3 घंटे पहले

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शलभ ने कैमरा घुमाया तो कुदरत की सुंदरता से सम्मोहित सा हो गया। दूर तक फैली दूधिया रंग के इठलाते पानी के किनारे आसमान से होड़ लगाते पहाड़ों पर ताड़ के पेड़ और कई जगह चांदी की धारियों सी दिखाई देतीं नदियां। ज़िंदगी में पहली बार शलभ के मन ने बगावत की कि ये व्यू तो उसे बिना कैमरे के खुद अपनी आंखों से देखना ही है कुछ देर। हर खूबसूरत व्यू को केवल कैमरे की आंखों से देखने वाला फेमस ट्रैवल व्लागर आज जाने क्या देखकर इतना भावुक हो गया था कि कैमरा उठाने का दिल नहीं कर रहा था। आज उसे समुद्र के उस दीप पर बना वो किला और वो प्रेम कहानी कवर करना ही थी। उस राजकुमारी और बंजारे की प्रेम-कहानी को पूरा जानने की उत्सुकता अब चरम पर पहुंच गई थी।

घूमना ही ट्रैवेल-व्लागर शलभ का इश्क है इसीलिए आज तक उसने अपनी ओर बढ़े किसी हाथ को अपना हाथ नहीं दिया। पर कभी-कभी जिगरी दोस्तों की पूरी टोली और खिलंदड़ और स्नेही परिवार के होते हुए भी वो अकेला महसूस करने लगता है। जिससे मन मिले, जिसे देखकर लगे कि यही है वो जो रूह का हमसफर बन सकता है, शायद ऐसा कोई कभी मिला ही नहीं। पर कभी-कभी एक साथी की कमी महसूस करके मन उदास हो जाता है। खासकर ऐसे रूमानी मौसम में।

मोटर बोट के रवाना होने के बाद कुछ देर में ही उदास शलभ का मूड ठीक हो गया। पेड़ों के प्रतिबिंब से हल्का हरा हुआ किनारे का पानी और लहरों की चंचलता से दूधिया फेने सा बीच समुद्र का पानी मिलकर किनारे से कुछ दूरी पर एक अलग ही रंग बना रहे थे। वैसे भी शलभ ऐसी जगह पहली बार देख रहा था जहां समुद्र के किनारे पहाड़ थे। वो भी अच्छे-खासे ऊंचे। पहाड़ से गिरकर समुद्र में मिलते हुए झरने भी दिख रहे थे जैसे किसी परी कथा में प्रियतम और प्रेमिका के मिलने से वक्त थम गया हो।

तभी मोटरबोट ने एक घुमाव लिया और दिखाई दिया ‘वो’ किला। छोटे से पहाड़ी दीप की चोटी (टेबिल लैंड) पर बसा ये किला सचमुच किसी ख्वाबों की दुनिया का सा लग रहा था। शलभ को यकीन नहीं हो रहा था कि वो अपनी सबसे पसंददीदा कहानी की सपनीली जगह पर सचमुच पहुंच गया है।

उत्साह से भरा शलभ फटाफट पगडंडी चढ़कर किले तक पहुंच गया। विशाल फाटक पर एक ओर राजकुमारी और एक ओर बंजारे की मूर्ति बनी थी। भीतर फाटक से कॉरिडोर तक नारंगी बजरी का रास्ता, रास्ते के दोनों ओर प्रेमी-युगल की प्रेम भरी मूर्तियां थीं। उनकी ड्रेसेज़ भी किराए पर मिल रही थीं। कुल मिलाकर माहौल रूमानी था। प्रेमी उन मूर्तियों के साथ उनके जैसी ड्रेसेज़ पहनकर उनके जैसा ही पोज़ बनाकर फोटो खिंचा रहे थे। कॉरिडोर में चलते हुए एक तरफ सुंदर बागीचा दिख रहा था तो दूसरी ओर कमरों की दीवारों पर उस राजकुमारी और बंजारे की प्रेमकथा के चित्र थे।

हर कमरा किसी चीज़ का म्यूज़ियम था। शलभ को इस दीप के इतिहास में, टुअरिस्ट गाइड बुक्स में कहीं भी राजकुमारी और बंजारन की कहानी पूरी पढ़ने को नहीं मिली थी। वो पूरे मन और उत्सुकता से चित्रों और बुतों को जोड़कर कहानी समझने की कोशिश कर रहा था। अपने व्लॉग में कुछ नया जोड़ना चाहता था इस कहानी के रूप में। पर शायद और किसी की रुचि इसमें नहीं थी इसीलिए लोग या तो बगीचे की दुकानों में मिल रही राजकुमारी और बंजारे की फैंसी-ड्रेसेज़ में फोटो खिंचाने में लगे थे या शंख, सीपी आदि से बनी चीज़ों की दुकानों की ओर मुड़ गए थे।

कुछ लोगों को रेस्त्रां की खुशबुओं से भूख लग आई थी। कुछ ही देर में शलभ को लगा वो अकेला रह गया है। पर पता नहीं क्यों उसे एकांत में फोटोग्राफी का मौका मिल जाने की वैसी खुशी नहीं हुई जैसी हमेशा होती थी। उसके दिल में कुछ दर्दीला सा पनपने लगा था। कितनी अनोखी और बेरहम है ये दुनिया। जिन्हें जीते-जी मिलने नहीं दिया गया उनके बाद पूरा किला उनकी प्रेम कहानी का स्मारक बना दिया गया! काश! वे जीते-जी एक हो पाते! “काश सब तुम्हारी तरह सोचते” अचानक मन की आवाज़ का उत्तर सुनाई दिया उसे। शलभ चौंक गया। ये आवाज़ कहां से आई।

तभी एक बंद दरवाज़े ने उसका ध्यान खींचा। शायद ये आवाज़…उत्सुकतावश उसने दरवाज़ा खोल दिया। उस कमरे की खूबसूरत सज्जा ने शलभ को चौंका दिया। यहां कोई म्यूज़ियम नहीं था। ये तो असली राजकुमारी के कमरे जैसा लग रहा था। तभी उसने एक लड़की को देखा। सिर से पैर तक तराशी हुई मूरत की सी सुंदरता। राजकुमारियों के से कपड़े और गहने। चंपई रंग, कजरारी आंखें घुटनों तक लंबे बाल। उसकी खूबसूरती से सम्मोहित सा शलभ जाने कितनी देर उसे अपलक निहारता रहा। “बैठो, बड़ी देर कर दी” उसने कोमलता से कहा। शलभ बैठ गया। उसने सुना था कि यहां शूटिंग होती रहती हैं। तो क्या ये..? पर ये कोई हीरोइन है तो यूनिट के बाकी लोग कहां हैं? जी, आप कौन और किसका इंतज़ार कर रही हैं? वो सिर्फ मुस्कुराई और एक ओर इशारा कर दिया।

अब शलभ ने उसे गौर से देखा। उसके चेहरे पर एक अनोखी कशिश थी और बिल्कुल राजकुमारी की भंगिमा में खड़ी थी वो।

उसने आइने की ओर इशारा किया था, जिस पर थोड़ी धुंध जमी थी। शलभ ने आइने पर हाथ फेरा तो लगा ये शीशा नहीं एक पेंटिंग की सरफेस है। फिर तस्वीर उसे अपनी सी क्यों लग रही है? उसे घबराहट होने लगी।

पलटा तो मेज पर दो राजसी प्याले रखे थे। वो लेने के इशारे में मुस्कुराई और शलभ ने लपककर प्याला उठा लिया। “सच्ची, इस ठंडे पेय की जबरदस्त क्रेविंग हो रही थी। वाह इतनी ठंडा! फ्रिज तो कहीं दिखाई नहीं देता।” शलभ चुस्की लेते हुए बोला। “राज परिवार और खास मेहमानों के लिए प्राकृतिक फ्रिज होता है महलों में।” वो मुस्कुराई। उसकी मुस्कान इतनी भाव भरी थी कि शलभ का मन बंधने लगा।

शलभ को लग रहा था जैसे वो जनम-जनम से इस पल का इंतज़ार कर रहा है। उसकी नज़रें उस लड़की के चेहरे से हटने को तैयार न थीं। “आपका नाम?” बड़ी मुश्किल से उसके मुंह से निकला। “शर्मिष्ठा” “अरे ये तो उस राजकुमारी का नाम है” “वही तो मैं हूं” शलभ को मज़ाक भा गया क्योंकि इससे आगे की बातचीत का रास्ता खुलता था। “अच्छा तो मेरी एक मदद कीजिए। मुझे अपनी और बंजारे की पूरी कहानी सुना दीजिए” शलभ उसकी आंखों में झांकते हुए बोला। कहानी शुरू हो गई।

“….जब पिताजी को मेरे प्यार के बारे में पता चला तो उन्होंने मुझे इसी कमरे में बंद कर दिया। शोएरन को उस दूसरे दीप पर ले जाकर छोड़ दिया गया। वहां से यहां कोई नाव नहीं आती थी। वो समुद्र में कूदकर भी, सारी बाधाएं पार करके भी वहां तक किले से थोड़ी नीचे तक पहुंच गया था। मैं खिड़की से उसे समुद्री तूफान में मेरे महल तक पंहुचने के लिए जद्दोजहत करते देखती रही.. और तूफान ने उसे…उस लड़की ने शलभ के सीने पर सिर रख दिया। शलभ को लगा उसे पूरी कायनात मिल गई है। उसने उसे ऐसे बाहों में भर लिया जैसे बरसों से उससे प्यार करता हो। वो भी उसकी बाहों में ऐसे रोए जा रही थी जैसे बरसों से उसका इंतज़ार कर रही हो। जाने अचानक शलभ को क्या हुआ उसने उस लड़की को चूमना शुरू कर दिया। उसके आंसुओं को होंठों से पोछने लगा वो। उसे दुलराने और सहलाने लगा। राजकुमारी ने कहा मुझे इस कमरे से बाहर ले चलो। शलभ उसे बाहर ले आया।“मुझे नहीं पता तुम्हें क्या तकलीफ है पर इतना पता है कि मुझे मेरा हमसफर मिल गया है। अगर तुम चाहो तो मैं जीवन भर तुम्हें अपनी बाहों में महफूज़ रख सकता हूं। अब मैं कभी तुम्हारी आंखों में आंसू नहीं अने दूंगा।” वो उसे प्यार करते हुए बोले जा रहा था और खुद चकित था कि उसके दिल में अचानक इतना प्यार कहां से उमड़ आया। कॉरिडोर में आकर वो उसकी बांहों में ही सो गई। धीरे-धीरे शलभ की भी पलकें झपने लगीं।

नींद टूटी तो आसपास भीड़ जमा थी। शलभ को रात की घटनाएं याद आने लगीं। सारी रात उस राजकुमारी का रूमानी साथ..

रात में यहां रुकना मना है फिर आप कैसे सो गए यहां। ये ताला आपने कैसे खोला?” पुरातत्वविद विभाग के ऑफिसर ने पूछा तो शलभ चौंक गया – “ताला? कौन सा ताला?” “इस कमरे पर लगा ताला जो आज तक कोई नहीं खोल पाया था। हमने इसे तोड़ना ठीक नहीं समझा था। कोई इसकी चाभी नहीं बना पाया था। शलभ ने दिमाग पर जोर डाला। “इस दरवाज़े पर कोई ताला नहीं था” वो जवाब देते अंदर दौड़ा। अंदर सारी चीज़ें रात जैसी ही थीं। बस कल की खूबसूरत राजसी सजावट आज खंडहर हो गई थीं। और वो राजकुमारी? पलंग पर एक कंकाल पड़ा था। शलभ शॉक्ड सा लड़खड़ा गया। तो क्या वो वही बंजारा था जिसके इंतज़ार में राजकुमारी की आत्मा कैद थी उस कमरे में? तो क्या इसीलिए वो उसे जन्मों का प्यार लग रही थी? तो क्या इसीलिए उसने शलभ से उसे कमरे से निकालने को कहा था। और कुछ सच हो न हो वो गहरा प्यार जो उसने उस लड़की के लिए महसूस किया था, वो तो सच्चा ही था।

-भावना प्रकाश

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