19 मिनट पहले

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होंठ एक-दूसरे से उलझ गए: सोमा की आंख खुली, वह चीखना चाहती थी लेकिन उसकी चीख जय के होंठों तक सिमटकर रह गई

आज फिर ट्रेन मिस हो गई। बेट्टे, ये लेटलतीफी, लापरवाही 30 की उम्र तक नहीं गई तो अब क्या ही जाएगी। अब बस से जाना पड़ेगा। चलो हो सकता है कि ऊपर वाले ने कुछ सोचकर ही बस का सफर लिखा हो।

जय अपनी ऐसी हरकतों से खुद को होने वाली दिक्कतों को ऐसी ही बातों से टहलाया करता था। ट्रेन से वह आज देर शाम तक घर पहुंच जाता। अब बस से वह अगली सुबह पहुंचेगा। ज्यादा नहीं, बस एक नींद का नुकसान होगा। वो तो भला हो बुकिंग ऐप का कि एसी बस मिल गई। यह सोचते हुए वह अपनी सीट पर बैठा। आधे घंटे बाद बस चलने को हुई तो क्रॉप टॉप और लो वेस्ट जींस पहनी एक हांफती हुई लड़की बस में चढ़ी।

उस लड़की को देख न जाने क्यों जय के मन में आया कि काश यह मेरी बगल वाली सीट पर बैठ जाए। लेकिन वह लड़की जय के ठीक पीछे जाकर रुकी। उसकी सीट शायद जय के पीछे थी जिस पर एक कपल बैठा था, जिनकी एक सीट जय के साथ थी। उस कपल ने लड़की को कन्विंस कर लिया था कि वह उनकी सीट ले ले।

वह लड़की फाइनली जय के बगल में आकर बैठी तो उसे लगा कि यार अगर पता होता कि मेरी जुबान पर सरस्वती बैठी है तो मैं कुछ और मांग लेता। शायद वह मन्नत भी पूरी हो जाती।

बस चलने लगी थी। इससे पहले कि वह लड़की सो जाए, जय ने सोचा कि इस का नाम पूछ लेने में क्या हर्ज है। उसने बातचीत शुरू करने की गरज से कहा- हाय, माय नेम इज जय। लड़की ने उसे पल भर को घूरा और फिर बोली कि आई एम सोमा। जय ने तपाक से अगला सवाल दागा कि आप कहां तक जा रही हैं? लड़की कोई जवाब देती इससे पहले एक बुजुर्ग महिला उनकी सीट के पास आकर खड़ी हो गई।

जय ने उसकी ओर देखा तो वह महिला बोली कि बेटा पीछे सीट पर बहुत झटके लग रहे हैं। मैं सो नहीं पा रही। क्या तुम पीछे बैठ जाओगे? जय उदास होकर अपना सामान समेट पीछे चला गया और आंख बंद कर सोने की कोशिश करने लगा। कुछ देर में उसके कानों के पास एक कोमल आवाज गूंजती है-

एक्सक्यूज मी, क्या मैं यहां बैठ सकती हूं?जय ने आंखें खोलकर देखा है तो सोमा अपना बैग हाथ में लेकर उसकी ओर झुके हुए रिक्वेस्टिंग मोड में थी। वह सफाई देने के अंदाज में बोली- एक्चुअली वो आंटी जोर-जोर से खर्राटे ले रही है और मैं सो नहीं पा रही।

जय उसके लिए जगह बनाकर किनारे हो गया ताकि सोमा आराम से सो सके।

अब जय के लिए सोना मुश्किल था। सड़क पर जलते रोड लैम्प की लाइट बस की खिड़की से छनकर अंदर आती तो पल भर के लिए उसे सोमा की शक्ल दिखती। वह नींद में इतनी मासूम लग रही थी कि इसके लिए एक रात की नींद तो कुर्बान की ही जा सकती थी।

रात को बस का एसी तेज होने पर सोमा बस सीट पर लेटी अपने आपमें सिमटने लगी तो जय को उस पर बड़ा प्यार आ गया। उसने अपने बैग से एक बेडशीट निकाली ताकि सोमा को ठंड से बचा सके। जैसे ही वह सोमा पर बेडशीट डालने लगा, बस को एक झटका लगा और जय सोमा के ऊपर आ गया। दोनों के होंठ एक-दूसरे से उलझ गए। ठीक उसी पल सोमा की आंख खुली। वह चीखना चाहती थी लेकिन उसकी चीख जय के होंठों तक सिमटकर रह गई।

पल के सौवें हिस्से में जैसे जय को ख्याल आया कि कुछ गलत हो गया है। वह तुंरत अलग हटकर खड़ा हो गया। सोमा की आंखों में हजारों सवाल और अविश्वास तैर रहा था। जय समझ चुका था कि गड़बड़ हो गई है।

उसने सोमा को समझाने की कोशिश की कि वह उसे बेडशीट ओढ़ा रहा था ताकि उसे ठंड न लगे। दोनों के बीच पैदा हुए अविश्वास ने सोमा के कानों में बात पहुंचाई कि यह चादर की ओट में किस करना चाहता था ताकि कोई और न देख सके।

जय ने कहा कि मैंने कुछ नहीं किया। सारी गड़बड़ गड्ढे ने की है। सोमा ने सोचा कि अच्छा हुआ गड्ढा आ गया। वरना ये न जाने कब से अपनी आग बुझा रहा होगा।

सोमा ने शोर मचाकर बस रुकवाई। जय हाथ जोड़े उसके सामने खड़ा था, लेकिन सोमा गुस्से में कांप रही थी।

लोगों के जागने और बस की लाइट जलने तक जय बैग उठाकर बस से नीचे उतरा और नाक की सीध में गिरते-पड़ते दौड़ लगा ली।

इस हादसे के बाद कंडक्टर ने सोमा को सबसे आगे वाली सीट दे दी। बस में लाइट बंद नहीं हुई। अच्छा-खासा तमाशा बन चुका था। जो लोग सफर में नींद न आने से परेशान थे, उनको रात काटने के लिए मसाला मिल चुका था।

मन ही मन जय को हजार गालियां देती हुई सोमा ने अपना मुंह कवर कर लिया था। जय तो भाग चुका था। अब सब लड़की की शक्ल देखना चाहते थे ताकि उससे सिम्पैथी जता सकें या कुछ ऐसे थे जो उसकी शक्ल देखकर पूरे घटनाक्रम को अपने दिमाग में दोहराना चाहते थे।

सोमा को पछतावा हो रहा था कि उसने जय को थप्पड़ मारकर मामला वहीं रफादफा कर देना था। इसमें उसकी क्या गलती है कि सब उसे ऐसे घूर रहे हैं? वो क्यों इनकी सवालिया नजरें झेले? गुस्से में उसकी आंखों से पानी बहने लगा।

सोमा को चिंता हुई कि उससे पहले यह बात उसके शहर और मोहल्ले तक न पहुंच जाए। ऐसी बातों के पैर तो होते नहीं। ये बातें तो हवा पर सवार होकर उड़ती हैं। उसे दादी की कही बात याद हो आई, ‘बड़े शहर जा रही हो। लड़कियां अपने साथ बदनामी की पुड़िया लेकर चलती हैं। जरा सी सार-संभाल नहीं की तो पुड़िया की गांठ खुली और बदनामी दुनिया भर में फैल गई।’

सोमा अपने स्टॉप से दो स्टॉप पहले उतर गई और भाई को फोन कर वहीं बुला लिया। उसने पूछा तो सोमा ने बस खराब होने का बहाना बना दिया। घर पहुंचकर भाई की जीप रुके, सोमा उससे पहले ही चलती जीप से लगभग कूदकर उतरी। उसे पहचानने में गलती नहीं हो सकती थी। एक लड़का हाथ जोड़े खड़ा था। भले ही उसकी पीठ दिख रही थी, लेकिन यह जय ही था।

सोमा ने पीछे से जाकर उसका कॉलर पकड़ लिया लेकिन उसे तुरंत छोड़ना पड़ा क्योंकि उसके पापा उससे हंसकर बात कर रहे थे। उधर जय की हालत ‘काटो तो खून नहीं’ जैसी थी। उन्होंने सोमा और जय से पूछा कि क्या तुम एक-दूसरे को जानते हो?

जय हकला रहा था और सोमा बिना कुछ कहे पैर पटकते हुए अंदर चली गई थी। अंदर जाकर उसे पता चला कि यह लड़का उसके पापा के नए बिजनेस पार्टनर रमेश अंकल का बेटा है। रमेश अंकल की तबीयत खराब थी, इसलिए यह सोमा के भाई की शादी में मदद करने के लिए आया था।

सोमा का मन किया इसकी हरकत चीख-चीखकर बता दे लेकिन वह बस में सबकी नजरों को याद कर रुक गई। उसने सोचा कि इससे मैं खुद डील करूंगी। उधर जय सोमा को अकेले देखकर उसके सामने आ गया और हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगा।

सोमा जोर से चीखी कि कितनी बार कहोगे कि तुम्हारा इरादा गलत नहीं था। अगर गलत नहीं था तो वहां से भागे क्यों?

जय ने कहा कि अगर भागता नहीं तो भीड़ पीट-पीटकर मार देती। घर तक बात पहुंच जाती और पापा ये बर्दाश्त नहीं कर पाते कि उनके बेटे ने ऐसी हरकत की है। सोमा अपने पापा को आते देख दांत पीसते हुए वहां से निकल गई।

सोमा के पिता ने जय से कहा कि अगले कुछ दिन तुम शादी का हिसाब-किताब देखने के साथ ही शादी की शॉपिंग भी करवा देना। मैं और मेरा बेटा यहां घर का काम संभाल लेंगे। जय ‘ओके अंकल’ कहकर वहां से निकल गया।

एक रात और पूरे दिन का जगा जय अगली सुबह अपने फोन की कॉलर ट्यून से उठा। उसने झल्लाकर कहा कि कौन है इतनी सुबह-सुबह?

सामने से बर्फ सी ठंडी आवाज आई। मैं सोमा बोल रही हूं। जय बिस्तर से गिरते-गिरते बचा। उसने कहा- जी बताइए।

सोमा ने कहा- पापा ने तुमको शॉपिंग कराने को कहा था। तुम अभी तक घर क्यों नहीं आए। क्या जानबूझकर मुझसे कॉल करवाना चाहते थे?

जय ने ‘15 मिनट’ बोलकर फोन काटा और वॉशरूम में घुस गया। उसे पता था कि कुछ भी कह लो सोमा यकीन तो करेगी नहीं।

जैसे ही वह फ्रेश होकर निकला तो देखा कि कार गंदी पड़ी है। उसने बाइक की चाबी ली और चिल्लाते हुए बोला- मॉम कार साफ करवा देना। कुछ दिन इसकी जरूरत पड़ेगी।

जय को बाइक पर देख सोमा गुस्से से पैर पटकती हुई अंदर चली गई और साड़ी चेंज करके जींस-टॉप में आई और धम्म से बाइक पर बैठ गई। जय की सिट्टी-पिट्टी गुम थी।

दिन भर धूप में खाक छानते-छानते लास्ट दुकान में शॉपिंग करने में ज्यादा टाइम लग गया था। जय की बाइक नो-पार्किंग एरिया से ट्रैफिक पुलिस टो करके ले गई। सोमा को यह पता चलते ही वह वापस दुकान में चली गई। जैसे-तैसे दोस्त से तुरंत कार मंगवाकर जय सोमा को बुलाने अंदर गया।

सोमा ने तंज कसते हुए कहा, अच्छी जान-पहचान बनाई है। इतनी जल्दी दोस्त से कार मंगवा ली। दोस्त भी तुम्हारी तरह होंगे।

जय हंसते हुए बोला- मेरी ही कार है। पापा को गिफ्ट की थी। इसलिए जल्दी आ गई।

यह सुनना था कि सोमा का गुस्सा फिर निकल पड़ा- तुम एक नंबर के बेशर्म हो। कार होते हुए मुझे दिन भर धूप में जलाया। बाइक पर क्यों आए थे, मैं सब अच्छे से समझती हूं।

जय ने उसे लाख समझाना चाहा कि कार की वॉशिंग होनी थी, इसलिए सुबह नहीं ला सका। उसे पता था कि सोमा अब भी बस वाली बात को लेकर गुस्से में थी। इसलिए वह मानेगी वही, जो उसे मानना है।

शादी की शॉपिंग पूरी कर कार्ड बांटने के लिए भी सोमा के पापा ने जय को उसके साथ भेजा। उन्हें घर लौटते हुए रात हो गई थी। सोमा के पापा ने जय को अपने यहीं रोक लिया था क्योंकि कल सुबह सोमा और जय की फैमिली को उनके घर से 20 किलोमीटर दूर एक पूजा में जाना था।

शाम को छत पर ड्रिंक करते समय जय ने सोमा के भाई और पापा को बस में हुई सारी वारदात बताई। जय ने कहा कि अंकल मुझे तो सोमा देखते ही पसंद आ गई थी और अपनी पसंद की लड़की के साथ ऐसी ओछी हरकत कर कौन बेवकूफ करेगा? लेकिन सोमा उस दिन के बाद से हमारे बीच हर चीज को शक की नजर से देख रही है और हमारे बीच गलतफहमी बढ़ती जा रही है।

जय ने कहा, मुझे पता है कि मैं कुछ भी कर लूं, सोमा के मन की गलतफहमी कभी दूर नहीं कर पाऊंगा। लेकिन मेरे मन में इस बात को लेकर बड़ा बोझ था। मैं आपमें से किसी से भी नजरें नहीं मिला पा रहा था। आप तो कम से कम मुझ पर यकीन करते हैं न?

सोमा के पिता ने कहा- तुम्हारे मन में पाप नहीं है। इसलिए तुमने हमें यह बात बताई। वरना हमें तो पता ही नहीं चलता और तुम चाहते तो इसे छिपा सकते थे। हमें तुम पर यकीन है।

उन तीनों को नहीं पता था कि दीवार के पीछे खड़ी सोमा यह बात सुन रही थी। उसके चेहरे पर भी सच जानकर सुकून भरी मुस्कुराहट और आंखों में आंसू थे। जैसे किसी आरोपी पर जज को भरोसा हो और उसके निर्दोष साबित होने से जज को खुशी हो।

उन तीनों के सामने आने से पहले सोमा ने अपने आंसू पोछे और कहा- पापा मेरे लिए भी एक ड्रिंक बनाइए और इस इंसान को हमारे घर में मत सुलाना। आजकल किसी का भी भरोसा नहीं कर सकते।

यह सुनते ही जय फिर से रूआंसा हो गया और उसके पापा और भाई की तरफ देखने लगा। उसकी शक्ल देखने के बाद सोमा बड़ी मुश्किल से अपनी हंसी कंट्रोल कर सकी। उसने मन ही मन कहा- बच्चू जितने दिन तुमने मुझे परेशान रखा है मैं उसका गिन-गिन कर बदला लूंगी।

-गीतांजलि

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