4 घंटे पहलेलेखक: मरजिया जाफर

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दुनिया में बहुत से लोग हैं जो जीवन भर एक ही काम करके ही संतुष्ट रहते हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो कई काम एक साथ करके समाज में अपनी एक खास पहचान बनाने के लिए हमेशा कोशिश करते रहते हैं। ऐसे ही महत्वाकांक्षी लोगों में से एक हैं गुलाबी शहर जयपुर, राजस्थान की इंदु गुर्जर। जो अपनी नौ साल की बेटी का हर पल ख्याल रखने के साथ नौकरी और शौक दोनों पूरा करने में नहीं हैं।

दैनिक भास्कर की ये मैं हूं सीरीज में आज जानिए इंदु गुर्जर की कहानी उन्ही के शब्दों में

नमस्ते दोस्तों…

मेरा नाम इंदु गुर्जर है और मैं मीडिल क्लास फैमली से आती हूं। मेरे पापा की चाय की दुकान थी उसी से उन्होंने अपने एक बेटे को डॉक्टर बनाया और हम सब भाई बहनों को अच्छी से अच्छी एजुकेशन देने की कोशिश की। मैंने पढ़ाई सरकारी स्कूल से पूरी की। मुझे बचपन से ही स्पोर्ट में बहुत दिलचस्पी थी। मैंने बास्केटबॉल और बैडमिंटन स्टेट लेवल पर खेला है। आगे इस खेल को जारी नहीं रख सकी क्योंकि कॉलेज में स्पोर्ट्स का ऑप्शन नहीं था।

घरेलू हिंसा की वजह से ससुराल छोड़ना पड़ा

मैं गुर्जर समाज से हूं। हमारे यहां लड़कियों की शादी बहुत जल्दी कर दी जाती है। लेकिन मां पापा के सपोर्ट से मुझे ग्रेजुएशन करने का मौका मिला। ग्रेजुएशन करने के साथ ही मेरी शादी हो गई। लेकिन शादी मेरे लिए बर्बादी की वजह बनी। शादी के बाद बच्चा करने का दबाव बनाया गया। रोजाना दहेज को लेकर ताने मिलते।

मेरे माता-पिता के बारे में गलत बोला जाता। प्रेग्नेंसी के समय मैं अपने मायके में ही रही लेकिन समाज के समझाने पर वो मुझे ले गए। लेकिन फिर मारपीट होने लगी, मेरे बच्चे को चोट पहुंचाने की कोशिश की। जब बात हद से ज्यादा बढ़ गई तो अपनी 20-25 दिन की बेटी को लेकर मुझे मजबूरन ससुराल छोड़ना पड़ा। मैंने एक साल इंतजार भी किया लेकिन जब कोई बात नहीं बनी तो मैंने डिवोर्स का केस फाइल कर दिया। मेरे लिए बच्ची की अकेले परवरिश करना आसान काम नहीं है। घर चलाना, ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए कमाना भी जरूरी है। लेकिन मैं पिछले सात सालों से डिवोर्स के लिए केस लड़ रहीं हूं। उसमें भी बहुत पैसे खर्च होते हैं लेकिन इंसाफ अभ तक नहीं मिला।

डिप्रेशन से बाहर निकल कर बैंक ज्वॉइन किया

मैंने अपनी जिंदगी में ऐसे उतार चढ़ाव देखे हैं कि इंसान हालात के आगे घुटने टेक देता है लेकिन जब मेरी जिंदगी में बुरा वक्त आया तो मैंने जीवन में कुछ मुकाम तय करने का निर्णय लिया है। डिप्रेशन से बाहर निकल कर बैंक की नौकरी ज्वॉइन की।

खुद को फिट रखने के लिए साइकिलिंग शुरू की

नौकरी शुरू की उसी समय कोविड आ गया और मैं पहली वेब में ही कोरोना की शिकार हो गई। पोस्ट कोविट वजन बढ़ने लगा। मैंने सोचा कि खुद को फिट रखने के लिए साइकिलिंग शुरू की जाए। मैंने एक साइकिल खरीदी। रोजाना 2-3 किलोमीटर साइकिलिंग करनी शुरू कर दी। उसके बाद मैंने स्टेडियम जाना शुरू किया। वहां मुझे साइकिलिस्ट का एक ग्रुप मिला। वहां मुझे पता चला कि साइकिलिंग एक ऐसा स्पोर्ट्स है उसमें एज लिमिट नहीं है। वहां से मेरे अंदर उम्मीद जागी कि मैं भी कुछ कर सकती हूं। शायद किस्मत ने मुझे ये मौका दिया है और यहीं से शुरू हुआ साइकिलिंग कर सफर। मैंने नॉर्मल राइड शुरू की। उसी दौरान मुझे वर्ल्ड कप खेलने और जीतने का मौका मिला। वहां कई इंटरनेशनल साइकिलिस्ट से मुलाकात हुई।

मैं माउंटेन बाइकर हूं

एक पेशेवर बैंकर होने के साथ-साथ पिछले तीन सालों से माउंटेन बाइकर भी हूं। साइकिल चलाने का जुनून हमेशा कुछ अलग करने के लिए प्रेरित करता था। मैंने कई साइकिल रेस में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और उसमें प्रभावशाली प्रदर्शन करते हुए बाजी भी मारी।

2022 में लेह, लद्दाख में आयोजित यूसीआई एलिमिनेटर विश्व कप के एलीट महिला वर्ग में भारत का प्रतिनिधित्व कर अपने शहर और राज्य का नाम रोशन किया। मेरी जिंदगी में अब तक यह सबसे बड़ी कामयाबी रही।

मेरी नौ साल की बेटी है और मैं उसे भी साइकिलिस्ट बनाना चाहती हूं। अभी वो स्केटिंग करती है लेकिन अब उसे ट्रेनिंग दूंगी। मैंने अपनी बेटी को घर पर छोड़कर जयुर से गुड़गांव हर हफ्ते सफर करती थी।

उम्र को कामयाबी की बाधा न बनाएं

मैं युवाओं खासतौर पर लड़कियों को यह सलाह देना चाहूंगी कि पढ़ाई के साथ-साथ उनमें जो भी टैलेंट है उसे पहचान कर उसमें निखार लाने की कोशिश करें। हार-जीत, सफलता और विफलता की चिंता किए बिना हमें सौ फीसदी ऊर्जा और क्षमता का इस्तेमाल लक्ष्य को हासिल करने में करना चाहिए बाकी सब ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए। एक बात और…कुछ भी नया करने में उम्र से कोई लेना-देना नहीं है, आप किसी भी उम्र में सफलता हासिल कर सकते हैं बस आपके हौसले बुलंद होने चाहिए।

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