझन थी कि यह रास्ता किस मुकाम तक जा सकता है। जब उन्हें इसका कोई हल न मिला तो उन्होंने रितेश की पहल पर इस पर बात की। दीवा को रितेश की यह आदत भी पसंद आई। उसे न चाहते हुए भी अद्वय की याद आ गई कि वो कैसे किसी मुश्किल इमोशनल इश्यूज से कन्नी काट लेता था। बातचीत के बाद दीवा और रितेश ने तय किया कि अभी अपने इस साथ को कुछ वक्त का इम्तहान पास करने देते हैं।
बहुत सोच-समझकर शादी करने वाली दीवा इस रिश्ते में तो और भी फूंक-फूंककर कदम रखना चाहती थी। इसलिए वह रितेश की साफ-सफाई की आदत, घर की जिम्मेदारी, वह लोगों के लिए क्या फील करता है, उसके इमोशनल इश्यूज को कितनी इंपोर्टेंस देता है, यह सब नोट करती जा रही थी। और उसके इस टेस्ट में रितेश पास भी हुआ था। दीवा ने भी खुद को टटोला तो पाया कि वह अद्वय को छोड़ रितेश के साथ ज्यादा खुश रहेगी।
उसने इस बारे में अपनी मॉम से भी बात की। मॉम ने उससे इतना ही कहा कि मैं ये तो जानती हूं कि तुम कोई भी फैसला सोच-समझकर ही लेती हो, बस इतना ही कहूंगी कि अपने किसी भी फैसले को थोड़ा टाइम देना।
दीवा ने अपने आगे का रास्ता ठान लिया था। इस फैसले से वह चहकने और महकने लगी थी। उसने रितेश और अद्वय दोनों को अपने फैसले की जानकारी दी। अद्वय ने कोई जवाब नहीं दिया तो रितेश काफी खुश था। मानो उसकी जिंदगी के एक बड़ी तलाश पूरी हो गई थी।
उस दिन के बाद से रितेश और दीवा कपल की तरह रहने लगे। उनके बीच पासवर्ड, बैंक डीटेल्स, फ्यूचर प्लान्स, घरवालों के नंबर शेयर होने लगे। रितेश बहुत खुश था और शायद ज्यादा खुशी में ही ज्यादा लापरवाही भी होती है।
दीवा ने जिस वजह से अद्वय को छोड़ रितेश के साथ रहने का फैसला किया था, वही चीजें धीरे-धीरे रितेश में दिखने लगीं। वह ऑफिस से आता को शूज और सॉक्स भी नहीं संभालता। अपना टॉवल अपनी खाने की प्लेट कहीं भी छोड़ देता। अब शायद उसे दीवा के सामने अपनी इमेज की फिक्र नहीं रह गई थी और अपने नेचुरल सेल्फ में सामने आ रहा था।
दीवा को दो महीने में ही रितेश का कल अद्वय का आज जैसा दिखने लगा। हालांकि, ऐसा पूरी तरह नहीं था, लेकिन उसके लक्षण देख दीवा काफी डर गई थी। उसने अपनी एकमात्र राजदार अपनी मॉम को सारा किस्सा बताया।
उसकी मॉम ने कहा- बेटी तुम सारी दुनिया घूम लो तुमको लड़के तो ऐसे ही मिलेंगे। हमें अपने लिए बुरे लड़कों में से सबसे कम बुरे लड़के चुनने होते हैं। ऐसा नहीं है कि ये बुरे ही पैदा होते हैं, लेकिन इनको हमारी परवरिश ऐसा बना देती है। सवाल है कि क्या इनको बदला जा सकता है, तो उसका जवाब बड़ा मुश्किल है। कई लोग झुकने के बजाए टूटना पसंद करते हैं। और दुनिया का सबसे मुश्किल काम है, खुद की गलती मानना और फिर अपने को बदलना। ये इतने ईगो से भरे होते हैं कि इतने पेनफुल प्रोसेस से गुजरना नहीं चाहते। लेकिन जो लोग इस भट्टी से गुजर जाएं वो कुंदन बन जाते हैं।
मां की बात सुन दीवा फैसला नहीं कर सकी कि वह क्या करे। उसने खुद को वक्त के थपेड़ों में बहने के लिए छोड़ दिया। उसे वही लाइन याद आ रही थी कि किस्मत से ज्यादा और वक्त से पहले किसी को कुछ नहीं मिलता…
-गीतांजलि