6 घंटे पहले

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8 मार्च (शुक्रवार) को महाशिवरात्रि है। इस दिन शिव जी की पूजा के साथ ही उनसे जुड़ी कथाएं पढ़ने-सुनने की परंपरा है। आज जानिए शिव-पार्वती से जुड़ी एक ऐसी कथा, जिसमें देवी पार्वती ने किसी के बहकावे न आने की सीख दी है। देवी पार्वती शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए तप कर रही थीं। देवर्षि नारद ने पार्वती को ये सलाह दी थी कि वे तप करके शिव जी को प्रसन्न करें, इसके बाद ही शिव-पार्वती का विवाह हो सकता है।

पार्वती जी को तपस्या करते हुए देखकर शिव जी ने तय किया कि देवी से विवाह करने से पहले उनकी परीक्षा लेनी चाहिए कि इनका मेरे लिए प्रेम और विश्वास कितना गहरा है।

शिव जी ने सप्त ऋषियों से कहा कि आप जाकर पार्वती जी की परीक्षा लीजिए।

शिव जी की आज्ञा से सभी सप्त ऋषि देवी के पास पहुंच गए। पार्वती जी से सप्त ऋषियों ने पूछा कि आप किसके लिए इतना कठोर तप कर रही हैं?

पार्वती जी ने कहा कि मेरे मन ने हठ पकड़ ली है कि मुझे शिव जी से विवाह करना है। देवर्षि नारद मेरे गुरु हैं और उन्होंने कहा है कि मुझे पति के रूप में शिव जी को प्राप्त करना चाहिए और इसीलिए मैं शिव जी को पाने के लिए तप कर रही हूं।

सप्त ऋषियों ने कहा कि नारद के कहने से आज तक किसी का भला नहीं हुआ है। नारद तो कहीं भी मांगकर खा लेते हैं, आराम से रहते हैं, उन्हें किसी बात की कोई चिंता नहीं है। उनकी बात पर ध्यान मत दो। हमारी बात मानो, हमने आपके लिए वैकुंठ का स्वामी और बहुत सुंदर वर चुना है। आप उनसे विवाह कर लीजिए।

पार्वती जी ने कहा कि मेरे पिता हिमाचलराज हैं, मेरा शरीर पर्वत से बना है, इसलिए मैंने जो हठ कर ली है, वह अब छूटेगी नहीं। जिस तरह तपने के बाद भी अपना स्वभाव नहीं छोड़ता है, ठीक उसी तरह मैं अपना स्वभाव नहीं छोड़ूंगी। मुझे मेरे गुरु की बात पर भरोसा है। मैं तप करके शिव जी को ही पति के रूप में प्राप्त करूंगी।

पार्वती जी की ये बातें सुनकर सभी सप्तऋषि प्रसन्न हो गए और देवी को आशीर्वाद देकर लौट आए। इसके बाद शिव-पार्वती का विवाह हुआ।

देवी पार्वती की सीख

इस कथा में देवी पार्वती ने हमें सीख दी है हम जो भी निर्णय करते हैं, अगर वह सही है तो उस पर टिके रहना चाहिए। अपना काम करते समय किसी के बहकावे में भी नहीं आना चाहिए। तभी सफलता मिल सकती है।

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