8 मिनट पहलेलेखक: आशीष तिवारी

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मशहूर रेडियो प्रेजेंटर अमीन सयानी नहीं रहे। मंगलवार शाम को हार्ट अटैक आने से उनका निधन हो गया। उन्होंने 91 साल की उम्र में मुंबई में आखिरी सांस ली। अमीन सयानी ने 1952 से 1994 तक रेडियो शो गीतमाला को होस्ट किया। अमीन सयानी की वजह से इस रेडियो शो को देशभर में लोकप्रियता मिली।

अमीन सयानी ने अपने करियर की शुरुआत ऑल इंडिया रेडियो से की थी।

अमीन सयानी ने अपने करियर की शुरुआत ऑल इंडिया रेडियो से की थी।

अमीन के निधन पर दैनिक भास्कर ने बॉलीवुड के बड़े कलाकार से बात की और उनसे जुड़े किस्से जाने…

स्ट्रगलिंग एक्टर्स को काम देकर उनकी मदद करते थे- रजा मुराद, एक्टर

मैंने उनके साथ कई प्रोग्राम किए हैं। 1972 में हमने साथ में ‘सेरिडॉन के साथी’ में पहली बार साथ काम किया था। इसके अलावा हमने साथ में ‘मराठा दरबार अगरबत्ती’ पर भी काम किया। बहुत से प्रोग्राम किए उनके साथ। मैं पहली बार उनसे उनके रिकॉर्डिंग स्टूडियो में मिला था जो रीगल सिनेमा से लगा हुआ है। उन्होंने मुझे दफ्तर में बुलाया था। वो मेरे पिता हामिद अली मुराद की आवाज के मुरीद थे। फिर उन्होंने मुझे मेरी आवाज को लेकर भी कॉम्प्लिमेंट दिया था।

और हम तो उनके बिनाका गीतमाला के दीवाने हुआ करते थे। अब उस जमाने में ना तो टीवी था और ना ही मनोरंजन का कोई साधन था। तो हम सिर्फ इंतजार करते थे बुधवार को रात 8 बजे इस शो को सुनने का। कई बार हम लोग शर्तें लगाते थे कि इस बार कौन सा गाना टाॅप पर होगा।

अमीन साहब स्ट्रगलिंग एक्टर्स की बहुत मदद करते थे। वो उनसे काम करवाते थे और उनको पैसे देकर मदद करते थे। जो बेचारे फिल्मों में आते थे कोशिश करने, जैसे सुरेश ओबेरॉय जो तब तक इस्टैब्लिश नहीं हुए थे। वो उनसे काम करवाते थे और पैसे देकर मदद करते थे। दूसरा वो हमेशा बड़े अच्छे मूड में रहते थे। एक जैसा खुशगवार मूड उनका रहता था। वो खूब चैरिटी भी किया करते थे। कई चैरिटेबल इंस्टीट्यूशन से जुड़े हुए थे। इनकी वालिदा कुलसुम सयानी बहुत बड़ी सोशल वर्कर थीं और भाई हामिद भी ब्रॉडकास्टर थे।

रजा मुराद ने बताया कि वो पहली बार सयानी साहब से उनके रिकॉर्डिंग स्टूडियो पर ही मिले थे।

रजा मुराद ने बताया कि वो पहली बार सयानी साहब से उनके रिकॉर्डिंग स्टूडियो पर ही मिले थे।

अमीन सयानी इतने बड़े आदमी थे कि सारे स्टार्स खुद उनसे बनाकर रखते थे क्योंकि वो जानते थे कि अमीन साहब की जुबान पर अगर एक बार भी उनका नाम आ गया तो उससे बड़ा उनका कोई प्रमोशन नहीं हाेगा।

मेरे लिए तो जिस तरह गायकी में लता मंगेशकर हैं, अभिनय में अमिताभ बच्चन और दिलीप कुमार हैं और हॉकी में मेजर ध्यानचंद हैं। वैसे ही सयानी साहब थे जिनके आस-पास तक भी कोई नहीं पहुंच पाया। जिस तरह हमारे देश में एक कश्मीर है, एक ताज महल है और एक अमीन सयानी हैं। ‘

ऐसी आवाज तो खुदा की ही हो सकती है- उदित नारायण, प्लेबैक सिंगर

मुझे अभी किसी ने भेजा है कि अमीन साहब नहीं रहे, तो मैं बोला कि ये झूठ है। लेकिन जब अब आपका कॉल आया है तो लग रहा है कि वाकई में वो नहीं रहे। सबसे पहली बात बताऊं तो अमीन सयानी जैसा अनाउंसर, पूरी दुनिया में कोई नहीं है। जब हम गांव घर में रहते थे तो रेडियो सुनते थे, तो लगता था कि ये इतनी खूबसूरत आवाज किसकी हो सकती है। सोचता रहता था कि ये कोई सपना तो नहीं है। ऐसी आवाज तो खुदा की ही हो सकती है। लेकिन देखिए ऊपर वाले की क्या असीम कृपा रही कि हम मुंबई आए और संघर्ष करते रहे। कई बार स्ट्रगल के दौरान भी फंक्शन में दूर से देखते थे कि ये अमीन सयानी साहब हैं, जो गीतमाला में अनाउंसमेंट करते थे।

ऐसा भी एक दौर आया… वक्त आया कि मैं भी ऊपरवाले की कृपा से फिल्म इंडस्ट्री में आ गया। कई बार मुझे उनसे मिलने का मौका सौभाग्य प्राप्त हुआ। बहुत प्यार करते थे। मुझसे कहते थे तुम्हारा गाना सुना बहुत अच्छा लगा। यार तुम अच्छे लड़के हो।

एक बार ऐसा हुआ कि रीगल सिनेमा, जहां ताज होटल है, वहां उनके रेडियो का ऑफिस हुआ करता था। उन्होंने मुझे वहां बुलाया और मेरा आधे घंटे का इंटरव्यू लिया। मेरी एक-एक यादें जुड़ी हैं उनके साथ। जब पद्मश्री मिला तो हम दोनों को एक साथ ही मिला।

उदित नारायण भी अपने करियर के शुरुआती दिनों में अमीन सयानी से इन्फ्लुएंस्ड थे।

उदित नारायण भी अपने करियर के शुरुआती दिनों में अमीन सयानी से इन्फ्लुएंस्ड थे।

मैं बयां नहीं कर सकता कि ऐसा फनकार ऐसा अनाउंसर लाखों-करोड़ो में है, लेकिन अमीन सयानी एक ही पीस थे। हमेशा सबके दिलों में छाए रहे और छाए रहेंगे। उस इंटरव्यू में मेरी पूरी जिंदगी की बात हुई। उन्होंने 2 पार्ट में उस इंटरव्यू को रिलीज किया था। उनका बेटा भी हमेशा उनके साथ रहता था। बहुत खुशमिजाज लोग हैं। मैं उनके बारे में जितना बोलूं उतना कम है।

कई बार कोई फिल्म हिट होती थी या कोई अवॉर्ड फंक्शन होता था, तो उसमें अमीन साहब आते थे। जब भी उन्हें देखते थे तो लगता था कि आज माहौल कमाल होने वाला है। उस समय रेडियो भी बहुत कम होते थे। बडे़-बड़े जमींदार या मुखिया के घरों में ही रेडियो होते थे। हम दूर से ही उनकी आवाज सुनते थे। क्या मखमली आवाज थी, क्या लहजा था बात करने का। जैसे ही वो बोलते थे भाइयों और बहनों, तो माहौल बदल जाता था।

जैसे रफी साहब गायकों में थे, वैसे अमीन साहब अनाउंसर में थे। ऐसा फनकार, ऐसा इंसान, ऐसा अनाउंसर, हमारी इंडस्ट्री और देश के लिए बहुत बड़ी क्षति है। वो अब ऊपरवाले के सामने बैठकर अनाउंसमेंट करेंगे। ऐसे लोग जन्नत ही जाने वाले हैं। दुनिया बदल जाए लेकिन ऐसे फनकार को कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनकी आवाज हमेशा एक कोहिनूर बनकर चमकती रहेगी। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे।’

उनकी कमी कोई पूरी नहीं कर सकता- शाहिद रफी, मोहम्मद रफी के बेटे

‘बहुत अफसोस की बात है। यकीन नहीं हो रहा है कि वो हमें छोड़कर चले गए हैं। उनकी कमी तो कोई पूरी नहीं कर सकता। वो लीजेंड थे। पर्सनली तो मैं उनके साथ बहुत क्लोज नहीं था पर वो मेरे वालिद के काफी करीब थे। दोनों के बीच काफी अच्छी बॉन्डिंग थी। हां एक बार एक शो के दौरान मैं उनसे जरूर मिला था। उनके परिवार के साथ मेरी संवेदनाएं हैं। ऊपरवाला उनकी आत्मा को शांति दे।’

मैं खुद 70 का हूं और मैंने भी अपने बचपन में उन्हें सुना था- सुरेश वाडेकर, सिंगर

‘मैं खुद करीब 70 साल का हो गया हूं और मैंने तक अपने बचपन में उनकी आवाज सुनी है। वो इंडस्ट्री की शुरुआत से ही लेकर अब तक इंडस्ट्री से जुड़े रहे हैं। बिनाका गीतमाला से यह आवाज गूंजती थी। उसके अलावा जब टीवी आया तो कई एड में भी उनकी आवाज होती थी। उनके बोलने का ढंग और सिंगर्स की तारीफ करने का जो उनका अंदाज था, वो बहुत ही कमाल था। वो मेरे गुरुजी पंडित जियालाल वसंत जी से भी उनका राब्ता था तो उन्होंने मुझे बचपन से ही देखा था। मेरी पहली मुलाकात उनसे एक फंक्शन के दौरान हुई थी। वो मेरी आवाज और मेरे काम को बहुत पसंद करते थे।

उन्हें मुझसे अलग ही प्यार था। फिर हमने साथ में भी काम किया। उनकी एड एजेंसी में मैंने भी कई जिंगल्स गाए। उनको कॉपी करके लाखों लाेग अपनी रोजी-रोटी कमाते थे। ये बहुत बड़े लोग हैं जिनको दुनिया कभी भूलेगी नहीं। हमने कई शोज भी साथ किए चाहे वो लता जी का हो या फिर कल्याणजी-आंनदजी का हो। आज हमने उनको खो दिया। दुआ करता हूं कि उन्हें जन्नत नसीब हो। उनका बेटा भी हमारा बहुत अच्छा दोस्त है।’

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