नई दिल्ली15 मिनट पहलेलेखक: मरजिया जाफर

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गोटा, ये शब्द सुनने में जितना खूबसूरत है उससे कहीं ज्यादा परिधान में लगकर उसकी ख़ूबसूरती को चार गुना बढ़ाता है। राजस्थानी महिलाओं की पोशाक पर शानदार गोट्टा पट्टी का काम बेहद सुंदर लगता है।

इस कढ़ाई की अपनी एक अदा है जिसे ख़ूबसूरती देने के लिए कई तकनीकें इस्तेमाल की जाती हैं। पोशाक को सजाने की इस प्रक्रिया में सुनहरे फीते के छोटे कटे टुकड़ों के साथ पिपली का काम भी किया जाता है।

गोटा पट्टी वर्क को ‘आरी-तारी’ या ‘लप्पे के काम’ से भी जानते हैं जिसमें जरदोजी का काम भी जुड़ जाता है। राजघरानों, राज दरबार के सदस्यों, शादी ब्याह की पोशाकों, मंदिर की मूर्तियों और पुजारियों के साथ-साथ कई तरह के परिधानों के लिए गोटा वर्क का इस्तेमाल किया है।

गोटा रिबन को चपटे सोने और चांदी के तार, रेशम और सूती धागे के ताने-बाने से बुना जाता है। इसके बाद जब सोने और चांदी की कीमतें बढ़ी तो प्योर गोटा महंगा हो गया।

जिसके बाद सोने और चांदी की गिलट या ल्यूरेक्स का इस्तेमाल किया जाने लगा। सूरत और अजमेर में पावरलूम पर गोटे का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है।

मौका भी है और दस्तूर भी, होली भी है और ईद भी और आप आज फुरसत में होंगे, क्योंकि आज ‘फुरसत का रविवार’ है। तो तसल्ली से पोशाकों को सजाने की बात करते हैं।

अगर होली मिलन या ईद मिलन की पार्टी अटैंड करने का प्लान कर रहे हैं तो गोटा पट्टी वर्क से बने सूट साड़ियां लहंगे किसी में भी इसका इस्तेमाल कर सकते है।

अपनी ऑप्शन लिस्ट में गोटा वर्क जरूर रखें। क्योंकि ये ट्रेडिशनल और ट्रेंडी लुक दोनों देता है।

दुल्हन का जोड़ा, जरी गोटा से सजाने का चलन

भारत में दुल्हन के जोड़े सुनहरे, रूपहले गोटे और सलमा सितारों से सजाने का चलन सदियों पुराना है। सुनहरा और रूपहला गोटा एक बेहतरीन कारीगरी का नमूना है, जो कपड़ों की ख़ूबसूरती में चार चांद लगा देता है।

गोटा पट्टी या गोटा वर्क एक तरह की भारतीय कढ़ाई है जिसे राजस्थान ने पहचान दी, लेकिन कुछ लोगों का दावा है कि इस कढ़ाई पर पाकिस्तान का भी इतना ही हक है।

क्योंकि जरी गोटा कढ़ाई का जन्म वहीं हुआ, जो पड़ोसी राज्यों में मशहूर हो गया। सबसे पहले पंजाब ने इस कढ़ाई को दिल से अपनाया। गोटा वर्क फुलकारी को और ज्यादा खूबसूरत बनाता है।

गोटा उद्योग अब दम तोड़ रहा है

राजस्थान के सीकर जिले के एक छोटे से कस्बे खंडेला में करीब सौ साल पहले शुरू हुआ गोटा उद्योग अब दम तोड़ने की कगार पर है।

सौ साल पहले नजीर बिसायती नाम के एक व्यापारी सीकर से गोटा लाकर यहां बेचा करते थे। फिर उन्होंने एक गोटा मशीन लाकर गोटे का कारखाना शुरू किया। इसके बाद यहां धीरे-धीरे मशीनों की संख्या बढ़ने लगी। कस्बे की 80 फीसदी आबादी गोटा उद्योग पर ही निर्भर हो गई।

यहां तैयार होने वाला गोटा राजस्थान के अलावा दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में जाता था। गोटे के डिजाइन में ट्रेंड के हिसाब से बदलाव होता रहा है।

गोटा पट्टी वर्क में सरकारी मदद और नई तकनीक की कमी से यह उद्योग अब दिन-ब-दिन कमजोर होता जा रहा है।

गोटा उद्योग बंद होने की वजह कारीगरों की कमी, नई तकनीक की जानकारी न होना, निर्यात में बाधा, साथ ही मशीनों को चलाने के लिए बिजली की बढ़ती दरें हैं।

गोटा व्यापार संघ की उद्योग को जीवित रखने की कोशिश नाकाम रही। ज्यादातर मशीने बंद पड़ी हैं।

पहले जहां 10 से 15 हजार मशीनों पर काम होता था अब उनकी संख्या घटकर महज सौ के आस-पास रह गई। अब यहां व्यापारी सूरत से गोटा लाकर बेचते हैं। जबकि कभी यहां से गोटा सूरत जाया करता था।

किनारी बाजार की तंग गलियों में लटकते सुनहरे रूपहले गोटे

देश में मशहूर पुरानी दिल्ली का ‘किनारी बाजार’ तंग गलियों और चमकते सुनहरे रूपहले गोटे, लटकन, से सजी-धजी दुकानें मुगल काल में बनाई गई थी।

‘किनारी बाजार’ की रौनक आज भी बरकरार है। शादी और त्योहारों के समय ये बाजार और ज्यादा गुलजार हो जाता है।

दैनिक भास्कर की वुमन टीम ने भी इस तंग गलियों वाले सलमा सितारों से सजे बजार का जायजा लिया। किनारी बाजार का नजारा इतना दिलचस्प था कि चमकते गोटे, लचके की किस्में और ख़ूबसूरती देखकर आंखे चौंधिया गईं।

इस मार्केट में 600 से ज्यादा दुकानें हैं। कतार में लगी दुकानों को देखते-देखते गोटा सेलर मोनू चौधरी से मुलाकात हुई। मोनू ने बताया कि यहां मिलने वाला गोटा किनारी, फैंसी लेस, बॉर्डर और लटकन पूरे हिन्दुस्तान में भेजा जाता है, दूर दूर से खरीदार भी यहां आते है।

इस बाजार में होलसेल और रिटेल दोनों दुकानें हैं जो किनारी गोटे, लेस और झालर के लिए मशहूर है। यहां आर.डी.एक्स लेस, नलकी झालर, सूजनी झालर, किरण झालर के अलावा मौसम के हिसाब से भी लेस मिलती है। जिसमें सर्दियों में चलने वाली जरकन नग लेस और गर्मियों के लिए कॉटन लेस और नेट लेस शामिल है।

गोटा पट्टी कैसे बनाई जाती है

जरी दरदोजी कारीगर जावेद अहमद कहते हैं, मैं इस काम को 12 साल से कर रहा हूं। पूरे कपड़े पर कड़ाई करना और गोटा पट्टी या लेस के लिए कढ़ाई करना दोनों अगल अगल काम है।

गोटा पट्टी तैयार करने में समय ज्यादा लगता है। सबसे पहले बेस फैब्रिक को चार तरफ मोटी डोरियों से बांधा जाता है और एक लकड़ी के फ्रेम के साथ अटैच करते हैं। डिज़ाइन को ट्रेस करने के लिए ट्रेसिंग पेपर को फैब्रिक पर रखा जाता है।

इसके ऊपर चॉक पाउडर का सफेद लेप फैलाते हैं। जिससे डिज़ाइन कपड़े पर दिखाई दे। डिज़ाइन के हिसाब से गोटे को अलग-अलग शेप में काटा और मोड़ा जाता है या इसे एक सीधी पट्टी में सिला जा सकता है। इसे कपड़े पर हेमिंग और बैक स्टिच के साथ आकृतियों के रूप में जोड़ा जाता है।

गोटा करघे पर बुना जाता है। इसके ताने में कपास और बाने में एक धातु होती है। गोटा को ब्लॉकों के नीचे दबाकर उसपर रूपांकनों से सुंदर डिजाइन बनाए जाते हैं।

हर पैटर्न का अपना नाम होता है। पिपली में डिज़ाइन बनाने के लिए गोटा के छोटे-छोटे टुकड़ों को काटकर धागे और सुई की मदद से कपड़े पर टांकते हैं। जयपुरी बोली में इसे चटपटी कारीगरी कहा जाता है।

मानव आकृतियां, पालकी, हाथी और घोड़े वाला डिजाइन

‘पट्टी’ रूपांकन का सबसे अहम हिस्सा है। गोटा पट्टी में पट्टियों में किनारों से मोड़ा जाता है, जिसे ‘रॉ बॉइड’ कहते हैं। इन्हें एक रूपांकन बनाने के लिए बूटा या जाल में व्यवस्थित करते हैं, जिसे बाद में कपड़ों पर सिला जाता है।

मशहूर रूपांकनों में मोर, गौरैया, पैस्ले, फूल और ज्यामितीय पैटर्न, मानव आकृतियां, पालकी, हाथी और घोड़े शामिल हैं। गोटे के टुकड़े को अलग-अलग शेप में काटकर बेस फैब्रिक पर जरी और जरदोजी जैसी कढ़ाई से सजाते हैं।

जरी गोटा का लखनऊ कनेक्शन

जावेद कहते हैं जरी गोटा का कनेक्शन लखनऊ बहुत पुराना है। नवाबों के जमाने में यहां सच्चे काम हुआ करते थे। जिसमें सोने और चांदी के तार का फीता धातु-लेपित बाने के धागे से बना होता था।

ताने के धागे में कपास और पॉलिएस्टर जैसे फाइबर रिबन भी शामिल होते हैं। जो नवाबों की बेगम के फर्शी गरारे में लगाए जाते थे। लेकिन बाद में इसे तांबे के बेस पर सोने या चांदी के रंग से मढ़कर बनाया जाने लगा जो नकली होते हैं।

जरी गोटा बनाने वाले कारीगर लखनऊ और राजस्थान समेत पूरे देश में फैले हुए हैं। गोटा पट्टी के मशीनीकरण के साथ, हाथ की कढ़ाई को नुकसान हुआ है। बुनकर परिवारों की युवा पीढ़ी अलग-अलग करियर अपना रही है, जिससे यह शिल्प गुमनामी के कगार पर है।

गोटा पट्टी वर्क के डेकोरेटिव आइटम

सिर्फ पोशाकों पर ही नहीं बल्कि गोटा पट्टी वर्क का इस्तेमाल साफा, पगड़ी, राखी, तोरण, घर की साज-सज्जा और जूतियों पर भी किया जाता है।

गोटा पट्टी पहले के समय में सिर्फ शाही घरानों में पहना जाता था, लेकिन आज यह बहुत आम है। इसका क्रेडिट सोने और चांदी से गिलट और ल्यूरेक्स की ओर स्विच करने के साथ-साथ सूरत और

अजमेर में इलेक्ट्रॉनिक चरखों द्वारा गोटा के बड़े पैमाने पर उत्पादन को दिया जा सकता है। इन दिनों, बहुत सारे डिजाइनर कपड़ों में सुंदरता जोड़ने के लिए गोटा पट्टी का इस्तेमाल करते हैं।

होली और ईद के मौके पर गोटा पट्टी कुर्ती की बढ़ी मांग

फैशन डिजाइनर तमन्ना कहती हैं गोटा पट्टी के ड्रेस डिजाइन दोबारा से ट्रेंड में आ गए हैं। इस बार होली पर लोगों में गोटा पट्टी डिजाइन की कुर्तियों की खूब डिमांड है।

मैंने अभी होली के ऑर्डर को पूरा किया है और ईद के ऑर्डर पर काम कर रही हूं जो ज्यादातर गोटा वर्क के ही हैं।

तमन्ना कहती हैं ईद का त्योहार आने वाला है। इस मौके पर आप गोटा पट्टी कुर्ती को यूनिक और ट्रेडिशनल स्टाइल के साथ पहन सकती हैं। इसमें अलग-अलग तरह के डिजाइन को ट्राई कर सकती हैं और ज्वेलरी और फुटवियर के साथ पेयर कर खूबसूरत लग सकती हैं।

गोटा पट्टी काफ्तान कुर्ती

फैशन डिजाइनर तम्नना कहती हैं काफ्तान कुर्ती गर्मी के मौसम में कूल लुक देती है और पहनने में काफी कंफर्टेबल होती हैं। इसमें आप गोट्टा पट्टी डिजाइन को चूज करें।

अनारकली कुर्ती

अनारकली कुर्ती हमेशा ट्रेंड में रहती है बस इसका पैटर्न बदल जाता है। अनारकली पर गोटा पट्टी वर्क का पूरा सूट सेट कैरी कर सकते हैं। इसमें होने वाला गोटा पट्टी वर्क इसकी खूबसूरती बढाएगा।

शरारा कुर्ती डिजाइन

गोटा पट्टी डिजाइन में शरारा कुर्ती सेट भी बेहतरीन ऑप्शन है। इस तरह के डिजाइन काफी अच्छे लगते हैं। हैवी वर्क के कपड़े पहनने वाली लड़कियों को ये डिजाइन काफी अच्छा लगेगा। गोट्टा पट्टी के डिजाइन आपको कुर्ती में ही नहीं बल्कि लहंगा और साड़ी में भी मिल जाएंगे। आप उन्हें भी ट्राई कर सकती हैं।

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