अहमदाबाद16 मिनट पहलेलेखक: राजकिशोर

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वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भारत को पहला मेडल दिलाने वाली अंजू बॉबी जार्ज ने बताया कि उन्हें उस मेडल इवेंट से पहले डोप टेस्ट देने के लिए रातभर लैब के सामने बैठना पड़ा था। अंजू ने 2003 में पेरिस में आयोजित वर्ल्ड चैंपियनशिप में 6.70 मीटर की छलांग लगाते हुए भारत को ब्रॉन्ज मेडल दिलाया था।

46 साल की अंजू उस मेडल पर बात करते हुए कहती हैं- ‘मैंने जिस समय वर्ल्ड चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज मेडल जीता था, तब उतना सपोर्ट नहीं था। इवेंट से पहले मुझे डोप टेस्ट देने के रातभर लैब के बाहर बैठना पड़ा था। अगले दिन मेरी हालत ऐसी नहीं रह गई थी कि मैं कॉम्पिटिशन में हिस्सा ले पाती। मैं मुश्किल से खेल खेल पाई। उस समय स्पोर्ट्स पावर में हम नहीं थे। सिस्टम में हमें सपोर्ट करने वाला कोई नहीं था।’

एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (AFI की वाइस प्रेसिडेंट अंजू ने अहमदाबाद में 19वीं इंटर डिस्ट्रिक्ट जूनियर एथलेटिक्स मीट के दौरान दैनिक भास्कर से खास बातचीत की।

सवाल- पेरिस ओलिंपिक के लिए चंद महीने बचे हैं, एथलेटिक्स से कितने मेडल की उम्मीद कर रही हैं?
जवाब-
एथलेटिक्स काफी टफ है। हमारे कई इवेंट्स में मेडल के दावेदार हैं, जिनसे मेडल की उम्मीद की जा सकती है। जेवलिन की बात करें तो, नीरज सहित चार थ्रोअर मेडल के दावेदार हैं लॉन्ग जंप में दो एथलीट है, जो मेडल की कतार में खड़े हैं।

रीले रेस और हाई जंप में भी मेडल की उम्मीद की जा सकती है। रीले टीम वर्ल्ड लेवल पर बेहतर प्रदर्शन कर रही है। एथलेटिक्स के अलावा शूटिंग, बॉक्सिंग, रेसलिंग और बैडमिंटन में ओलिंपिक में मेडल की उम्मीद की जा सकती है।

सवाल- कुछ एथलीट्स डोप में फंसे हैं? कहीं न कहीं कोच भी इस मामले में शामिल होते हैं? इसे कैसे रोक सकते हैं?
जवाब- हां कुछ कोच शामिल होते हैं। वे अपने नाम के लिए एथलीट को डोपिंग के दलदल में फंसा देते हैं। अब हमने जूनियर लेवल से ही डोपिंग के बारे में जागरूकता प्रोग्राम चलाया है। गुजरात में ही हुए इंटर डिस्ट्रिक्ट जूनियर एथलीट मीट में ही डोपिंग को लेकर सेमिनार किया गया है। कैंप में भी एथलीट को इस बारे में बताया जाता है।

एथलेटिक्स डोपिंग को रोकने के लिए सख्त कदम उठा रही है। ऐसे कोचों की पहचान की जा रही है, जो एथलीट को डोपिंग के लिए प्रेरित करते हैं। उन्हें एथलटिक्स फेडरेशन बैन कर रही है। कोचों में जागरूकता लाने के लिए भी प्रोग्राम चलाए जा रहे हैं।

सवाल- भारत एशिया में एथलेटिक्स की महाशक्ति है, लेकिन ग्लोबल लेवल पर हम उतना अच्छा नहीं कर पाते। इस अंतर को पूरा करने में कितना समय लगेगा?
जवाब- अभी खेलों के डेवलपमेंट को लेकर सरकार, विभिन्न खेल एसोसिएशन और ओलिंपिक संघ मिलकर काम कर रहे हैं। न केवल एथलेटिक्स में बल्कि अन्य खेलों में भी काम हो रहा है और बदलाव भी आ रहे हैं। हम 2036-ओलिंपिक का टारगेट लेकर चल रहे हैं। उस समय हम खेलों में एक महाशक्ति के रूप में सामने आएंगे।

सवाल- पिछले महीने आपने कहा था कि मैं गलत युग में खेली, यदि अंजू बॉबी जॉर्ज आज खेलतीं, तो क्या मेडल केस में ओलिंपिक का तमगा होता?
जवाब- हां मेरे समय में इस तरह की सुविधा नहीं थी। मैं ही अकेली थी, जो वर्ल्ड लेवल पर अपना बेस्ट दे रही थी। उस समय हमारे साथ कोच नहीं होते थे, कॉम्पिटिशन में अकेले जाना पड़ता था। उस समय कॉम्पिटिशन के दौरान कोई हमें किसी तरह का सपोर्ट देने वाला नहीं होता था।

अब ओलिंपिक पोडियम स्कीम के तहत खिलाड़ियों को हर तरह से सपोर्ट मिल रहा है। हम सिस्टम में भी है। ऐसे में हमारे एथलीट के साथ कोई गलत भी नहीं कर सकता है। नीरज लगातार बेहतर कर रहे हैं इसकी वजह ही है कि उन्हें हर तरह से सपोर्ट मिल रहा है। मैं यह दावे के साथ कह सकती हूं कि अगर मुझे भी इस तरह का सपोर्ट मिलता तो मैं ओलिंपिक मेडल मिस नहीं करती। शायद इस युग में होती तो मेरे भी ओलिंपिक मेडल होते और वर्ल्ड चैंपियनशिप में और मेडल के साथ रंग भी अलग होता।

सवाल- लॉन्ग जम्प में अंजू बॉबी जॉर्ज के बाद कोई बड़ा स्टार सामने नहीं आया है, आगे किसे देखती हैं, जो मल्टी स्पोर्ट्स इवेंट में अच्छा कर सकें?
जवाब- वर्ल्ड लेवल तक पहुंचने के लिए आप में जरूरी टैलेंट तो होना ही चाहिए, साथ ही बेहतर कोच का भी मार्गदर्शन जरूरी है। मेरे कोच मेरे पति बॉबी थे, जिन्होंने मुझे ट्रेन किया। मैंने कोई प्रतिबंधित दवा नहीं ली। मेरे अंदर नेचुरल टैलेंट था। नीरज सहित जेवलिन थ्रो में कई खिलाड़ी सामने आए हैं। जिनके अंदर नेचुरल टैलेंट है। ऐसे टैलेंट आने में समय लगता है

सवाल- क्रिकेट में पेरेंट्स को पता है कि क्रिकेटर बनाने के लिए बच्चे को कहां लेकर जाना है। पर किसी पेरेंट्स को अपने बच्चे को अजूं बॉबी जॉर्ज या नीरज चोपड़ा बनाना है तो उन्हें नहीं पता है कि कहां लेकर जाएं? एथलेटिक्स फेडरेशन क्या कर रही है, पेरेंट्स को आपका क्या सुझाव है
जवाब-
अभी समस्या है कि हमारे पास अकादमी की कमी है। रिलायंस फाउंडेशन सहित संस्था आगे आकर एथलेटिक्स के लिए अकादमी चल रही हैं, पर वहां भी लिमिटेड सीट ही हैं। हां फेडरेशन टैलंट सर्च प्रोग्राम चला रही है। इसमें आप बच्चों को लेकर आ सकते हैं। वहीं SAI (स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया) भी खेलो इंडिया गेम्स के माध्यम से प्रतिभाओं को तराशने का काम कर रही है।

मेरा पैरंट्स से यही अनुरोध है कि जो बच्चे एथलेटिक्स में आना चाहते हैं, उस पर प्रेशर न डालें। उनके लिए इंटर डिस्ट्रिक्ट जूनियर एथलीट मीट एक बेहतर प्लेटफॉर्म है। यहां बच्चों के शारीरिक क्षमता के अनुसार ही इवेंट हैं। यहां किड्स जेवलिन है। यहां बच्चों की स्किल की पहचान की जाती है और बाद में उनकी शारीरिक क्षमता के अनुसार जिसमें वह बेहतर कर सकते हैं, उसमें उन्हें एक्सपर्ट बनाया जाता है।

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