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मुंबई18 मिनट पहले

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मराठा समुदाय की आरक्षण की मांगों पर चर्चा के लिए आज महाराष्ट्र विधानसभा का एक विशेष सत्र बुलाया गया है। - Dainik Bhaskar

मराठा समुदाय की आरक्षण की मांगों पर चर्चा के लिए आज महाराष्ट्र विधानसभा का एक विशेष सत्र बुलाया गया है।

महाराष्ट्र कैबिनेट ने मंगलवार (20 फरवरी) को मराठाओं को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के बिल के मसौदे को मंजूरी दे दी है। सरकार के प्रस्ताव में मराठा समुदाय के लिए शिक्षा और रोजगार में 10 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की गई है। इससे राज्य में मराठाओं के रिजर्वेशन की सीमा 50 प्रतिशत से ऊपर हो जाएगी।

यह बिल अब विधान परिषद और फिर विधानसभा में पेश किया जाएगा। मराठा आरक्षण को लेकर आज विधानमंडल का विशेष सत्र आयोजित किया गया है। मराठा आरक्षण पर राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (SEBC) की रिपोर्ट दोपहर 1 बजे विधानमंडल के पटल पर रखी जाएगी।

हालांकि, मुद्दे पर मराठा आंदोलन के नेता मनोज जरांगे पाटिल ने कहा कि मसौदे में मराठाओं की मांग को पूरा नहीं किया गया है। आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत के ऊपर जाएगी और सुप्रीम कोर्ट इसे रद्द कर देगा। हमें ऐसा आरक्षण चाहिए जो ओबीसी कोटे से हो और 50 प्रतिशत के नीचे रहे।

जरांगे ने कहा- सरकार हमें मूर्ख न बनाए। अगर ओबीसी कोटे से मराठाओं को आरक्षण नहीं मिला तो हमारा आंदोलन और तेज होगा। हम विधानमंडल के विशेष सत्र में हमारी मांगों पर विचार हो रहा है या नहीं, हम देखेंगे।

महाराष्ट्र पिछड़ा वर्ग आयोग ने सौंपी मराठा सर्वे रिपोर्ट
महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने शुक्रवार (16 फरवरी) को मराठा समुदाय के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक पिछड़ेपन पर आधारित सर्वे रिपोर्ट सरकार सौंपी थी। आयोग के अध्यक्ष रिटायर जस्टिस सुनील शुक्रे ने सीएम शिंदे को रिपोर्ट सौंपी, जिसमें 2.5 करोड़ परिवारों को शामिल किया गया है।

रिपोर्ट पर CM शिंदे ऑफिस की तरफ से बयान जारी करते हुए कहा गया था कि सर्वे के निष्कर्षों पर राज्य कैबिनेट की बैठक में 20 फरवरी को चर्चा की जाएगी।

कुनबी समुदाय कौन हैं?
कुनबी, कृषि से जुड़ा एक समुदाय है, जिसे महाराष्ट्र में अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की कैटेगरी में रखा गया है। कुनबी समुदाय को शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण लाभ का मिलता है। महाराष्ट्र कैबिनेट ने पिछले महीने फैसला किया था कि मराठवाड़ा क्षेत्र के उन मराठों को कुनबी जाति प्रमाण पत्र जारी किए जाएंगे जिनके पास निजाम युग के रेवेन्यू और एजुकेशनल डॉक्यूमेंट्स मौजूद हैं और जिनमें उन्हें कुनबी लिखा गया हो।

मराठा आंदोलन के नेता मनोज जरांगे पिछले 10 दिन से जालना में भूख हड़ताल पर बैठे हैं।

मराठा आंदोलन के नेता मनोज जरांगे पिछले 10 दिन से जालना में भूख हड़ताल पर बैठे हैं।

27 जनवरी को मुंबई में CM शिंदे ने तुड़वाया था अनशन

27 जनवरी महाराष्ट्र के CM एकनाथ शिंदे शनिवार को नवी मुंबई पहुंचे। उन्होंने जरांगे को गले लगाया और जूस पिलाकर उनका अनशन खत्म कराया।

27 जनवरी महाराष्ट्र के CM एकनाथ शिंदे शनिवार को नवी मुंबई पहुंचे। उन्होंने जरांगे को गले लगाया और जूस पिलाकर उनका अनशन खत्म कराया।

इससे पहले मनोज जरांगे ने 20 जनवरी से 26 जनवरी तक जालना से नवी मुंबई तक यात्रा निकाल थी। इसके बाद वे अनशन पर बैठ गए थे। 27 जनवरी को सीएम एकनाथ शिंदे ने म​​​नोज जरांगे को जूस पिलाकर अनशन खत्म करवाया था और मराठा आंदोलन से जुड़े ड्राफ्ट अध्यादेश की कॉपी सौंपी थी। आंदोलन खत्म करने के बाद जरांगे ने कहा था कि हम 4 महीने से मराठा आरक्षण के लिए संघर्ष कर रहे थे।

मनोज का कहना था- मराठा आरक्षण के लिए करीब 350 युवाओं ने आत्महत्या की। आज उनका सपना साकार हुआ। अब सरकार पर आरक्षण लागू करने की जिम्मेदारी है। अगर इस बार धोखा हुआ तो मैं मुंबई के आजाद मैदान आ जाऊंगा। पूरी खबर पढ़े

मराठा आरक्षण का इतिहास
मराठा खुद को कुनबी समुदाय का बताते हैं। इसी के आधार पर वे सरकार से आरक्षण की मांग कर रहे हैं। इसकी नींव पड़ी 26 जुलाई 1902 को, जब छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज और कोल्हापुर के महाराजा छत्रपति शाहूजी ने एक फरमान जारी कर कहा कि उनके राज्य में जो भी सरकारी पद खाली हैं, उनमें 50% आरक्षण मराठा, कुनबी और अन्य पिछड़े समूहों को दिया जाए।

इसके बाद 1942 से 1952 तक बॉम्बे सरकार के दौरान भी मराठा समुदाय को 10 साल तक आरक्षण मिला था। लेकिन, फिर मामला ठंडा पड़ गया। आजादी के बाद मराठा आरक्षण के लिए पहला संघर्ष मजदूर नेता अन्नासाहेब पाटिल ने शुरू किया। उन्होंने ही अखिल भारतीय मराठा महासंघ की स्थापना की थी। 22 मार्च 1982 को अन्नासाहेब पाटिल ने मुंबई में मराठा आरक्षण समेत अन्य 11 मांगों के साथ पहला मार्च निकाला था।

उस समय महाराष्ट्र में कांग्रेस (आई) सत्ता में थी और बाबासाहेब भोसले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे। विपक्षी दल के नेता शरद पवार थे। शरद पवार तब कांग्रेस (एस) पार्टी का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। मुख्यमंत्री ने आश्वासन तो दिया, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाए। इससे अन्नासाहेब नाराज हो गए।

अगले ही दिन 23 मार्च 1982 को उन्होंने अपने सिर में गोली मारकर आत्महत्या कर ली। इसके बाद राजनीति शुरू हो गई। सरकारें गिरने-बनने लगीं और इस राजनीति में मराठा आरक्षण का मुद्दा ठंडा पड़ गया।

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