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नई दिल्ली8 घंटे पहलेलेखक: संजय सिन्हा

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मैं मना मंडलेकर मध्यप्रदेश के हरदा जिले के आलमपुर गांव की रहने वाली हूं। अपने गांव की पहली ग्रेजुएट लड़की हूं। लड़कियों के लिए सेल्फ डिफेंस ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाती हूं।

गांव-गांव कराटे के ट्रेनर्स तैयार करती हूं जो लड़कियों को आत्मरक्षा के गुर सिखाते हैं। पेशा नहीं बल्कि मुहिम है। अब तक 171 ट्रेनर तैयार किए हैं और 76,000 लड़कियों को ट्रेनिंग दी गई है।

खुशी तब होती है जब कोई लड़की इस ट्रेनिंग की वजह से अपना आत्मविश्वास पाती है और किसी भी मुश्किल का सामना कर पाती है। लोग मुझे ‘आयरन गर्ल’ के नाम से जानते हैं।

दैनिक भास्कर के ‘ये मैं हूं’ में आज मेरी कहानी जानिए।

पांचवीं बेटी के रूप में पैदा हुई तो मेरा नाम ‘मना’ रख दिया

कई बार लोग मेरे नाम के बारे में पूछते हैं। इसके पीछे की कहानी दिलचस्प है। हम 5 बहनें और दो भाई हैं। बहनों में मैं सबसे छोटी हूं। जाहिर सी बात है कि हम पितृसत्तात्मक समाज में रहते हैं तो घर में यही सोच थी कि बेटा जन्म ले।

चार बहनों के बाद मेरा जन्म हुआ। जब मेरा जन्म हुआ तो परिवार ने कहा कि अब बच्चा नहीं चाहिए। इसलिए मेरा नाम ‘मना’ रख दिया गया।

गांव में पिता के साथ मना मंडलेकर।

गांव में पिता के साथ मना मंडलेकर।

मां बकरियां चराती,पापा मजदूरी करते

हमारा परिवार बेहद गरीब था। खेती-किसानी के लिए अपनी कोई जमीन नहीं थी। पिता पेट पालने के लिए दूसरों के खेतों में मजदूरी करते। गाय-भैंस चराते।

मवेशियों के लिए घास काटते। मां बकरियां चरातीं। बड़ी मुश्किल से घर चलता। पेरेंट्स जो भी पैसे कमाते उससे बस दो टाइम का खाना ही नसीब हो पाता।

जब घर में कभी पूड़ी बनती तो उत्सव जैसा माहौल हो जाता। बचपन में घर में इतराते कि आज हमारे यहां पूड़ी बनी है।

तीन बहनों का बाल विवाह हुआ, मेरी भी शादी की बात होने लगी

मेरी तीन बड़ी बहनों का नाबालिग रहते ही शादी हो गई। उन्होंने केवल पांचवी-छठी तक ही पढ़ाई की। स्कूल में पढ़ाई के समय ही घर-परिवार में बात होने लगती कि लड़की सयानी हो गई है अब हाथ पीले कर देने चाहिए।

आसपड़ोस के लोग भी कहते कि लड़की जात है ज्यादा पढ़-लिखकर क्या ही करेंगी। घर में रहो, कामकाज सीखो। कुल मिलाकर ससुराल जाने की ही ट्रेनिंग दी जाती। ससुराल में कैसे रहना है, सास-ससुर की सेवा करनी है, पति की देखभाल करनी है, यही बताया जाता।

मुझसे बड़ी बहन की शादी 18 वर्ष पूरे होने पर हुई। उसने ससुराल जाकर पढ़ाई पूरी की। अब तो वो पोस्ट ग्रेजुएट है। लेकिन उसकी शादी के बाद मेरी शादी की बात छिड़ गई।

सहेली के ससुराल की कहानियां सुन डर गई

मेरी सहेलियों का बाल विवाह हो चुका था। वो शादी के बाद जब मायके लौटीं तो उन्हें देखकर डर गई। उनकी कहानियां सुनकर और डरी। मैं शादी से डरने लगी।

मुझे लगता कि मेरी शादी होगी तो पति मुझे भी मारेगा-पीटेगा। शराब पीकर आएगा और गालियां देगा। मेरी भी जिंदगी इनकी जैसी हो जाएगी। मैंने मां-पापा को कह दिया कि मुझे शादी नहीं करनी है।

मां के साथ मना।

मां के साथ मना।

दीदियों को कहा, मुझे बचा लो, नौवीं में एडमिशन दिला दो

गांव में आठवीं तक ही स्कूल है। आठवीं तक पढ़ने के बाद मैंने कहा कि मुझे 12वीं तक पढ़ाई करनी है। नौवीं में दाखिला दिला दो।

9वीं में पढ़ाई के लिए 5 किमी दूसरे गांव जाना होता। लेकिन दूसरे गांव कैसे जाएं, कोई साधन नहीं था। घर वाले एडमिशन दिलाने के लिए तैयार नहीं।

दीदियों से विनती की कि मुझे बचा लो। मुझे शादी नहीं करनी, पढ़ना है। तब दीदियों ने मुझे सपोर्ट किया। मां-पापा से बात हुई। नौवीं में एडमिशन हो गया।

स्कूल जाते लड़के छींटाकशी करते

पांच किमी दूर पैदल नौवीं क्लास में पढ़ाई के लिए जाती। इतने पैसे नहीं थे कि कोई ऑटो या सवारी कर लूंं।

आते-जाते लड़के परेशान करने लगे। हमारी सोसाइटी ऐसी है कि लड़की अकेली जा रही है, पैदल जा रही है तो लड़के परेशान करेंगे ही करेंगे।

मैं निकल रही होती तो लड़के कमेंट्स करते। ताने मारते। घर पर बताती तो पढ़ाई छुड़वा दी जाती जबकि बड़ी मुश्किल से परमिशन मिली थी तो डर से घर पर नहीं बताया।

लेकिन बात कब तक छुपती। घर पर आकर कुछ लोगों ने बता दिया कि लड़की के साथ ऐसा हो रहा है। उसे बाहर क्यों जाने दे रहे हो। कुछ हो गया तो लड़की से शादी कौन करेगा।

तब तय हुआ कि लड़की शादी कर दी जाए। यानी मुझे भी बाल विवाह के लिए फरमान सुना दिया गया। बता दिया गया कि किससे आपकी सगाई है और शादी कब होने वाली है।

स्कूल जाना बंद करवा दिया गया। घर में खाना बनाना सीखना, खेतों में काम करना, मवेशियों को चारा देना यही सीखना होता। ससुराल में भी जाकर यही सब करना था। तो मैं जिस मोड़ से बाहर निकली थी, वापस उसी मोड़ पर आ गई।

सुसाइड नोट लिखकर दे दिया कि मंडप में ही जान दे दूंगी

जब मुझे लगा कि सचमुच मेरी शादी हो जाएगी तो सिहर उठी। मुझे लगा कि नहीं, मैं ऐसा नहीं होने दूंगी।

मैंने सुसाइड नोट लिखा कि अगर मेरी शादी हुई तो विवाह के मंडप में ही जान दे दूंगी।

पेरेंट्स को लगा कि लड़की कहीं सच में न मर जाए तब उन्होंने शादी टाली। फिर भी उन्होंने पढ़ने की अनुमति इस शर्त के साथ दी कि भागकर किसी लड़के से शादी नहीं करना। मैं शादी से कांप रही थी, भला किसी लड़के के साथ क्यों ही भागती।

समारोह में पुरस्कार ग्रहण करती मना।

समारोह में पुरस्कार ग्रहण करती मना।

कॉलेज के प्रिंसिपल को लेटर लिखती, सर पैसे नहीं हैं एडमिशन दे दीजिए

मैंने फर्स्ट डिवीजन से 12वीं पास कर ली। आगे क्या पढ़ना है या क्या करना है? पता नहीं था। तब स्कूल के टीचर बताते कि किस फील्ड में करियर बनाना चाहिए या क्या पढ़ना चाहिए।

गांव से 15 किमी दूर टिमरनी में कॉलेज में दाखिला लिया। टिमरनी हर दिन आना-जाना बहुत मुश्किल होता। भाड़े के लिए भी पैसे कम पड़ते।

कॉलेज में दाखिला तो ले लिय लेकिन कॉलेज की फीस भरने के लिए पैसे नहीं थे।

तब प्रिंसिपिल को लेटर लिखती कि सर मेरे पास पैसे नहीं हैं लेकिन पढ़ना चाहती हूं। स्कॉलरशिप के पैसे आने पर फीस दे दूंगी।

कई बार ऐसा होता कि किताब-कॉपी खरीदने के लिए भी मेरे पास पैसे नहीं होते। कॉलेज के गेट के सामने बैठकर रोती।

मैं खुशनसीब हूं कि टीचर्स मेरी परेशानी समझते। उन्होंने मुझे सपोर्ट किया।

कॉलेज में ही पहली बार लड़कियों को कराटे सीखते देखा

मैंने जीवन में पहले बिल्कुल सामने से कभी किसी को कराटे खेलते नहीं देखा था। फिल्मों में ही कराटे के बारे में जाना-देखा था। मैं तो यही समझती कि लड़के ही कराटे करते हैं लेकिन लड़कियां भी ये कर सकती हैं क्या?

मैंने पहली बार किसी महिला को ट्रैक सूट में देखा। उन्हें कराटे करता देख मुझे भी मन कराटे सीखने का हुआ। मैंने कहा कि मुझे भी कराटे सीखना है। इस तरह कराटे शुरू किया।

बाद में कराटे मेरा पैशन बनता गया। जब रितेश तिवारी कोच के रूप में मिले तो कराटे ही मेरे जीवन का उद्देश्य बन गया।

एक कार्यक्रम के दौरान मना।

एक कार्यक्रम के दौरान मना।

ब्लैक बेल्ट मिला, सरपंच बोले-हमारे बीच से तुम वहां कैसे पहुंच गई

पहली बार कराटे में नेशनल खेला तो सिल्वर मिला। मुझे खुशी थी कि मेडल जीत सकती हूं। जब मुजे ब्लैक बेल्ट मिला तो जिले के डीएम ने पार्टी दी।

गांव के सरपंच को पता चला तो उन्होंने पूछा कि तुम क्या करती हो कि कलक्टर तुम्हें बुलाते हैं। गांव के बीच से निकल तुम वहां कैसे पहुंच गई।

मेरे घर पर भी पता नहीं था कराटे क्या है। कई दिनों तक पेरेंट्स को जानकारी नहीं थी कि मैं कराटे करती हूं।

मैं कराटे में आगे बढ़ती गई। कई नेशनल व इंटरनेशनल टूर्नामेंट खेले। तिनका संस्था की ओर से खिलाड़ियों ने 283 नेशनल और 64 इंटरनेशनल मेडल जीते हैं।

अपने गांव में लड़कियों को ट्रेनिंग देना शुरू किया

मैं बड़ी प्लेयर बन जाऊंगी, बडे़ टूर्नामेंट खेलूंगी, नाम होगा लेकिन गांव की लड़कियों के जीवन में क्या बदलाव होगा। मुझे लगा कि गांव की लड़कियों के लिए सेल्फ डिफेंस प्रोग्राम होना चाहिए।

दूसरी लड़कियों के लिए रास्ता बनाना ही जीवन का लक्ष्य बना लिया। अपने गांव में क्लासेज खोली और ट्रेनिंग देना शुरू किया।

आसपास के गांवों में जाती और लड़कियों को सेल्फ डिफेंस सिखाती।

तिनका-तिनका मिलकर घोंसला बनता है इसलिए ‘तिनका’ संगठन बनाया

मेरे कोच एक मुहिम के तहत लड़कियों को कराटे सिखा रहे थे। उनका मानना था कि लड़कियां फिजिकली मजबूत होंगी तो किसी भी परिस्थिति का सामना कर पाएंगी।

लड़कियां लड़कों के डर से पढ़ाई न छोड़ें, स्कूल न छोड़ें, सपने न छोड़ें। कोच फ्री में सिखाते।

इन चीजों ने इसकी प्रेरणा दी क्यों न इस मुहिम को बड़े स्तर पर ले जाया जाए। इस तरह 2017 में ‘तिनका’ सामाजिक संस्था की शुरुआत की।

सबलोग अलग-अलग जगहों से थे, लेकिन सबका सम्मान था। हमारी सोच है कि तिनका-तिनका मिलकर ही एक घोंसला बनता है।

हम सबने मिलकर खेल के माध्यम से जेंडर इक्वेलिटी पर काम शुरू किया।

हम चेन बनाने लगे। कोच ने हमे सिखाया, हमने दूसरों को सिखाया और ट्रेनर तैयार किए। स्कूल-कॉलेज में, हॉस्टल में जाती और बच्चों को प्रशिक्षण देती। उनके बीच से फिर कुछ ट्रेनर चुनते।

ये ट्रेनर फिर अपने गांव जाते और लड़के-लड़कियों को कराटे सिखाते।

171 ट्रेनर्स तैयार किए, 76,000 बच्चों को कराटे का प्रशिक्षण मिला

अब तिनका संस्था एमपी के 19 जिलों में काम कर रही है। भोपाल, खंडवा, इंदौर, हरदा सब जगह बच्चों को ट्रेनिंग दी जाती है। अलग-अलग स्टेट में भी सेल्फ डिफेंस ट्रेनिंग प्रोग्राम होते हैं। दिल्ली, हरियाणा सहित 7 राज्यों में ये प्रोग्राम किए गए हैं।

लड़की ने बीच चौराहे पर लड़के को जमकर पीटा

इस ट्रेनिंग से लड़कियों में आत्मविश्वास बढ़ा है। कई लड़कियों ने इस आत्मविश्वास के सहारे खुद को बचाया।

हमारे सेंटर में एक ऐसी ही लड़की आई। उसके साथ काफी समय से गलत हो रहा था, लेकिन उसे धमकाया जाता कि किसी को बताना नहीं। उसे भी लगता कि किसी को बताऊंगी तो मुझे ही लोग गलत कहेंगे।

जब हमलोगों से मिली तो उसने लेटर में लिखकर बताया कि उसके साथ ये-ये हुआ है।

उसके घर पर बात हुई। तब जाकर गलत चीजें होनी बंद हुई। ये आवाज उठाने की हिम्मत उसे आई।

इसी तरह एक लड़की को लड़के ने परेशान कर रखा था। सेल्फ डिफेंस सीखने के बाद उसमें आत्मविश्वास आया। उसने पुलिस में कंप्लेन किया और बीच चौराहे पर लड़के को जमकर पीटा भी।

दिल्ली के इंटरनेशनल हैबिटेट सेंटर में सचिन तेंदुलकर के साथ मना।

दिल्ली के इंटरनेशनल हैबिटेट सेंटर में सचिन तेंदुलकर के साथ मना।

पीएम मोदी ने मन की बात में मेरे काम को सराहा

मैं अपनी मुहिम में लगी रही। यूनिसेफ की टीम हमारे गांव आई और दुनिया को इसके बारे में बताया। मेरा संघर्ष और कामयाबी को सचिन तेंदुलकर ने काफी सराहा।

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर दिल्ली में इंडिया हैबिटेट सेंटर में मुझे उनके साथ पैनल में अपनी स्टोरी शेयर करने का मौका मिला।

सचिन सर ने कहा कि यहां से गांव लौटोगी तो लोग तुम्हें ही रोल मॉडल मानेंगे। उनकी बात सही साबित हुई।

आज गांव के लोग अपनी बेटियों को मना जैसी बनाना चाहते हैं। 2020 में महिला दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में मेरी कहानी बताई और लोगों से प्रेरणा लेने की बात कही। ये मेरे लिए बड़ी बात थी। एमपी के तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान भी हमेशा मोटिवेट करते।

गांव में ही स्पोर्ट्स एजुकेशन सेंटर खोलना चाहती हूं

मैं आज भी मां-पापा के साथ गांव में ही रहती हूं। गांव से मुझे लगाव है और यहीं स्पोर्ट्स एजुकेशन स्कूल खोलना चाहती हूं।

मैं चाहती हूं कि सेल्फ डिफेंस का जो जेंडर इक्वेलिटी मॉडल है उसे पूरे देश में लेकर जाऊं।

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