रविवार को चौथे दौर की बातचीत को सरकार और किसान संगठन दोनों ने सकारात्मक बताया. इस मामले के सुलझने की राह में सबसे बड़ी बाधा MSP पर कानून बनाने की बात है, लेकिन सरकार ने हल निकालने की कोशिश के तहत किसानों को एक प्रस्ताव दिया. प्रस्ताव के अनुसार सरकार मक्का, तूर, अरहर, उड़द और कपास की फसल को MSP पर 5 साल तक खरीदेगी. NCCF और NAFED जैसे को-ऑपरेटिव सोसायटी किसानों के साथ करार करेंगी. खरीद की कोई सीमा नहीं होगी और जल्द ही एक पोर्टल तैयार होगा.

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किसान नेताओं ने सोमवार को इस मामले में प्रेस कॉन्फ्रेंस की. उन्होंने बताया कि मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर उन्हें पता चला है कि केंद्र सरकार MSP पर अध्यादेश लाने की योजना बना रही है. किसानों के संगठन संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा कि उन्हें MSP गारंटी से कम कुछ भी मंजूर नहीं है.

C2+50% के आधार पर MSP गारंटी की मांग

किसान मोर्चा ने कहा कि स्वामिनाथन आयोग ने 2006 में अपनी रिपोर्ट में केंद्र सरकार को C2+50% के आधार पर MSP देने का सुझाव दिया था. बयान में कहा गया है कि किसान इसी के आधार पर तमाम फसलों पर वह  MSP की गारंटी चाहते हैं. इसके जरिए किसान अपनी फसल एक फिक्स्ड कीमत पर बेच सकेंगे और उन्हें नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा 

SKM ने सरकार के प्रस्ताव को खारिज करते हुए कहा, “10000 रुपये किसानों को पेंशन, लोन माफी और बीजेपी सांसद अजय मिश्रा टेनी को बर्खास्त करने पर सरकार का रुख साफ नहीं है. सरकार सभी फसलों की MSP की गारंटी और स्वामीनाथन रिपोर्ट को लागू करे.” 21 और 22 फरवरी को SKM की जनरल बॉडी की बैठक है, उसके बाद आगे के कदम पर निर्णय होगा.

बता दें कि अजय मिश्रा ‘टेनी’ उत्तर प्रदेश की लखीमपुर-खीरी लोकसभा सीट से बीजेपी के सांसद हैं. वह केंद्रीय गृह राज्यमंत्री हैं. उनका और उनके बेटे का नाम लखीमपुर-खीरी कांड में जुड़ा था.

किसानों का क्या कहना है?

NDTV ने सरकार के इस प्रस्ताव पर शंभू बार्डर पर बैठे किसान आंदोलनकारियों की प्रतिक्रिया जानी. मोटे तौर पर सरकार के इस प्रस्ताव को लेकर किसानों के बीच ज्यादा उत्साह नहीं है. उनका कहना है कि केवल पांच फसल पर नहीं, बल्कि सभी 23 फसलों पर सरकार इस तरह की गारंटी दे. किसानों ने कहा कि पंजाब और हरियाणा में दाल और मक्का की पैदावार नाम मात्र की है, कपास की फसल में लाल सूंडी रोग से अब उसे बो नहीं रहे हैं, तो हमें क्या फायदा है.

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सरकार फसलों के विविधीकरण पर दे रही हैं जोर

ग्लोबल वार्मिंग के चलते सरकार फसलों के विविधीकरण पर जोर दे रही है. सरकार का मानना है कि परंपरागत गेंहू धान और गन्ना उगाने में पानी और उर्वरक ज्यादा लगने से किसानों की खेती की लागत बढ़ रही है. इससे वो दूसरी फसल उगाए, जिसमें पानी और उर्वरक कम लगता है. लेकिन किसानों के बीच इसको लेकर कई तरह के असमंजस है.

किसानों का कहना है कि सरकार फसल विविधीकरण की बात करती है. हमने गन्ना लगाया, लेकिन मिलों में भुगतान डेढ़ साल बाद होता है. हरियाणा सरकार ने मक्का या मिलेट्स उगाने के लिए एक स्कीम शुरू की थी. लेकिन इसका फायदा नहीं मिला.

फिलहाल शंभू बार्डर पर शांति है. एक तरफ आंदोलनकारी किसान बैठे हैं. दूसरी तरफ उनको रोकने के लिए पुलिस बल तैनात है. 21 तारीख को किसान संगठन अपना फाइनल रुख बताएंगे. फिलहाल किसान और सरकार दोनों चाहते हैं कि ये मामला शांति से निपट जाए.

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