1 घंटे पहले

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जिला अधिकारी के रूप में मंदिरा गर्ग ने जब अंबाला में कार्यभार संभाला तो बधाई देने वालों की भीड़ लग गई। एक महिला आईएएस पहली बार उनके शहर में आई थी। सरकारी सेवा में कार्यरत अन्य महिलाओं के लिए यह गर्व की बात थी। लेकिन पुरुषों के लिए प्रगतिशील समाज में अभी भी महिला का उच्च पद पर आना सहजता से स्वीकार करना मुश्किल ही है। लेकिन चाहे पसंद आए न आए किसी महिला का उन्हें ऑर्डर देना, प्रशंसा में हाथ जोड़े तो खड़े ही रहना पड़ता है। आईएएस अफसर की वैसे ही बड़ी धाक होती है और उसका सम्मान होता है।

हालांकि सब जानते हैं कि राज्य सरकार जिला मजिस्ट्रेट और जिला कलेक्टर दोनों को ही ट्रांसफर करती रहती है। जिला कलेक्टर जो किसी भी जिले का मुख्य प्रभारी होता है, वह विभागों की निगरानी करता है, लॉ एंड ऑर्डर की जिम्मेदारी होती है उस पर। देखा जाए तो जिला मजिस्ट्रेट के बाद जिला कलेक्टर का पद ही महत्वपूर्ण होता है।

“मैडम बधाई हो,” जिला कलेक्टर नवनीत पांडे ने गुलाब के फूलों का बुके मंदिरा गर्ग की ओर बढ़ाते हुए कहा।

“थैंक यू,” मंदिरा ने मुस्कुराते हुए हाथ जोड़े। उसके असिस्टेंट ने लपक कर फूलों का गुच्छा नवनीत पांडे के हाथों से ले लिया और मेज पर रख दिया, जहां पहले से ही बहुत सारे बुके और मिठाई के डिब्बे रखे थे।

“हमें इस बात की खुशी है कि हमारे शहर में जिलाधिकारी और जिला मजिस्ट्रेट दोनों ही युवा हैं,” एक वरिष्ठ अफसर ने खींसे निपोरते हुए कहा। चमचागिरी की चीनी उसके स्वर में घुली हुई थी। सबके जाने के बाद बड़ी देर तक नवनीत पांडे शहर के लॉ एंड ऑर्डर और राजस्व के अन्य मुद्दों पर बात करता रहा। मंदिरा बहुत ध्यान से उसकी बात सुन रही थी। बात करने का अंदाज और व्यवस्था को कायम रखने की उसकी शैली प्रभावित करने वाली थी। इसके साथ काम करने में मजा आएगा और शहर का विकास भी हो पाएगा। कोई अधेड़ उम्र का जिला कलक्टर होता तो उसे समझना और समझाना दोनों ही मुश्किल होता,’ मंदिरा ने सोचा।

होगा कोई बत्तीस-तैंतीस वर्ष का, यानी कि उससे एक-दो साल बड़ा। आसमानी रंग की कॉटन की शर्ट और नीले रंग के ट्राउजर पहना हुआ था। सिंपल ड्रेसिंग। स्मार्ट एंड एलिगेंट लुक, मंदिरा ने मन ही मन उसकी ड्रेसिंग सेंस को सौ प्रतिशत नंबर दे डाले। उसे ढीले-ढाले, लापरवाह ढंग से रहने वाले लोग पसंद नहीं हैं, खासकर ऑफिस में तो कतई नहीं।

वह नवनीत पांडे की दी हुई कुछ फाइलें देखने लगी तो उसे तो मंदिरा गर्ग को अवलोकन करने का अवसर मिल गया। आईएएस अफसर का ठप्पा वैसे ही प्रभावित करने के लिए काफी होता है। लेकिन मंदिरा के व्यक्तित्व में एक ठसक के साथ जो शालीनता है, वह उसे आकर्षित कर रही थी। प्योर कॉटन की प्रिंटेड साड़ी और मैचिंग ब्लाउज पहनी हुई थी। साड़ी का पल्लू कंधे पर परिष्कृत ढंग से सेट था। बाल कटे हुए थे, लेकिन जुल्फें नहीं लटक रही थीं यहां-वहां कि उन्हें ही ठीक करने में समय बर्बाद करते रहो। चेहरा एकदम चमकता हुआ…मेकअप की एक भी परत नहीं। कानों में हीरे के टॉप्स लश्कारे मार रहे थे। बाएं हाथ में ब्राउन स्ट्रैप वाली घड़ी थी और दाएं हाथ में सोने का एक कड़ा। बिना किसी ऊपरी श्रृंगार के भी वह किसी तराशी हुई मूर्ति…नहीं धड़कते दिल वाले स्त्री की तरह लग रही थी। ‘सॉफ्ट स्पोकन, डीसेंट एंड अट्रैक्टिव,’ मन ही मन नवनीत ने उसे इन विशेषणों से सुशोभित कर दिया।

“मैडम, काम हम जमकर करते हैं, लेकिन संडे को कुछ पल मौज-मस्ती के भी निकाल लेते हैं। छोटा शहर है, इसलिए अफसरों के परिवार एक दूसरे से परिचित हैं, इसलिए क्लब में मिलते हैं,” कुछ दिनों बाद नवनीत पांडे ने शाम को एक मीटिंग खत्म होने के बाद बहुत संभालते-संभालते अपनी बात कही। पिछले दो महीनों में उनके बीच एक सहजता कायम हो गई थी और काम के अलावा भी बातें हो जाया करती थीं। मंदिरा को अच्छा लगता था नवनीत से बात करना, वरना इस अंजान शहर में वह और किसी को जानती भी नहीं थी।

“मौज-मस्ती मतलब?’ मंदिरा की त्यौरियां खिंच गई थीं। “मैं संडे को घर पर ही रहना पसंद करती हूं। किताब पढ़ती हूं, नहीं तो शॉपिंग करने निकल जाती हूं। आई हैव नो टाइम फॉर टू वेस्ट।” उसकी आवाज की तल्खी से नवनीत पांडे दो पल के लिए सिकुड़ कर रह गया।

कुर्सी से खड़ी होकर वह घर जाने की तैयारी करने लगी। यह इशारा भी था उसके लिए कि वह जा सकता है।

“नहीं, नहीं मैडम, मौज-मस्ती से मतलब कोई शोर-शराबा करना नहीं है। बस हमारा क्लब है। वही बैठते हैं और गपशप करते हैं। समझ लें रिफ्रेश होते हैं और जो महिलाएं नौकरी नहीं करतीं, उनकी आउटिंग हो जाती है।

“आप मुझे मंदिरा कह सकते हैं।”

“मंदिरा, मंदिरा जी…” नवनीत पांडे को समय लगेगा अभी बिना ‘जी’ लगाए नाम लेने में। बहुत जल्दी नाम लेना या आप से तुम पर आना ठीक नहीं होता, यह वह समझता था।

“नॉट फॉर मी। रामदीन यह सब कार में रख दो।”

चपरासी बैग और फाइलें लेकर बाहर निकल गया।

“आई इंसिस्ट। एक बार आइएगा कल। महीने का चौथा संडे स्पेशल होता है।”

“देखती हूं,” कह वह सधे कदम रखते हुए कमरे से बाहर निकल गई। कार में बैठ उसे हंसी आ गई। नवनीत पांडे खुद एक जिला कलेक्टर है, पर उससे बात करते हुए झिझकता है। क्या वास्तव में वह बहुत कठोर और अनुशासित किस्म की जिला मजिस्ट्रेट लगती है। चलो ठीक भी है, उसने सोचा। लेकिन न जाने क्यों उसने तय किया कि वह जाएगी कल क्लब। नवनीत पांडे के आग्रह की वजह से या वह सभ्य इंसान है इसलिए? काम में भी परफेक्ट है, भ्रष्ट आचरण या बेईमानी का भी कोई रिकॉर्ड नहीं है और सुलझा हुआ इंसान भी लगता है। फ्लर्ट टाइप भी नहीं लगता।

हालांकि बातों-बातों में वह बता चुका था कि अभी तक शादी नहीं हुई है। और मंदिरा भी अविवाहित है, यह बात भी किसी से छुपी नहीं थी क्योंकि पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों के मैरिटियल स्टेटस के बारे में जानने की लोगों को ज्यादा उत्सुकता होती है।

चली जाती हूं। इस बहाने अन्य अफसर की परिवारों को जानने का मौका मिलेगा। काम ठीक से चलता रहे, इसके लिए अच्छे रिश्ते भी काम आते हैं। मंदिरा कॉटन की कुर्ती और प्लाजो पहन कर गई थी। एकदम साधारण लुक में, पर वहां मौजूद महिलाएं भारी साड़ियां, ज्वेलरी और मेकअप से लदी थीं। ताशबाजी, म्यूजिक पर युगल डांस, दारू और कहकहे, आम क्लब जैसा माहौल था। बस उसे वीआईपी ट्रीटमेंट मिल रहा था और पुरुष व महिला दोनों ही उसके आसपास चक्कर काट रहे थे। वह जानती है कि यह उसके ओहदे का कमाल है।

“अब सब तैयार हो जाइए अपने खास इवेंट के लिए,” नवनीत ने माइक पर थोड़े नाटकीय अंदाज में कहा। “मंदिरा जी आपको अवश्य पसंद आएगा हमारा यह नए तरह का प्रयोग जिसका सब बेसब्री से इंतजार करते हैं, खासकर महिलाएं। हम हर संडे को किसी अफसर की पत्नी को ‘ब्यूटी ऑफ द मंथ’ का ताज पहनाते हैं। हर महीने के चौथे संडे को यह ईंवेंट करते हैं। ताज से मेरा मतलब है कि उनको सिल्क का एक खूबसूरत स्टोल पहनाया जाता है और गिफ्ट दिया जाता है। साथ ही गुलाब के फूलों की माला भी पहनाई जाती है। इस बार हम चाहते हैं कि आपके हाथों से यह सम्मान मिसेज दुग्गल को दिया जाए।”

मंदिरा यह सुन हैरान रह गई, पर उस समय चुपचाप उसने मिसेज दुग्गल को स्टोल और माला पहनाई और गिफ्ट थमाया।

“वैसे ‘ब्यूटी ऑफ द मंथ’ कैसे तय किया जाता है?” खाने के समय जब नवनीत पांडे उसकी मेज पर आकर बैठा तो मंदिरा ने पूछा।

“जो सबसे सुंदर लग रही हो, उसे बना दिया जाता है।”

“और सुंदरता की परिभाषा क्या है?” सवाल सुन नवनीत सकपका गया।

“एक महिला सुंदर लग रही है, दूसरी नहीं, मौज-मस्ती करना नहीं, अपमानजनक स्थिति पैदा करने वाली बात है,” मंदिरा गुस्से से बोली।

“कोई बुरा नहीं मानता। इस बहाने महिलाओं को सजने-संवरने का मौका मिल जाता है,” नवनीत ने उसे कंविंस करने की कोशिश की।

“ठीक है अगली बार से हम ‘स्मार्ट मैन ऑफ द मंथ’ का सम्मान भी देंगे। पुरुष भी तो जानें कि सुंदरता या स्मार्टनेस का कोई पैमाना नहीं होता।”

नवनीत पांडे पहले तो यह सुन सकपकाया, फिर मंदिरा की आंखों में देखते हुए बोला, “पैमाना तो किसी भी चीज का नहीं हो सकता, खासकर जहां भावनाएं उड़ान भर रही हों। मुझे इंतजार रहेगा आपके हाथों से अपने गले में गुलाब के फूलों की माला डलवाने का, मंदिरा।”

मंदिरा को लगा जैसे वह उसकी आंखों में डूब रही है। वास्तव में बहुत स्मार्ट है नवनीत पांडे!

-सुमन बाजपेयी

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