नई दिल्ली2 घंटे पहलेलेखक: मरजिया जाफर

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नमस्ते दोस्तों

मैं पारूल आर्या, इंग्लिश स्पीकिंग ट्रेनर हूं और मिडिल क्लास परिवार से ताल्लुक रखती हूं। मां रेलवे में नौकरी करती हैं और पिता ऑटो चलाते हैं। यूं तो मेरे माता-पिता ने लव मैरिज की लेकिन कभी उनके रिश्ते अच्छे नहीं रहे। बचपन से मैंने उन्हें लड़ते झगड़ते देखा। शायद ही कोई ऐसा दिन गुजरता जब घर में शांति बनी रहती।

काम वाली बाई, पड़ोस की आंटी से था चक्कर

एक ऐसे माहौल में मेरी परवरिश हुई जहां पिता रोज देर रात घर आकर मां को मारते पीटते। जो भी हाथ में आता उसे उठाकर मां को पीटने लगते। मारपीट, गाली गलौज के बीच पली बढ़ी। हद तो तब हो गई जब मां को पापा के दूसरी औरतों से संबंधों के बारे में पता चला। काम वाली बाई, पड़ोस की आंटी सबके साथ पापा का चक्कर चलता था। मां सब कुछ जानने के बावजूद उनको माफ कर देतीं। उन्होंने अपने पति का बहुत सपोर्ट भी किया। वो नहीं चाहती थी कि उनके पति एक ऑटो ड्राइवर ही बने रहें। मां ने लोन लेकर पिता को एक एंट्री मोटर कंपनी बनाकर दी जिसमें वो पुरानी गाड़ियों की रिपेयरिंग करके उसे नई बनाकर बेचते।

पापा का टेली कॉलर के साथ अफेयर

पापा ने अपनी कंपनी में एक टेली कॉलर रखा जिसके साथ उनका अफेयर चलने लगा। हैरान करने वाली बात यह थी कि उस महिला को पापा के बारे में सब कुछ पता था कि वो शादीशुदा हैं, इनके बच्चे भी हैं और ये बिजनेस इनकी पत्नी के सपोर्ट से ही खड़ा है। इसके बावजूद उस बेशर्म महिला ने मर्यादा की सारी हदें पार करते हुए मेरे पिता के साथ संबंध बनाएं। मां के रहते हुए पापा ने उस महिला से शादी कर ली और उस शादी से उनके दो बच्चे भी हैं। पिता आज जबलपुर में रहते हैं और ऑटो चलाते हैं।

पापा हमें छोड़कर चले गए

मेरी मां अपनी मेहनत और ईमानदारी से रेलवे की चीफ ऑफिस सुपरिनटैंडैंट के पद पर काम कर रही हैं। कुछ समय बाद पापा ने मेरी मां को लीगल केस में भी फंसा दिया। मां ने दो छोटे-छोटे बच्चों के साथ कोर्ट के चक्कर लगाए। इस दौरान उन्होंने डिवोर्स भी फाइल कर दिया। मेरी मां नहीं चाहती थीं कि बच्चों की परवरिश पर ऐसे पिता का साया भी पड़े जिससे बड़े होने पर बच्चों को शर्मिंदगी उठानी पड़े। मां ने कहा, ’मैं अपने दम पर अकेले ही अपने बच्चों को पाल लूंगी। पापा हम सब को छोड़कर चले गए।’

पापा ने मुझे मां से दूर कर दिया

कुछ वक्त के बाद पापा वापस आए और बिना मम्मी की इजाजत लिए मेरी मर्जी जाने बिना मुझे अपने साथ जबरदस्ती ले गए। उन्होंने मुझे मेरी मां से दूर कर दिया। उन्होंने मेरा एडमिशन एक हॉस्टल में करा दिया। वो इस वादे पर मुझे वहां छोड़कर चले गए कि फिर वापस नहीं आए।

हॉस्टल में झाड़ू पोछा लगाती

मैं उस हॉस्टल के बरामदे में झाड़ू पोछा लगाती, मेस के बर्तन धोती। पतीले के अंदर बैठकर मैं बर्तन मांजती। हॉस्टल का सारा काम करती, कपड़े धोने से लेकर हॉस्टल की बड़ी बड़ी सीढ़ियां भी धोती।

एक जोड़ी कपड़ा, उसी को धोकर पहनती

मेरे पास सिर्फ एक जोड़ी कपड़ा था। मैं एक क्रिश्चियन हॉस्टल में थी। वहां संडे को चर्च लेकर जाते हैं। बाइबल पढ़ना सिखाते हैं। हॉस्टल की लड़कियां मुझे चिढ़ातीं कि फिर लाल टॉप और ब्लैक पैंट। एक कपड़ा है बार बार उसी को धोकर पहनती हो। मां की बहुत याद आती थी। मेरे पास बहुत कपड़े थे। मां अच्छा अच्छा खाना भी खिलाती थी। मेरे स्कूल में एक लड़की पढ़ती थी जिसका घर मेरे घर के पास ही था। मैंने उस लड़की के जरिए मम्मी की लेटर लिखा। मम्मी को जब पता चला कि मैं नागपुर शहर में हूं तो वह हॉस्टल पहुंची और हॉस्टल की बाकी फीस भरकर वह मुझे वापस घर लाईं।

मेरी जिंदगी संवारने वाली मेरी मां हैं।

मेरी जिंदगी संवारने वाली मेरी मां हैं।

मां ने कहा आत्मनिर्भर बनो

मेरी और मेरे भाई की परवरिश सिंगल मदर ने की। मेरे पापा का कोई पता नहीं था कि वो अब कहां हैं? मां ने एक दिन मेरे दोनों बाजू को कसकर पड़कर कहा कि पारूल आज मैं तुमको अपने अनुभवों से एक सीख देना चाहती हूं जो जिंदगी में तुम्हारे बहुत काम आएगी। उन्होंने मुझसे कहा, ‘अगर तुम अपनी मर्जी से बिना किसी समझौता के जीना चाहती हो तो आर्थिक तौर पर तुमको आत्मनिर्भर बनना पड़ेगा।’ मां ने ये भी कहा कि मैं उनकी इस बात को मजाक में न लूं। मां की वो बात मेरे दिल के किसी कोने में जाकर बैठ गई।

पहली कमाई 300 रूपए

बचपन में मैं मां की साड़ी और उनकी बड़ी-बड़ी चप्पल पहनकर पड़ोस के बच्चों को टीचर बनकर पढ़ाती। मुझे आंटी ने कहा तुम मेरे बच्चों के साथ सिर्फ खेलती क्यों हो उन्हें पढ़ाया करो। मेरे तीन बच्चे हैं मैं तुमको एक बच्चे का 100 रूपए दूंगी। मैं उस वक्त 7वीं क्लास में थी। 300 रूपए मेरे लिए बहुत थे। मैंने सोचा 300 रुपए में बहुत सी चॉकलेट आ जाएगी। मैं तो अमीर बन जाऊंगी।

14 साल की उम्र में 1900 रुपए कमाने लगी

मैं बच्चों को बहुत दिल लगाकर पढ़ाती थी। मेरा पढ़ाया एक बच्चा सिर्फ अपनी क्लास में ही नहीं बल्कि पूरे स्कूल में टॉप किया। ये बात आंटी ने पूरे मोहल्ले में फैला दी। स्कूल के नए सेशन तक सबको ये बात पता चल गई। मेरे घर में 19 बच्चे पढ़ने के लिए आने लगे। 3 बच्चों से सीधा 19 बच्चे। मेरे लिए ये एक बहुत बड़ी उपलब्धि ही था, क्योंकि जब मैं 13 साल की थी तो मैं 300 रूपए कमा रही थी। 14 साल की उम्र में मैं 1900 रुपए कमाने लगी।

इनकम बढ़ी तो आत्मविश्वास बढ़ा

मैं होम ट्यूटर बन गई। मैंने 10वीं जब कर ली तो मुझे मेरे इंस्टिट्यूट में ही 7वींं और 8वीं क्लास के बच्चों को पढ़ाने का ऑफर मिला। 2 घंटे पढ़ाने की एवज में 2000 रूपए मिलते थे। मैं बहुत खुश थी, मुझे इस्टिट्यूट लेवल पर पढ़ाने का मौका मिल गया। 12वीं पास करने के बाद मुझे 10वीं के स्टूडेंट को पढ़ाने का मौका मिला। मुझे वहां से 4000 रुपए मिलने लगे। मेरी इनकम बढ़ी और आत्मविश्वास भी। ये सब करते करते मेरा ग्रेजुएशन पूरा हो गया। मुझे लगा कि कहीं न कहीं मेरी अंग्रेजी परफेक्ट नहीं है। मेरा अंग्रेजी व्याकरण कमजोर है।

इंटरव्यू में रिजेक्ट हो गई

मैं मल्टीनेशनल कंपनी में काम करना चाहती थी लेकिन नागपुर में उस वक्त कोई भी मल्टीनेशनल कंपनी नहीं थी। मैंने इंटरव्यू देने शुरू किए। सेमी फाइनल राउंड तक पहुंची। फाइनल राउंड के लिए पुणे बुलाया गया। मैंने बहुत खुश थी कि मैं पुणे जाकर मल्टीनेशनल कंपनी में अपना करियर बनाउंगी। लेकिन पुणे में फाइनल इंटरव्यू के दौरान मुझे रिजेक्ट कर दिया। वापस नागपुर आई। एक हफ्ते तक रोती रही लेकिन खुद को समझाया और हिम्मत जुटाकर एक और इंटरव्यू देने का फैसला किया। इस बार बिना किसी को बताएं एक कंसल्टेंसी गई जहां इंफोसिस के इंटरव्यू चल रहे थे। सुबह 10 से से शुरू हुआ इंटरव्यू शाम के 5 बजे तक चला और मेरे हाथ में इंफोसिस का ऑफर लेटर था।

नागपुर में बच्चों को इंटरव्यू की ट्रेनिंग देती थी।

नागपुर में बच्चों को इंटरव्यू की ट्रेनिंग देती थी।

अमेरिकन और ब्रिटिश एक्सेंट सीखा

मैसूर में ट्रेनिंग के बाद पुणे में मेरी पोस्टिंग हुई। वहां मैंने एक साल काम करने के दौरान अमेरिकन और ब्रिटिश एक्सेंट सीखा और इंग्लिश स्पीकिंग ट्रेनर बन गई। वापस नागपुर आकर बच्चों को इंटरव्यू की ट्रेनिंग देने लगी। उसके बाद मुझे बीबीए और बीकॉम के बच्चों को पढ़ाने का मौका मिला। स्टूडेंट मुझे पसंद करते। इसी तरह 8 साल गुजर गए। मैंने सोचा कब तक दूसरों के ब्रांड के लिए काम करूंगी। अब कुछ मुझे अपना करना चाहिए।

अपने इंस्टीट्यूट की नींव रखी

नौकरी के दौरान ही मैंने किराये पर जगह लेकर अपने इंस्टीट्यूट की नींव रख दी। सारी तैयारी पूरी होने के बाद मैंने नोटिस सर्व कर दिया। 7 मई 2017 को मैंने अपने इंस्टीट्यूट का उद्घाटन किया। मैं अंदर ही अंदर घबराई हुई थी क इंस्टिट्यूट तो खोल लिया क्या कोई एडमिशन लेगा।

पहला एडमिशन लक्ष्मी गणेश का हुआ

मैं हैरान थी कि मेरे इंस्टिट्यूट में पहला एडमिशन गणेश नाम के लड़के ने लिया और दूसरा नंबर पर लक्ष्मी नाम की लड़की एडमिशन लेने आई। 10 दिन के अंदर 200 बच्चों ने एडमिशन ले लिया। उसके बाद मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। मेरी मां अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनकी दी गई सीख आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर होने पर मैं आज भी अमल कर रही हूं।

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