1 घंटे पहले

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“क्या? शामली ने शादी के लिए हां कर दी?” अपनी बड़ी बेटी आभा की बात सुनकर नैना का स्वर खुशी से पनीला हो गया था। उसकी आंखों में मोती छलकने लगे थे और वो नर्वसनेस में कमरे में इधर से उधर टहलने लगी थी। पर इसके साथ ही उसके दिमाग में सवालों के बवंडर चलने लगे थे। एक आधे सच से शुरुआत हुई है इस कहानी की। जब पूरा सच उसके सामने आएगा तो? कहते हैं आधा सच पूरे झूठ से ज्यादा खतरनाक होता है। और जैसा कि आभा रही है, कहीं वो लड़का ही शादी के लिए तैयार न हुआ तो? अगर वो लड़का न कर देगा तो क्या कहेगी शामली से? और ये शादी न हुई तो दुनिया तो यही सोचेगी न कि वो ही शामली की शादी नहीं करना चाहती। कमाऊ बेटी की कमाई हाथ से जाने नहीं देना चाहती जो कि सच नहीं है।

उधर शामली के दिल का हाल भी कुछ कम उथल-पुथल वाला न था। उसने अपने दिल में झांका। वहां उतनी भी वीरानगी नहीं थी, जितनी वो आज तक महसूस करती आई थी। वहां सुबह की खुशनुमा धूप सा उजाला था जो गर्मियों की सुबह की तरह तेजी से बढ़ रहा था। दिल का मौसम खुशनुमा होता जा रहा था। एहसासों के खूबसूरत रंग दिल के आकाश पर बिखरते जा रहे थे। कब शुरू हुआ था ये किस्सा! शायद बारह की अल्हड़ उम्र में।

परिवार की एक शादी थी। वो नई खिलती कली सी थी। दीदी डांटती थी कि थोड़ा तो सिंगार कर ले पर उसे खेलने से ही फुरसत नहीं मिलती थी। सिंगार का शौक उसे था ही नहीं। क्लास की सबसे तेज़ लड़की होने का गौरव पढ़ाई में उसका उत्साह बढ़ाता रहता था। बचा हुआ समय खेलने में निकल जाता था।

शादी की धूमधाम में जब वो श्याम से मिली तो पहली मुलाकात कितनी खिलंदड़ थी। शामली को आज तक याद है। अंदर शादी की धूम मची थी। ज्यादातर लड़कियां औरतों के बीच में बैठी थीं। डिस्कशन तो गहने कपड़े हेयर स्टाइल पर होने ही थे। ये टॉपिक शामली को कभी पसंद नहीं रहे तो ऊबकर बाहर लॉन में आ गई थी। वहां देखा तो कुछ बच्चे और किशोर दौड़-भाग वाला खेल खेल रहे थे। उसकी आंखें चमक उठी थीं। जब श्याम के पूछने पर उसने नाम बताया तो श्याम ने तपाक से उत्तर दिया था “अरे वाह! मेरा नाम श्याम है। अब तो पूरे खेल में हम दोनों ही जोड़ी बनाएंगे” श्याम के इस सरल अंदाज़ पर सबको हंसी आ गई थी।

घर लौटते हुए फोन नंबरों आ आदान-प्रदान हुआ और बातें शुरू हो गईं। शामली को एक ऐसा साथी मिल गया था जो उसके मिजाज का था। जिससे वो सामान्य-ज्ञान की, पढ़ाई की और वो सारी बातें कर सकती थी जो किसी और से आज तक नहीं कर पाती थी। मन और मानसिक स्तर मिलने से गहरी दोस्ती कब भावनात्मक स्तर तक पहुंची पता ही नहीं चला।

फिर वो सोलह साल की हुई। तब समझ नहीं आता था कि अचानक से क्यों सामान्य ज्ञान पर नज़र रखने की नीयत से अखबार टटोलते अचानक बालों की केयर वाले लेख पर निगाह टिक जाती है। क्यों कोचिंग के लिए फॉर्मल सा मेकअप करते हुए मन आई लाइनर लगाने को कहने लगता है।

फिर एक दिन श्याम ने अचानक से कह दिया – “बहुत अकेला हो गया हूं। क्या मैं सोच सकता हूं कि तुम इस अकेलेपन की साथी हमेशा के लिए बनोगी?” “मैं तो तुम्हारी साथी हूं ही” बात उसकी समझ में नहीं आई थी पर दिल की धड़कन बढ़ गई थी। जाने क्यों! फिर तो वो ऐसी ही गोलमोल बातें करने लगा था। शामली को समझ नहीं आता था कि बेकार की बातों में एक मिनट टाइम न वेस्ट करने वाली वो क्यों घंटों श्याम की बेतुकी बातों पर फोन नहीं काटती। फोन काटना तो दूर अक्सर खुद फोन कर लेती है बिन मतलब की बातें सुनने के लिए। फिर वो दिन भी आया जब श्याम ने खुलकर स्पष्ट शब्दों में प्रपोज़ कर दिया। शामली को तो कुछ समझ ही नहीं आया सिवाय इसके कि उसने हां में जवाब दे दिया था। फिर तो दिन चंपई और रातें सुरमई हो गईं थीं। लगने लगा था कि दिल में किताबों के अलावा भी कोई रहता है। रहने वाले ने ही दिल को व्यवस्थित करके सुंदर बना लिया था। वक्त थम गया था, ज़िंदगी बदल गई थी।

फिर एक दिन श्याम ने खुद ही मना कर दिया। “मैं डीप डिप्रेशन में हूं। किसी रिश्ते के साथ न्याय नहीं कर सकता। जो कुछ मैंने तुमसे कहा वो भूल जाओ” शामली के कुछ समझ नहीं आया। पर इतना निश्चित था कि दिल का माहौल बदल गया था। चंपई रंगों में किसी ने काला रंग बिखेर दिया था। मन उदास रहने लगा था। गुस्सा इतनी आई थी कि समझ में नहीं आता था कि क्या करे। आखिर उसने श्याम से मिलकर पूरी बात पूछने का मन बानाया तभी उसे पता चला कि जिस भाभी की शादी में वो मिले थे, उनसे श्याम ने उलटी बात बताई है। कहा है कि शामली ने उसे प्रपोज़ किया था। फिर मना कर दिया। शामली को बड़ी गुस्सा आई। उसने श्याम से फोन पर ही भयंकर झगड़ा किया फिर दोनों ने एक-दूसरे को ब्लॉक कर दिया।

इस बीच, शामली का सिलेक्शन उसकी मनपसंद यूनिवर्सिटी में हो गया। उन्हीं दिनों घर में वो हादसा हो गया। जीजाजी की दुर्घटना में अचानक मौत के बाद दीदी दो छोटे बच्चों को लेकर घर आ गई और शामली की ज़िंदगी पढ़ाई और ज़िम्मेदारियों में व्यस्त हो गई।

पढ़ाई पूरी करके मनपसंद जॉब पाने के बाद रिश्तों की झड़ी लग गई पर शामली को कोई भी ऐसा साथी नहीं मिला जैसा वो चाहती थी।

हमारे देश में शादी की भी एक उम्र बना दी गई है। वो उम्र निकल जाने के बाद रिश्ते मिलना मुश्किल हो जाता है। ऐसा कहा जाता है। वही शामली के साथ भी हुआ और उसने मान लिया कि उसे अब एकाकी ही जीना है। लिव इन के लिए कई हाथ आगे बढ़े पर उसका भरोसा टेम्प्रेरी प्यार पर कभी नहीं रहा।

और अब अचानक इस मोड़ पर फिर से वो रिश्ता आया है। शामली को आश्चर्य है कि उसके मन में अब भी प्यार है श्याम के लिए?

“क्या? इसी बात का डर था मुझे।” नैना का गला बैठ गया। “मुझे लग ही रहा था कि कहीं ऐसा न हो” “कैसा न हो?” शामली के पूछने पर नैना ने बात बदल दी। हालांकि अचकचा गई थी वो।

आभा और नैना डिस्कस कर ही रहे थे कि शामली के पापा ने कहा। “कुछ मत कहो। बस वक्त का इंतज़ार करो” पर शामली के मन में प्रश्न वक्त के साथ बढ़ते ही जाते थे। उसके पीछे शादी के लिए हाथ धोकर पड़े रहने वाले मम्मी-पापा अचानक उससे हां करवाकर खामोश क्यों हो गए। आखिर उसने पूछ ही लिया और नैना फूटकर रो पड़ी – “बेटा श्याम शादी नहीं करना चाहता। वो रिश्ता उसकी ओर से नहीं उसकी मां की ओर से आया था। उसकी मां को लगता था कि उसका बेटा तुझे चाहता है पर ऐसा नहीं है।” अब शामली के म में प्रश्नों का तूफान उमड़ पड़ा। आखिर क्यों सालों पहले उसने पहले प्रपोज़ करके फिर खुद ही न कहा और आज ये सब क्या हुआ। कैसे उसकी मां को ख्याल आया कि उसका बेटा मुझे चाहता है। आखिर शामली ने तय किया कि वो उन भाभी से ही पूछेगी जिनकी शादी में वे मिले थे और जो दोनों को जानती हैं। अचानक उसे लगने लगा उसके पहले प्यार को किसी की ज़रूरत है। कुछ तो है उसके मन में कि वो किसी को बता नहीं पा रहा।

शामली भाभी से मिली तो कुछ और राज़ खुले श्याम की ज़िंदगी में उससे पहले कोई और लड़की आई थी, जिसने उसे धोखा दिया। उसने पुरानी बातों को याद करके उनका विश्लेषण करना शुरू किया तो समझते देर न लगी कि डिप्रेशन में श्याम ने उसे प्रपोज़ किया था। सिर्फ ये महसूस करने के लिए कि उसे भी कोई चाह सकता है। वो उतना भी व्यर्थ नहीं जितना उसकी गर्ल-फ्रेंड उसे समझती थी। शामली को अपने पहले प्यार, अपने दोस्त पर दया भी आने लगी और सहानुभूति भी होने लगी। उसने तुरंत श्याम को फोन घुमाया – “दोस्त बनने के बाद प्रेमी बना जा सकता है तो प्रेमी बनने के बाद भी दोस्त बना जा सकता है। तुम मुझसे प्यार करो या न करो। पर मैं तुमसे लगाव रखती हूं। मैंने तुम्हें माफ किया और तुम जब भी चाहो एक दोस्त के नाते मेरे सामने अपना दिल खोल सकते हो। तुम दोस्ती से आगे न बढ़ना चाहो तो कोई तुम पर दबाव नहीं डालेगा, ये मेरा वादा है।” दूसरी ओर से कुछ देर सिसकियों की आवाज़ आई फिर फोन कट गया। तभी मैसेज घुनघुनाया – ‘थैक यू शामली। मुझे एक दोस्त की सख्त ज़रूरत है। एक दिन तुम्हारे सामने दिल का हाल खोलूंगा ज़रूर। क्या पता…’ शामली मुस्कुरा दी।

-भावना प्रकाश

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