9 मिनट पहले
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सीलन और हल्की रोशनी वाले गलियारे में ठक-ठक-ठक की आवाज गूंज रही थी। हाई हील्स, रेड साड़ी, ब्लैक ब्लाउज में डॉ. रीना मलिक सधे कदमों से जेल के अहाते से होकर अपने केबिन में जा रही थीं। यरवदा सेंट्रल जेल में डॉ. रीना की पोस्टिंग कैदियों की काउंसिलिंग के लिए हुई थी। उसे कोई अंदाज नहीं था कि किस्मत उसके लिए इस जेल में क्या प्लानिंग किए बैठी है।
जॉर्जिया यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट कर भारत लौटी रीना का अपना कहने के लिए कोई नहीं था। इसलिए वह ज्यादातर समय जेल की चारदीवारी के बीच कैदियों को समझने, उनकी मेंटल हेल्थ और वेलबीइंग का ख्याल रखने में बिताती। बचे हुए समय में या तो वो महिला कैदियों के बच्चों को पढ़ाती या कैदियों की काउंसिलिंग से मिले अनुभवों को दर्ज कर रिसर्च पेपर तैयार करती। क्रिमिनल साइकोलॉजी में डॉक्टरेट के दौरान उसने देखा था कि भारत में कैदियों की मेंटल हेल्थ, साइकोलॉजी पर स्टडी न के बराबर थी। इसलिए वह इस फील्ड में काम करना चाहती थी।
वह बच्चों को पढ़ा रही थी कि जेलर ने उसे अर्जेंट बुलावा भेजा। पता चला कि एक कैदी रोहन शाह तीसरी बार सुसाइड अटेम्प्ट कर चुका है। आज उसने अपना सिर सलाखों पर दे मारा था। फिलहाल उसका ट्रीटमेंट चल रहा था। जेलर ने डॉ. रीना से रिक्वेस्ट की कि वो अपने वीकली शेड्यूल में इस कैदी को प्रायोरिटी पर शामिल करें। इसे काउंसिलिंग की सख्त जरूरत थी। रीना उसकी केस फाइल लेकर अपने केबिन में लौट आई।
अगले दिन पट्टियां बांधे रोहन उसके सामने खड़ा था। रीना को अब तक पता चल चुका था कि उम्रकैद काट रहा रोहन अपनी पत्नी के मर्डर के बाद यहां पहुंचा है। उसने पहले भी मर्डर और सुसाइडल टेंडेंसी वाले पेशेंट की काउंसिलिंग की थी। इसलिए उसे ये केस मुश्किल नहीं लगा। लेकिन एक घंटा बीतने के बाद भी जब रोहन के मुंह से एक शब्द नहीं निकला तो रीना समझ गई कि यह केस इतना भी आसान नहीं है।
उसकी वाइफ की सस्पेंसफुल डेथ और रोहन के मौका-ए-वारदात पर कत्ल के हथियार के साथ पाए जाने के बाद कोर्ट ने उसे मर्डर का दोषी माना था। गिरफ्तारी के बाद से केस की सुनवाई पूरी होने तक उसने न अपनी सफाई में कुछ कहा था और न ही अपनी गलती मानी थी।
रीना ने जेलर से स्पेशल परमिशन ली कि वह दिन के वक्त जब चाहे रोहन से मिल सकती है। उसने रोहन की बैरक भी कॉरिडोर के सामने करवा दी थी। अब वह रोहन की एक्टिविटीज को अपने केबिन की खिड़की से देख सकती थी। वह उसकी हर एक मूवमेंट, हर एक्टिविटी को अपनी डायरी में नोट करने लगी। शाम सात बजे का सायरन बजते ही रोहन बैचेन हो जाता। वह अपनी बैरक में टहला करता या ग्रिल पकड़कर लगातार बाहर कुछ देखने की कोशिश करता। बाकी पूरे समय वह या तो लेटा रहता या सिर झुकाए, नजरें नीची किए फर्श की ओर देखता रहता।
हफ्ते भर बाद रोहन के सिर की पट्टी खुली तो रीना ने अपने पेशेंट नहीं एक इंसान की हैसियत से देखा। लंबा कद, गोरा रंग, मजबूत जिस्म और किसी को ढूंढती मगर कहीं खोई हुई आंखें। अगर वह जेल में न होता तो रोहन की पर्सनैलिटी ऐसी जरूर थी कि राह चलती लड़कियां उसे एक बार पलटकर जरूर देखती या कम से कम उसके बारे में एक बार सोचतीं जरूर।
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रीना ने तय किया कि वह शाम के वक्त ही रोहन से बात करने की कोशिश करेगी। उसकी हफ्ते भर की मेहनत रंग लाई। जेलर खुश थे कि रोहन ने कम से कम रीना की ओर देखना शुरू तो किया था। हालांकि अब भी रीना को लगता कि वह किसी पत्थर से बात कर रही है। लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी।
अगले हफ्ते रोहन पूरे सेशन के दौरान रोता रहा था। वह खुश थी कि आखिरकार उसके सबसे टफ ‘सबजेक्ट’ ने उसकी बातों पर रिस्पॉन्ड करना शुरू किया था। रीना की कोशिश थी कि वह रोहन से उसकी जिंदगी के बारे में तफ्सील से जाने, लेकिन रोहन अतीत के जख्म पर हाथ रखते ही बेचैन हो जाता। रीमा ने जेलर से परमिशन ली कि वह रोहन को दो-तीन घंटे के लिए बैरक से बाहर रखना चाहती है।
इस केस में इंप्रूवमेंट होते देख जेलर ने ये परमिशन भी दे दी। रीना ने रोहन की केस फाइल पढ़कर इस सेशन के लिए अपने केबिन का ठीक वैसा सेटअप किया था जैसा उस कमरे का था जिसमें रोहन की वाइफ की डेड बॉडी मिली थी इस कमरे में कदम रखते ही रोहन ठिठक गया, लेकिन रीना उसका हाथ पकड़कर उसे अंदर ले गई। आज पहली बार रोहन ने रीना से कहा- ‘वो बहुत अच्छी थी। मैं उसे मारना नहीं चाहता था।’
रीना के लिए यह बड़ी सफलता थी। अब उसने रोहन के सेशन बढ़ा दिए थे और उसमें वह अलग-अलग टेक्नीक आजमाती। इसका असर भी दिखने लगा। रोहन रीना के सेशन में खुलने लगा था। रीना उसके गिल्ट और रिमोर्स की तह तक जाना चाहती थी और पूरी बात जानना चाहती थी। फिलहाल यही उसका एकमात्र मकसद नजर आ रहा था। अब उसके सेशन भी लंबे होने लगे थे।
रीना देख सकती थी कि रोहन को कुरेदने से वह अंदर तक लहूलुहान हो जाता। रोहन उसकी गोद में सिर रखकर घंटों रोता रहता। रीना को उसे बच्चों की तरह चुप कराना पड़ता। रोज के कई सेशन और रीना का असेसमेंट कहता था कि रोहन उस क्राइम के गिल्ट में जी रहा था, जो उसने शायद किया ही नहीं था। लेकिन न जाने क्यों रीना अपने ही इस नतीजे को मानने के लिए तैयार नहीं थी।
वह सोचती थी कि रोहन अपने अंदर कुछ रोक रहा है। शायद यह डॉक्टर और उसके मरीज के बीच की झिझक थी। रीना का मानना था कि इस रुके हुए के बाहर आने से ही रोहन के गिल्ट और उसकी वाइफ के मर्डर की गुत्थी सुलझेगी। वह जितना ज्यादा ये मानकर चल रही थी कि रोहन ने ही अपनी पत्नी का कत्ल किया है, उतनी ही ज्यादा उसे रोहन से सहानुभूति होती जा रही थी। रोहन को खंगालने की हद रोज उसके टॉर्चर पर खत्म होती थी। इस सेशन के अगले कई घंटों तक रोहन बिना खाए-पिए फर्श पर ऐसा निस्तेज पड़ा रहता जैसे किसी ने उसे करंट के झटके दिए हों। जेलर ने एक-दो बार रीना से पूछा भी कि रोहन की हालत बेहतर हो रही है या बदतर। लेकिन रीना के भरोसा दिलाने के बाद जेलर भी चुप हो गए थे।
रोहन के हाथों हुए जघन्य अपराध, उसके सीने में बसे बेइंतहा दर्द और गिल्ट की कई परतों के नीचे रीना को एक आम इंसान की रोशनी नजर आ रही थी। वह न चाहते हुए भी उस रोशनी की खोज में गहरी उतरती चली गई। जेल की तंग दीवारों के बीच रीना अपने अंतस को सेल नंबर-112 में पाती थी। उसका पेशेंट रोहन उसके ख्यालों पर काबिज हो चुका था।
रीना को उसके कॉलेज के दिन याद आ गए जब ‘हाइब्रिस्टोफीलिया’ के टॉपिक पर पूरी क्लास में उसकी हंसी छूट गई थी। किसी अपराधी के जुर्म और उसकी सोच को जानते हुए भी उससे रोमांटिक फीलिंग डेवलप हो जाने को क्रिमिनल साइकोलॉजी में यही नाम दिया गया था। पूरे वक्त प्रोफेशनल किरदार में रहने के बावजूद रीना रोहन के सेशन के बाद खुद को दिल के हाथों मजबूर मानने लगती।
इस जादू की गिरफ्त से बचने के लिए रीना ने कुछ दिन का ब्रेक लेकर जेल से बाहर जाना बेहतर समझा। वैसे बाहर की दुनिया उसे जेल से ज्यादा पेचीदा लगी। ऐसी ही एक शाम वह बार में बैठी अकेली बीयर पी रही थी कि तीन शोहदों ने उसे अकेली जानकर छेड़ने की कोशिश की। पहले तो उसने उन्हें इग्नोर किया, लेकिन जब वे उसकी टेबल तक आ गए और उनमें से एक ने उसका हाथ पकड़ा तो रीना ने अपनी टेबल पर रखी बीयर की दो बोतलें दोनों हाथों में ली और घुमाकर उसके सिर पर दे मारी। पूरे बार में भगदड़ मच गई। वह लड़का रीना की टेबल पर पड़ा अपने ही खून से सन चुका था। बार मैनेजर ने पुलिस को फोन कर दिया था। अगला सूरज उगने और रीना का नशा उतरने तक वह घटना घट चुकी थी जिसकी उसने सपने में भी कल्पना नहीं की थी। वह लड़का कोमा में था और रीना उसी जेल में कैदी बन गई जहां वह डॉक्टर थी।
उसे रोहन के बगल वाला सेल नंबर 112 मिला था। रोहन ने उससे बात करने की कोशिश की तो रीना ने मुंह फेर लिया था। लेकिन जब उसने रीना से कहा, ‘तुम्हारे जाने के बाद मुझे याद आ गया कि उस रात क्या हुआ था’ तो रीना से रहा नहीं गया। रोहन ने बताया कि उसे और उसकी वाइफ सिंधु को उस रात एक फ्रेंड के घर पार्टी में जाना था। रोहन का जाने का बिल्कुल मन नहीं था तो वह शाम से ही शराब पी रहा था।
वाइफ सिंधु कई दिनों से उससे घर का फ्यूज बदलने के लिए कह रही थी, जिसे वह टालता आ रहा था। उस शाम सिंधु ने हेयर स्ट्रेटनर को जैसे ही प्लग-इन किया, घर के एक हिस्से की लाइट चली गई और वह जोर से चीख पड़ी। पहले उसे लगा कि सिंधु गुस्से में चीखी है, लेकिन जब उसकी चीख नहीं रुकी हुई तो वह भागकर अंदर गया। सिंधु करंट लगने से छटपटा रही थी। उसने हेयर स्ट्रेटनर का स्विच ऑफ कर सिंधु को धक्का दिया तो उसका सिर अलमारी से जा लगा और वह उसके बाद नहीं उठी। सिंधु की चीख सुनकर नौकर भी आ गए थे। उन्होंने डॉक्टर को फोन किया और डॉक्टर ने पुलिस को। सिंधु इस दुनिया से जा चुकी थी। उस पर पत्नी को करंट देकर मारने का इल्जाम लगा। सिंधु के जाने के बाद वह कई दिन तक बेसुध रहा और खुद को गुनहगार मानता रहा। इसलिए उसने चुपचाप वही मान लिया जो पुलिस कह रही थी।
रीना अपने सेल से चीख पड़ी कि तुम झूठ बोल रहे हो। तुमने ही मेरी बहन सिंधु को मारा है। क्योंकि तुम उससे नहीं किसी और से प्यार करते थे।
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‘मेरी बहन सिंधु’ सुनकर रोहन चौंका। उसने कहा सिंधु ने तो मुझसे कहा था कि उसका इस दुनिया में कोई नहीं है।
रीना के सेल से आवाज आई- वो इसलिए क्योंकि मेरे लाख मना करने के बावजूद तुम जैसे घटिया इंसान से शादी का फैसला करने के बाद हम दोनों एक-दूसरे के लिए मर गए थे। लेकिन खून का रिश्ता नहीं मरता। इसलिए मैं अपनी बहन के मर्डर की कहानी तुम्हारे मुंह से सुनने के लिए यहां आई थी।
रोहन ने मायूस आवाज में कहा- ‘तो फिर तुमको भी मुझसे नाउम्मीद होना पड़ेगा जैसे सिंधु को होना पड़ा था। मेरी डायरी पढ़ने के बावजूद उसने मुझसे शादी की। मैं हार्टब्रेक और सिंधु से शादी के गिल्ट से नहीं निकल सका और शराब पीने लगा। उसी ने मेरी एक्स को ढूंढा था और उससे दोस्ती की थी ताकि मुझे नॉर्मल कर सके। उस हादसे वाली शाम हम मेरी एक्स के घर पर ही डिनर के लिए जाने वाले थे। मैं वहां नहीं जाना चाहता था, पर वो ये सब मेरे लिए ही कर रही थी। मैं उसे क्यों मारता रीना?’
इसके बाद दोनों बैरक में खामोशी छा गई और कुछ देर बाद रीना के सुबकने की आवाज आने लगी। रोहन उसकी बहन का हत्यारा न सही, लेकिन उस हादसे की एक वजह तो था ही। लेकिन उसने पिछले कुछ दिनों से जो भी रोहन के लिए महसूस किया था और जिससे वह हर हाल में बचना चाह रही थी, वही फीलिंग उसे फिर से घेरने लगी थी।
रीना इसी दोराहे पर थी कि वह अपनी बहन की मौत की वजह बने इंसान से दूर रहे या अपने दिल की सुने? पूरी रात सोचने के बाद उसने पाया कि सच, प्यार और इंसाफ शायद ऐसी चीज हैं जिन्हें हमेशा ब्लैक एंड व्हाइट में नहीं देखा जा सकता। कई बार ये ब्लैक एंड व्हाइट के बीच ग्रे शेड्स में भी मिलते हैं।
अगली सुबह जब रीना का वकील उसके बेल पेपर लेकर आया तो रीना ने जो फैसला लिया उसे तर्क और समझदारी से परे कहा जा सकता है। उसने कहा, ‘मुझसे ज्यादा रोहन को बेल की जरूरत है। वह उस जुर्म में सजा काट रहा है, जो उसने किया ही नहीं है। आप इस केस को रीओपन करने की तैयारी करें। मैं सलाखों के इस तरफ रहूं या उस तरफ, मुझे कैदियों की काउंसिलिंग ही करनी है। क्यों जेलर साहब?’
उसके सेल के बाहर खड़े जेलर साहब मुस्कुरा दिए और कहा- ‘क्यों नहीं। शाम को तुमको बच्चों को भी पढ़ाना है। बहुत दिन हो गए उन्हें किताब खोले हुए।’
किताब शब्द सुनकर रीना को अपनी किताब में लिखी पहली लाइन याद आ रही थी- ’हीलिंग और फॉरगिवनेस का सफर एकसाथ तय तय होता है।’
-गीतांजलि
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