3 घंटे पहले

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“यहां रहने वाले ज्यादातर लड़के-लड़कियां गांव-देहात से आए हैं। सब अपने साथ आईएएस बनने का सपना लेकर आते हैं। किसी तरह बस यूपीएससी में पास हो जाएं। कुछ एक ही प्रयास में सफल हो जाते हैं, कुछ दो-तीन प्रयासों के बाद और कुछ कभी नहीं। तो वे यहीं किसी तरह जुगाड़ कर अपना कोचिंग इंस्टिट्यूट खोल लेते हैं और उन बच्चों को पढ़ाने से ही अपने अधूरे सपने को पूरा करने की कोशिश करते हैं।

मेंस और इंटरव्यू में निकल पाना भी हंसी-खेल नहीं है। पिछले बीस सालों से मेरे सामने कितने बच्चे आए और कितने गए। बहुत से हादसे होते भी देखे। लेकिन यही कहूंगा कि हिम्मत कभी मत हारना, क्योंकि मां-बाप अपनी जमापूंजी इसलिए बच्चों पर लगा देते हैं ताकि उनका भविष्य बन जाए,” मिस्टर मलिक जिन्हें उस मोहल्ले में सब मालिक चाचा कहते हैं, ने बहुत लंबी चौड़ी हिदायत देने के बाद मेरे हाथ में कमरे की चाबी थमाई।

उनके जाने के बाद मैंने राहत की सांस ली। घर से निकलते समय क्या अम्मा की सीख कम थी जो मालिक चाचा ने भी भाषण की कतरने मेरे ऊपर चिपका दीं। पापा ने तो केवल पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने की बात कही थी, पर अम्मा ने तो कसम देकर भेजा था। “देख राजवा, मैं जानती हूं तू दिल लगाकर पढ़ाई करेगा और बड़ा आदमी भी बनेगा। पर तुझे कसम है जो किसी बुरी संगत में पड़ा या बुरी आदतें डाली और प्रेम के चक्कर में तो बिल्कुल मत पड़ियो। सुना है शहर की लड़कियां जादुगरनी होवे हैं। वश में करना जानती हैं।”

मैंने बस उन्हें टुकुर-टुकुर ताकते हुए हां में सिर हिला दिया था एक आज्ञाकारी बेटे की तरह। यहां जय भैया थे हमारे गांव के इसलिए पापा निश्चिंत थे। सो बीएससी करने के साथ-साथ कोचिंग क्लास में भी मैंने नाम लिखा लिया भैया के कहने पर। सब बढ़िया चल रहा था। कमरे में सब सामान जुटा दिया था भैया ने और खाना बनाना तो जानता ही था मैं, इसलिए कोई खास दिक्कत नहीं आई नई जगह पर। दोस्त भी बन गए, क्योंकि पढ़ाई में अच्छा हूं और नोट्स देकर मदद भी कर देता हूं।

जय भैया के रूआब की वजह से जो यूपीएससी क्लियर न करने के बाद बरसों से यहां रह रहे थे और खुद कई कोचिंग सेंटर में पढ़ाते थे, मुझे लड़के कम ही तंग किया करते थे। जबकि फ्रेशर को किसी न किसी बात पर परेशान करने का चलन था वहां। अम्मा की कसमें टूट जाएं, ऐसा संभव भी नहीं लग रहा था।

वैसे भी मैं देखने में एकदम गऊ लगता हूं। देहात के लड़के होने के सारे गुण चेहरे पर दिखते हैं। न महंगे कपड़े पहनता हूं, न किसी स्टाइल के पीछे भागता हूं। कॉलेज में और कोचिंग सेंटर में भी प्रोफेसर मुझे मेरे ज्ञान की वजह से मुझे पसंद करते हैं। नहीं…नहीं, यह मत समझिए कि मैं अपना गुणगान कर रहा हूं।

दोस्त कहते हैं, “राज, कोई तो बात है तुममें। इतने भोले-भाले और प्यारे हो। ऊपर से इंटेलिजेंस की जैसे हरियाली उगी हुई है तुम्हारे दिमाग में। तुम हो तो हम मौज-मस्ती कर पाते हैं। पता है हमें नोट्स दे दोगे और हमारे असाइनमेंट भी कर दोगे।”

खैर, दोस्त अच्छे ही मिले हैं मुझे। एक-दो बार डांट दिया तो मुझे अपने साथ यहां-वहां आवारागर्दी करने के लिए ले जाने से अब परहेज करते हैं।

सब ठीक चल रहा था कि तभी हवा के झोंके की तरह उसका आगमन हुआ। नई स्टूडेंट नहीं थी, बस उसने सेक्शन बदला था समय के कारण। हमारी क्लासेस शाम चार बजे तक खत्म हो जाती थीं और वह उसके लिए ठीक था क्योंकि वह दूर रहती थी। अब क्या बताऊं अम्मा मुझे डर है कि कहीं तुम्हारी कसम न टूट जाए। तुम ही कहो अम्मा मैं कैसे रोकूं अपनी गर्दन को उस दिशा में घूमने से जहां से खुशबू आ रही है? कैसे रोकूं अपनी आंखों को उसे देखने से जो सामने से लहराती हुई चली आ रही है? अम्मा माफ करना…लगता है तुम्हारी कसम टूट कर ही रहेगी।

चाहे कितना ही प्रण कर लो, पर दिल को समझाना बड़ा मुश्किल काम है। वह बस में रहना जानता ही नहीं है। झट से कमीज को लांघकर, एक-दो बटनों को शहीद कर, बाहर निकल आता है। मेरा भी निकल आया है अम्मा। मैं बस देखे जा रहे हूं उसको।

वह तो मेरे ही बगल में आकर बैठ गई है। क्या और कोई सीट खाली नहीं? मैंने दाएं-बाएं देखते हुए सोचा।

“हैलो।” उसके मधुर स्वर में भी जैसे कोई खुशबू खुली हुई है।

“आई एम स्वीटी,” उसने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा। नाम तो स्वीटी होगा ही इसका!

“राज,” बहुत ही हौले से मैंने जवाब दिया अपने हाथों को कसकर अगल-बगल में दबाते हुए। झूठ नहीं कहूंगा, हाथ तो बेचैन हो रहे थे उसका हाथ थामने को। कैसे छू सकता हूं मैं उसे। डरता हूं कि कहीं भस्म ही न हो जाऊं। सच कहा था अम्मा तुमने कि शहर की लड़कियां जादुगरनी होती हैं, वश में कर लेती हैं। मैं डूब रहा था उसकी आंखों में जिनसे वह मुझे हैरानी से देख रही थी। ठीक भी है क्लास के लड़के उसे देख ठंडी आह भरने लगे थे और मैं था कि उसे कोई भाव नहीं दे रहा था। हालांकि मेरा खुद पर से नियंत्रण चुक रहा था।

उस दिन जवाब आने के बावजूद मैं प्रोफेसर के सवालों पर चुप रहा। हैरानी मुझे भी कम नहीं हो रही थी। क्लास खत्म होने के बाद भी वह लगातार मुझसे बात करती जा रही थी और मैं सिर्फ सुन रहा था। तब अंकुर ने आकर बात संभाली, “कम बोलता है हमारा यार। देहात से आया है ना, हिचकता है। शहर की हवा नहीं लगी है अभी। हमसे जितनी चाहे बातें कर लो तुम स्वीटी।”

“मुझे जिससे बात करनी होगी करूंगी। तुम्हारे मशवरे के लिए थैंक्स।” वह दनदनाती हुई क्लास से बाहर निकल गई और बहुत सारे लड़के बेंच पर लेटकर गाने लगे, “दिल ले गई कुड़ी क्लास की।”

बड़ी मुश्किल से खुद को संभालते, दोस्तों की छेड़खानी से बचते, कमरे तक पहुंचा तो मालिक चाचा बाहर गेट पर खड़े ही मिल गए। वह अपने नाखून काट रहे थे। मैं नमस्ते कर गेट के अंदर घुसा ही था कि बोले, “राज बेटे, पढ़ाई कैसी चल रही है? देखो किसी लड़की के चक्कर में मत पड़ना। न जाने कितने होशियार लड़कों को बर्बाद होते देखा है प्रेम के चक्कर में।”

मुझे बहुत कोफ्त हुई यह सुनकर। आज ही इन्हें भी इसी बात पर लेक्चर देना था जब दिल और दिमाग पर ‘कुछ-कुछ होता’ की धुन बज रही है। उस दिन किताबें सामने खुली रहीं और मैं अक्षरों में स्वीटी का नाम ही ढूंढता रहा। क्या सच में कुछ-कुछ होना इसी को कहते हैं? यह फिल्म मैंने भी देखी थी, पर तब यह नहीं समझ आया था कि प्रेम ऐसी दीवानगी भी पैदा कर सकता है कि मेरे जैसा सीधा-सादा लड़का भी जिसका ध्येय केवल लाल बत्ती की गाड़ी में बैठ समस्याओं का निराकरण करना और देश बदलना है, इसके लपेटे में आ सकता है!

अम्मा कभी शहर नहीं आईं, पूरी जिंदगी गांव में गृहस्थी संभालते गुजार दी और पढ़ी भी केवल पांचवीं तक हैं, फिर भी उन्हें प्रेम के बारे में इतना ज्ञान है। प्यार पर लिखा चैप्टर उनसे अच्छा कौन समझा सकता है?

बहुत याद आ रही है अम्मा तुम्हारी, पर झूठ नहीं कहूंगा। स्वीटी मेरे दिल में उतर गई है…अब अगर इसे ही प्रेम कहते हैं तो समझ लो टूट गई तुम्हारी कसम।

कुछ-कुछ होना, क्या होता है, देर से सही, पर समझ आ रहा है।

अगले दिन स्वीटी को अपनी सीट की ओर आते देख मैंने खिसककर उसके लिए जगह बना दी। हालांकि जब वह मुस्कराई, तो मैंने कुछ लिखने के बहाने रजिस्टर पर अपनी नजरें गड़ा दीं।

“कुछ लिख रहे हो?” खुशबू में घुले उसके मधुर स्वर ने मेरे कानों का स्पर्श किया तो मैं सिहर उठा। सोचा कह दूं कि कुछ नहीं लिख रहा, बहुत कुछ लिखने को मन कर रहा है। कुछ-कुछ हो जो रहा है।

-सुमन बाजपेयी

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