नई दिल्ली7 घंटे पहले

  • कॉपी लिंक

प्रेग्नेंसी से महिलाओं में बुढ़ापा जल्दी आ सकता है। हर प्रेग्नेंसी के बाद 2 से 3 महीने की बायोलॉजिकल एजिंग बढ़ जाती है। यदि महिला बार-बार गर्भधारण करती है तो उसमें दूसरी महिलाओं की तुलना में बुढ़ापा के लक्षण जल्दी दिखने लगते हैं।

‘द प्रोसिडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज’ में छपी रिपोर्ट के अनुसार, कम उम्र में गर्भधारण करने वाली महिलाओं में एजिंग जल्दी होती है।

आंखों के नीचे काले घेरे बनना, झुर्रियां और झाई आना, स्किन टोन और स्किन की चमक कम होना, काले धब्बे बनना, चेहरे पर रेड बंप निकलना, स्किन ढीली पड़ना जैसे लक्षण होते हैं।

नाखून में दरारें पड़ना, बार-बार सर्दी-खांसी होना, फंगल इन्फेक्शन, जोड़ों में दर्द, पीरियड्स अनियमित होना, क्रैंप, नींद नहीं आना, बाल झड़ना, वजन बढ़ना, जीभ पर सफेद परत जमना जैसे लक्षण भी हो सकते हैं।

प्रेग्नेंसी से पूरे शरीर पर असर पड़ता है

9 महीने की प्रेग्नेंसी में मां का शरीर हर तरह के प्रेशर को झेलता है। केवल फिजिकल चेंजेज ही नहीं होता बल्कि अंदरूनी अंग भी अपनी सीमा से बाहर जाकर काम करते हैं।

बच्चे के जन्म से काफी पहले से ही प्रेग्नेंसी के कॉम्प्लिकेशंस शुरू हो जाते हैं। ब्लड वॉल्यूम बढ़ता जाता है। हार्ट को बढ़े हुए एक्स्ट्रा ब्लड को पंप करने में मशक्कत करनी पड़ती है।

गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. लीला जोशी बताती हैं कि प्रेग्नेंसी के दौरान शरीर का पूरा इम्यून सिस्टम बदल जाता है। मेटाबॉलिज्म, ब्लड वॉल्यूम, ब्लड प्रेशर और यहां तक कि हडि्डयों में भी बदलाव आता है।

भ्रूण को मिलता कैल्शियम, मां में बोन डेंसिटी घटती

प्रेग्नेंसी के दौरान मां से भ्रूण को बड़ी मात्रा में कैल्शियम मिलता है जिससे इंटेस्टिनल कैल्शियम एब्जॉर्शन बढ़ जाता है। जब प्रेग्नेंसी का आखिरी महीना चल रहा होता है तो मां की हडि्डयां कमजोर होने लगती हैं।

डिलीवरी के बाद जब मां नवजात को ब्रेस्ट फीडिंग कराती है तब भी कैल्शियम का बड़ा हिस्सा बच्चे को मिलता है।

ब्रेस्ट फीडिंग कराने से महिलाओं में बोन डेंसिटी 7% तक घट जाता है। अलग से कैल्शियम लेने पर भी मां में बोन लॉस नहीं रुक पाता।

स्ट्रेस बढ़ने से अपनी उम्र से 8-10 साल बड़ी लगती महिलाएं आपने कई महिलाओं को देखा होगा जो कम उम्र की होने पर भी उम्र में 8-10 साल बड़ी दिखती हैं। प्रेग्नेंसी इसकी बड़ी वजह है।

‘रिवर्स द साइंस ऑफ एजिंग’ पुस्तक की राइटर डॉ. निगमा तालिब के अनुसार, प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाएं एंग्जाइटी से गुजरती हैं।

डिलीवरी के बाद वो पोस्टपार्टम डिप्रेशन से गुजरती हैं। प्रेग्नेंसी में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन हॉर्मोन्स की मात्रा ज्यादा होती है। लेकिन जब बच्चे का जन्म होता है तो इन हार्मोन की मात्रा अचानक से घट जाती है।

एम्स के कम्यूनिटी मेडिसिन के डॉ. रवि प्रकाश उपाध्याय बताते हैं कि भारत में 22% से अधिक मदर्स पोस्टपार्टम डिप्रेशन का शिकार होती हैं।

पोस्टपार्टम डिप्रेशन कई महीने तक चलता है। सही समय पर इलाज न हो तो महिला साइकोटिक डिप्रेशन में जा सकती है। यह खतरनाक स्टेज होता है जिससे महिला खुद को या बच्चे को नुकसान पहुंचा सकती है।

डॉ. निगमा तालिब बताती हैं कि मैंने कई ऐसी मरीज को देखा है जो अपनी उम्र से 4-5 साल तो कोई 10 साल तक बड़ी दिखती हैं। इसका बड़ा कारण स्ट्रेस है।

जो महिलाएं एंग्जाइटी और डिप्रेशन से गुजरती हैं उन्हें पाचन से जुड़ी समस्याएं भी होती हैं।

आंतों में स्वस्थ बैक्टीरिया कम तो एजिंग में आती तेजी

क्या आप जानते हैं कि आंतों में कितने बैक्टीरिया होते हैं? आंतों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया को गट बैक्टीरिया कहते हैं। एक वयस्क व्यक्ति के आंतों में 100 ट्रिलियन बैक्टीरिया पाए जाते हैं जिसे माइक्रोबायोम या माइक्रोबायोटा कहते हैं।

इसमें 400 से अधिक प्रकार के हेल्दी बैक्टीरिया होते हैं।

जब हम खाना खाते हैं तो ये बैक्टीरिया उसे तोड़ते हैं। इससे खाना आसानी से पचता है और खाने में मौजूद पोषक तत्व शरीर में मिल जाते हैं।

ये हानिकारक बैक्टीरिया को बढ़ने से रोकते हैं। जब आंतों में गट बैक्टीरिया घटते हैं तो पाचन से जुड़ी बीमारियां होने लगती हैं।

डॉ. तालिब बताती हैं कि प्रेग्रेंसी के दौरान हार्मोन असंतुलित होते हैं। पूरे शरीर के इम्यून सिस्टम पर असर पड़ता है। यदि खाना ठीक से नहीं पचता है तो इसके कारण गट बैक्टीरिया खत्म होने लगते हैं।

कई बार हमलोग यह सुनते हैं कि कुछ भी खाने पर शरीर को नहीं लगता। इसका कारण यह है कि हानिकारक बैक्टीरिया ही सारे न्यूट्रिएंट्स खा जाते हैं। न्यूट्रिएंट्स नहीं मिलने से सबसे बुरा असर स्किन पर पड़ता है।

खबरें और भी हैं…

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here