1 घंटे पहले
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अपने शयनकक्ष में आरामदायक बिस्तर पर साक्षी के साथ लेटा हुआ मैं जैसे ही सोने की कोशिश करता, लंबा कोट पहने, कॉलर उठाये, उस अजनबी का चेहरा मेरी आंखों के सामने आ जाता था। तेज़ तेज़ कदमों से चलकर वो मेरे पास आकर बोला,
“सर क्या आप मुझे बाहर गेट तक छोड़ देंगे”
“हां हां क्यों नहीं’ और उसे अपने साथ वाली सीट पर बैठने का इशारा करके मैंने, कार स्टार्ट कर दी।
“सीट बेल्ट कस कर बांध लीजिए।” मैंने खांसते हुए अजनबी से कहा और कार की खिड़की खोलनी शुरू कर दी।
“खिड़की मत खोलना, बाहर हवा इतनी तेज़ है की, कार को उड़ा कर ले जायेगी”
मैंने उसकी बात मान ली फिर ज़ोर ज़ोर से सांसें लेकर स्वयं को सामान्य करने की कोशिश करने लगा। चौराहे पर पहुंचकर उसने अपना नाम विजय बताया।
“कहां जाना है आपको”
“एयरपोर्ट। बाहर निकल कर मैं बस ले लूंगा”
“लगता है आप इस शहर में अभी शिफ्ट हुए हैं।”
“जी नहीं, मैंने इसी इंस्टिट्यूट से कंप्यूटर्स में इंजीनियरिंग किया है।”
“वाह। हॉस्टलर थे या डेज़स्कॉलर”
“हॉस्टलर था। नीलांचल हॉस्टल। रूम नंबर -7”
“ आजकल क्या कर रहे हैं” मेरी उत्सुकता चरम पर पहुंच गयी थी।
लेकिन, उसने मेरी बात का कोई उत्तर नहीं दिया।
“आपको पता होगा दिल्ली में रात को ढाई बजे तक डीटीसी की सर्विस समाप्त हो जाती है। इतनी तेज बारिश में टैक्सी सर्विसेज़ भी दुर्लभ हो जाती हैं। मैं आपको एयरपोर्ट पर ड्राप कर देता हूं”
“अरे नहीं नहीं। अभी जो एग्ज़िट आ रहा है, कार उसी तरफ़ मोड़ लो। वहां से निकलने वाली तीन सड़कों में से बायीं ओर की सड़क इस हाईवे के साथ-साथ चलती है और उस पर ट्रैफ़िक भी नहीं होता। हम जल्दी एयरपोर्ट पहुंच जाएंगे”
“यहां की सड़कों की आपको काफ़ी जानकारी है” मैंने मुस्कुराते हुए कहा
“इन्हीं सड़कों पर तो मैं अपनी प्रेमिका के साथ घूम घूम कर अपना फ्री टाइम गुज़ारा करता था” वो ठहाका मार कर हंस दिया था
“लगता है आप अपनी गर्लफ़्रेंड को बहुत प्यार करते थे”
“ हूं। अपनी जान से भी ज़्यादा।”उसके मन की तलहटी में दबी पड़ी प्रेमिका की छवि उभरी और हलचल मचा गयी
“तुम्हारी भी कोई गर्लफ्रेंड ज़रूर होगी”
“थी। अब मैंने उससे शादी कर ली”
“ बहुत ख़ुशक़िस्मत हो यार”
“और तुम्हारी गर्लफ्रेंड” उसने मेरी बात का उत्तर देने के बजाय अपना प्रश्न उछाला
“क्या कर रहे हो इस इंस्टिट्यूट में”
“एम बी ए “
“डी आई टी में एम बी ए कब से शुरू हुआ?”
“इसी साल से”
“ज़रूरी भी है।”
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“सड़क, काफ़ी घुमावदार होने की वजह से यहां आवाजाही काफ़ी कम रहती है।” मैंने अपनी बात जारी रखते हुए कहा,”पता ही नहीं चलता कब कोई ज़ानवर सामने आ जाए या कार से टकरा जाय इसीलिए, कम लोग ही इस सड़क से रात को निकलते हैं। भयानक दुर्घटनाएं भी होती हैं…”
उसने अभी भी कोई उत्तर नहीं दिया तो मैंने अपना ध्यान स्टीयरिंग से हटाकर बग़ल में झांका। वहां कोई नहीं था।
‘कहीं पिछली सीट पर जाकर तो नहीं बैठ गया’
लेकिन वहां भी कोई नहीं था। किंचित भय और कौतूहलवश मेरे पूरे शरीर में कंपकंपी सी होने लगी थी।
“न मैंने कार रोकी, न ही कार का दरवाज़ा खोला तो फिर वो अजनबी गया कहां?”
कार की गति बढ़ने के साथ साथ मेरे दिल की धड़कन भी तेज़ होती जा रही थीं।’कौन था वो? अचानक कहां से आया और कहां चला गया? क्यों आया था वो मेरे पास? आख़िर वो मुझ से क्या चाहता था?’
मन में आया,कि एक बार कार रोककर पीछे देखूं, लेकिन हिम्मत नहीं हुई। बस, कार को तेज़ी से आगे बढ़ाकर मैं घर पहुंच गया था। सभी गहरी नींद में थे। सिर्फ़ साक्षी जग रही थी। देर से आने के लिए उसने मुझ से एक दो प्रश्न पूछे फिर करवट बदल कर वो भी सो गयी।
सुबह ब्रेकफास्ट टेबल पर पहुंचते ही मैंने, रात वाली पूरी घटना का विवरण सब को जस का तस सुना दिया। सभी स्तंभित होकर मेरी बात सुन रहे थे। अचानक भाभी ने मज़ाहिया लहजे में कहा,
“भूत के पांव उल्टे होते हैं”
“यथोचित प्रकाश न होने के कारण उसके पैर अपूर्व को दिखायी ही नहीं दिये होंगे”
“ऊंहूं” भाभी नकारात्मक सिर हिलाते हुए बोलीं,
“पूर्णमासी की रात थी। चांदनी खिली हुई थी। ऐसे में उस व्यक्ति के पैर न दिखाई देने का तो प्रश्न ही नहीं उठता”
अगले दिन बिना किसी से कुछ कहे सुने मैंने अपना स्कूटर निकाला और उसी स्थान की ओर बढ़ गया जहां उस अजनबी ने मुझसे कल रात लिफ्ट मांगी थी। मैंने चारों तरफ़ नज़र दौड़ाई। वहां न कोई पेड़ था न ही कोई बिल्डिंग जिसके पीछे जाकर वो व्यक्ति छुप सकता था। भाभी की बात भी सही थी। खिली हुई चांदनी में सबकुछ स्पष्ट दिख जाता है तो फिर, मुझे वो अजनबी मेरी कार से उतरता हुआ क्यों नहीं दिखा?
उसी समय यूनिफार्म पहने दो चौकीदार अपने डंडे से खट्ट खट्ट करते हुए मेरी तरफ़ बढ़ते हुए दिखे। मैंने सायास ख़ुद को नियंत्रित करके उन दोनों से प्रश्न पूछा,
“भैया एक बात बताइये। क्या कॉलेज परिसर में रात के समय कुछ प्रेतात्माएं घूमती रहतीं हैं और सुबह ग़ायब हो जाती हैं”
दोनों चौकीदार, मेरा सवाल सुनकर हंस पड़े,
“साहब ,यहां तो प्रेतात्माएं घूमती ही रहतीं है। आपसे कुछ कहा क्या उसने”
“मैंने एक ही सांस में कल वाली पूरी घटना का विवरण सुना दिया।
“आप नीलांचल जाकर अपने प्रश्न का उत्तर ढूंढ लीजिए न” इतना कहकर, पहले वाला चौकीदार आगे बढ़ गया लेकिन दूसरा वहीं खड़ा रहा,
“कई बरस पहले ये सारा इलाक़ा, जंगल ही तो था। साथ ही इस एरिया में विषैले सांप भी हैं जो अंधेरे में डस सकते हैं। लाश को कोई जंगली जानवर भी ग़ायब कर सकता है। काम तो प्रकृति का है, मगर बदनाम बेचारे भूत हो जाते हैं ,”
अगली शाम, कॉलेज का काम निपटाकर मैं, नीलांचल हॉस्टल की ओर चल दिया। मेरी ख़ुशक़िस्मती से कुछ फ़्रेशर्स शोर मचाते, बातें करते हुए कॉरिडोर में ही मिल गये।मैंने पूछा,
“रूम नंबर 7 किस तरफ़ पड़ेगा”
“वहां तो पूरा दिन ताला लगा रहता है”
“क्यों”
“सुना है रात के समय एक भूत आता है वहां”
“ये तुम कैसे कह सकते हो”
“मिट्टी में सने हुए जूतों के निशान कुछ लोगों ने देखे हैं। फिर वो कमरे की खिड़की से बाहर निकल जाता है”
“ लेकिन कल रात वो नहीं आया “उनमे से एक फ़्रेशर ने कहा
थोड़ी देर खामोशी छायी रही सब ओर।
“कोई फ़ोटो वग़ैरह है क्या तुम लोंगो के पास उसका”
“भूत कैमरे में कैप्चर नहीं होते”और फिर,फ़्रेशर्स धड़धड़ाते हुए तेज़ी से सीढ़ियां उतर गये।
लाख कोशिशों के बावजूद, मेरी शंका का निवारण नहीं हो पा रहा था। उनमें से एक फ़्रेशर की बात ने मेरी शंका और भी बढ़ा दी थी।
“कल रात वो यहां नहीं आया था”
एक प्रेतात्मा दो जगह उपस्थित हो भी कैसे सकती थी। कल रात तो वो मुझे मिला था, मेरी कार में बैठा था। मुझ से बात भी की थी। मन में पश्चाताप भी हुआ, कि काश कुछ देर रूककर मैं उस व्यक्ति का चेहरा तो देख लेता।
इस घटना को पूरा एक महीना बीत गया, लेकिन मेरी याददाश्त में सब कुछ इतना स्पष्ट था मानो मैं कल ही ‘विजय’से मिला हों। मन हर समय द्वन्द में उलझा रहता। भूख प्यास सब ख़त्म हो गयी। वज़न घटता जा रहा था।
एक दिन भैया ने मुझे वार्डन सर से मिल कर इस मामले के तह तक पहुंचने की सलाह दी।
“उनके पास पिछला सारा रिकॉर्ड ज़रूर होगा” भैया ने मुझे आश्वस्त भी किया। ’वार्डन सर की गणना कॉलेज के श्रेष्ठ प्रोफ़ेसरों में होती थी’। पिछले बीस वर्षों से वो इस हॉस्टल का कार्यभार कुशलता से संभाल रहे थे। स्टूडेंट्स के प्रति भी उनका व्यवहार बेहद आत्मीय और सौहार्दपूर्ण रहता था।
“क्या आप विजय को जानते थे” कमरे में पहुंचते ही मैंने वार्डन सर का ध्यान बंटाने और चुप्पी को तोड़ते हुए उनसे प्रश्न किया
“कौन विजय” उन्होंने अनजान बनने का नाटक करते हुए मुझसे प्रतिप्रश्न किया
“रूम नंबर 7, नीलांचल हॉस्टल। सुना है उसने सुसाइड किया था” बिना एक क्षण गंवाए मैंने अपनी बात जारी रखी।
“तीन अक्तूबर वाले उस हादसे को आज पूरे पांच साल हो गये। वैसे ये केस तो अख़बार में भी आया था” वार्डन सर अब थोड़े गंभीर दिखाई दे रहे थे।
“सुना था वो ड्रग्स का धंधा करता था? क्या सच में उसका किसी गैंग से संबंध था”
“ ड्रग और विजय? कैसी बातें कर रहे हो अपूर्व। मैं उसका गाइड था। उसे अच्छी तरह से जानता था। उसका क़सूर सिर्फ़ इतना था कि उसने एक दक़ियानूसी, रंगभेदी, पॉलिटिशियन की बेटी अनामिका से प्यार किया। अनामिका के पिता ने विजय को चेतावनी दी थी कि अगर वो अनामिका का पीछा नहीं छोड़ेगा तो उसे, इसके घातक परिणाम भुगतने होंगे और उसका ज़िम्मेदार वो स्वयं होगा”
तभी तेज गर्जना के साथ आसमान में एकदम काली घटाएं घिर आयीं, जबकि मौसम विभाग ने ऐसी कोई सूचना नहीं दी थी।
“अनामिका और विजय का ज़िक्र जब भी शुरू होता है ये बादल इसी तरह ग़रज़ने लगते हैं” वार्डन सर ने भीगे स्वर में कहा,
“बिल्कुल इस तरह जैसे अनामिका के पिता, विजय का नाम सुनते ही गरजते थे।”
“ क्या।।”
“कुछ नहीं “
अब तक बादलों की गरज और बिजली की कड़क के साथ ही रिमझिम बरसात भी शुरू हो गयी थी।
“क्षमा चाहता हूं सर “
मैंने धीमें स्वर में कहा,
“ क्या विजय ने आपको कभी बताया कि वो अनामिका से कहां और कैसे मिला”
“बताया था। यूनिवर्सिटी के एक्सचेंज प्रोग्राम के दौरान जब अनामिका,इस कॉलेज में आयी थी। दरअसल उसी ने विजय को मास्टर्स करने के लिए एनकरेज भी किया था।”
मेरी जिज्ञासु नज़रें अभी भी उनके चेहरे पर टिकी थीं।
“सुनहरे सांवले कसे बदन वाले विजय के रूप रंग और स्वभाव में ऐसा गज़ब का आकर्षण था कि स्त्रियां सहज ही उसकी ओर आकर्षित हो जातीं थीं। विजय को भी स्त्रियों का साथ ही भला लगता था।
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प्रथम परिचय में ही विजय अनामिका के चेहरे मोहरे हावभाव, उसकी चाल ढाल,पोशाक और केशविन्यास से इतना प्रभावित हुआ कि उसके मन में उस से संबंध बना लेने का एक प्रलोभन जागा और रोमांस का विचार उसके मनोमस्तिष्क पर हावी हो गया।”
“ फिर क्या हुआ”
“अनामिका अक्सर,विजय से इस जगह के उकताऊपन होने की शिकायत करती रहती थी। विजय उस की बात समझने के बजाय समझाता,
“ये भी एक फ़ैशन की बात हो गयी है। किसी क़स्बे-वस्बे में सारी उम्र रहते हुए तो लोग ऊबते नहीं,पर यहां आते ही शिकायत करने लगते हैं” वो हंस देती।
कमरे में लौटकर विजय अनामिका के बारे में ही सोचता रहता। उसकी सुकोमल गर्दन, उसकी हल्की सुरमई आंखें याद करता। उसका गहन गंभीर व्यक्तित्व विजय के लिए एक पहेली था जो उसे जिज्ञासा से भर देता था”
“दोनों में नियमित मुलाक़ातें होने लगीं। एक शाम जब हल्की फुल्की बूंदा बांदी हो रही थी तो उसने अनामिका को खींच कर अपनी बाहों में भर लिया। और उसके होंठों पर चुंबन ले लिया, उधर से भी कोई प्रतिवाद नहीं हुआ।विजय आलिंगनबद्ध अनामिका के कानों में फुसफुसाया,
“ मैं तुम्हारे प्रेम में पूरी तरह डूब चुका हूं अन्नू… मुझे तुम्हारे सिवाए न कुछ दिखाई देता है,न ही सूझता है। तुम मेरे जीवन का पहला और आख़िरी प्रेम हो।”
“ सच”अनामिका के स्वर में प्रेमभरी तड़प थी
“ मैं तुमसे कभी अलग नहीं होऊंगा। कभी नही।” अनामिका भी प्रेमालिंगन के आनंद में पूरी तरह डूब चुकी थी”
“ये बातें आपको स्वयं विजय ने बताई थीं”
“दरअसल विजय डायरी लिखता था “
वार्डन सर ने झुक कर ड्रार में से तस्वीरों का एक बड़ा सा लिफ़ाफ़ा और डायरी निकाल कर टेबल पर रख दी। कमरे में अभिशप्त सी नीरवता थी। सामने बैठा मैं उन से कट कर विजय की डायरी के पृष्ठ पलटने लगा।
“विजय ने लिखा था,“मेरे जीवन में मृदुस्वभाव की कई सुंदर बेफिक्र स्त्रियां आयीं जो, प्रेम से हर्षविभोर होकर क्षणिक सुख पाकर भी मेरा आभार मानतीं थीं। कुछ बनतीं बहुत थीं, लेकिन उनके प्रेम में ज़रा भी सच्चाई नहीं होती थी।
लेकिन, अनामिका उन सबसे अलग है। उस की हंसी में, किसी अपरिचित व्यक्ति के साथ बातें करने के अन्दाज़ में काफ़ी अल्हड़ता भरा संकोच है। वो,आंखें मूंद कर मुझ पर विश्वास करती है। यहां तक कि, अपने परिवार की गोपनीय बातें तक मुझ से शेयर करती है”
“एक दिन विजय ने अनामिका के साथ विवाह की सहमति लेने के लिये उसके पिता के बंगले पर जाने का निश्चय किया। यही गलती विजय ने कर दी। और अनामिका? अपने पिता का स्वभाव जानते हुए भी इसी भ्रम में रही कि उसके पॉलिटिशियन पिता झूठमूठ विजय को डरा धमका रहे हैं। दरअसल पिता की मानसिकता वो समझ ही नहीं पायी।”
“एक दिन अनामिका के पिता ने अपने जिये-भोगे सच में मुझे अपना भागीदार बनाने का निश्चय किया और विजय के चरित्र का जो रेखाचित्र खींचा,उसे सुनकर, ऐसा लगा जैसे ये सब उन्होंने पहले से ही तय कर रखा था। अपनी बेटी के प्रेमी का विवरण देते हुए बोले,
“विजय अच्छा लड़का है। अच्छे घरपरिवार से है। मैं तो उससे अपनी बेटी की शादी कर भी देता लेकिन उसके पिता ने स्वयं मुझे आगाह किया और कहा,
“ देख लीजिए।विजय पढ़ने में ज़हीन है पर उस सबके बावजूद उसे ड्रग लेने की लत पड़ चुकी है”
कहते हुए वो एक पल के लिए चुप हो गये। इस तरह जैसे वो अपने आप से समझौता करने की कोशिश कर रहे हों,
“ इतना सब जान कर भी मैंने अन्नू को मना नहीं किया सिर्फ़ आगाह किया है। अब, मेरे कहने के आधार पर अन्नू ने सतर्कता बरतनी शुरू कर दी है। पर वो लड़का विजय। उसे परेशान करने पर उतर आया है। हो सके तो आप भी उसे समझाइएगा”
ये सब सुनकर अनामिका की मां, चुप चुप रहने लगी थीं। उधर पॉलिटिशियन पिता हर किसी को अपनी सफ़ाई देते रहते,
“ मैं उस लड़के को लेकर कोर्ट कचहरी नहीं करना चाहता।“
“उनके कहे ये शब्द अभी तक मेरे कानों में टकराते हैं। उन्होंने विजय को, ड्रग डीलर, ड्रग माफिया का मेंबर और गैंगस्टर पता नहीं क्या क्या बना दिया। उसके ख़िलाफ़ केस इतना मज़बूत बनाया गया कि कोई कुछ कर नहीं पाया और सबके सामने ही पुलिस उसे पकड़ कर ले गयी। एक भोला नादान और अच्छा इंसान घटिया राजनीति की बली चढ़ गया।”
“हम समझ गए थे कि विजय अब कभी वापस नहीं आएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। जेल से निकल कर विजय सीधा अनामिका के पास पहुंचा और बोला,
“तुम मेरी नहीं तो किसी की नहीं हो सकती“ और फिर वो अपनी प्रेयसी के पेट, और चेहरे पर छुरी से वार पर वार करता चला गया और उसी रात नींद की गोलियों की पूरी! शीशी हलक में उड़ेल कर चिर निद्रा में सो गया”
“और अनामिका”
“अनामिका का इलाज करवाने के लिए वो उसे सिंगापुर ले गये, उसकी प्लास्टिक सर्जरी करवाई। फिर उसका ब्याह करवा दिया”
“सर एक प्रश्न मुझे अभी भी परेशान कर रहा है। उस रात उस भूत ने मेरी कार क्यों रोकी? वो मुझ से क्या कहना चाहता था “
“ अपनी अनामिका की कुशल क्षेम पूछना चाह रहा था तुमसे।” वार्डन सर ने मुस्कुरा कर कहा “ तुम्हारी साक्षी ही अनामिका है”
“ये आप कैसे जानते हैं? स्वयं साक्षी ने तो मुझ से कभी भी अपने अतीत का खुलासा नहीं किया”
“करेगी भी नहीं। डाक्टरों ने उसका चेहरा ही नहीं उसकी आत्मा को भी बदल दिया ज़रा सोचो एक वयस्क हो चुकी लड़की ने जब सुना होगा कि, उसका प्रेमी ड्रग्स का बिज़नेस करता है, तब क्या उसके पैरों तले की मिट्टी नहीं धसक गयी होगी? अपने पति के साथ सामंजस्य स्थापित करके वो पूरी तरह संतुष्ट भी तो होगी”
“उस रात वाले हादसे का ज़िक्र मैं भी कभी नहीं करूंगा। कम से कम साक्षी से तो कभी नहीं बल्कि मैं स्वयं भी उस से मुक्त होने की कोशिश करूंगा।” इसी आशा और विश्वास के साथ मेरे कदम अपने घर की तरफ़ तेज़ी से बढ़ने लगे थे।
-पुष्पा भाटिया
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