11 घंटे पहले

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“कार्तिक, उठो, देखो टाइम क्या हुआ है?”

“अम्म… सवा बारह बजे हैं यार। सोने दो न। इतनी मुश्किल से टाइम सुधारा है सोने-जागने का। सुबह फ्लाइट है जल्दी।”

“हम्म…सॉरी फ़ॉर डिस्टर्बेंस।” इशिका ने करवट बदली, उंगली के पोरों से आंसू चुने और फिर उठ बैठी। अंदर घुटन हो रही थी तो बालकनी में आ गई। उसका फोन बर्थडे मैसेज से ओवरफ्लो हो रहा था। व्हाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर, मैसेंजर, इंस्टा, स्नैप, डीएम हर जगह तांता लगा हुआ था बधाई संदेशों का और इधर कार्तिक को याद तक नहीं था। उसका मन कसैला हो गया।

आनन-फानन में कुछ कपड़े और ज़रूरी सामान पैक किया और एयरपोर्ट निकल गई।

जब वह लैंड हुई तो जादुई नज़ारा था। सड़क के दोनों तरफ लाइन से खड़े नारियल के पेड़ मद्धम बयार में झूम रहे थे और सूरज की पहली किरणें समंदर में पड़कर पानी को सुनहरा कर रही थीं। टैक्सी से उतरकर उसने गहरी गहरी सांसें लीं। वह इस ताज़गी को अंदर तक उतारकर बरसों की घुटन और उदासी से मुक्त होना चाहती थी।

समंदर किनारे बसे इस छोटे से आइलैंड में एक कॉटेज किराए पर लेकर वह बीच पर नाश्ता कर रही थी। उधर से कार्तिक का फोन आया, उसने उसे साइलेंट पर कर दिया। न काटा, न जवाब दिया। 3 लगातार मिस्ड कॉल के बाद वह थरथराना बन्द हो गया। वह कार्तिक को मैसेज कर चुकी थी, “एक महीने की छुट्टी पर जा रही हूं।” न इससे ज़्यादा कुछ, न कम। कार्तिक हैरान था। दस सालों में कभी इशिता ने ऐसा किया नहीं था। उसके बर्थडे विश का भी जवाब नहीं दिया था।

उधर आज तीन दिन बाद इशिका ने अपना फोन चेक किया था। दोस्तों और रिश्तेदारों के बधाई संदेशों का जवाब दिया था। तीन दिन लगातार समुद्र और लहरें देखकर अब वह ऊबने लगी थी। जो नज़ारे पहले दिन जादू सा असर डालते हैं, तीसरे दिन उनसे ऊब होने लगती है।

अभी वह घर भी नहीं जाना चाहती थी। कहां जाए, क्या करे, इसी उधेड़बुन में वह किनारे पर चली जा रही थी कि तभी एक लहरों पर सवार एक बॉटल ने उसका ध्यान अपनी तरफ़ खींचा। उसने जल्दी से पानी में उतरकर वह बॉटल पकड़ ली।

उस बॉटल में रोल किया एक पेपर था। इशिका ने इधर-उधर देखा, फिर बॉटल का ढक्कन खोला और पेपर पढ़ने लगी।

“बहुत अकेला महसूस कर रहा हूं। लगता है न ज़िन्दगी का कोई मक़सद है, न मेरा कोई वजूद, न किसी को मेरी चाह। न जाने यह सब कोई पढ़ेगा कभी या नहीं। न जाने कोई जवाब देगा या नहीं।”

पढ़कर इशिका की आंखें नम हो गईं। उसे लगा जैसे किसी ने उसी की भावनाओं को शब्द दे दिए हों। उसे अपनी ज़िंदगी की एकरसता, नीरसता, ऊब और कार्तिक की उसके प्रति लापरवाही याद आने लगी।

बिन कुछ सोचे उसने पर्स से पेपर और पेन निकाला और जवाब लिख भेजा।

“आप अकेले नहीं हैं, जो ऐसा महसूस करते हैं। यक़ीन मानिये, आप जैसे न जाने कितने लोग हैं।” वह और भी बहुत कुछ लिखना चाह रही थी, पर उसे पता था, कोई फ़ायदा नहीं। कौनसा लिखने वाले तक पहुंचने वाला है उसका जवाब। फिर भी उसे बस लिखना था। उसने पेपर रोल करके बॉटल समुद्र की लहरों के हवाले की और उसे दूर जाता देखती रही।

अगले दिन सुबह के समय वह फिर सूरज की किरणों को अपने चेहरे पर महसूस करने बीच पर ध्यान लगाए बैठी थी। आंखें खोलते ही उसने देखा कि एक लहर बॉटल लिए उसी की ओर आ रही है। पहले तो उसे यक़ीन ही नहीं हुआ। फिर वह पानी में उतरती चली गई। ऐसा लगा, कोई ख़ज़ाना हाथ लग गया हो।

“बहुत शुक्रिया दोस्त। बता नहीं सकता कितनी ख़ुशी होती है, जब आपकी पुकार का जवाब आ जाए, जैसे अंधेरे में एक दीया जल जाए, जैसे डूबते को नैया मिल जाए, जैसे गिरते का कोई हाथ थाम ले। दुआ है आपकी सब परेशानियां दूर हो जाएं। ख़ुश रहिये।”

पढ़कर इशिका का मन भीग गया। इस बार उसने बहुत फ़ुरसत से बहुत बड़ा लेटर लिखा। फिर उसे बॉटल के हवाले करके आसपास देखती रही कि कहीं कोई मज़ाक़ तो नहीं कर रहा, लेकिन बॉटल बहुत दूर बहती हुई आंखों से ओझल हो गई।

पूरा दिन उसका बेचैनी में गुज़रा। कई कई बार बीच का दौरा कर आई। रात को भी उसी के बारे में सोचते हुए आंख लगी। कौन है, कहां रहता होगा, क्या करता होगा, कैसा दिखता होगा।

अगली सुबह उसी वक़्त वह उसी जगह मौजूद थी। थोड़ी देर इंतज़ार करने के बाद फिर बॉटल नज़र आई।

“हेलो। मेरा नाम कबीर है। मैं एक सोलो ट्रैवलर हूं। नई जगह जाना, नए दोस्त बनाना, नई भाषाएं और स्किल्स सीखना, नया खाना बनाना और ज़िन्दगी भरपूर जीना पसन्द है। बस कभी-कभी अकेलापन महसूस होता है।

“शामें मलंग सी, रातें सुरंग सी, बाग़ी उड़ान पे ही न जाने क्यूं इलाही मेरा जी आये…. कल पे सवाल है जीना फ़िलहाल है, खानाबदोशियों पे ही जाने क्यूं….”

लेटर पढ़कर इशिका ने संक्षेप में अपना परिचय दिया और बॉटल रवाना कर दी।

अब तो यह रोज़ का सिलसिला हो गया। इशिका भूल सी गई थी कि यह 2024 है। सोशल मीडिया और ईमेल व्हाट्सएप के इस दौर में दो लोग ख़तों के ज़रिए एक दूसरे से जुड़े थे। शहर की आपाधापी से दूर समुद्र किनारे बसे एक छोटे से गांव में बिन वाईफाई जीने का मज़ा ही कुछ और था।

अब उन दोनों की बातों में जिज्ञासा, सहानुभूति, जीवन दर्शन, सपनों और आकांक्षाओं से लेकर ज़िन्दगी के हर पहलू के बारे में गहरी बातचीत होने लगी। एक अनजाना रिश्ता दोनों के बीच पनपने लगा था।

यहीं इशिका ने जाना, उसके अंदर एक अच्छी राइटर बनने की तमाम संभावनाएं हैं।

बीस दिन ऐसे ही निकल गए थे। कहते हैं न, कोई भी नई आदत डालने में 21 दिन लगते हैं। पर 21वें दिन अचानक कबीर ने लिखा कि, “कल मैं नए देश जा रहा हूं। यहां से हज़ारों किलोमीटर दूर। क्या तुम मेरे साथ चलना चाहोगी?”

इशिका जैसे आसमानों में उड़ रही थी, और ज़मीन पर आ गिरी हो।

“क्या सोच रही थी मैं भी, सब-कुछ ऐसा ही रहेगा? कभी न कभी तो ख़त्म होना ही था। जैसे डूबते सूरज की वे किरणें जो पानी से ऐसे ग़ायब हो रही थीं, जैसे कभी थी ही नहीं।

“नहीं कबीर। तुमने जो जीने की उमंग जगाई है मुझमें, कोशिश करूंगी इसे जलाए रखने की। दुआ करूंगी तुम्हारे लिये, जानती हूं, अब कभी मिल नहीं पाएंगे फिर भी। मैं तुम्हारी तरह आज़ाद पंछी नहीं हूं। मैं अपनी जड़ों को छोड़ दूंगी तो मेरा अस्तित्व ही ख़त्म हो जाएगा। मुझे लौटना होगा अब। तुम्हें कभी भूल नहीं पाऊंगी। पर तुम्हारा जितना शुक्रिया करूं, उतना कम है।”

धड़कते दिल से उसने आख़िरी ख़त लिखा। आंसू तमाम बांध तोड़ चुके थे। समंदर का पानी ज़्यादा खारा था या उसके आंसू, वह नहीं जानती थी।

“माय डियर ईशा, क़िस्मत क्या चीज़ है, तुम नहीं जानती। मिलना होगा तो ज़रूर मिलेंगे। वैसे भी तुम जो किताब लिखने वाली हो, मैं ज़रूर पढूंगा। इंतज़ार रहेगा। लव यू। ऑल द बेस्ट।”

इशिका वह ख़त सीने से लगाए सामान पैक कर रही थी। कार्तिक के सैंकड़ों मिस्ड कॉल, मेल और मैसेज उसकी बेसब्री की गवाही दे रहे थे। “अगले साल इसी वक़्त दुबारा आऊंगी।” इस अहद के साथ वह वापस लौट गई।

एयरपोर्ट पर उसे देखते ही कार्तिक ने उसे बाहों में भर लिया। इशिका के लिये यह नई बात थी। कार्तिक कभी भी बहुत एक्सप्रेसिव नहीं रहा था लेकिन इतने दिनों की अचानक दूरी ने उसके सोए जज़्बात जगा दिए थे। इशिका की उदासी थोड़ी दूर हुई।

“हम्म एक-दो दिन की बात है फिर तो ज़िन्दगी उसी पुराने ढर्रे पर लौट आएगी।” उसने सोचा।

लेकिन उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, जब दिनों दिन कार्तिक कुछ ज़्यादा ही रोमांटिक और ज़िंदादिल होता जा रहा था। महीने में एक हफ्ते वे घूमने जाने लगे थे। और इशिका अपने नॉवेल पर काम करना शुरु कर चुकी थी।

वह अक्सर अपना लॉकर खोलकर, संभालकर रखे कबीर के ख़त पढ़ती थी। आख़िर कहानी पूरी उसी की तो थी।

इधर कार्तिक शुक्र मना रहा था कि वह सही समय पर इशिका के पीछे पहुंच गया था। दरअस्ल उसने इशिका को विश इसीलिये नहीं किया था क्योंकि उसने उसके लिये एक सरप्राइज़ बर्थडे पार्टी रखी थी। लेकिन इशिका न जाने किस मनोस्थिति में थी, जो सब छोड़-छाड़कर चल दी थी। तभी न जाने कैसे उस बॉटल वाले मैसेज का आइडिया उसे आया था और वहां के लोकल लोगों की मदद से बॉटल सही जगह भेजने और रिसीव करने की प्लानिंग की थी उसने।

उसे यह जानकर भी सुकून मिला था कि इशिका का उससे बेवफ़ाई करने का कोई इरादा नहीं था। वह बस उसके अटेंशन और टाइम न देने से दुःखी और उदास थी। उसने फ़ैसला किया था, वह ख़ुद को बेहतर करेगा, अपने प्यार के लिये वक़्त निकालेगा। इशिका के ख़त उसने भी संभालकर रखे थे।

वाक़ई क़िस्मत कुछ भी करा सकती है। कबीर भी इशिका था और कार्तिक भी। पर यह जानना उसके लिये ज़रूरी नहीं था।

-नाज़िया खान

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