नई दिल्ली3 घंटे पहलेलेखक: ऐश्वर्या शर्मा

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दिल्ली की महिमा (बदला हुआ नाम) 3 महीने से प्रेग्नेंट थीं लेकिन उन्हें प्रेग्नेंसी का पता नहीं चला क्योंकि उन्हें लगातार पीरियड्स हो रहे थे। जब उन्हें पेट में भारीपन लगता तो उनके घरवाले समझते कि गैस हो गई। उनके पड़ोस में रहने वाली एक बुजुर्ग महिला ने उन्हें गायनेकोलॉजिस्ट के पास जाने की सलाह दी। उन्होंने डॉक्टर से जांच कराई तो वह प्रेग्नेंट निकलीं। 6 महीने बाद उन्होंने हेल्दी बेबी को जन्म दिया।

हर महिला की प्रेग्नेंसी एक-दूसरे से अलग होती है। प्रेग्नेंसी में पीरियड्स नहीं होते हैं। लेकिन कभी-कभी कुछ प्रेग्नेंसी में कुछ महीनों तक पीरियड्स होते हैं और महिला को पता ही नहीं चलता कि वह प्रेग्नेंट है।

प्रेग्नेंसी में ब्लीडिंग के कई कारण हो सकते हैं। कुछ केसेज में यह नॉर्मल है लेकिन कुछ परिस्थितियों में यह खतरनाक साबित हो सकता है।

कई बार प्लेसेंटा में ठीक से बच्चा विकसित नहीं होता

जब महिला प्रेग्नेंट होती है, तब गर्भाशय में प्लेसेंटा विकसित होता है जिससे भ्रूण को मां के खून के जरिए पोषक तत्व और ऑक्सीजन मिलती है। यह एक अस्थायी अंग है जो यूट्रस की लाइनिंग से अटैच होता है और बच्चे को गर्भनाल से जोड़ता है।

मैक्स हॉस्पिटल गुरुग्राम में गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. रितु सेठी कहती हैं कि जब प्लेसेंटा ठीक तरीके से यूट्रस से नहीं जुड़ता या प्रेग्नेंसी ठीक तरीके से बच्चेदानी में विकसित नहीं होती, तब महिला को प्रेग्नेंट होने के बाद पीरियड्स के समय ब्लीडिंग या स्पॉटिंग होती है और उन्हें पता ही नहीं चल पाता कि वह प्रेग्नेंट हैं।

बच्चे की थैली से भी होती ब्लीडिंग

दिल्ली स्थित सर गंगाराम हॉस्पिटल में गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. हुमा अली कहती हैं कि प्रेग्नेंसी के दौरान पीरियड्स तब भी आते हैं जब एम्नियोटिक सैक का सेल्स की कमी की वजह से यूट्रस से मजबूत कनेक्शन नहीं बन पाता।

एम्नियोटिक सैक एक थैला होता है जो यूट्रस में प्रेग्नेंसी के 12 हफ्तों के बाद बनता है। इसे थैले में एम्नियोटिक फ्लूड होता है जो बच्चे को सुरक्षा देता है। इस थैली में ही बाद में भ्रूण विकसित होता है। जब भी यह एम्नियोटिक सैक अपनी जगह से खिसकता है तो कभी खून यूट्रस में जमा होता है तो कभी खून यूट्रस से बाहर निकलने लगता है।

डॉ. हुमा अली कहती हैं कि कुछ महिलाओं में एम्नियोटिक सैक छोटे आकार का होता है जो पूरी तरह से यूट्रस को कवर नहीं करता। इससे यूट्रस की लाइनिंग दोबारा मेंस्ट्रुअल प्रक्रिया के लिए तैयार होने लगती हैं।

एक्टोपिक प्रेग्नेंसी पहचान नहीं पातीं महिलाएं

आमतौर पर प्रेग्नेंसी गर्भाशय में होती है। यूट्रस के दोनों तरफ ओवरी होती है जो इसे फैलोपियन ट्यूब से जोड़ती है। हर महीने ओव्यूलेशन होने पर यानी पीरियड्स के बाद ओवरी से एग जिसे ओवम कहते हैं, वह रिलीज होता है जो फैलोपियन ट्यूब में फर्टिलाइज होकर यूट्रस में पहुंचता है।

लेकिन कई बार यह फर्टाइल एग फैलोपियन ट्यूब में ही फंस जाता है जिससे भ्रूण इसी नली में विकसित होने लगता है। इसे एक्टोपिक प्रेग्नेंसी या ट्यूबल प्रेग्नेंसी कहते हैं।

फैलोपियन ट्यूब 4 से 5 इंच लंबी और 0.2 से 0.6 इंच तक चौड़ी होती है। जब भ्रूण बड़ा होने लगता है तो फैलोपियन ट्यूब के फटने का खतरा बढ़ जाता है। अगर किसी महिला को ऐसी प्रेग्नेंसी ठहरती है तो यूट्रस की लाइनिंग पीरियड्स के लिए फ्री रहती है। इस स्थिति में भी महिलाओं को कई महीनों तक ब्लीडिंग होती है।

मोलर प्रेग्नेंसी में भी पीरियड्स

मोलर प्रेग्नेंसी एक दुर्लभ लक्षण है। इसमें महिला प्रेग्नेंट तो होती है लेकिन भ्रूण नहीं बनता। शरीर में बदलाव होता है, पेट बाहर की तरफ निकलता है लेकिन वह ट्यूमर होता है। इस स्थिति में भी लगातार स्पॉटिंग या ब्लीडिंग होती है।

इसमें ट्रोफोब्लास्ट असाधारण तरीके से विकसित होता है। ट्रोफोब्लास्ट कोशिका होती हैं जो ब्लास्टोसिस्ट की बाहरी सतह बनाते हैं। आसान भाषा में कहें तो इनमें गर्भनाल नहीं बनती और गर्भाशय में ट्यूमर बनने लगता है। यह प्रेग्नेंसी की पहली स्टेज के दौरान ही होता है।

यह अबनॉर्मल एग और नॉर्मल स्पर्म या फिर अबनॉर्मल स्पर्म और नॉर्मल एग के कारण होती है। इस प्रेग्नेंसी को सक्शन इवैक्यूएशन टेक्नीक से निकाला जाता है। अगर लापरवाही की गई तो यूट्रस फट सकता है।

प्रेग्नेंसी टेस्ट में पॉजिटिव आता है रिजल्ट

प्रेग्नेंट होते ही शरीर में 1 खास तरह का हार्मोन बनता है जो सिर्फ प्रेग्नेंसी के दौरान ही शरीर में मिलता है। इसका नाम बीटा ह्यूमन कॉरियोनिक गोनाडोट्रोपिन (HCG)) है। यह हार्मोन ब्लड और यूरिन टेस्ट से आसानी से पहचाना जा सकता है। पीरियड्स आने के साथ अगर महिला प्रेग्नेंट हो तब भी यह हार्मोन प्रेग्नेंसी किट पर डिटेक्ट होता है।

अगर किसी महिला को यूट्रस के बाहर फैलोपियन ट्यूब में गर्भ ठहर जाए तब प्रेग्नेंसी टेस्ट कार्ड में गहरी की बजाय हल्की लाइन आती है।

प्रेग्नेंसी किट से केवल प्रेग्नेंसी का पता चलता है इसलिए टेस्ट पॉजिटिव आने के बाद हॉस्पिटल में ब्लड टेस्ट और अल्ट्रासाउंड भी करवाना चाहिए। सीरम बीटा एचसीटी टेस्ट (ब्लड टेस्ट) में भ्रूण का विकास देखा जाता है। ब्लड टेस्ट में HCG का लेवल 1,500 mIU/ml आए तो इससे पता चल जाता है कि प्रेग्नेंसी हेल्दी है। इसके साथ ही अल्ट्रासाउंड में बेबी की पोजिशन पता चलती है।

सामान्य प्रेग्नेंसी में HCG 48 घंटे में 60% तक बढ़ता है।

कुछ महिलाएं संबंध बनाने के तुरंत बाद प्रेग्नेंसी किट से टेस्ट करती हैं जिसमें रिजल्ट नेगेटिव ही आएगा। दरअसल ओवुलेशन के बाद ही एग फर्टाइल होता है। इसके 10 दिन बाद शरीर में HCG हार्मोन बनता है। इसलिए सही रिजल्ट के लिए पीरियड मिस करने के 1-2 दिन के बाद ही टेस्ट करना चाहिए।

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