9 मिनट पहले

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जब तक हम दूसरों के लिए जीते हैं तब तक सबके चहेते बने रहते हैं, लेकिन जब अपने लिए जीना चाहते हैं तो सबके दुश्मन बन जाते हैं। तब ‘सेल्फ लव’ के मायने बदल जाते हैं और हमें ‘सेल्फिश’ का टैग दिया जाता है। तो क्या खुद से प्यार करना गलत है?

चैट रूम में आज चर्चा एक ऐसी महिला की, जिसने 18 साल तक परिवार के लिए करियर छोड़ा। लेकिन जब उसने फिर से अपनी पहचान बनानी चाही, तो परिवार ही उससे रूठ गया। रिलेशनशिप काउंसलर डॉ. माधवी सेठ बता रही हैं सेल्फ लव और सेल्फिश होने के बीच का फर्क, खुद के लिए जीने का हुनर।

मेरी शादी को 20 साल हो गए हैं। बेटी के जन्म के बाद मैंने अपनी मल्टीनेशनल कंपनी की जॉब छोड़ दी। अब बेटी 18 साल की हो गई है और अपनी पढ़ाई में बहुत बिजी रहती है। पति के पास भी मेरे लिए टाइम नहीं है।

अब मैं फिर से करियर की नई शुरुआत करना चाहती हूं, लेकिन इसके लिए पति और बेटी तैयार नहीं। उनका मानना है कि मैं सेल्फिश हो गई हूं, मुझे पति और बेटी की चिंता नहीं है। मुझे अपना करियर बनाने के बजाय उन्हें सपोर्ट करना चाहिए। अपनी सभी जिम्मेदारियां निभाने के बाद अपने करियर के बारे में सोचना क्या सेल्फिश होना है?

अपनी खुशी के लिए जीना ‘सेल्फिश’ होना नहीं है। बेटी के जन्म से पहले आप मल्टीनेशनल कंपनी में काम रही थीं, जहां आपके पास करियर में आगे बढ़ने के कई अवसर थे। जैसा कि आपके बताया, बेटी के जन्म के बाद भी आप कुछ महीनों तक जॉब करती रहीं। लेकिन आपको रोज ये एहसास कराया गया कि आप अच्छी मां नहीं हैं। आपको बेटी से ज्यादा अपने करियर से प्यार है। परिवार के दबाव में आकर आपको जॉब छोड़नी पड़ी।

सबको खुश नहीं किया जा सकता

उम्मीदों का कोई ओर-छोर नहीं होता। हम जितना करते जाते हैं परिवार की उम्मीदें हमसे उतनी ज्यादा बढ़ती जाती हैं। ऐसे में मन ही मन कुढ़ने या परिवार को कोसने के बजाय अपने मन की बात परिवार के सामने रखना जरूरी है। हो सकता है, शुरुआत में उन्हें आपकी बात पसंद न आए, लेकिन जब आप सारे पहलुओं को अच्छी तरह समझाएंगी तो परिवार आपकी बात जरूर समझेगा।

‘सेल्फ लव’ तनाव से बचाता है

अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियां निभाने के बाद जब हम कुछ समय अपने लिए बिताते हैं, वो काम करते हैं जिससे हमें खुशी मिलती है तो हमारा तनाव दूर होता है। मानसिक स्वास्थ्य के ऐसा करना बहुत जरूरी है। जो लोग परिवार के प्रेशर में अपनी इच्छा से नहीं जी पाते, उनकी अपने रिश्तों से दूरी बढ़ती जाती है, साथ ही तनाव भी बढ़ने लगता है।

स्ट्रेस कई बड़े रोगों का कारण हो सकता है इसलिए तनाव से बचना जरूरी है। अपने लिए जीना खुदगर्जी नहीं है, खुद से प्यार करना है। जो लोग खुद से प्यार करते हैं वो दूसरों से भी खुलकर प्यार करना जानते हैं। ऐसे लोग अपनी खुशी के साथ साथ दूसरों की खुशी का भी खयाल रखते हैं।

पुरुषों पर भी है प्रेशर

परिवार की उम्मीदों का प्रेशर महिलाओं की तरह ही पुरुषों पर भी रहता है। पुरुषों की कामयाबी उनकी कमाई से आंकी जाती है। जो पुरुष उतना नहीं कमा पाते जितनी परिवार की उनसे उम्मीदें हैं, तो नकारा घोषित किया जाता है।

महिलाओं पर घर संभालने का प्रेशर होता है, तो पुरुषों पर कमाने और परिवार की जरूरतों को पूरा करने का दबाव रहता है। यही वजह है कि आज की पीढ़ी शादी के नाम से डरने लगी है। कमिटमेंट और जिम्मेदारियों से बचने के लिए कई युवा शादी ही नहीं करना चाहते।

खुद के लिए जीना सीखें

जब हम बहुत सारी जिम्मेदारियां ओढ़ते चले जाते हैं तो परिवार भी हमसे उतनी ही ज्यादा उम्मीदें करने लगता है। सालों तक परिवार की इच्छा के लिए जीते रहने के बाद जब हम अचानक अपने लिए जीने की इच्छा जाहिर करते हैं, तो परिवार के लिए हजम कर पाना मुश्किल हो जाता है।

आपके साथ भी यही हो रहा है। आप पति और बेटी से प्यार से बात करें। उन्हें अपनी खुशियों और इच्छाओं के बारे में बताएं। आपके समझाने पर उन्हें बात समझ आ जाएगी और फिर पति-बेटी दोनों आपको सपोर्ट करने लग जाएंगे।

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