नई दिल्ली2 घंटे पहलेलेखक: मरजिया जाफर

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नमस्ते दोस्तों…

मेरा नाम मुदिता विद्रोही है, मैं एनवायरमेंट एक्टिविस्ट हूं। मेरा जन्म जिस परिवार में हुआ उसकी हर पीढ़ी में एक्टिविस्ट रहे हैं। मैं उस परिवार की तीसरी पीढ़ी की एक्टिविस्ट हूं। मेरे दादा जी चुनीभाई वैद्य, गांधी जी के साथ कदम से कदम मिलाकर आजादी की लड़ाई में चले। मेरे पिता जी ने इमरजेंसी के दौरान जय प्रकाश नारायण के आंदोलन को अंजाम तक पहुंचाया। मेरी मां गुजरात के नव निर्माण आंदोलन में सक्रिय रहीं।

अन्याय के खिलाफ आवाज मुझे विरासत में मिली

देश में हो रहे जन विरोधी कामों के खिलाफ आवाज उठाने की ताकत मुझे विरासत में मिली। लेकिन बचपन में जब घर वालों को ये सब करते देखती तो कभी सोचा भी नहीं था कि मैं भी आगे चलकर यही करूंगी। बल्कि मैं सोचती थी, ये लोग क्यों इतना स्ट्रेस लेते हैं। इस लड़ाई से क्या फायदा। क्यों पूरा परिवार गांधी जी के नक्शे कदम पर चल रहा है। हम बहुत ही सादी जिंदगी जीते। दो कमरे के मकान में रहते। मुझे पॉलिटिकल पार्टियों से भी ऑफर मिले। लेकिन मैं ऐसा कोई काम नहीं करना चाहती जिसमें काम के बदले वोट मांगने पहुंच जाऊं। मैं अपने सामाजिक काम से संतुष्ट हूं।

विदेश में पढ़ी,लेकिन देश के लिए करती हैं काम।

विदेश में पढ़ी,लेकिन देश के लिए करती हैं काम।

देश के हित के लिए काम करूंगी

मैंने गुजरात यूनिवर्सिटी से इंग्लिश लिटरेचर से बैचलर और लंदन यूनिवर्सिटी से इंग्लिश लिटरेचर में मास्टर किया। मैं जब लंदन पढ़ने गई तो 19-20 साल की थी। लंदन पहुंचने के पहले दिन से ही मैं चाहती थी की जिस दिन मुझे डिग्री मिलेगी मैं वापस अपने देश जाकर देश के हित के लिए काम करूंगी। लंदन से वापस आने के बाद मैंने रिसर्च और राइटिंग का काम शुरू कर दिया था। मुझे लंदन से वापस आए करीब 20 साल हो चुके हैं।

किसानों को अंधेरे में रखकर जमीन पर कब्जा

मैं एनवायरमेंट के मुद्दों पर काम करती हूं। इंडस्ट्रियल पॉल्यूशन, खासकर के गांव की जमीन पर इंडस्ट्री तैयार करना सबसे बड़ा मुद्दा है। गांव में ज्यादातर जमीन एग्रीकल्चर की होती है जिस पर बड़े-बड़े इंडस्ट्री का लगातार कब्जा हो रहा है। किसानों को अंधेरे मे रखकर ये सारे काम आज भी किए जा रहे हैं।

पहले तो कंपनियां किसानों से बड़े बड़े वादे कर लेती हैं जब इंडस्ट्री लग जाती है तो गांव और गांव के लोगों की आजीविका पर इसका बुरा असर पड़ता है। लोगों की रिहाइश और बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित होती है। इन्हीं लोगों की जिंदगी को बचाने के लिए हम गुजरात के अलग-अलग जिलों में काम करते हैं।

प्रदूषण के खिलाफ काम कर रही हूं

मैं वर्षों से इंडस्ट्रियल पॉल्यूशन के खिलाफ आवाज उठा रही हूं। मेरा काम इतना आसान नहीं है। हर बार नई जगह, नए लोग, नए प्रशासन के साथ जद्दोजहद करनी पड़ती है। अनजाने लोगों के साथ काम करने से पहले उनका विश्वास जीतना पड़ता है। संघर्ष करने के बाद पॉजिटिव नतीजे मिलते हैं तो ये मेरे लिए किसी अवॉर्ड से कम नहीं लगता। मैं इसे अपनी जिंदगी की उपलब्धि मानती हूं।

5 हजार परिवारों को फायदा पहुंचा

जब कोई एक प्रोजेक्ट पास होता है तो उसका असर कम से कम 30 गांवों पर पड़ता है। एक गांव में करीब करीब ढाई से तीन हजार की बस्ती होती है। इस तरह ऐसे 10 प्रोजेक्ट्स के खिलाफ आवाज उठा चुकी हूं। मेरी कोशिश से अब तक 5 हजार परिवारों को राहत मिल चुकी है। मैं सभी परिवारों के हक की लड़ाई लड़ती रहूंगी।

गौतम अडाणी को मेरे दादा जी से मिलने आना पड़ा

गौतम अडाणी के प्रोजेक्ट के खिलाफ मेरे दादा ने आवाज उठाई। जमीन अधिग्रहण शुरू हुआ तो उस समय मैं बहुत छोटी थी। मेरे दादा ने उनके खिलाफ ऐसी मुहिम चलाई कि गौतम आडाणी को मेरे घर दादा जी से मिलने आना पड़ा। ये 2005 की बात है जब आडाणी ने कच्छ में हजारों हेक्टेयर जमीन खरीद ली थी।

दरअसल, दादा जी ने अडानी से मिलने के लिए अप्वाइंटमेंट मांगा था तो उन्होंने कहा कि आप बुजुर्ग हैं मैं आपसे मिलने खुद आऊंगा। दादा ने कहा मेरा घर दो कमरे का है। एसी भी नहीं है, प्लास्टिक की कुर्सियां हैं। मैं आप जैसे अमीर आदमी को अपने घर नहीं बुला सकता।

घोषणा और जमीनी हकीकत में अंतर

अहमदाबाद में हर साल वाइब्रेंट गुजरात समिट होता है। उसमें करोड़ों के MoU साइन होते हैं। जिसकी खबर दूसरे दिन पूरे देश के अखबारों की सुर्खियां बनती हैं। लेकिन आरटीई से पता चला कि ये जो हर साल करोड़ों अरबों के MoU साइन होते है उसकी जमीनी हकीकत में जमीन आसमान का फर्क है। मैं इस फर्क को मिटाने का काम करती हूं।

हड़प्पा की संस्कृति से ही गुजरात संपन्न

गुजरात मॉडल की तारीफ होती है। लेकिन गुजरात हमेशा से तरक्की की राह पर आगे बढ़ता रहा है। उसकी वजह मिडिल ईस्ट, आफ्रीका, यूरोप से आने वाले जहाज को भारत में प्रवेश करने के लिए सबसे पहला समुद्री रास्ता गुजरात से गुजरना होता है। गुजरात के बंदरगाह हड़प्पा की संस्कृति के समय से ही संपन्न रहे हैं और यहीं से दुनियाभर में व्यापार होता है। आज भी सारे मालवाहक पोत गुजरात से होकर गुजरते हैं।

दुनिया के 10 प्रदूषित शहरों में गुजरात भी शामिल

पिछले 50 सालों में गुजरात ने भारत के दूसरे राज्यों से ज्यादा तरक्की की है। लेकिन गुजरात कर्ज में डूबा हुआ है। 70 प्रतिशत लोग एनीमिया के शिकार हैं। हजारों एकड़ खेती की जमीन पर इंडस्ट्री लगाई गई है। जंगलों को काटा जा रहा है। कितनी इंडस्ट्री ऐसी भी है जिससे नदियां दूषित हो रही हैं। दुनिया के 10 प्रदूषित शहरों में गुजरात का भी एक शहर शामिल है। देश की दूसरी सबसे ज्यादा दूषित नदी साबरमती हमारे शहर अहमदाबाद में है। मैं इन दोनों मुद्दों पर काम करना अपना फर्ज समझती हूं।

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