नई दिल्ली5 घंटे पहलेलेखक: संजय सिन्हा

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जब पिया का प्यार गाढ़ा हो तो कहते हैं हाथों में मेहंदी खूब रचती है। लेकिन जब पिया मुंह फेर ले, 7 वचन क्या, प्यार के दो मीठे बोल भी न बोले तब सबकुछ उजड़ जाता है। हाथों की मेहंदी क्या, वो हाथ ही नहीं रहता।

मैं नीतीश ग्रेटर नोएडा के सूरजपुर में रहती हूं। नीतीश नाम बेटों का रखा जाता है मेरे माता-पिता ने मुझे बेटा मानकर ये नाम दिया।

चूड़ियों के शहर फिरोजाबाद में मेरा जन्म हुआ। जैसे चूड़ियां खनकती हैं वैसे ही मेरी हंसी में खनक होती। हम 3 भाई और 2 बहनें खूब धमाचौकड़ी मचाते।

जसराना में सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में पढ़ी। 12वीं तक मैंने पढ़ाई की और यह जानती थी कि आगे नहीं पढ़ पाऊंगी।

16 साल की उम्र में ब्याह दी गई

घर में सबसे बड़ी थी। 12वीं तक पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद परिवार पर नाते-रिश्तेदारों का प्रेशर पड़ा कि लड़की सयानी हो गई है, अब इसकी शादी कर दो। मैं जानती थी कि आगे नहीं पढ़ पाऊंगी, इसलिए कभी मोटी डिग्रियों के सपने नहीं देखे। किस्मत पर सब छोड़ दिया। 2009 में शादी हो गई, तब उम्र 16 साल थी।

इमर्सन रॉड से करंट लगा, दो घंटे तक बेहोश रही

शादी के बाद गृहस्थ जीवन सामान्य चल रहा था। मैं हाउसवाइफ बनकर पति का साथ देती। दो बच्चे हुए। उनकी पढ़ाई-लिखाई, परवरिश सबकुछ बढ़िया चल रहा था।

इसी बीच एक दिन पति काम पर बाहर गए हुए थे, बच्चे स्कूल में थे। घर में मैं अकेली थी। सर्दियों के दिन थे। इमर्सन रॉड लगाकर पानी गर्म किया और नहाने चली गई।

जब नहाकर बाथरूम से बाहर निकली तो गलती से प्लग छू लिया। पूरे शरीर में करंट दौड़ गया। मैं छटपटाती रही, हाथ-पांव मारती रही, फिर बेहोश हो गई।

दो घंटे बाद मुझे होश आया। किसी तरह साहस बटोर कर चिल्ला कर पड़ोसियों को बुलाया। पड़ोसी ही मुझे झटपट अस्पताल लेकर पहुंचे।

पहले 4 उंगलियां काटी, फिर हाथ काटना पड़ा

करंट लगने के बाद मैं किसी तरह बच तो गई लेकिन स्थिति बेहद खराब थी। दाहिना हाथ बुरी तरह झुलस गया था। हथेली जली हुई लकड़ी के ठूंठ जैसी दिखती।

डॉक्टरों ने इलाज शुरू किया। लेकिन जलने का घाव इतना ज्यादा था कि इन्फेक्शन रूक ही नहीं रहा था। करंट दाहिने हाथ से प्रवेश कर पेट से बाहर निकला था। हाथ जलने के साथ पेट के निचले हिस्से में भी गहरा जख्म बन गया था।

शुरू में डॉक्टर ने मेरी 4 उंगलियां काटी। डॉक्टर को लग रहा था कि उंगलियां हटा देने से ही बर्न का सबसे ज्यादा प्रभावित हिस्सा निकल जाएगा। लेकिन दवाइयां भी असर नहीं कर सकीं और उंगलियों की बात करते-करते हाथ काटना पड़ा।

बिन हाथ वाली लड़की अब क्या कर सकती थी

दो महीने तक इलाज चलता रहा, मैं अस्पताल में पड़ी रही। डॉक्टर इंतजार कर रहे थे कि स्थिति में सुधार होगा। लेकिन स्थिति लगातार बिगड़ रही थी। तब डॉक्टर ने मुझसे कहा कि आपको हाथ काटे जाने के लिए तैयार रहना चाहिए।

मैंने कहा कि जब मेरे शरीर का यह अंग किसी काम का नहीं रहा तो अब इसे रखने का क्या फायदा।

अंत में डॉक्टर ने कलाई से आगे तक हाथ काट कर हटा दिया। अब मैं बिन हाथ वाली लड़की बन गई थी। जिन हाथों में मेहंदी रचाती थी, जिसके नाखूनों को रंग कर सजाती थी अब वहां सूनापन था।

होटल क्राउन प्लाजा ग्रेटर नोएडा में काम करती नीतीश।

होटल क्राउन प्लाजा ग्रेटर नोएडा में काम करती नीतीश।

पति झांकने भी नहीं आया, मैं मर गई या जिंदा हूं

करंट लगने के बाद मुझे जली हुई अवस्था में पड़ोसियों ने भर्ती कराया। खबर मिलते ही मेरे मायके के लोग आ पहुंचे। पति को फोन किया गया तो उसने फोन नहीं उठाया। बार-बार उसके फोन पर घंटी बजती रही लेकिन उसने अनसुना कर दिया। दो महीने अस्पताल में रही लेकिन एक बार भी पति झांकने नहीं आया कि मैं मर गई हूं कि जिंदा हूं।

जलने से ज्यादा दर्द इस बात का है कि पति ने इस बुरे वक्त में साथ क्यों नहीं दिया

जब करंट लगने की घटना हुई तब मेरी शादी को 12 साल हो चुके थे। हंसती-खिलखिलाती बगिया थे मेरे फूल जैसे बच्चे हुए। पति से भी कोई अनबन नहीं रही। न ही कभी किसी बात को लेकर झगड़ा हुआ।

लेकिन उसे जैसे ही पता चला कि मेरे साथ यह हादसा हो गया है उसने मुझे पलट कर नहीं देखा। घटना के दिन भी मैंने उसे काम पर जाते समय टिफिन दिया जैसे सभी पत्नियां करती हैं। 12 साल के रिश्ते का मुझे ये इनाम मिला।

कुछ समय बाद अस्पताल में मेरे ससुराल के लोग मिलने आए। वो मेरे साथ क्या सहानुभूति दिखाते, जब उनके बेटे ने ही मेरा साथ छोड़ दिया था।

3 महीने तक डिप्रेशन में रही, क्या करूंगी समझ में नहीं आता

पति ने साथ छोड़ा, हाथ ने शरीर का साथ छोड़ दिया। एक हाथ से क्या करूंगी। बच्चों को कैसे पालूंगी। मैं खुद अपना काम कैसे करूंगी। न रोटी-चावल बना सकती थी, न ही ढंग से कोई दूसरा काम कर सकती थी।

मैं डिप्रेशन में चली गई। दिन-रात चिंता में घुलती। ऐसे मुश्किल वक्त ने मेरे भाई और मम्मी-पापा ने साथ दिया। मेरे इलाज का भी सारा खर्च उन्होंने उठाया।

जब प्राइवेट अस्पताल में इलाज हुआ तो जाने कैसे-कैसे उन्होंने लाखों रुपए जमा किए। बाद में किसी तरह सफदरजंग अस्पताल में इलाज हुआ।

भाई खाना बनाता, परिवार ने आगे बढ़ने को मोटिवेट किया

छोटे भाई ने मेरा साथ दिया। वह घर पर खाना बनाता, बर्तन धोता, बच्चों को देखता। बच्चों को नहलाना, कपड़े पहनाकर स्कूल भेजता, सारी जिम्मेदारी उसने निभाई। मेरी बहन इंदौर में है।

उसने मेरी 12 साल की बेटी की जिम्मेदारी ले ली। बेटी अब इंदौर में रह रही है। उसकी पूरी परवरिश बहन ही कर रही है।

इधर, मेरे मायके के लोगों ने हमेशा मुझे मोटिवेट किया कि मैं जीवन में हताश न रहूं। जो हो गया उसे भूल जाओ और आगे बढ़ो।

5 स्टार होटल में नौकरी मिली, महीने में 16,000 रुपए कमा लेती हूं

जब करंट लगने की घटना हुई थी तब मैं ग्रेटर नोएडा के सूरजपुर में रहती थी। हादसे से कुछ समय पहले मैंने कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर होटल क्राउन प्लाजा ग्रेटर नोएडा में सिक्योरिटी डिपार्टमेंट में काम किया था।

घटना के बाद मैं वापस होटल गई और नौकरी की गुजारिश की। मुझे होटल में नौकरी मिल गई। होटल के लाउंड्री डिपार्टमेंट में काम मिल गया। सुबह 6.30 बजे होटल के लिए निकलती हूं और 4-4.30 बजे घर आ जाती हूं।

मेरे जिम्मे होटल कर्मियों के यूनिफॉर्म का हिसाब-किताब रखना होता है। सबके धुले और प्रेस किए हुए कपड़े यहां आते हैं और उन्हें अरैंज करके रखना मेरा काम है। काउंटर पर कर्मचारी अपने कपड़े मांगते हैं और मैं उन्हें कपड़े सौंप देती हूं।

महीने के 16,000 रुपए कमा लेती हूं जिससे मैं अपना जीवन चला रही हूं। होटल मैनेजमेंट हर मुश्किल वक्त में मेरे साथ खड़ा होता है।

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