नई दिल्ली7 घंटे पहलेलेखक: मरजिया जाफर

  • कॉपी लिंक

असम के बाद उत्तराखंड विधानसभा में 7 फरवरी को दो दिन की बहस के बाद समान नागरिक संहिता (UCC) बिल 2024 पारित किया गया। इस बिल के कानून बनते ही उत्तराखंड में एक से ज्यादा शादी करने पर रोक लग जाएगी।

राज्य में यह बिल सभी समुदायों में विवाह और तलाक के नियमों को एक समान रखने के लिए तैयार किया गया है। इस कानून से सिर्फ आदिवासियों को छूट मिली है। पति या पत्नी के जीवित रहते हुए दूसरी शादी गैर-कानूनी मानी जाएगी। इस कानून के दायरे में मुस्लिम समाज भी आएगा।

हालांकि यह धारा 1955 के हिंदू विवाह अधिनियम में पहले से ही मौजूद थी, लेकिन मुस्लिम पर्सनल लॉ अब तक पुरुष को चार पत्नियां रखने की अनुमति देता रहा है। वहीं असम सरकार ने बहुविवाह पर रोक लगाने के लिए एक समिति बनाई है जिसे 6 महीने का समय सरकार को रिपोर्ट सौंपने के लिए दिया गया है। समिति अनुच्छेद 25 के साथ-साथ मुस्लिम पर्सनल लॉ अधिनियम, 1937 के प्रावधानों की भी जांच करेगी।

हिंदू और बौद्ध धर्म में भी बहुविवाह

भारत में बहुविवाह का चलन सिर्फ मुस्लिमों में ही नहीं है, बल्कि दूसरे धार्मिक समूहों में भी यह समस्या देखने को मिलती है। भारत में 2019-21 के दौरान 1.4 फीसदी बहुविवाह के मामले आए। इसी तरह नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के एक सर्वे के बाद जो हकीकत सामने आई है उसे देखकर हैरान होना स्वाभाविक। एनएफएचएस-2019-21 की 5वीं रिपोर्ट पर इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेस (IIPS) ने एक स्टडी की। जिसे ग्राफिक में देख सकते हैं।

आखिर बहुविवाह का मतलब क्या है और इसे करने की क्या शर्तें हैं?

बहुविवाह शब्द ग्रीक के पोलुगा मियां पोलोगेमी का हिंदी अनुवाद है। पुरुष का एक से ज्यादा शादी करना ही बहुविवाह कहलाता है। वहीं एक महिला अगर एक समय में एक से ज्यादा पुरुषों से विवाह करती है, तो इसे बहुपति विवाह कहते हैं।

हिंदू धर्म में एक से ज्यादा शादी करने की क्या शर्तें हैं

हिंदू धर्म में एक से ज्यादा विवाह को गलत ठहराया गया है। हिंदू धर्म के मुताबिक विवाह सात जन्मों का संबंध होता है। लेकिन साल 1955 में हिंदू मैरिज एक्ट बनाया गया जिसमें तीन शर्त पर एक से ज्यादा शादी की छूट दी गई।

पहली शर्त- पहली पत्नी की मृत्यु होने पर।

दूसरी शर्त- पत्नी से तलाक होने पर।

तीसरा शर्त- पत्नी का 7 साल तक गायब रहना।

ईसाई धर्म में शादी समझौता और संस्कार

ईसाई धर्म में शादी को समझौता और संस्कार दोनों माना गया है। चर्च में शादी के दौरान दूल्हा और दुल्हन अंतिम सांस तक एक-दूसरे का साथ निभाने की कसम लेते हैं। क्रिश्चियन मैरिज एक्ट 1872 के मुताबिक ईसाइयों में दूसरी शादी करने पर पाबंदी है।

तुर्किए, ट्यूनीशिया में बहुविवाह पर बैन

तुर्किए और ट्यूनीशिया जैसे मुस्लिम देशों ने बहुविवाह प्रथा पर पाबंदी है।

संयुक्त राष्ट्र बहुविवाह को ‘महिलाओं के लिए भेदभाव करार देकर इसे खत्म करने की मांग करता है।

इस्लाम में एक से ज्यादा शादी करने की क्या शर्तें हैं

मौलाना फरमान अली कहते हैं कि इस्लाम में शादी समझौता और नस्ल को आगे बढ़ाने का जरिया है। शरियत और मुस्लिम पर्सनल लॉ 4 शादियों की मंजूरी देता है। अपनी पत्नियों के जिंदा रहते व्यक्ति चार शादियां कर सकता है। कुरान ने कड़ी शर्तों के साथ मुस्लिम समुदाय को चार शादियां करने की इजाजत दी है।

पहली शर्त-पुरुष को एक से ज्यादा से शादी करने की छूट पत्नी से संतान न होने या पत्नी के गंभीर रूप से बीमार होने पर मिलती है। लेकिन दूसरी शादी करने के लिए पहली पत्नी से इजाजत लेना जरूरी है।

दूसरी शर्त-पुरुष दूसरी, तीसरी या चौथी बार शादी कर सकता है, लेकिन तीनों बार ये निकाह सिर्फ अनाथ और बेवा महिला से ही किया जा सकता है।

तीसरी शर्त-वेश्यावृत्ति जैसी बुराई पर रोक लगाने, स्त्री को हिफाजत और उसकी देखभाल करने के लिए पुरुष को एक से ज्यादा शादी करने की इजाजत है।

चौथी शर्त-पुरुष को एक से ज्यादा निकाह करने की अनुमति इस शर्त के साथ मिली है कि वह अपनी सभी बीवियों के साथ एक समान व्यवहार करेगा।

मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937 के तहत भारत में मुस्लिम पुरुष के लिए बहुविवाह की इजाजत है। मुस्लिम व्यक्ति कानूनी तौर पर एक समय में अधिकतम 4 पत्नियां रख सकता है लेकिन उसमें पत्नियों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करने की क्षमता होनी चाहिए। ऐसा न होने पर पत्नी मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम, 1939 के तहत तलाक मांग सकती है।

इस्लाम में बहुविवाह की इजाजत कब और किन स्थितियों में मिली

इस्लाम में एक से ज्यादा विवाह करने के निर्देश कुरान में 7वीं सदी में तब शामिल किए गए, जब अरब में कबीलों की लड़ाई में बहुत से पुरुष जवानी में ही मारे गए। ऐसे हालात में विधवाओं और उनके बच्चों की बेहतरी के लिए बहुविवाह की इजाज़त दी गई।

इस्लाम में बहुविवाह का मकसद वेश्यावृत्ति रोकना भी

मौलवा फरमान अली कहते हैं इस्लाम में बहुविवाह की इजाजत इसलिए है ताकि गरीब, अबला विधवा से शादी करके उसे इज्जत की जिंदगी दी जा सके। लेकिन इसका दूसरा महत्वपूर्ण सामाजिक पहलू यह है कि पुरुष अपनी यौन इच्छाओं को पूरा करने के लिए कोई गलत कदम न उठाए जिससे समाज में वेश्यावृत्ति जैसी बुराई न पनपे। लेकिन मौलाना फरमान कुरान के हवाले से कहते हैं कि इस्लाम भी एक ही शादी की वकालत करता है बशर्ते बहुविवाह की स्थिति पैदा न हो।

बहुविवाह की आलोचक और महिलाओं के हक के लिए काम करने वाली मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर का मानना है कि महिला विरोधी इस रिवाज पर रोक लगा देनी चाहिए। हालांकि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के 2019-21 का सर्वे बताता है कि दूसरे धर्मों में भी लोगों ने बहुविवाह किया है लेकिन आम जन में यह धारणा बन चुकी है कि सिर्फ इस्लाम में चार ही शादियां होती हैं।

बहुविवाह ने जब बुराई की शक्ल ली

मुस्लिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर भी मौलवी फरमान की तरह ही कुरान में एक शादी की वकालत की बात से सहमत हैं। वह कहती हैं कि इस्लाम में वेश्यावृत्ति जैसी बुराई को रोकने और बेसहारा महिला को आश्रय देने के लिए बहुविवाह जैसा विकल्प खोजा गया होगा, बाद में इन नियमों को आड़ में बहुविवाह ने खुद एक बुराई का रूप ले लिया। यही वजह है कि इस्लाम में चार शादियों की इजाजत का विकल्प देखते हुए गैर मुस्लिमों ने भी एक से ज्यादा शादी करने के लिए कागजी तौर पर इस्लाम को कुबूल करना और एक से ज्यादा शादी करना शुरू किया।

इस्लाम में पहली बीवी के जीवित रहते दूसरी, तीसरी या चौथी शादी की इजाजत शर्तों के साथ दी गई है, लेकिन बाद में इसने गलत रूप ले लिया। शाइस्ता अंबर कहती हैं कि पत्नी के जीवित रहते एक से ज्यादा शादी करने को किसी भी शक्ल में बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए।

शाइस्ता अंबर की सेलिब्रिटी से गुज़ारिश करती हैं कि नामी हस्तियों को इस्लाम का सहारा लेकर और नाम बदलकर एक से ज्यादा शादी नहीं करनी चाहिए। क्योंकि यह समाज में एक गलत उदाहरण पेश करता है। कोई कदम समाज में बुराई को पनपने से रोकने के लिए उठाया गया था, अगर वही कदम गलत रास्ते पर चल निकले तो यह समाज और परिवार के लिए अच्छा नहीं है।

खबरें और भी हैं…

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here