नई दिल्ली3 घंटे पहलेलेखक: ऐश्वर्या शर्मा
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पिछले दिनों जामनगर में हुए अनंत अंबानी के प्रीवेडिंग सेलिब्रेशन में हर किसी की नजर नीता अंबानी, श्लोका अंबानी, ईशा अंबानी और दुल्हन बनने जा रहीं राधिका मर्चेंट की डिजाइनर ड्रेसेज और चमकती ज्वेलरी पर रही। सेलेब्स की पहनी ज्वेलरी को भी महिलाओं ने आंखें फाड़कर देखा। इस इवेंट के बाद बाजार में अचानक डायमंड, रूबी, एमराल्ड, सफायर ज्वेलरी की डिमांड बढ़ गई।
ज्वेलरी हर महिला का पहला प्यार होती है और डायमंड उनका बेस्टफ्रेंड।
1949 में अंग्रेजी में एक गाना भी आया-‘डायमंड्स आर गर्ल्स बेस्टफ्रेंड’ (“Diamonds Are a Woman’s Greatest Pal”) जिसकी यह लाइन आज भी मशहूर है।
शादी हो या एनिवर्सिरी, हर मौके पर डायमंड या किसी भी महंगे नगीने की ज्वेलरी एक लड़की का दिन बना देती है।
ऐसे कीमती नगीनों की ज्वेलरी लाखों रुपए में बिकती है जिसे पैसे वाले ही खरीद पाते हैं लेकिन आजकल ज्वेलरी में लैब में बने नगीने इस्तेमाल हो रहे हैं जो पॉकेट फ्रेंडली यानी जेब पर बोझ भी नहीं बनते और आम आदमी के बजट के अंदर आते हैं।
लैब में तैयार किए गए ये हीरे, पन्ने, रूबी, स्वेराइट्स, तन्जानी, टरमालान्स जैसे नगीने असली कीमती पत्थरों की तरह दिखते हैं और सस्ते होने के बावजूद ज्वेलरी को खूबसूरत और महंगा लुक देते हैं।
लैब में 4 हफ्ते में तैयार होता हीरा
लैब में बनने वाला हीरा यानी आर्टिफिशियल हीरा प्राकृतिक हीरे की तरह ही दिखता है। नेचुरल डायमंड पृथ्वी के अंदर अधिक दबाव और तापमान में तपकर करोड़ों साल बाद चमकता है। लेकिन लैब में बने डायमंड 1 से 4 हफ्ते में तैयार होते हैं।
आर्टिफिशल हीरा कार्बन सीड जो कि ग्रेफाइट का होता है, उसे 1500 डिग्री सेल्सियस के हाई टेंपरेचर और हाई प्रेशर से तपाया जाता है। जब डायमंड बन जाता है तो इसकी कटिंग और पॉलिशिंग होती है। लैब डायमंड को सर्टिफिकेट के साथ बेचा जाता है।
यह प्रक्रिया HPHT (हाई प्रेशर, हाई टेम्परेचर) कहलाती है।
आर्टिफिशियल डायमंड केमिकल वेपर डिपोजिशन (CVD) टेक्नीक से भी बनता है। इसमें कोटिंग का इस्तेमाल होता है जिससे एक महीन फिल्म तैयार होती है। जिसमें एक चैंबर में मीथेन और हाइड्रोजन को 800 डिग्री सेल्सियस के तापमान में डाला जाता है और दबाव बनाया जाता है। इसके बाद लेजर या इलेक्ट्रॉन बीम से केमिकल रिएक्शन पैदा किया जाता है। जिससे ये दोनों गैस मिलकर हीरे में बदल जाती हैं। आर्टिफिशियल डायमंड को ‘सिंथेटिक डायमंड’ भी कहा जाता है।
शौक बड़ी चीज है
हर महिला असली डायमंड पहने, यह मुमकिन नहीं है। पर हर महिला का सपना एक दिन हीरा पहनने का जरूर होता है। अंग्रेजी की कहावत है कि Diamonds Are Girls’s Greatest Pal यानी हीरा औरत का सबसे बढ़िया दोस्त होता है। लेकिन महंगा होने की वजह वे अपनी ख्वाहिशों को दबाकर रखती हैं।
दरअसल एक कैरेट असली हीरा की कीमत 4 लाख रुपए ये शुरू होती है जबकि लैब में बनने वाला एक कैरेट का हीरा 1 लाख रुपए में मिल जाता है।
1950 में पहली बार डायमंड को लैब में बनाया गया था। इस आविष्कार ने महिलाओं का हीरा पहनने का सपना पूरा किया।
इस तरह की ज्वेलरी 40 हजार से शुरू हो जाती है। लैब डायमंड की तरह और नगीने भी लैब में बन रहे हैं।
ज्वेलरी इनवेस्टमेंट नहीं, फैशन बनी
ज्वेलरी डिजाइनर आकांक्षा सिंह कहती हैं कि एक जमाना था जब लोग गहनों को निवेश मानते थे और वह इन्हें बुरे वक्त में काम आने वाली संपत्ति के तौर देखते थे। लेकिन अब लोग ज्वेलरी को स्टाइल मानते हैं और ड्रेस से मैचिंग इयररिंग्स, रिंग्स और नेकलेस पहनने पर विश्वास करते हैं। इसलिए अब उनका महंगी ज्वेलरी या हीरा पहनने का शौक कम हुआ है।
अब महिलाएं फैशनेबल दिखने के लिए बजट फ्रेंडली ज्वेलरी खरीद रही हैं और लैब में तैयार की गई डायमंड ज्वेलरी उन्हें बहुत सस्ती लगती है। इसलिए लैब डायमंड की डिमांड तेजी से बढ़ी है। इसे सस्टेनेबल डायमंड भी कहते हैं।
वहीं लैब डायमंड को खरीदने में ज्वेलर भी सहज महसूस करते हैं। लैब में बने कई रंग के डायमंड सस्ते होते हैं जबकि ब्लू सफायर को श्रीलंका, रूबी को ईस्ट अफ्रीका के देश मुसाम्बेक और एम्ब्राल्ड को जामबी से मंगवाना पड़ता है।
लैब ज्वेलरी का इमोशनल कनेक्शन
ज्वेलरी डिजाइनर अंकित वर्मा ने बताया कि कुछ लोग ऑर्डर पर लैब डायमंड बनवा रहे हैं, वह अपने किसी खास की याद में। दरअसल, क्लाइंट अपने किसी प्रियजन के दुनिया से चले जाने के बाद उनकी राख से लैब डायमंड बनवा रहे हैं। उनके एक क्लाइंट ने अपनी मां की मृत्यु के बाद उनकी राख से लैब डायमंड बनवाया ताकि वह अपनी मां को यादों को इस तरह सहेज कर रख सकें।
राख या बालों से कार्बन को निकाला जाता है। लैब डायमंड बनाने के लिए 100 ग्राम राख की जरुरत पड़ती है। वहीं 2 ग्राम बालों से ही डायमंड बन सकता है। इस तरह से सिंथेटिक डायमंड बनाने में 2 लाख रुपए की कीमत देनी पड़ती है।
रूबी, स्फायर जैसा लगे लैब में बनने वाला कलरफुल डायमंड
मुगलों के समय जो ज्वेलरी बनती थी, उसमें स्पिनल नाम के स्टोन का इस्तेमाल होता है जो रूबी की तरह लाल होता है लेकिन कीमत बहुत कम होती है। तब कई लोग इसे रूबी यानी माणिक समझने की गलती कर बैठते थे।
अब लैब में बन रहे नकली डायमंड के साथ यही कहानी दोहराई जा रही है।
लैब में ट्रांसपेरेट डायमंड ही नहीं, बल्कि कलरफुल डायमंड भी बनाए जाते हैं जिन्हें देखकर कोई भी धोखा खा जाए कि यह रूबी, एमराल्ड है या स्फायर हैं। इन सिंथेटिक डायमंड से बड़े स्तर पर नामी कंपनी गहने बना रही है।
खो भी जाए तो दुख नहीं
अकांक्षा सिंह कहती हैं कि जब से सोशल मीडिया का दौर आया है, तब से महिलाएं अपनी लुक और फैशन को लेकर सतर्क हुई हैं। अब उन्हें महंगी खानदानी ज्वेलरी पसंद नहीं आती। वह सस्टेनेबल ज्वेलरी को पसंद कर रही है जो सस्ती और टिकाऊ है। यह खो भी जाए तो गम नहीं होता और फैशन का शौक भी पूरा होता है।
अब हर महिला के पास साड़ी से मैचिंग ईयरिंग, नेकलेस, पेंडेंट और चूड़िया मिल जाएंगी जो सोने की होती हैं लेकिन कीमती स्टोन नहीं लगे होते। अब पीढ़ी दर पीढ़ी जेवर देने का ट्रेंड भी बदला है।
नई नवेली दुल्हन लाइट ज्वेलरी पहनना पसंद करती है।
ज्वेलरी बढ़ाती डोपामाइन
जिस तरह रंग हैपी हॉर्मोन डोपामाइन को बढ़ाते हैं, ठीक उसी तरह कलरफुल आर्टिफिशियल स्टोन ज्वेलरी भी डोपामाइन को बढ़ाती हैं। यह हर महिला के लिए खुद को खुश रखने का आसान और सस्ता तरीका है।
आकांक्षा सिंह कहती हैं कि ज्वेलरी आपको खूबसूरत और अट्रैक्टिव ही नहीं बनाती, बल्कि आपकी पर्सनैलिटी और स्टाइल को बयां करती है।