तेहरान3 घंटे पहले

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2016 में ईरान के दौरे पर गए थे। इसी दौरान चाहबार पोर्ट पर चर्चा हुई थी। - Dainik Bhaskar

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 2016 में ईरान के दौरे पर गए थे। इसी दौरान चाहबार पोर्ट पर चर्चा हुई थी।

ईरान के चाबहार में शाहिद बेहेशती पोर्ट को भारत ने 10 साल के लिए लीज पर ले लिया है। भारत और ईरान के बीच यह डील सोमवार को हुई। अब पोर्ट का पूरा मैनेजमेंट भारत के पास होगा। भारत को इसके जरिए अफगानिस्तान और सेंट्रल एशिया से व्यापार करने के लिए नया रूट मिल जाएगा। पाकिस्तान की जरूरत खत्म हो जाएगी।

यह पोर्ट भारत और अफगानिस्तान को व्यापार के लिए वैकल्पिक रास्ता मुहैया कराएगा। डील के तहत भारतीय कंपनी इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) चाबहार पोर्ट में 120 मिलियन डॉलर का निवेश करेगी।

चाबहार पोर्ट के समझौते के लिए भारत से केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल को ईरान भेजा गया था। भारत और ईरान दो दशक से चाबहार पर काम कर रहे हैं। चाबहार विदेश में लीज पर लिया गया भारत का पहला पोर्ट है।

क्या है चाबहार पोर्ट और भारत के लिए क्यों जरूरी है
भारत दुनियाभर में अपने व्यापार को बढ़ाना चाहता है। चाबाहार पोर्ट इसमें अहम भूमिका निभा सकता है। भारत इस पोर्ट की मदद से ईरान, अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के साथ सीधे व्यापार कर सकता है। ईरान और भारत ने 2018 में चाबहार पोर्ट तैयार करने का समझौता किया था।

पहले भारत से अफगानिस्तान कोई भी माल भेजने के लिए उसे पाकिस्तान से गुजरना होता था। हालांकि, दोनों देशों में सीमा विवाद के चलते भारत को पाकिस्तान के अलावा भी एक विकल्प की तलाश थी। चाबहार बंदरगाह के विकास के बाद से अफगानिस्तान माल भेजने का यह सबसे अच्छा रास्ता है। भारत अफगानिस्तान को गेंहू भी इस रास्ते से भेज रहा है। अफगानिस्तान के अलावा यह पोर्ट भारत के लिए मध्य एशियाई देशों के भी रास्ते खोलेगा। इन देशों से गैस और तेल भी इस पोर्ट के जरिए लाया जा सकता है।

अमेरिका ने भारत को इस बंदरगाह के लिए हुए समझौतों को लेकर कुछ खास प्रतिबंधों में छूट दी है। चाहबार को पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट की तुलना में भारत के रणनीतिक पोर्ट के तौर पर देखा जा रहा है। ग्वादर को बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट के तहत चीन विकसित कर रहा है।

पोर्ट के लिए भारत ने अब तक क्या-क्या किया
चाबहार पोर्ट पर अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय से काम चलता आया है। 2003 में तब इसे लेकर दोनों देशों के बीच बातचीत हुई थी। इसके बाद अमेरिका की ईरान से चल तनातनी से बातचीत को बीच में ही रोकना पड़ा था। फिर UPA सरकार के दौरान 2013 में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसके लिए 800 करोड़ रुपए निवेश करने की बात कही थी।

इस पर बात तब आगे बढ़ी जब 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ईरान का दौरा किया था। मोदी ने ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी के साथ इस समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। भारत ने चाबहार के एक टर्मिनल में 700 करोड़ रुपए निवेश करने की घोषणा की थी। साथ ही भारत ने इस बंदरगाह के विकास के लिए 1250 करोड़ रुपए का कर्ज देने की भी घोषणा की थी।

फिर पिछले साल नवंबर में, विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने ईरानी विदेश मंत्री होसैन अमीर-अब्दुल्लाहियन के साथ कनेक्टिविटी को बढ़ावा देने पर चर्चा की। चाबहार को विकसित करने वाली भारतीय कम्पनी IPGL के अनुसार, बंदरगाह के पूरी तरह विकसित होने पर इसकी क्षमता 82 मिलियन टन हो जाएगी।

इससे ईरान के बंदर अब्बास बंदरगाह से भीड़ कम करने में राहत मिलेगी। इसी के साथ इसके नई तकनीक से बने होने के कारण यहां माल की आवाजाही आसानी से हो सकेगी।

दैनिक भास्कर ने चाबहार पोर्ट के मामले में अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार और JNU में प्रोफेसर राजन कुमार से बात की…

सवाल 1: भारत को चाबहार पोर्ट से क्या फायदा होगा?

जवाब: पहले सरकार का ऐसा कोई प्लान नहीं था। सरकार अफगानिस्तान को कनेक्ट करना चाहती थी। सरकार ने वहां डायरेक्ट रेल प्रोजेक्ट के लिए काफी इन्वेस्टमेंट किया, जिसका सामान पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से होकर जाता था। बाद में पाकिस्तान ने अपना पोर्ट भारत के लिए बंद कर दिया, जिससे हमारा सामान अफगानिस्तान के साथ बाकी देशों में जाना बंद हो गया।

इसके बाद भारत को ईरान के चाबहार पोर्ट का सहारा दिखा। चाबहार पोर्ट इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट (INSTC) कॉरिडोर जोड़ता है। INSTC रूस से शुरू होता है जो अजरबैजान के रास्ते ईरान को जोड़ता है। फिर ईरान का चाबहार पोर्ट नवी मुंबई के जवाहरलाल नेहरू पोर्ट को जोड़ता है। यहीं पोर्ट सेंट्रल एशिया, यूरोप और मिडिल ईस्ट को जोड़ता है।

INSTC के जरिए रूस और सेंट्रल एशिया के देश अपना व्यापार बढ़ाना चाहते हैं। INSTC से आर्मेनिया, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्की, यूक्रेन, बेलारूस, ओमान और सीरिया भी जुड़े हुए हैं। अब तक बंदर अब्बास (ईरानी पोर्ट) से व्यापार होते आया है। भारत की कोशिश है कि इसे भी INSTC में जोड़ दिया जाए। इसके लिए भारत वहां काफी ज्यादा इन्वेस्टमेंट कर रहा है। इसके बन जाने से सबसे ज्यादा फायदा भारत को होगा। इस प्लान के तहत भारत 30 दिन के अंदर अपना सामान यूरोप पहुंचा पाएगा।

इसकी दूसरी वजह ये है कि चाबहार पोर्ट और पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट के बीच की दूरी लगभग 170 किलोमीटर है। यहां ज्यादा इन्वेस्टमेंट करने से भारत को एकाधिकार मिल जाएगा, जिससे भारत पाकिस्तान की हरकतों पर नजर रख सकता है।

सवाल 2: ये पोर्ट चीन के बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट को कैसे मात देगा?

जवाब: चीन का पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट में भारी इन्वेस्टमेंट है। ग्वादर पोर्ट में चीन की मर्जी चलती है। इसी का विकल्प भारत को ईरान का चाबहार पोर्ट दिखता है। यहां से भारत दोनों देशों पर नजर रख सकता है। पिछले कुछ सालों से मिडिल ईस्ट के देशों में चीन का इन्वेस्टमेंट लगातार बढ़ रहा है।

इसी को काउंटर करने के लिए भारत ईरान के चाबहार पोर्ट पर भारी मात्रा में इन्वेस्टमेंट कर रहा है। चाबहार पोर्ट से जमीन के रास्ते सेंट्रल एशिया में सीधे व्यापार किया जा सकता है।

सवाल 3: इसका मिडिल ईस्ट कॉरिडोर पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

जवाब: 2023 में G20 की बैठक के दौरान इंडियन मिडिल ईस्ट यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर (IMEC) पर सभी देशों की सहमति बनी थी। इस कॉरिडोर से भारत, मिडिल ईस्ट और यूरोप के साथ व्यापार कर पाएगा है। इसमें भारत, UAE,सऊदी अरब, जॉर्डन, इजराइल, ग्रीस और यूरोप शामिल हैं।

इसके बाद से ही ईरान परेशान था। उसे लगने लगा था कि वो दुनिया में अकेला न रह जाए। रूस यूक्रेन जंग के कारण पूरी दुनिया में अलग होने लगा था। ईरान-रूस को चाबहार पोर्ट से फिर से दुनिया के बाकी देशों के साथ व्यापार का मौका मिलने लगेगा। लिहाजा वो इसके लिए मान गए।

सवाल 4: भविष्य में अमेरिका क्या करेगा?

जवाब: भारत ने इस पोर्ट को लेकर अमेरिका से भी बात की है, जिससे वो ईरान पर कोई ऐसा प्रतिबंध नहीं लगाएगा, जिसका असर इस पोर्ट पर पड़े। अमेरिका चाबहार पोर्ट पर कुछ खास नहीं कर सकता है। इसमें केवल रूस और ईरान ही असर डाल सकते हैं। हालांकि कई सारे देश ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध के कारण इसमें इन्वेस्टमेंट नहीं कर सकते हैं।

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