4 घंटे पहले

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‘आइए, आइए, गलत जगह जाने से पहले रुक जाइए… सिर्फ हमारे पास मिलेगा गुप्त रोगों का चमत्कारी इलाज!’

‘हजारों मरीजों की बीमारी का किया काम तमाम, वो आज भी जपते हैं हकीम बाबा का नाम’

हमारे यहां हर रोग का जड़ से गारंटीड इलाज मिलेगा…। कुछ ऐसा नजारा था, चौराहे पर दरी बिछाकर छोटा सा टेंट लगाए बैठे एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति का। इस दरी के ऊपर प्लास्टिक के कुछ डिब्बे और उसमें कुछ घास-फूस जैसा दिखने वाली जड़ी-बूटियां थीं। अपने मैले-कुचैले हाथों से माइक को पकड़े वह अधेड़ जोरों से चिल्लाकर लोगों को उस टेंट में आने का न्योता दे रहा था।

हम सभी ने दीवारों पर ऐसे नीम-हकीमों के इश्तहार तो देखे ही होंगे, जिन पर लिखा होता है- ‘गुप्त रोग मरीज मिलें’ जो रोग के 100 प्रतिशत सफल इलाज की गारंटी भी देते हैं। वैसे देखा जाए तो उन मरीजों को जांचने पता नहीं कौन जाता है कि बीमारी जड़ से खत्म हुई या जड़ ही खत्म हो गई?

मोना भी पहले यही सोचती थी कि कौन पागल होगा, जो इन लोगों के पास जाएगा? पर वह हेलमेट के अंदर से ही बुदबुदाई कि एलोपैथिक के बाद क्यों न सेकंड कंसल्ट कर लिया जाए ताकि इस गुप्त रोग से निदान मिल सके। उसने सोचा कि कल वह पोस्टर पर लगे नंबर को डायल करेगी और हकीम बाबा की शरण में जाएगी।

दरअसल मोना को कुछ दिन पहले यूटीआई की समस्या हुई थी। बहुत हिम्मत कर उसने एक दवा का नाम खोजा। फिर उसने उस दवा की सारी डिटेल्स को एक-एक कर सर्च किया कि वह ठीक हो जाए बस। वह पास में बने क्लीनिक से दवा ले आई थी। उससे प्रॉब्लम ठीक नहीं हुई तो डॉक्टर की सलाह के बाद उसने अपना यूरिन टेस्ट करवाया, जिसमें उसकी जांच में आया कि उसे सेक्शुअल ट्रांसमिटेड डिजीज STD है यानी गुप्त रोग।

और हमारे देश में ये ऐसा रोग है कि इस बीमारी के नाम पर पब्लिक का सिर्फ काटा ही जा सकता है- बटुआ। इस रोग को न तो किसी को बताया जा सकता है और न ही छिपाया। गुप्त रोगों का संसार किसी भूलभुलैया से कम नहीं। ऐसा कोई मोहल्ला, शहर या गली नहीं जहां दीवारों और खंबों पर होर्डिंग्स गुप्त रोग के छुटकारे वाले विज्ञापनों से नहीं रंगे। ऐसा लगता है कि अब दुनिया को ऑक्सीजन या पानी की नहीं हकीम हाशमी, गुप्त रोगों के पितामह डॉक्टर जैन या डॉ. अरोड़ा की ज्यादा ज़रूरत है। रोजाना अखबार इनके विज्ञापनों से भरे रहते हैं, जिनमें गुप्त रोगों के इलाज के साथ ही गुप्तांगों के आकार, प्रकार, विकार सब ठीक करने का भी दावा किया जाता है।

‘शादी से पहले या शादी के बाद’… ‘नहीं हो रही औलाद या सेक्शुअल लाइफ है बर्बाद…’ तो चले आओ हकीम फलाने के पास। गुमटी नंबर 11, चौराहे के सामने वाली दुकान। तुरंत सहायता के लिए मिलाएं 9*7*4*0*6*’। कई फिल्में भी बन चुकी हैं, जहां गुप्त रोग पालने वाला इंसान डरते-डराते, छिपते-छिपाते इन इश्तहारों को देखकर वहां जाता जरूर है।

मोना ने भी तय किया कि अगर ऐलोपैथी इलाज नहीं कर पा रही तो एक बार 100 फीसदी गारंटी वाला इलाज लेने में क्या हर्ज है। वैसे STD की रिपोर्ट ने उसे चौंका दिया था कि उसे ये बीमारी कैसे हो सकती है? डरते-डरते मोना ने नेट पर सर्च किया तो पता चला कि यह तो फैल भी सकती है। किसी से शेयर किया तो बात भी आग में घी की तरह फैल जाएगी। छोटे शहर में होने का यही नुकसान है। सब एक-दूसरे को तीन-चार पीढ़ियों तक जानते हैं। किसी डॉक्टर को दिखाए या नहीं। क्योंकि वह तो सुनते ही कहीं भाग न निकले।

यहां तो होश संभालने पर कहा जाता है कि सबसे पहले ‘हाईस्कूल पास कर लो फिर टेंशन खत्म’, ‘शादी कर लो’, ‘बच्चा कर लो अच्छे दिन आ जाएंगे’, लेकिन फिर बच्चों के बच्चों की पढ़ाई, फिर उनकी शादी फिर उनके बच्चे… ये सिलसिला कभी खत्म नहीं होता। लेकिन फिलहाल अपनी कहानी की हीरोइन शादी से पहले ही ‘गुप्त रोग’ के जाल में फंस गई थी।

अब तो मोना को एसी वाले कमरे में तेजी से पसीने छूटने लगे। उसने तो किसी के साथ संबंध तक नहीं बनाए। हां किस जरूर की थी। कहीं उसी से तो यह बीमारी नहीं हो गई और भी पता नहीं क्या-क्या ख्याल उसके दिमाग में आ-जा रहे थे। कई रीव्यू में उसने पढ़ा था कि यह लाइलाज बीमारी है।

मोना का गला सूखता जा रहा था, इस रिपोर्ट ने तो उसका कल ही क्या, आज भी खराब कर दिया था। यह बात तो वह न तो मम्मी को बता सकती थी और न ही पापा को…। बार-बार उसके शरीर में ऐसी झनझनाहट उठती कि उसे लगा कि वह अब नहीं बचेगी। आज तो खाना खाते समय कई बार निवाला उसके हलक में ही फंस जा रहा था।

कुछ दिनों से वह ऑफिस से छुट्टी लेकर घर में ही पड़ी रही। मम्मी-पापा तक परेशान थे कि आखिर मोना ने खुद को कमरे में क्यों बंद कर लिया है। मोना ने खाना तक छोड़ दिया था, उसका चबी शरीर जैसे एक हफ्ते में ही कमजोर जीरो फिगर होने का दावा कर रहा था।

पर ऐसा कबतक चलता। उसे एक न एक दिन तो ऑफिस जाना ही था, तभी उसने डिसाइड किया कि वह अपनी इस बीमारी से लड़ेगी और इलाज भी लेगी। अगले दिन उसने स्कूटी उठाई, जो कि कई हफ्तों से न चलने के कारण सेल्फ स्टार्ट नहीं ले रही थी।

जैसे-तैसे उसने पापा से किक लगावकर वह चौराहे से गुजर ही रही थी कि रोड के किनारे एक टेंट के बाहर लहराते पोस्टर पर उसकी नजर गई। तभी गुप्त रोग विशेषज्ञ का वह अधेड़ व्यक्ति मोना को दिखा था।

मोना का ऑफिस इस चौराहे से पूरे 10 किलोमीटर के फासले पर था और वह पूरे रास्ते बस यही सोचती हुई गई कि शाम को उस टेंट के बाहर लगे नंबर को डायल जरूर करेगी।

आज इतने दिनों बाद ऑफिस आई थी तो उसकी सीट पर काम भी काफी पेंडिंग था। मोना एक-एक करके सभी फाइल को कंप्लीट करते गई और उसे इतनी देर हो गई ऑफिस का गार्ड आकर मोना को बोल गया था कि मैम अब तो ऑफिस में ताला लगना है आप कितनी देर में फ्री हो जाएंगी।

मोना ने समय देखा तो शाम के 9 बज चुके थे। उसके फोन में मम्मी की भी 10 मिस्ड कॉल्स पड़ी थी। उसने अपना माथा पीट लिया और तुरंत मम्मी को बताया कि वह बस निकल ही रही है।

स्कूटी पर सवार होकर निकली थी कि रात के घुप अंधेरे में वह टेंट वाले विशेषज्ञ की दुकान भी बंद हो चुकी थी। अरे, यार मोना आज तो फोन करना ही था, क्या पता हकीम बाबा की जड़ी-बूटियां ही मेरी जि़ंदगी बचा लें। वह खुद से बुदबुदाते हुए घर पहुंच गई थी।

अगले दिन वह थोड़ा जल्दी निकली। पर यह क्या, चौराहा तो खाली पड़ा था। हकीम बाबा का टेंट उस जगह पर नहीं था। अब तो मोना को लगा कि वह लाइलाज बीमारी लेकर ही मरेगी। मानो जैसे उसका रोना ही फूट पड़ा। उसने स्कूटी साइड लगाकर अपने आंसू पोछे और आगे बढ़ी। लेकिन अगले गोल चक्कर के पास हकीम बाबा का डेरा जमा देख वह मुस्कुरा उठी। उसने रोड के साइड में जाकर स्कूटी रोकी और इस तरह सेल्फी ली कि हकीम बाबा के पोस्टर पर लिखे नंबर उसकी फोटो में आ जाएं। मोना इस सेल्फी को लेने में कामयाब हो चली थी। शाम को उस नंबर पर कॉल करने का सोचकर वह ऑफिस पहुंच चुकी थी।

शाम को घर पहुंचकर मोना को उस गुप्त रोग विशेषज्ञ से बात करनी थी, लेकिन यह क्या? आज तो उसका पूरा ननिहाल उसके घर पर आया हुआ था। अब उसे अपना रूम अपने कजिंस के साथ शेयर करना पड़ेगा। उसने मौसी की गाड़ी देखते ही अपना सिर पीट लिया था।

घर में चारों ओर हंसी-मजाक का माहौल था। कई तरह के पकवान भी बन रहे थे। जिसकी खूशबू हर ओर पहुंच रही थी। वह जैसे-तैसे फोन लेकर वॉशरूम में घुसी और उसने नंबर डायल कर दिया था- पर यह क्या फोन तो टूं-टूं-टूं की आवाज कर बंद हो गया था। मोना ने स्क्रीन पर समय देखा तो पाया कि रात के दस बज चुके हैं। अब तो हकीम भी सो चुका होगा, सोचकर उसने फोन अपने सिर पर दे मारा।

अगले दिन सैटरडे था यानी मोना की छुट्टी। इतने स्ट्रेस में मोना को यह भी ध्यान नहीं रहा कि वीकएंड भी आ चुका है। खैर उसने सोचा कि एक बार फिर वह उस नंबर को डायल तो करेगी और कुछ दवा मांगेगी।

सुबह-सुबह जहां धूप-अगरबत्ती की खूशबू की जगह कचौड़ियों का अरोमा उसकी नाक तक पहुंचा। लो मम्मी आज मेरा फेवरिट कचौड़ियों का नाश्ता तैयार कर रही हैं। तभी उसके कमरे में सारे के सारे घर वाले आ धमके। मोना को डर लगा कि कहीं उन सभी ने रिपोर्ट तो नहीं देख ली। उसे फिर से पसीना आ चुका था।

तभी सब एक साथ बोले- हैप्पी बर्थडे मोना डार्लिंग…। ये सुनते ही मोना शॉक रह गई थी। खैर कजिंस से बर्थडे बॉम लेने के काफी देर बाद वह स्टेबल हो पाई थी।

शॉक के बाद स्वादिष्ट नाश्ते से उसकी दिन की शुरुआत हुई थी। खैर आज मोना बड़े दिनों बाद हंसी थी, यह मोना की मम्मी का कहना था। उसकी कजिंस बोलीं- तभी तो दीदी के लिए यह सरप्राइज प्लैन किया था।

लगभग लंच टाइम में मोना के फोन पर कॉल आ रहे थे। पर मोना कमरे में फोन छोड़ कर लिविंग एरिया में पापा के पास बैठी थी। तभी उसकी कजिन ने उसका फोन लाकर दिया कि दी देखो किसी लैब से फोन है।

लैब का नाम सुनते ही मोना की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। उसने फोन के स्पीकर पर हाथ रखकर कजिन से पूछा कि तुम्हें सब पता चल गया क्या?

हां, दी…कहकर उसकी बहन किचन में भाग गई थी। वह उसे रोकती कि वह मम्मी के पास जा चुकी थी। यह सुनकर तो मोना फेंट हो चुकी थी।

पानी के छींटें मारने के बाद उसकी आंख खुली तो पाया कि सबके सब उसके इर्द-गिर्द खड़े उसे देख हंस रहे हैं।

मोना का चेहरा देखने लायक था। उनकी इस हंसी को देखते ही मोना रूआंसी हो गई कि तभी उसकी मम्मी-पापा ने उसे हग कर लिया और बताया कि तेरे लिए लैब से फोन था, जिससे पता चला कि तुझे कोई एसटीडी-वैसटीडी नहीं है। बल्कि तुझे कोई रोग ही नहीं है।

इतना कहते हुए एक बार फिर सब हंस दिए थे और मोना बिल्कुल ब्लैंक हो गई थी और नजरों में सवाल लिए थी। तभी उसकी मम्मी ने बताया कि तुम्हारी रिपोर्ट किसी मानक नाम के लड़के से बदल गई थी और पता चलते ही वो काफी टाइम से तुम्हारा कॉल ट्राई कर रहे थे। उस लैब ने अपनी गलती मानते हुए टेस्ट के चार गुना पैसे भी तुमको रिटर्न किए हैं जो तुम बर्थडे गिफ्ट समझकर रख लेना।

मोना न जाने खुशी या सदमे में थी कि गुप्त रोग न होने की खबर से उसके चेहरे पर स्माइल तो थी लेकिन उसकी आंखों से आंसू बहे जा रहे थे..। मोना को ये सोचकर खुद पर हंसी भी आ रही थी कि जाने कैसे उसने घबराहट में यह मान लिया कि एक किस करने से ही उसे गुप्त रोग हो गया होगा। उसका ये बर्थडे वाकई यादगार बन गया था।

-गीतांजलि

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