4 घंटे पहले

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न भूली जाने वाली कुछ मीठी यादों के घेरे में बंध कर रह जाती हैं ज़िंदगी का वो पहला पाक एहसास

राशि की फ़्लाइट कोहरे के कारण लेट हो गयी थी। “अब फ़्लाइट रात में साढ़े तीन बजे आएगी, तब तक जागना ही पड़ेगा”

उस ने एक नज़र अपनी कलाई घड़ी पर डाली फिर बेमन से सोचा, क्यों न एक चक्कर ड्यूटी फ्री शॉप का ही लगा लिया जाय। कम से कम समय तो कट ही जाएगा…दीपकान्त ने घर से निकलते वक्त एक अच्छी सी व्हिस्की लाने की फ़रमाइश की थी और परफ्यूम? अगर उसके स्टॉक में एक और जमा हो भी गई तो बुरा क्या है। बच्चों के लिए चॉकलेट्स भी ख़रीद लेगी”

यही सोच कर उसके कदम ड्यूटी फ्री स्टोर की तरफ़ चल बढ़ गये। व्हिस्की लेने के लिए हाथ बढ़ाया ही था कि नीले रंग के ब्लेजर की जेब से एक गोरा हाथ भी उसी शेल्फ पर आ लगा,

“ओह, आई एम सॉरी। आप ले लीजिए” राशि ने नम्र स्वर में कहा

“नहीं नहीं, आप ही ले लें” कहते हुए संजय ने उसकी ओर देखा तो, दोनों ही चौंक पड़े।

“अरे तुम, यहां।?” दोनों के मुंह से एकसाथ निकला। फिर तो एयरपोर्ट का वो सूना कोना राशि और संजय के कहकहों, चुटकुलों और फ़्लैशबैक की बातों से ख़ुशनुमा हो उठा था। विद्यार्थी जीवन में दोनों ही एक दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त रहे थे। बंबई जैसे ही महानगर में समुद्र की रेत पर बैठकर अपने नाम लिखना और फिर लिख कर मिटाना। प्रेजेंटेशन तैयार करने के लिए सिंहवी सर के घर जाना और उनके एक बार कहने पर, बारी बारी से प्रिंटर से प्रिंटआउट निकालना। राशि को सब याद आने लगा था।

राशि का, सितार पर संजय की फ़रमाइश पर धुनें बजाते बजाते अपनी उंगलियां घायल कर लेना। संजय का उसकी अंगुलियां देखकर बेंडएड लगाते हुए उदास हो जाना। संजय के एक बार कहने पर उसके लिये गाजर का हलवा और दही बड़े अपने हाथ से बना कर लाना, संजय भी अब तक कहां भूला था?

“तुम्हें याद है हमारी पहली मुलाक़ात भी इसी तरह हुई थी। दिल्ली मॉल में, दोनों के हाथ इसी तरह एक ही किताब पर पड़े थे”। बातों ही बातों में संजय ने कहा, “हां, और तब तुम ही ने शिष्टता से कहा था,“ आप ही ले लीजिये”

“मुझे तो पहली ही मुलाक़ात में तुम बहुत अच्छे लगी थी” संजय के स्वर में प्रशंसा थी।“ तुम्हारा ड्रेस सेंस, बातचीत का ढंग अद्भुत था”

“अगर अच्छी लगी थी तो तुम मेरी हर बात काट क्यों देते थे?”

“और तुम, हमेशा मुझ से झगड़े का बहाना ही क्यों ढूंढती रहती थी”

“हे ईश्वर, तुम अभी तक वैसे ही भोले भंडारी हो। मैं झगड़े का नहीं, बल्कि तुम्हें चिढ़ाने का बहाना ढूंढा करती थी। तुम्हारी आदत थी, टॉपिक छेड़ दो तो घंटों बोलते ही जाते थे और न छेड़ो तो चुप। अपने आप से तो कभी कोई बात तुम्हें सूझती ही नहीं थी। फिर भी, मेरी लाख कोशिशों के बावजूद भी कुछ बातें, जो तुम्हें कहनी चाहिए थीं कभी कही ही नहीं तुमने”

संजय ने बात पकड़ ली,”क्या नहीं कहा मैंने?”

राशि। घुमा फिरा कर, बात टालने की कोशिश करने लगी, लेकिन संजय, अपनी ही बात पकड़ कर बैठा रहा। जिस लड़की को उसने अपने दिल में बैठाकर कर रखा, मानसम्मान दिया वो उसे “भोला भंडारी” कैसे कह रही है?

“तुमने कई बार कहा था कि तुम, अकेले में कुछ कहना चाहते हो पर हम, जब भी अकेले में मिले तुमने कभी कुछ नहीं कहा”

उधर संजय के मन में उत्सुकता अभी भी बनी हुई थी,

“ क्या कहता मैं? याद है जब तुम्हें कोविड हुआ था। सारी सारी रात जागकर तुम्हारे पेपर मैं ही तैयार करता था? नारियल पानी, और दूसरे फल, और खाने का सामान, मां से झूठ बोलकर, मुंह अंधेरे ही तुम्हारे घर तक पहुंचा कर भी आता था क्योंकि, उसके बाद तो पुलिस की गश्त शुरू हो जाती थी…। याद है तुम हमेशा कहा करतीं थीं कि तुम किसी सरकारी कर्मचारी से ही शादी करोगी और तब मैंने सरकारी प्रतियोगिताओं की ही तैयारी शुरू कर दी थी” बहुत सी बातें कहने के बाद वो बोला, “बहुत सी बातें कहने की नहीं समझने की होती हैं। अगर मैंने नहीं कहा तो तुम ही कह देतीं “मैडम इंटेलिजेंट”

इतना सब सुनकर राशि भी ख़ुद को रोक नहीं सकी थी। बोली, “हैरानी तो इस बात की है संजय कि, हर विषय पर आत्मविश्वास के साथ बोलने वाला इतनी बड़ी कंपनी का सीईओ, एक लड़की के हावभाव और आंखों की भाषा नहीं पढ़ सका? कहने की कोशिश तो मैंने भी बहुत बार की थी पर, खुलकर कैसे कहती? आख़िर लड़की ही तो थी मैं”

“हर क्षेत्र में बराबरी का दावा करने में तो तुम औरतें एक पल का समय भी नहीं गंवाती और प्यार का इजहार करना हो तो…”संजय ने चिढ़ कर कहा

दोनों की आंखें इस समय बोल रही थीं। मगर शब्द थे कि ज़ुबान पर आते आते ही रुक जाते थे। आज पहली बार दोनों को पता चला कि जिसे दिलोजान से चाहा, उनका वो पहला प्यार भी उन्हें ही प्यार करता था। वो दोनों हैरान थे, खुश भी थे और दुखी भी थे। उसके बाद बहुत देर तक मौन मुखर रहा। फिर सन्नाटे को बींधते हुए संजय ने बात शुरू की,

“तुम्हारे पति कैसे हैं?”

“वो बहुत अच्छे हैं…”

“और बच्चे”

“ दो विपुल और साक्षी”

एक बार फिर, दोनों अपने अतीत को भूलकर वर्तमान में लौट आये। अपनी फ़्लाइट का एनाउन्समेंट सुनकर, संजय भावुक हो उठा था

“फिर कब मुलाक़ात होगी”

“ पता नहीं शायद जल्दी या शायद फिर कभी न हो।।”

उसके बाद सामान समेटकर बाय बोलना, मोबाइल नंबर एक्सचेंज करना, फ़्लाइट में बैठना, सब कुछ, जैसे सिलसिले से किसी मूवी की तरह ही हुआ।

घर पहुंचकर दीपकान्त ने राशि का गर्मजोशी से स्वागत किया फिर बोले,

“घर से चली जाती हो तो बहुत सूना सूना लगता है” सुनते ही राशि, दीपकान्त से लिपट गयी थी। फिर तो राशि बैग में से सबके लिए एक एक गिफ्ट निकाल कर देती गयी तो, बच्चों के कहकहों से पूरा घर गूंज उठा था।

“मम्मा आज हम मेड के हाथ से पका खाना नहीं खाएंगे। आपके हाथ से बनी पावभाजी खानी है” विपुल बोला

और साक्षी डोसे की फ़रमाइश कर रही थी, साथ में सांभर और चटनी भी ज़रूरी थी।

जल्दी ही दीपकान्त ने महसूस किया कि, हमेशा कम, और नपा तुला बोलने वाली राशि एकदम से बिंदास और चंचल हो गयी थी। वो अक्सर राशि को किसी से फ़ोन पर बहुत देर तक बात करते सुनते तो सोचते, बिना मतलब तो राशि किसी से एक शब्द नहीं बोलती फिर ये कौन है जिससे बात करते समय राशि का स्वर धीमा और सीरियस हो जाता है…? सोशल नेटवर्किंग साइट खोलते समय या वॉटसैप पर बातें करते समय भी वो दूसरे कमरे में चली जाती थी। सबसे हैरानी इस बात की थी कि, जिस सितार पर बरसों से धूल जमी थी उसे पोंछ कर, उसके तारों को कस कर, राशि के हाथ पूरे घर को उसके मधुर स्वर से गुंजायमान कर रहे थे।

हालांकि संजय का धीरज जवाब दे रहा था फिर भी, राशि में आया बदलाव उन्हें इतना अच्छा लग रहा था कि वो उसे टोकना नहीं चाह रहे थे। साथ ही उन्हें इस बात का मलाल भी था कि जो काम वो बरसों से शिद्दत से नहीं कर पाये वो इन चार दिनों के ऑफिशियल टूर में कैसे संभव हो गया?

इसी असमंजस में कुछ दिन और निकल गये। आख़िर एक दिन राशि ने ख़ुद ही भेद खोला,

“ दीप, जानते हैं मुंबई में मुझे संजय मिला था।”

“ वो तुम्हारा एम बी ए का क्लास मेट”

“हां”

“थोड़ा कमज़ोर लग रहा था लेकिन आवाज़ में वो ही खनक थी। लेकिन,एक बात कितनी अजीब है कि हम दोनों ही कॉलेज के ज़माने में ही एक दूसरे को पसंद करते थे लेकिन, न कभी उसने अपने प्यार का इज़हार किया न ही कभी मैंने”

“अच्छा ही हुआ न। अगर पता चल जाता तो तुम मेरी पत्नी कैसे बनतीं?”

कहने को तो दीपकान्त ने शरारत से राशि की आंखों में झांक कर कह दिया लेकिन थे तो वो पुरुष ही और पति भी थे। मन का एक कोना फ़िलहाल यही सोच सोच कर संदिग्ध था कि, राशि ने ख़ुद को एक कवच में क़ैद करके रखा है। जिस तरह वो एक अच्छे बेटे, भाई और सरकारी अफ़सर का दायित्व निभा रहे हैं उसी तरह, राशि भी एक अच्छी पत्नी होने का दायित्व निभा रही है।

एक रात, सुंदर बेड रूम की धीमी रोशनी में, अपनी सशक्त बाहों में राशि को लेकर, दीपकान्त बड़े इत्मीनान से बोले,

“शादी से पहले तुम संजय को पसंद करतीं थीं ये तो तुम मुझे पहले ही बता चुकी थीं लेकिन, इन चार दिनों में, संजय से मिलने के बाद जो तुम्हारे व्यवहार में बदलाव आया है वो देख कर सोच रहा हूं कि कहीं मेरी बारह वर्ष की तपस्या तो भंग नहीं हो जाएगी? कहां संजय, लिस्टेड कंपनी का सीईओ और कहां मैं,एक साधारण सा गेज़ेडेट अफ़सर!”

“दीप, मैं बहुत ही बेबाक़ क़िस्म की इंसान हूं। कुछ छिपाना चाहती तो तुमसे, संजय का ज़िक्र कभी भी नहीं करती। दूसरा इसलिए भी कि जितने तुम सुलझे हुए इंसान हो उतना शायद ही कोई होगा। इसीलिए मैंने तुम्हें सब कुछ बताकर अपने मन का बोझ हल्का कर लिया। फिर भी झूठ नहीं बोलूंगी, कभी कभी मैं ख़ुद से ये सवाल आज भी पूछ लेती हूं कि, ऐसी कौन सी कमी थी मुझ में, जो,संजय ने मुझे स्वीकार नहीं किय?, ये सोच ही शायद वो ख़लिश थी जिसके कारण मैं अपने अतीत को याद करना ही नहीं चाहती थी, पर अब, संजय से मिलने के बाद वो फांस भी हमेशा हमेशा के लिए मेरे दिल से निकल गई है”

समय धीरे धीरे बीत रहा था। दिनचर्या गृहस्थी संभालने, बच्चों को स्कूल भेजने, ख़ुद ऑफिस जाने और देर रात तक प्रेजेंटेशन तैयार करने में कब सुबह होती और शाम ढल जाती पता ही नहीं चलता था। एक दिन अचानक राशि, अपनी मारुति कार से उतर ही रही थी कि, संजय नीली मर्सिडीज़ से उतरता हुआ दिखाई दिया। दोनों “कहकशा” रेस्टोरेंट के लॉन में कोने की टेबल पर बैठ कर बिल्कुल नार्मल तरीक़े से बातें कर रहे थे। टेबल वेजीटेबल्स कटलेट्स, पनीर टिक्कों और स्वीट लाइम सोडा से सजी हुई थी।

“संजय, मैंने दीपकान्त को बताया कि, बॉम्बे एयरपोर्ट पर तुम से मुलाक़ात हुई थी तो बोले,

“भई राशि, पुराने दिन याद करके हमें भूल मत जाना, नहीं तो इस अधेड़ उम्र में दो दो बच्चों को कैसे संभाल पाऊंगा। संजय, जानते हो दीप ने हावर्ड से एम बी ए किया है। कहते हैं मेरी दो दो गर्ल फ़्रेंड थीं। एक डेढ़ साल,दूसरी दो साल पर दोनों ही साथ छोड़ गईं। साथ तो हिंदुस्तानी बेगम ही दे रही है न। संजय कपूर कैसे उड़ा कर ले जा सकता था तुम्हें?। जन्म जन्म का साथ तो हम दोनों का ही है न”

संजय ने महसूस किया, राशि के हावभाव में कहीं भी विरह, अलगाव या वर्तमान से असंतुष्टि का भाव नहीं था। बड़े सहज ढंग से बोला,

“ राशि पहले प्यार में बड़ी अजब सी कशिश होती है। न भूली जाने वाली कुछ मीठी यादों के घेरे में बंध कर रह जाती हैं ज़िंदगी का वो पहला पाक एहसास। तुमने और मैंने, अपने वैवाहिक जीवन के साथ समझौता करके बड़ी ही समझदारी से काम लिया और अपने जीवनसाथी को ख़ुद ही अपने “कृश” के बारे में सब कुछ बता दिया। अब तो हम दोनों के पास एक एक बहुत अच्छा जीवन साथी भी है और प्यारे प्यारे बच्चे भी हैं”

राशि की आंखों में नमी तैर आई थी। संजय उसकी पीठ थपथपा कर बोला,

“ मैंने तुम्हें और तुमने मुझे चाहा था। ये अध्याय हम दोनों यहीं पर समाप्त करते हैं। कभी घर आओ,सीमा मेरी पत्नी तुम्हें ख़ुद फ़ोन करेगी, मैं दीपकान्त को।

हमेशा यही दुआ करूंगा कि, तुम और मैं कभी भी बेईमानी करके अपने परिवार को खंडित नहीं होने देंगे और अपने जीवन साथी और बच्चों के प्रति निष्ठावान रहेंगे। प्यार शक्ति होता है और प्यार पूजा भी होता है। आज का यहां मिलना तुम, दीपकान्त को बताना और मैं सीमा को बताऊंगा। अब जब भी मिलेंगे, सब इकट्ठे ही मिलेंगे। मन को साफ़ रखेंगे, बिल्कुल दर्पण की तरह। दर्पण कभी झूठ नहीं बोलता।”

और दोनों गाड़ियां लगभग एक साथ स्टार्ट हुई थीं। दो प्रेमी नहीं, दो मित्र अपने अपने घर की तरफ़ जा रहे।

-पुष्पा भाटिया

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