4 घंटे पहलेलेखक: मरजिया जाफर

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एक दौर वो भी था जब भारत राजू के दांतों की चमक देख चौंधिया गया और दंत मंजन का बाजार सातवें आसमान पर पहुंच गया। लेकिन धीरे-धीरे पाउडर वाले दंतमंजन की चमक फीकी पड़ गई। सवाल उठने लगा कि “क्या आपके पेस्ट में नमक है”, लौंग है, पुदीना है और न जाने क्या-क्या। खैर मामला ओरल हेल्थ का है। इसलिए कंपनियों को अपने अपने प्रोडक्ट बेचने के लिए ऑफर और एक्ट्रेक्टिव हथकंडे अपनाने पड़ते हैं।

इंसान को कुदरत की तरफ से चार तरह के दांत मिले हैं। 16 ऊपर और 16 नीचे। कुल मिलकर 32 होते हैं। जिसे चार हिस्सों में बंटा गया है।

इनसाइसर टीथ-चौड़े और तेजधार दांत खाने को कुतरने का काम करते हैं। ये 8 होते हैं चार ऊपर की ओर, चार नीचे।

अंटेरोपोसटेरिओर टीथ- किनारे पर चपटी रेखा और चौकोर दांत खाने को कुचलते हैं। इसकी भी संख्या आठ होती है जो चार ऊपर और चार नीचे।

मोलर टीथ-यह चौकोर और धारदार दांत खाना चबाने का काम करते हैं। इसकी संख्या 12 होती है। 6 ऊपर 6 नीचे।

टेयरफूल- यह दांत नुकीले होते हैं इसकी संख्या चार होती है दो ऊपर और दो नीचे। यह खाने को पकड़ने के साथ चीरने फाड़ने का भी काम करते हैं।

कैविटी क्या है

दांतों की लेयर में छेद को कैविटी कहते हैं। जो बैक्टीरिया की वजह से होती है। जो प्लाक में मौजूद एसिड दंत वल्क से खनिजों को हटाते हैं। दांतों की एक कोटिंग जो कैल्शियम और फॉस्फेट से बनी होती है।

दांतों में कैविटी होने की वजह

  • मुंह में लार की मात्रा कम हो।
  • कैंडी और चिपचिपे खाद्य पदार्थ।
  • सोडा, अनाज और आइसक्रीम जैसे चीनी से बने प्रोडक्ट।
  • पेट में जलन।
  • दांतों की सफाई ठीक से न होना।

भारत में भी नकली दंत शिल्प महाभारत काल में कर्ण के सोने के दांतों से मिलाता है। जिसके लिए श्रीकृष्ण ने कर्ण की परीक्षा ली थी

कर्ण के दान के कई किस्से

एक बार श्रीकृष्ण ब्राह्मण का भेस धारण कर कर्ण से सोना मांगा। कर्ण ने कहा कि अभी तो सोना सिर्फ मेरे दांतों में है आप ले लो। ब्राह्मण ने कहा कि उसके लिए दांत तोड़ने पड़ेंगे, जो मुझसे नहीं होगा। इस पर कर्ण ने खुद अपने दांत तोड़कर सोना निकालकर ब्राह्मण रूपी कृष्ण को दे दिया। कृष्ण इससे खुश हुए और कर्ण से वरदान मांगने को कहा।

करीब आधी सदी पहले तक वल्केनाइज्ड नामक रबर और पोरसेलिन दांतों से नकली दांत तैयार किए जाते थे।

वल्केनाइज्ड क्या है

वल्केनाइज्ड एक प्रकार की रबर है जो प्राकृतिक रबर के रूप में जाना जाता है। यह रबर बनाने वाले पौधों (हेविया ब्रासिलिएन्सिस) की सेल्स से निकलता पॉलीसोप्रीन और स्टाइरीन-ब्यूटाडीन रबर ऐसे पॉलिमर हैं जिन्हें अक्सर वल्केनाइज्ड किया जाता है।

पोरसेलिन के दांतों

पोरसेलिन के दांतों को आज भी पत्थर के दांत कहा जाता है। पत्थर के दांत के नाम पर पोरसेलिन का थोड़ा बहुत इस्तेमाल आज भी हो रहा है। मजबूती के लिए वाइटेलियम, गोल्ड एलाय और सिरेमिक का इतेमाल करते हैं।

डेन्चर ढीला होना

ढीले डेन्चर के टिशु में खाना जमा होकर सड़ने लगता है जिससे डेन्चर पहनने से मुंह से बदबू आती है। टिशु में डेन्चर के लगातार चुभने से मुंह के कैंसर का खतरा बढ़ता है।

12 पेड़ के दातुन हर मौसम में इस्तेमाल कर सकते हैं

पहले जमाने में लोग ब्रश-पेस्ट का इस्तेमाल नहीं करते थे, बल्कि दातुन से मुंह धोते थे। न उनके दांतों में सेंसिटिविटी होती थी, न ही पीले दांत और न ही सांसो में बदबू की।

रोगों के हिसाब से दातुन के फायदे

प्राचीन काल से ही दांतों को साफ करने के लिए दातुन का इतेमाल किया जाता है। दातुन करने से पेड़ों के रस न सिर्फ दांतों और मसूड़ों को स्वस्थ रखते हैं बल्कि बीमारियों को भी दूर रखते हैं।

नीम की दातुन-नीम की टहनी के रस मसूड़ों की सूजन, पायरिया, दांतों में कीड़ा लगना, पीप आना, जलन, दांतों का टेढ़ा होना रोगों का नाश करता है।

बबूल की दातुन-बबूल के दातुन को करने से बांझपन और गर्भपात होने का डर नहीं रहता।

अर्जुन का दातुन-अर्जुन दातुन हार्ट पेशेंट के लिए फायदेमंद है। इससे हाई बीपी, एंजाइना, शुगर, जैसी बीमारियां खत्म हो जाती हैं।

महुआ की दातुन-खून आना, कड़वाहट, मुंह और गला सूखने की परेशानियों से बचाता है। इससे स्वप्नदोष, शीघ्रपतन, बीमारियां भी दूर होती है।

अपामार्ग की दातुन-अपामार्ग को हिन्दी में चिरचिटा के नाम से जाना जाता है। यह सांस की बीमारी का नाश करता है।

बेर की दातुन-करंज की दातुन बवासीर, पेट के कीड़े में फायदा देती है। बेर के दातुन से गले की खराश, दांत के कीड़े, खांसी मुंह की बदबू दूर होती है।

दातुन करने से पहले ये जानना जरूरी है

  • ताजी दातुन करनी चाहिए
  • 6-8 इंच लम्बी दातुन होनी चाहिए
  • दातुन टहल कर न करें
  • उकड़ू बैठकर दातुन करने से सभी अंग को फायदा होता है

पेरोक्साइड से कुल्ला

पानी के साथ हाइड्रोजन पेरोक्साइड मिलाकर एक घोल बना लें। इससे 30-40 सेकंड तक गरारा करें। इसे हफ्ते में दो बार दोहराएं।

दंतमंजन का इतिहास

बाजार में हज़ारों तरह के टूथपेस्ट मौजूद हैं लेकिन कभी सोचा है कि क्या पहले भी लोगों के लिए टूथपेस्ट की किस्में थीं।

मिस्र-5000 ईसा पूर्व टूथपेस्ट का इस्तेमाल किया गया जिसे नमक, पुदीना, आईरिस फूल और मिर्च के मिश्रण से बनाया जाता था।

भारत और चीन-टूथपेस्ट का प्रयोग 500 ईसा पूर्व किया। टूथपेस्ट को घोड़े के खुरों के टुकड़ों और अण्डों की बाहर की झिल्ली के जले हुए छिलके के साथ में झांवां को मिश्रित कर पेस्ट बनाते थे।

रोम और ग्रीक-हड्डियों और घोंघे का चूर्ण का टूथपेस्ट बनाकर दांत साफ करते थे। ग्रीक और रोम के लोग टूथपेस्ट में स्वाद लाने के लिए कोयला और पेड़ों की छालों का इस्तेमाल करते थे।

इंग्लैंड में टूथपेस्ट-1800 में लोग सुपारी से दांत साफ करते थे। 1860 में कोयले से। 1873 में कोलगेट ने टूथपेस्ट को घड़े में बेचना शुरू किया जिसमें लोग ब्रश डूबाकर दांतों को साफ करते थे। 1872 में कोलगेट टूथपेस्ट को टूयूब की शक्ल में ले आया जो इतना मशहूर हुआ कि सभी टूथपेस्ट ट्यूब के में आने लगे।

दांतों को रखना है हेल्दी तो ऐसे खरीदें टूथपेस्ट

लोग विज्ञापन के देखकर टूथपेस्ट खरीद लेते हैं। जबकि कंज्यूमर को कानून के तहत कंपनी अपने हर प्रोडक्ट पर उसकी जानकारी देती है। ऐसे में टूथपेस्ट के ट्यूब पर दिए कलर कोड के जरिये से आप यह जान सकते हैं कि आखिर कौन सा टूथपेस्ट आपके लिए बेहतर है। टूथपेस्ट पर यह जानकारी चार रंगों के जरिये दी जाती है। जानिए टूथपेस्ट के पैकेट पर रंगों के निशान का क्या मतलब होता है।

काला रंग-टूथपेस्ट में काले रंग का निशान है तो उस टूथपेस्ट में केमिकल की मात्रा बहुत ज्यादा है। इसे खरीदने से बचें।

नीला रंग-टूथपेस्ट के ट्यूब के नीचे नीला रंग है तो यह नैचुरल इंग्रीडिएंट्स और कुछ केमिकल से बना है। यह दांतों और मसूड़ों के लिए सुरक्षित है।

लाल रंग-टूथपेस्ट के पीछे लाल रंग का निशान यानी इसमें केमिकल के साथ नेचुरल इंग्रीडिएंट्स का प्रयोग किया गया है। लाल रंग के निशान वाला टूथपेस्ट दरअसल काले रंग के निशान वाले टूथपेस्ट से थोड़ा सुरक्षित है।

हरा रंग-हरा रंग पूरी तरह से नैचुरल इंग्रेडिएंट्स से बनता है। दांतों और मसूड़ों के लिए यह सुरक्षित है। टूथपेस्ट खरीदने जाएं तो उसकी पैकेजिंग पर बने निशान को जरूर ढूंढे।

दांतों के लिए कौन सा टूथपेस्ट है अच्छा

मार्केट में कई प्रकार के टूथपेस्ट मिलते हैं, कोई एंटी-प्लाक तो कोई वाइटनिंग, कोई सेंसिटिविटी के लिए है तो कोई गम्स प्रॉब्लम और फ्लोराइड वाले टूथपेस्ट। जरूरत के हिसाब से टूथपेस्ट इस्तेमाल करें।

​कितनी होनी चाहिए टूथपेस्ट की मात्रा

लोग सफाई करने के चक्कर में भर-भर के टूथपेस्ट इस्तेमाल करते हैं। जबकि टूथपेस्ट को बहुत कम मात्रा में इस्तेमाल करना चाहिए। टूथब्रश पर मटर के दाने जितना ही टूथपेस्ट लगाकर दांत साफ करने चाहिए।

ब्रश करने का सही तरीका क्या होना चाहिए ब्रश करते समय इधर-उधर घूमने की आदत होती है। इससे टूथपेस्ट मुंह में ज्यादा देर तक रहता है और गालों के जरिए टूथपेस्ट बॉडी में एब्सोर्ब हो जाता है। जिसके साइड इफेक्ट्स भी हो सकते हैं। इसलिए जब भी ब्रश करें तो दो मिनट से ज्यादा समय के लिए न करें।

बच्‍चों को नहीं कराएं ऐसे टूथपेस्ट से ब्रश

अक्सर अपने बच्चों को उसी टूथपेस्ट से ब्रश करा देते हैं जिसका इस्तेमाल हम खुद के लिए करते हैं। फ्लोराइड युक्त टूथपेस्ट से ब्रश नहीं करना चाहिए। जब तक बच्चा थूकना न सीखें उसे फ्लोराइड वाला टूथपेस्ट न कराएं। फ्लोराइड टूथपेस्ट का स्वाद मीठा होता है जिसे बच्चे अक्सर निगल लेते हैं। यह बच्चों के दांतों लिए अच्छा नहीं है।

दांतों में हो सकती हैं ये बीमारियां

हैलिटोसिस- हैलिटोसिस को मुंह की दुर्गंध के रूप में जाना जाता है। इसके कारण दांतों को क्षति पहुंच सकती है.

पायरिया- कैल्शियम की कमी से मसूड़े पिलपिले और खराब हो जाते हैं और उनसे खून आता है। सांसों की बदबू की वजह भी पायरिया को हीन माना जाता है। पायरिया होने पर जब दांतों को ब्रश करते हैं तो उस समय मसूड़ों से खून निकलता है। चबाने पर दर्द होता है। दांतों के बीच गैप बढ़ता है और दांत टूटकर गिरने लगते हैं।

कैविटी- ये बीमारियां तब होती हैं, जब खाना दांतों पर चिमका रह जाता है। बहुत ज्यादा चॉकलेट, टॉफी को खाने वाले बच्चों में ये बीमारी ज्यादा पाई जाती है। इस बीमारी में दांत कमजोर हो जाते हैं और टूट कर गिर भी जाते हैं।

एनामेलोमास- एनामेलोमास दांतों की वह असामान्यता है जिसमें दांतों के कुछ हिस्सों पर इनामेल पाया जाता है जहां इनामेल नहीं होना चाहिए। यह जड़ों के बीच के हिस्सों में पाया जाता है, जिसे दाड का विभाजन भी बोलते हैं।

हाइपोडंटिया- दांतों की वह असामान्यता है जिसमें 6 या 6 से ज्यादा दांत, स्थिर और पक्के दांत या फिर दोनों प्रकार के ही दांत विकसित नहीं हो पाते हैं। यह एक अनुवांशिक रोग है जो किसी-किसी मनुष्य में पाया जाता है।

मसूड़ों की बीमारी- यह लाल रंग के सूजे हुए, दर्दनाक गम और संवेदनशील दांतों के लक्षण होते हैं. और इसे नियमित रूप से सुबह और रात को ब्रश करने और दांतों को फ्लॉस करने से रोका जा सकता है.

डायबिटीज- शुगर में मसूड़ों में सूजन, दांतों का ढीलापन और मुंह से बदबू की समस्या होती है। इन रोगियों में मुंह की लार में पाए जाने वाले कीटाणु ज्यादा सक्रिय हो जाते हैं। इसलिए उनके मसूड़ों और जबड़े की हड्डी में इंफेक्शन हो जाता है।

प्रेग्नेंसी में मसूड़ों में सूजन- प्रेग्नेंसी के दौरान हॉर्मोनल चेंज के कारण मसूड़ों में सूजन की शिकायत होती है जिसे प्रग्नेंसी जिंजीपाइटिस कहते हैं। इसलिए प्रेग्नेंट महिलाओं को दांतों का चेकअप करवाते रहना चाहिए।ब्लड प्रेशर- बीपी के मरीज को मसूड़ों से खून आना, दुर्गंध और मुख में सूखापन की समस्या होती है। इन रोगियों को बीपी कंट्रोल में रखना चाहिए। दिल की बीमारी में होने वाले दर्द को आमतौर पर कभी-कभी दांत के दर्द से जोडक़र देखा जाता है।

दांत न‍िकला है तो क्‍या और कैसे खाएं

खाने में परेशानी हो रही है तो मुलायम फल खाएं जैसे केला, पपीता, आम आदि। सब्‍जी-रोटी अवॉइड करें, ब‍िना मसाले के सूप पी सकते हैं। कोश‍िश करें क‍ि ज्‍यादा से ज्‍यादा ल‍िक्‍व‍िड प‍िएं। स्‍ट्रॉ की मदद से कुछ नहीं पीना चाह‍िए क्‍योंक‍ि इससे दांत में ब्‍लड क्‍लॉट हो सकता है और घाव को भरने में समय लग सकता है। दांत न‍िकलने के बाद आप नार‍ियल पानी, छाछ, मुलायम ब्रेड आद‍ि खा सकते हैं। दल‍िया, उपमा या कम मसाले वाली ख‍िचड़ी भी खा सकते हैं पर उसे मुलायम ही पकाएं।

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