मणिपुर47 मिनट पहले

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कुकी समुदाय की आइरीन महीने में एक बार अपने मैतेई बच्चों से मिलती हैं। - Dainik Bhaskar

कुकी समुदाय की आइरीन महीने में एक बार अपने मैतेई बच्चों से मिलती हैं।

मणिपुर में मैतेई और कुकी समुदाय के बीच चल रही जातीय हिंसा को एक साल हो चुका है। इस हिंसा के चलते राज्य में दोनों समुदाय के बीच अलगाव का संकट लगातार जारी है। जहां मैतेई इंफाल घाटी में रह रहे हैं वहीं कुकी समुदाय पहाड़ी इलाकों में शरण लेने को मजबूर हैं।

इस हिंसा का बड़ा खामियाजा मैतेई और कुकी समुदाय के अंतर जनजाति जोड़ों को भी उठाना पड़ रहा है। मई 2023 से अब तक ऐसे ही करीब 200 लोग जान गंवा चुके हैं। वहीं हजारों लोग प्रभावित हैं।

हिंसा से पहले तक मणिपुर में बड़ी संख्या में दोनों समुदाय के बीच वैवाहिक संबंध होते थे, लेकिन हिंसा के बाद अलग-अलग समुदाय से आने वाले कई जोड़ों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।

बच्चों-पति से मिलने हर महीने 15 घंटे का सफर तय करके मिजोरम जाती है पत्नी

कुकी समुदाय से आने वाली आइरीन हाओकिप 42 साल की हैं। हाओकिप शादी के बाद से इंफाल में रह रहीं थी। लेकिन हिंसा के बाद उन्हें कुकी बहुल इलाके चुराचांदपुर लौटना पड़ा। जबकि उनके पति, पांच साल का बेटा और तीन साल की बेटी इंफाल में ही रह रहे हैं।

हाओकिप ने PTI को बताया “मेरे पति घर बनाने का काम करते थे। विष्णुपुर में जब वे मेरे पड़ोस में काम कर रहे थे तब हमें प्यार हो गया और 2018 में हमने शादी कर ली।

विष्णुपुर मैतेई बहुल इंफाल और कुकी बहुल चुराचांदपुर के बीच का बफर जोन है जिसमें दोनों समुदाय के लोग रहते थे। हाओकिप बताती हैं कि घाटी में हिंसा के बाद मैं सुरक्षा कारणों के चलते माता-पिता के घर चुराचांदपुर लौट आई। मेरे बच्चे मैतेई हैं ऐसे में उन्हें साथ नहीं ला सकी। अब महीने में एक बार 15 घंटे का सफर करके पड़ोसी राज्य मिजोरम अपने बच्चों से मिलने जाती हैं। वहां पति और बच्चे भी पहुंचते हैं।

हाओकिप बताती हैं कि मिजोरम में महीने में एक बार अपने बिछड़े परिवार से मिलना उन जैसे कई लोगों के लिए एकमात्र विकल्प बचा है।

11 महीने पहले पिता बने, बेटी को आज तक नहीं देखा

कुकी समुदाय से आने वाले लैशराम सिंह की कहानी भी हाओकिप से काफी मिलती जुलती है। लैशराम साल 2022 में अपनी पत्नी के गर्भावस्था का पता लगने के बाद जून 2023 में अपने पहले बच्चे के जन्म का इंतजार कर रहे थे।

लेकिन मई में हिंसा भड़क गई। जिसके बाद लैशराम को अन्य कुकी लोगों की तरह पहाड़ियों की तरफ लौटना पड़ा। जबकि उनकी पत्नी अचानबा जो मैतेई हैं उन्हें इंफाल घाटी के राहत शिविर में शरण लेनी पड़ी। जहां जून 2023 में उन्होंने एक बेटी जन्म दिया। लैशराम जन्म के 11 महीने बाद भी अपनी बेटी से नहीं मिल सके हैं।

पति पर परिवार दूसरी शादी का दवाब बना रहा

लैशराम की पत्नी अचानबा को दूरी के कारण शादी टूटने की चिंता सता रही है। अचानबा बताती हैं कि मेरे पति है लेकिन फिर भी मैं सिंगल मदर के तौर पर जीने के लिए मजबूर हूं। वह कभी-कभी मुझे फोन करते हैं, मैं उन्हें तस्वीरें भेजती हूं लेकिन हमारे बीच बातचीत धीरे धीरे कम हो रही है। मुझे डर है कि अगर लंबे समय तक ऐसा चलता रहा तो पति का परिवार उनकी शादी किसी कुकी लड़की से करवा देगा। इस बात को लेकर अक्सर हम दोनों में झगड़ा भी होता है।

निर्मला एक कुकी हैं जो हिंसा के पहले तक महिला बाजार में दुकान चलाती थीं। लेकिन अब पहाड़ियों में अपने भैया-भाभी के घर रहती हैं। उनका बेटा और पति इंफाल में रहता है। पति उन्हें शुरू में पैसे भेजता था लेकिन अब बंद कर दिया है।

निर्मला बताती हैं कि उनकी शादी को 15 साल हो गए हैं। हमारी घरेलू आय में मेरी दुकान का बड़ा हिस्सा था। लेकिन हिंसा के बाद से दुकान बंद है अब में छोटी-मोटी नौकरी करती हूं लेकिन मुख्य रूप से अपने भाई पर निर्भर हूं। हालात नहीं सुधरे तो राहत शिविर में जाना पड़ेगा।

पेमा डिंपू एक मैतेई महिला और उनके पति कुकी है। डिंपू इम्फाल घाटी में रहती हैं जबकि पति पहाड़ों में हैं। डिंपू का मानना है कि रिश्ते को बचाने का अब एकमात्र रास्ता यही है कि हम किसी और राज्य में जाकर बस जाएं और एक नया जीवन शुरू करें।

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