3 घंटे पहलेलेखक: मरजिया जाफर

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नमस्कार दोस्तों …

मेरा नाम प्रिया है। मेरी कहानी में इतना दर्द है कि कहते-कहते आंखें भर आती हैं। मेरी कहानी की शुरुआत एक बर्थडे पार्टी में जाने से होती है। जब मैं 9 साल की थी तो दूर के रिश्तेदार मेरे ताऊ के घर जन्म दिन मनाने गई। मुझे वहां बहुत अच्छा लगा। उन लोगों ने मुझे अपने बच्चे की तरह प्यार दिया और ममता दिखाई। मैं 3-4 दिन पापा से पूछकर वहीं रूक गई। मुझे वहां इतना अच्छा लगता कि रहते-रहते कब 15 दिन गुजर गए पता ही नहीं चला। एक दिन पापा वहां गुस्से में आए और कहा अपना सामन पैक करो और मेरे साथ घर चलो। पापा वहां से मुझे लेकर घर आ गए। मैं दुखी थी क्योंकि मैं वहां से नहीं आना चाहती थी।

मुझे कोई प्यार नहीं करता

मैं नए साल पर दोबारा भैया-भाभी के घर गई, भाभी ने मुझे देखकर गले लगाया और मैं रोने लगी। मैंने उनसे कहा मुझे घर में कोई प्यार नहीं करता, मुझे यहीं रहना है आपके पास। उन्होंने भी मुझे गले लगा लिया और मुझे एडॉप्ट करने का फैसला किया। उनके पास मैं अब परमानेंट रहने लगी। बहुत खुश थी लेकिन पापा से दूर रहने का थोड़ा दुख भी था। इसी तरह दिन गुजरते गए। एक दिन मैं बीमार पड़ गई। पापा की बहुत याद आ रही थी। पापा को पता चला तो उन्होंने मुझे अपने पास बुला लिया। पापा ने मुझे कभी प्यार नहीं किया। मैंने बहुत कोशिश की लेकिन नाकाम ही रही।

हम 7 भाई-बहन हैं। मैं पापा से कहती मैं उन्हें संभाल लूंगी। लेकिन मैंने 2012 में अपना घर छोड़ दिया। मेरे घर से निकलने के बाद सारा परिवार बिखर गया और अभी तक मेरे भाई बहन संभल नहीं पाए हैं।

बच्चों को छोड़कर महीने भर के लिए गायब हो जाते

मैंने अपने ही घर में कई बार पुलिस को बुलाया। सब मुझ पर हंसते कि इतनी छोटी सी है और अपने ही परिवार के खिलाफ जाकर पुलिस बुला लाई। मैं क्या करती, मैं मजबूर थी। पापा महीने-महीने भर के लिए घर से गायब हो जाते। हम भाई बहन एक एक दाने के लिए तरसते, भूख बर्दाश्त नहीं होती। कुछ खाने को नहीं रहता। किराए का घर था तो पुलिस आती हमारे घर में राशन भरती।

मुझे पापा के पास नहीं रहना है

रोज-रोज पापा की इस हरकत से तंग आकर एक दिन दोबारा भैया-भाभी के पास गई और उनसे कहा मुझे कोर्ट के पेपर बनावाने हैं। मुझे पापा के पास नहीं रहना है। भैया-भाभी मेरी बात मान गए। मुझे गोद लेने के लिए कोर्ट के पेपर बने। भैया-भाभी ने पेपर पर साइन भी कर दिया। पापा को भी साइन करना था और वो तैयार भी थे, लेकिन उस समय पापा चुपके से बिना बताए गांव चले गए।

पुलिस से किसी ने भैया-भाभी की शिकायत कर दी

उन दिनों मैं बहुत खुश रहा करती, भैया का घर बहुत बड़ा था। घर में कार भी थी। घर में दो मेड आती थीं। उसी दौरान भाभी प्रेग्नेंट हो गईं। उनकी देखभाल के लिए एक और मेड घर में आ गई। उसी दौरान घर पर पुलिस आ गई। पुलिस की आने की वजह कोई खास तो नहीं थी। किसी ने भैया-भाभी की शिकायत कर दी थी कि वो एक छोटी बच्ची से घर का काम कराते हैं। वो कोई और नहीं मेरे पापा ही थे।

पुलिस मुझे रेस्क्यू करके ले गई

दरअसल, हुआ कुछ यूं, एक दिन मैं किचन में गई तो देखा मेड पूड़ियां छान रही थी। मुझे खाना बनाने का बहुत शौक है। मैंने उससे कहा मुझे भी बनाना है। उसके कहा तुम अभी छोटी हो हाथ जल जाएगा लेकिन मैं नहीं मानी और एक पूड़ी कढ़ाई में जैसे ही डाली तेल मेरे हाथ पर गिरा। मेरा हाथ बुरी तरह जल गया। भैया ने इलाज कराया मैं ठीक भी हो गई। लेकिन इस हादसे की शिकायत भैया के दोस्त ने पुलिस से कर दी और घर में पुलिस आ गई। मैंने पुलिस वालों को समझाने की बहुत कोशिश की कि इन लोग मुझे मां-बाप की तरह प्यार करते हैं लेकिन उन्होंने मेरी एक नहीं सुनी। भाभी उसी समय ऑफिस से आई थीं परेशान थीं। लेकिन पुलिस मुझे वहां से रेस्क्यू करके ले गई। शाम को भैया-भाभी पुलिस स्टेशन आए। वो मेरी पसंद की चीजें जैसे आईसक्रीम चॉकलेट सब लेकर मुझसे मिलने पहुंचे।

पापा ने भैया पर इल्जाम लगाया

मैं भैया-भाभी को देखकर रोने लगी। पापा भी वहां थे उन्होंने पैसों के लिए भैया पर इतना बड़ा इल्जाम लगाया। पुलिस वालों ने पूछा तुमको अपने पापा के साथ जाना है या इन लोगों के साथ। मैं कहां मैं भैया-भाभी के साथ जाऊंगी। मैंने उनके साथ ही जाने की जिद कर ली। इंस्पेक्टर साहब ने मुझे समझाया कि तुम्हारे आगे पूरी जिंदगी पड़ी है। सोच-समझकर फैसला लेना। उन्होंने मुझे दो तीन एनजीओ भी घूमाए लेकिन मुझे कोई एनजीओ पसंद नहीं आया। मैं भैया भाभी का नाम लेती रही और रोती रही। मैंने पुलिस वालों से कहा मेरी बात भैया से करा दो, फोन करो उनको। मैंने उन दोनों का फोन नंबर अपने हाथ पर लिखा था।

मैं बीमार भी रहती

खैर मुझे कई एनजीओ में रखा गया। मैंने एनजीओ में रहकर पढ़ना चाहा लेकिन मेरी उम्र को लेकर कुछ भी क्लियर नहीं था। बर्थ सार्टिफिकेट भी नहीं था। मैं बीमार भी रहती थी। मेरा बॉर्न टेस्ट हुआ तो पता चला की मैं 9 साल 6 महीने की हूं। लेकिन फिर भी एडमिशन नहीं मिला। बड़ी मुश्किल से 19 का पहाड़ा सुनाकर सीधा 5वीं क्लास में एडमिशन मिला। इसी तरह आगे बढ़ती गई और 12वीं में 70 प्रतिशत मार्क्स के साथ पास हुई।

खून जोश मारता है

एक लड़की की जिंदगी में जो सपोर्ट होना चाहिए वो मुझे पापा की तरफ से कभी नहीं मिला। लेकिन वो कहते हैं न खून जोश मारता है तो मैं पापा से मिलने साल में एक बार जरूर जाती हूं। मैं आज भी रक्षाबंधन पर घर जाती हूं। उनके लिए कुछ न कुछ लेकर ही जाती हूं। लेकिन घर वाले कभी भी मेरी खैरियत नहीं लेते। मुझे एक फोन तक नहीं करते कि मैं किस हाल में हूं।

मैं गेट पर घंटों खड़ी इंतजार किया करती

दुख होता जब दूसरे बच्चों के परेंट्स उनसे मिलने हॉस्टल आते, मैं झांककर देखती, किसी की मां आती हैं तो किसी के घर से कोई रिश्तेदार आता है। मैं सोचती हमारे लिए कौन आएगा? संडे के दिन सब अपने बच्चों से मिलने आते, मैं गेट पर घंटों खड़ी इंतजार किया करती। शायद कोई आ जाए लेकिन मायूसी ही हाथ लगती। एक दिन ऑफिस की सफाई में एक बैग मिला जिसमें मेरे लिए भैया-भाभी ने आईस्क्रीम और चॉकलेट भेजी थी लेकिन मेरे पापा ने वॉर्डन मैम को भड़काया कि कोई कुछ भेजे तो मुझे न खिलाएं उसमें कुछ मिला हो सकता है। ये बात बाद में मुझे वॉर्डन मैम ने बताई। वो चॉकलेट का बैग फेंक दिया लेकिन मुझे नहीं दिया।

भैया से पापा ने फिरौती मांगा

मुझे ये बात बाद में पता चली कि भैया से पापा ने फिरौती मांगी थी। मुझे ये सुनकर इतना गुस्सा आया कि मैंने उनसे खूब लड़ाई झगड़ा किया। लेकिन पापा की इस हरकत का भी मेरे और भैया-भाभी के रिश्ते पर कोई फर्क नहीं पड़ा। मैं अब भी उनके घर जाती हूं। उनकी बेटी अब बड़ी हो गई है। वो मुझे वैसा ही प्यार देते हैं। मैं जिंदगी में काफी आगे निकल चुकी हूं। मेरा सपना है मैं आगे की पढ़ाई दिल्ली यूनिवर्सिटी से करूं और अपने जैसी बेसहारा लड़कियों का सहारा बनूं।

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