2 मिनट पहले

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अपना फेवरेट सॉन्ग भी अलार्म में लगा लिया जाए तो वह भी चुभने लगता है, शिवानी यह बात अच्छे से समझ चुकी थी। झल्लाकर अलार्म स्नूज़ किया। पांच मिनट बाद जब दोबारा रिंग हुआ तो अधखुली आंखों से टाइम देखा और करंट का झटका खाकर खड़ी हो गई।

“ओह्ह फिश!!! आज तो लेट हो ही जाऊंगी।” उसने फटाफट ब्रश किया, मुंह पर पानी के छपाके मारे और आदतन जो पहला सूट हाथ आया, उसे पहनने लगी कि उसके कान में एक आवाज़ गूंजी, “आप साड़ी में बहुत प्यारी लगती हैं।”

एक मुस्कुराहट चुपके से उसके होंठों पर सज गई। देर होने के बावजूद उसने स्काई ब्लू और पिंक कंट्रास्ट की साड़ी पहनी, लाइट मेकअप किया, छोटे से पर्ल इयरिंग्स पहने और बालों को कल्चर में क़ैद कर रही थी कि फिर सरगोशी हुई, “खुले बाल शायद ही किसी पर इतना सूट करते देखा हो मैंने, सच।”

उसके हाथ वहीं रुक गए। कल ही बाल डाई किए थे। कनपटी पर सफेदी उभरने लगी थी। बालों को ब्रश करके, सीरम स्प्रे करके उसने यूं ही खुले छोड़ दिए। हालांकि इस सिंगार के एवज में उसे नाश्ता कुर्बान करना पड़ा नहीं तो मेट्रो छूट जाती।

शिवानी चालीस साल की सुंदर, स्लिम, सिंगल स्त्री थी। पिता की मृत्यु के बाद मां की ज़िम्मेदारी उस पर आ गई थी। अनुकम्पा में सरकारी नौकरी लगने से उसे ज़्यादा परेशानी नहीं आई थी पर हुआ यह था कि बड़ा भाई तो कब का पढ़-लिखकर, जॉब लगने के बाद ब्याहकर अलग हो गया था, बरसों से बीवी के मायके रहकर ससुर का बिज़नेस पार्टनर बन गया था और मां-बेटी अकेली रह गई थीं।

फिर ऐसा हुआ कि कोई वर मिला नहीं, जो मां को भी साथ रखने या उसके घर आकर रहने को तैयार हो और कड़वी सच्चाई यह है कि कमाऊ लड़कियों के घर वाले भी स्वार्थी हो जाते हैं। मां भी नहीं चाहती थीं कि वह उन्हें छोड़कर जाए तो किसी ने उसकी शादी में दिलचस्पी ली ही नहीं। वह खुद जिनकी तरफ बढ़ी, मां की वजह से वे कमिटमेंट से पीछे हट गए।

अब छह महीने पहले मां के देहान्त के बाद वह निपट अकेली रह गई थी। उम्र भी हाथ से फिसल रही थी। अब वह प्रोफेसर बन चुकी थी। पढ़ाने में उसे मज़ा आता था और स्टूडेंट्स को भी वह पसन्द थी। पर साथी शिक्षकों से लिये-दिये ही रहती थी।

लेकिन यह जो नई बैच आई थी, इसमें अभय नाम का यह लड़का सबसे अलग था। हमेशा एनर्जेटिक, जोश से भरा, हंसता-हंसाता, माहौल ख़ुशनुमा बनाए रखता था। साथ ही पढ़ाई में भी बेहद ज़हीन। उसे पढ़ाकू बच्चे हमेशा से पसन्द थे इसलिये वह जल्द ही उसकी नज़रों में चढ़ गया। उसकी क्या, वह हर किसी का चहेता बन चुका था। यहां तक कि प्रोफेसरों से भी हल्का-फुल्का मज़ाक़ कर लेता था।

लेकिन आजकल क्लास में वह जैसे उसे एकटक देखता रहता था, शिवानी ने उसे नोटिस करना शुरू किया था। लेकिन उसने फ़ालतू ख़्याल समझकर झटक दिया था।

उस दिन लंच टाइम में वह आलू के पराठे और गाजर का हलवा लाया था जो बकौल उसके, उसने ख़ुद बनाए थे। उसकी तरफ टिफिन बढ़ाकर उसने बहुत ज़िद करके खिलाए थे और न जाने क्यों शिवानी की आंखें भर आईं थीं क्योंकि पिछले बीस साल से वह ही मां को मनुहार करते खिलाती आई थी। उसके खाने की परवाह करने वाला तो कोई था ही नहीं।

फिर तो वह आए दिन उसके लिए कुछ न कुछ बनाकर लाने लगा था। कभी उसकी आंखों की तारीफ़, कभी घने लम्बे बालों की, वह कभी-कभी नर्वस सी हो जाती थी, फिर अपनी बचकानी सोच पर शर्मिंदा सी हो जाती थी। पर सच यही है कि तारीफ़ सबको अच्छी ही लगती है। उसके सख़्त स्वभाव के चलते साथ वाले तो सब उससे कटे कटे से ही रहते थे। महिलाएं भी तरह-तरह की बातें बनातीं, अपने पतियों पर नज़र रखतीं जैसे सिंगल महिलाओं का बस यही काम होता है, तोंद पर हाथ फिराते गंजे, अधपकी दाढ़ी वाले आदमियों पर डोरे डाले। ऐसे में बरसों बाद उसे कोई मिला था, जो उसका ख़याल रख रहा था, उसकी परवाह कर रहा था, उसका दिल जीतने की कोशिश कर रहा था।

आज भी वह भागते-दौड़ते क्लास में पहुंची, भूख से आंतें कुलबुला रही थीं, फिर भी खुले बालों को साइड में डाल वह कॉन्फिडेंस से अंदर आई। पर अंदर का नज़ारा देखकर दंग रह गई थी। अपनी फेवरेट टीचर को बर्थडे विश करने सब लाइन से खड़े थे। टेबल पर कलम-किताब की शेप का केक था, बलून, रिबन्स से क्लासरूम सजा था, साथ ही बड़ा सा गिफ्ट रखा था। उसने तो अपना बर्थडे किसी को बताया ही नहीं था कभी, पर अभय ने पता लगा ही लिया था।

“मैम आज तो आप ‘मैं हूं न की सुष्मिता सेन लग रही हैं।” नेहा चहकी। फिर सब कोरस में गाने लगे, “तुम्हें जो मैंने देखा, तुम्हें जो मैंने जाना” शर्म से उसके गाल लाल हो गए। तभी गिटार की स्ट्रिंग्स मचलीं और अभय ने गाना शुरु किया, “चांद मेरा दिल, चांदनी हो तुम, चांद से है दूर, चांदनी कहां।” सबने फिर क्लैप किया। हंसी-ख़ुशी के माहौल में केक काटा गया। यह उसका सबसे यादगार बर्थडे था।

कई दिन तक वह इसे याद करके ख़ुश होती रही। “कल जो होगा, देखा जाएगा, मुझे आज में जीना सीखना चाहिये। छोटी-छोटी ख़ुशियों पर मेरा भी हक है।” वह ख़ुद को समझा रही थी।

आज उसने बड़े जतन से अभय की पसन्द के भरवां बैंगन और बेसन के लड्डू बनाए थे। यह सोचकर कि हर बार वही कुछ न कुछ ले आता है। आज वह भी ले जाएगी, बिना सबकी घूरती निगाहों की परवाह किए।

लेकिन लंच टाइम में अभय उसे कहीं दिखा ही नहीं। उसने चपरासी से पूछा तो पता लगा वह फाइन आर्ट्स वाले सेक्शन में गया है। झिझकते हुए वह आज पहली बार अपने कैम्पस से बाहर निकलकर आर्ट्स सेक्शन की तरफ गई और यह देखकर अपनी जगह जड़ हो गई कि अभय शाम्भवी के खुले बालों में चम्पा का फूल लगा रहा था। शाम्भवी रंगों भरे ब्रश से उसके गाल पर कुछ पेंट कर रही थी। दोनों खिलखिला रहे थे।

शाम्भवी!! उसकी भतीजी…. जो इस साल पढ़ने के लिये उसी के कॉलेज आई थी। उसके भैया ने उसके पास यह कहकर भेज दिया था कि उनको भी तसल्ली रहेगी कि बेटी सेफ है और शिवानी का भी अकेलापन दूर हो जाएगा, कम्पनी मिल जाएगी, शाम्भवी की पढ़ाई भी ठीक से होगी।

दुख और ग़ुस्से से उसकी आंखों में आंसू आ गए थे। खाने को टिफिन सहित उसने डस्टबिन के हवाले कर दिया था और क्लासरूम के बजाय सीधे अपने घर चली गई थी।

न जाने कब तक वह रोती रही थी और सो गई थी। शाम्भवी जब लौटकर आई तो उसे बुखार में तपता देखकर परेशान हो गई थी। पर शिवानी ने उसे डपटकर भगा दिया था। वह इस समय शाम्भवी की शक्ल भी नहीं देखना चाहती थी।

फिर भी शाम्भवी उसके लिये सूप और टेबलेट ले आई थी। शिवानी ने टेबलेट खिड़की से बाहर फेंक दी और सूप का बोल भी औंधा दिया। शाम्भवी ने कभी बुआ को इस तरह नहीं देखा था। वह घबरा सी गई थी। फिर चुपचाप चली गई थी। शिवानी फिर मुंह ढंककर लेट गई थी। इस बार वह सैंडविच ले आई थी, साथ ही दवाई भी, जो उसने साइड टेबल पर रख दीं, फिर आगे बढ़कर बुआ के गले लग गई, “क्या बात है मुझे बताइये न बुआ। क्यों परेशान हैं?”

बरसों बाद किसी के गले लगकर शिवानी के अंदर कुछ पिघला था। उसने बीस साल की अपनी भतीजी का मासूम चेहरा देखा तो ख़ुद पर शर्मिंदगी हुई। अभय ने शाम्भवी की वजह से उसके क़रीब आने की कोशिश की भी तो इसमें उसका क्या दोष था। आख़िर को अभय भी 22-23 साल का लड़का ही है। उसी के दिमाग़ में न जाने क्या फ़ितूर आ गया था। यह तो अच्छा हुआ उसने आगे से कोई पहल नहीं की न कुछ कहा, नहीं तो कितनी शर्मिंदगी होती। उसने शाम्भवी को गले लगा लिया, सॉरी बोलकर दवा गटक ली और सैंडविच आधा खा लिया।

तीन दिन की छुट्टी लेकर आख़िर वह ख़ुद को मज़बूत करके कॉलेज आ ही गई थी कि अभय लपककर उसके पास आया और तबीयत पूछने लगा। उसके चेहरे पर फ़िक्रमन्दी झलक रही थी। वह मुस्कुराकर बोली कि अब बहुत ठीक है तबीयत, चिंता न करो।

“मैम, आपसे एक बात कहना चाहता था, पर हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था।” अभय ने कहा तो उसने शांत स्वर में कहा, “बोलो, मैं सुन रही हूं।”

“क्या आप कॉलेज के बाद सामने वाले रेस्त्रां में आ जाएंगी। बस आपका आधा घण्टा चाहिये। प्रॉमिस।” वह थोड़ा ठहर-ठहरकर बोला, जैसे इस बात पर बहुत कुछ दांव पर लगा हो।

“ठीक है, आ जाऊंगी।” शिवानी ने इतनी सरलता से बोला कि वह हैरान रह गया। न कुछ पूछा, न नाराज़ हुई, बस तैयार हो गई। वह बहुत ख़ुश हो गया।

शिवानी जानना चाहती थी कि वह क्या कहने वाला है। अगर उसने कहा कि वह उसे पसन्द करता है या क्रश है या प्यार है तो वह उसकी नज़रों से हमेशा के लिये गिर जाएगा, साथ ही थप्पड़ भी खाएगा। अगर कहा कि शाम्भवी को पसन्द करता है तो समझाऊंगी कि अपनी पढ़ाई और करियर पर फोकस करे और शाम्भवी को भी करने दे।

शाम को वह रेस्त्रां पहुंची तो लास्ट कॉर्नर वाली टेबल पर उसे बेचैनी से उंगलियां बजाता पाया।

“मैम, दरअसल मेरे अंकल, आजकल मैं अपने चाचू के साथ रह रहा हूं। बिस्तर से लगे दादाजी की देखभाल, मेरे मम्मी-पापा की ख़राब शादी और डिवोर्स देखकर उन्होंने शादी ही नहीं की। उनकी अपनी रेडीमेड कपड़ों की फैक्ट्री है, सैंकड़ों निराश्रित महिलाओं को रोज़गार देकर आत्मनिर्भर बनाया है। मैंने जब-जब आपको देखा, मुझे आप अपनी सी महसूस हुईं। मां तो नहीं कहूंगा, पर परिवार का हिस्सा ज़रूर लगीं। मेरे चाचू बहुत हैंडसम, फिट, दयालु और सबसे प्यार करने वाले हैं। एक बार, बस एक बार क्या मेरी ख़ातिर उनसे मिल लेंगी?”

अभय उम्मीद से उसे देख रहा था और वह हैरान हैरान सी उसे। तभी सामने वाले गेट से एक बेहद आकर्षक आदमी दाख़िल हुआ। व्हाइट शर्ट, ब्लू डेनिम, ब्राउन शेड्स लगाए किसी मॉडल से कम नहीं लग रहा था। उसे देखकर शिवानी के दिल की धड़कनें बढ़ गईं।

“हेलो! आई एम रुद्र। मे आई जॉइन यू….”

“यस प्लीज़….” शिवानी के मुंह से निकला। थोड़ी सी रस्मी बातों के बाद अभय का फोन रिंग हुआ, वह ‘एक्सक्यूज़ मी’ कहता बाहर आ गया। कॉल शाम्भवी की थी। दोनों बहुत ख़ुश थे और इन दोनों को एक-दूसरे को पसन्द कर लेने की सच्चे दिल से प्रार्थना कर रहे थे।

-नाज़िया खान

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