2 घंटे पहले

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महेश्वर में देखा उसे। मैरून रंग की चंदेरी साड़ी पहनी हुई थी जिस पर सुनहरी बिंदियां थीं और किनारी जरी बॉर्डर की थी। बहुत ही प्यारी साड़ी थी। असल में साड़ी की ही वजह से मेरा ध्यान उस पर गया था। मैंने एक दुकान से ही निकलते देखा था उसे। मन हुआ कि पूछूं कि कहां से ली है साड़ी… चंदेरी से या महेश्वर से ही। यहां भी बहुत सारी दुकानें हैं। मां के लिए एक साड़ी खरीदना चाहता था मैं। इंदौर राज्य के अंतिम शासक महाराजा यशवंतराव होल्कर के इकलौते पुत्र युवराज रिचर्ड ने ‘रेवा सोसाइटी’ नामक एक संस्था का निर्माण किया जो आज भी महेश्वर किले में ही महेश्वरी साड़ियां बनाती है। साड़ियां बनते मैं कल देख भी आया था।

मैं हूं घुमक्कड़ी प्राणी और मध्य प्रदेश के कई स्थानों का भ्रमण कर चुका हूं। नहीं, नहीं, यूं ही मस्तमौला टाइप या गैर-जिम्मेदार इंसान नहीं हूं। मेरी अपनी स्टार्टअप कंपनी है और वह काफी हद तक स्थापित भी हो चुकी है। संभालने के लिए लोग हैं जिनसे मैं वीडियो कॉल के जरिए हमेशा संपर्क में रहता हूं। घूमने का कीड़ा है मेरे अंदर यह कह सकता हूं।

29 साल का हो गया हूं, पर अभी तक कुंवारा हूं और इस बात को लेकर मेरे घरवाले, खासकर मां हमेशा परेशान रहती हैं और मुझे किसी न किसी बहाने इस बात के लिए सुनाती भी रहती हैं। कुछ रिश्ते उन्होंने देखे भी थे, मेरे लिए, लेकिन कोई ऐसी लड़की नहीं मिली जिसे देख सारे वाद्य एक साथ कोई मीठी सी धुन छेड़ दें दिल के अंदर।

दो वर्ष स्टार्टअप के लिए फंडिंग ढूंढने में निकल गए और अब बिजनेस को बनाए रखने के लिए मैं व्यस्त रहता हूं। हां घूमने के लिए जरूर समय निकाल लेता हूं महीने-दो महीने में एक बार। और तब भी मां सुनाए बगैर नहीं रहतीं कि ‘शादी हो गई होती तो अकेले घूमने के बजाय बीवी के साथ जाता।’

वह भी क्या यहां घूमने आई है? मन में सवाल आया। लेकिन मैं क्यों इतना व्याकुल हो रहा हूं यह जानने के लिए? हो सकता है वह यहीं रहती हो, मैंने अपना सिर झटका और अहिल्या देवी फोर्ट देखने के बाद नर्मदा घाट चला आया बोट राइड के लिए।

शाम गहरा रही थी। क्षितिज पर धीरे-धीरे ढलते सूरज का अक्स नर्मदा नदी के पानी पर किसी लहराती रोशनी की तरह पड़ रहा था। जब सूरज अस्त होने वाला होता है, जब पक्षी चहचहाते हुए खुशी से भरे अपने नीड़ों में लौटने को आसमान में उड़ान भर रहे होते हैं और हवा के झोंके पानी का स्पर्श करने के बाद चेहरे को आकर छूते हैं और शरीर में एक सिहरन सी भर देते हैं, ऐसे समय में ही बोट राइड का आनंद आता है। और सचमुच मैं उस समय अपनी सुध-बुध खो रहा था। सृष्टि के उस नायाब पल को महसूस करने के लिए आंखें बंद करने ही वाला था कि मैरून रंग की साड़ी का पल्ला मुझे लहराता दिखा।

हां वही थी… सबसे आगे बैठी थी बोट में। मैं उसे देखने के लिए कभी आगे होता, कभी पीछे। नहीं, साथ तो कोई नहीं लग रहा उसके इस समय भी। यानी अकेली ही है। हो सकता है मेरी तरह सोलो ट्रैवलर हो! न जाने क्यों मेरा मन उसके बारे में जानना चाहता था? इतनी बेचैनी तो इससे पहले कभी नहीं हुई थी किसी लड़की के बारे में जानने की। मेरे पास खुद को देने के लिए कोई जवाब नहीं था। यही उम्र होगी कोई 26-27 साल, सांवली रंगत, साधारण नैन-नक्श, पर गजब का आकर्षण। मां देखतीं तो जरूर कहतीं, ‘क्या अच्छा दिखा है रे तुझे इसमें नीरज जो यूं पगला रहा है? एकदम मामूली सी है और तू छहरा एकदम गोरा-चिट्टा, गठे हुए शरीर और लंबे कद का नौजवान। इसकी तो कद-काठी भी ऐसी नहीं जिस पर रश्क किया जा सके।’

मां को तो खैर उसके अंदर कोई कमी दिखती नहीं और उनके लिए तो उससे सुंदर कोई है ही नहीं और लायक भी। मुझे लग रहा था जैसे मैं उसकी ओर खिंचा जा रहा हूं। क्यों? बताया तो कोई जवाब नहीं है मेरे पास। न जान, न पहचान। न कोई संवाद, यहां तक कि उसका मुझ पर ध्यान तक नहीं गया होगा। भीतर चल रही उथल-पुथल को शांत करने के लिए मन हुआ कि उठकर आगे चला जाऊं और किसी बहाने से उससे बात करूं। लेकिन तब तक नाव में बैठा एक गाइड महेश्वर का इतिहास बताने लगा। कुछ पल बाद हम किनारे पर पहुंच गए थे।

और क्या देखना चाहिए, इसके बारे में मैं गाइड से पूछ ही रहा था कि इतने में वह न जाने कहां गायब हो गई। मैं तेजी से आगे बढ़ा तो दूर से उसका पल्लू ही दिखा जो हवा में लहरा रहा था। पता नहीं फिर मुलाकात होगी या नहीं, यह सोचता हुआ मैं होटल लौट आया। रात भर सपने में उसका गोलाकार चेहरा और बालों की लट ही घूमती रही जिन्हें बार-बार पीछे धकेलने की जैसे उसे आदत थी।

सुबह जलेश्वर मंदिर के लिए निकला। जलेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित पहाड़ी पर स्थित है। यहां से महेश्वर नदी और नर्मदा नदी का भी संगम देखा जा सकता है। नर्मदा के किनारे एक छोटे से रास्ते से होते हुए मैं अपनी सोच में मग्न चल रहा था। मन में उसी का ख्याल बसा हुआ था। तभी किसी की सुरीली आवाज सुन पीछे मुड़कर देखा तो दिल की धड़कनों ने एक मीठी संगति देनी शुरू कर दी। वही थी। एक बच्चा जो स्कूल जा रहा था, उसी से बात कर रही थी। फिर पर्स में से टॉफियां निकाल कर उसकी हथेलियां में भर दीं। आज उसने नीले रंग की कुर्ती और टाइट पैंट पहनी हुई थी। ऊपर से प्रिटेंड स्टोल डाला हुआ था जो हवा से लहरा रहा था। साड़ी में जितनी अच्छी लग रही थी उतनी ही यह ड्रेस भी उस पर फब रही थी।

चलते-चलते वह बिल्कुल मेरे करीब आ गई थी। “अरे आप तो वही हैं न जो कल बोट राइड में थे? और उससे पहले होल्कर फोर्ट में?” सुरीली आवाज मेरे कानों से गुजरती मेरे दिल के अंदर जाकर सरगम बजाने लगी। जलतरंग कहीं आसपास बजता महसूस हुआ। यानी इसका ध्यान गया था मुझ पर। मैं किसी तरह से अपनी खुशी व्यक्त करना चाहता था, लेकिन उस समय तो उसे जवाब देने के लिए शब्द भी नहीं निकले। मैंने केवल हां में सिर हिला दिया।

“छोटा शहर है, लेकिन खूबसूरत है।” शुक्र है उसने बातों का सिलसिला कायम रखा। रास्ता इतना संकरा था कि वह मेरे करीब चल रही थी अब। मेरे लिए तो खुद पर काबू रखना ही मुश्किल हो रहा था।

उसकी बात यह तो समझ आ गया कि वह यहां नहीं रहती है। “घूमने आई हैं क्या?” मैंने पूछ ही लिया।

“आई तो काम के सिलसिले में हूं, पर इस बहाने घूमना भी हो जाता है,” वह मुस्कराई। सामने पत्थर आने की वजह से उसका पांव मुड़ा तो उसने मेरी कलाई थाम ली। यह एक सहज प्रतिक्रिया थी। चलते-चलते गिरने लगें तो हम साथ वाले का हाथ पकड़ ही लेते हैं। पर मेरे लिए उसका वह स्पर्श किसी फूल की मखमली पखुंड़ियां छू जाने जैसा था! सांसों में खुशबू सी घुलने लगी।

अचानक मुझे जवाब मिल गया था कि मैं क्यों व्याकुल था उसके बारे में जानने के लिए? कुछ एहसास जाग गए थे…प्रेम, प्यार, इश्क…या किसी का अच्छा लगना…कोई पसंद आ जाना…कुछ भी कहा जा सकता है।

“सॉरी,” कह उसने हाथ हटा लिया। “देहरादून में मेरा बुटीक है। जगह-जगह से साड़ियां और ड्रेस मैटिरियल खरीदकर ले जाती हूं और बेचती हूं। साड़ियां ज्यादा, क्योंकि मुझे खुद उन्हें पहनना अच्छा लगता है। साड़ी का लहराता पल्लू उड़ान भरने जैसी फीलिंग देता है। और मैं खुले आकाश में उड़ना चाहती हूं।”

मैं कहना चाहता था कि तुम साड़ी में गजब लगती हो। “मेरी बातें गूढ़ लग रही होंगी? कभी-कभी मेरे अंदर की संवेदनशीलता मुझे दार्शनिक बना देती है। पति को टाइम नहीं मिलता, इसलिए अकेले ही यहां-वहां जाती हूं। मेरी उड़ान पर रोक नहीं लगाते वह। बातों-बातों में जलेश्वर मंदिर आ भी गया।” कहते हुए वह तेज कदम रखते हुए आगे बढ़ गई।

मैं उसे जाते देखता रहा। कुछ देर के लिए कदम जड़ हो गए। वह शादीशुदा है…मैं धीरे-धीरे चलने लगा। जलतरंग अभी भी आसपास बज रहा था। कोई अच्छा लगे तो क्या किया जा सकता है? उसका स्टोल पल्लू की तरह लहराता मुझे दिख रहा था!

-सुमन बाजपेयी

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