नई दिल्ली23 घंटे पहलेलेखक: संजय सिन्हा

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मैंने ये पा लिया। मम्मा आप कहती थीं न कि ‘डू इट योरसेल्फ इज द की टू हैप्पीनेस।’ मेरे कदम मुझे अपनी ओर ले चले। खुशी से झूमती, अपने को आईने में निहार कर बोलती-’थैंक यू फॉर कमिंग।’

पहली बार कनिका कपूर खुद से मिली और फिर अपने ही साथ रहने लगी।

ये डायलॉग और सीन ‘थैंक यू फॉर कमिंग’ फिल्म से है। ‘थैंक यू फॉर कमिंग’ का मतलब है ‘ऑर्गेज्म’ को पहली बार पाना। कनिका की भूमिका में एक्ट्रेस भूमि पेडनेकर ऐसे पार्टनर की तलाश में थी जो उसे ऑर्गेज्म की खुशी और सुख दे सके।

कई पार्टनर्स मिलने के बाद उसे आर्गेज्म का सुख कनिका के किरदार को खुद से ही मिला।

वेब सीरीज ‘सेक्सिफाई’ में दिखाया गया है कि यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली तीन स्टूडेंट्स ‘फीमेल ऑर्गेज्म’ बढ़ाने के लिए एप बनाती हैं।

ओटीटी पर जब ऑर्गेज्म जैसे बोल्ड विषय पर फिल्में आने लगी हैं तब हमारी सोसाइटी इस पर खुलकर बात करने से क्यों बच रही है? क्यों पत्नी का ऑर्गेज्म की चाहत रखना बुरा और भद्दा समझे जाने के साथ उसके कैरेक्टर पर प्रश्न चिह्न लगाता है।

ऑर्गेज्म पर बात करनी क्यों जरूरी?

कुदरत ने ऑर्गेज्म के सुख का हक स्त्री और पुरुष दोनों को दिया है। हालांकि जब ऑर्गेज्म की बात की जाती है तो इसका मतलब फीमेल ऑर्गेज्म तक ही सीमित मान लिया जाता है जिसे ‘बिग O’ भी कहते हैं।

सेक्सोलॉजिस्ट डॉ. शर्मिला मजुमदार कहती हैं कि जिस सेक्शुएल एक्टिविटी में स्त्री और पुरुष दोनों को सबसे अधिक सुख मिलता है वही ऑर्गेज्म है। यह किसी भी रूप में मिल सकता है जैसे वजाइनल, क्लिटोरल या किसी दूसरे रूप में। होता ये चरम सुख ही है।

यह सुख अपने पार्टनर के साथ या बिना पार्टनर के भी पाया जा सकता है। डॉ. मजूमदार कहती हैं, कोई किसी को ऑर्गेज्म नहीं दे सकता। ऑर्गेज्म एक तरह का स्किल है जिसे सीखना पड़ता है। दुनिया के दो मशहूर सेक्सोलॉजिस्ट हार्टमैन और फिथियन ने इस हुनर को सीखने के लिए ‘प्री ऑर्गेज्मिया’ ट्रीटमेंट की बात तक की है।

‘प्री ऑर्गेज्मिया’ का मतलब है ऑर्गेज्म तक पहुंचने के लिए की गई कोशिश।

70% महिलाओं को ऑर्गेज्म के बारे में नहीं पता

लखनऊ की साइकोथेरेपिस्ट, मेंटल हेल्थ एजुकेटर और लाइफ सर्फर्स वेलनेस फाउंडेशन की फाउंडर स्निग्धा मिश्रा कहती हैं कि अधिकतर महिलाओें को पता ही नहीं होता कि ‘क्लाइमेक्स’ क्या है। जिन महिलाओं को ऑर्गेज्म होता है उन्हें भी इसकी जानकारी नहीं होती है।

जबकि 90% से अधिक पुरुषों को ऑर्गेज्म होता है, वे क्लाइमेक्स तक पहुंचते हैं।

ऑर्गेज्म नहीं होने का कारण यह है कि महिलाओं को अपनी फिजिकल जरूरतों के बारे में पता ही नहीं होता, न ही अपने रिप्रोडक्टिव ऑर्गन को लेकर समझ होती है।

सेक्शुअल एक्टिविटी से ही ऑर्गेज्म मिले, जरूरी नहीं

कोलकाता की साइकोथेरेपिस्ट मानसी पोद्दार कहती हैं कि कई क्लाइंट्स की शिकायत होती है कि पति उन्हें चरम सुख नहीं दे पाते। उन्हें एक केस स्टडी का हवाला देते हुए बताया कि अनुभा (बदला हुआ नाम) की शादी को ज्यादा समय नहीं हुआ था।

अनुभा की शिकायत थी कि उन्हें अपने पार्टनर से सेक्शुअल प्लेजर नहीं मिल पा रहा। पति को कुछ दवाएं दी गईं लेकिन इसका भी असर नहीं हुआ।

तब डॉक्टर ने अनुभा को सलाह दी कि उसे खुद को ऑर्गेज्म के लिए तैयार करना चाहिए। अनुभा ने क्लिटोरल ऑर्गेज्म को खुद से अपनाया और क्लाइमेक्स का अनुभव किया।

डॉ. मानसी कहती हैं कि सेक्स में एक मात्र ऑर्गेज्म की ही चाहत नहीं होती। जरूरी नहीं कि सेक्स के दौरान हर बार महिला को ऑर्गेज्म का सुख मिले।

कई महिलाएं ऐसी हैं जिन्हें कभी ऑर्गेज्म मिलता है तो कभी नहीं। ये भी नॉर्मल है। हकीकत यह है कि सेक्स से ही ऑर्गेज्म मिले जरूरी नहीं है।

केवल 4% महिलाओं को ही सेक्स से मिलता ऑर्गेज्म

‌‌’Becoming cliterate’ की लेखिका और सेक्सोलॉजिस्ट डॉ. लॉरी मिंज ने अपनी स्टडी में बताया कि सेक्स से केवल 4% महिलाएं ही रेगुलर ऑर्गेज्म तक पहुंच पाती हैं।

उन महिलाओं में ऑर्गेज्म अधिक मिला जो सेक्स की विभिन्न एक्टिविटी पर फोकस करती हैं। जैसे फोरप्ले, सेक्स टॉय जैसी एक्टिविटी को चुनना।

मानसी पोद्दार कहती हैं कि हर महिला में वजाइना की बनावट अलग-अलग होती है इसलिए महिला को सेक्शुअल प्लेजर भी अलग-अलग तरीके से मिलता है।

महिला में सेक्शुअल प्लेजर और एनाटॉमी पुरुष से अलग

गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. शीतल मित्तल कहती हैं कि महिला और पुरुष दोनों की ही रिप्रोडक्टिव बॉडी कुदरती अलग-अलग हैं जो पुरुष में नजर आती है और महिलाओं में ढकी छिपी रहती है।

सेक्स थेरेपिस्ट नेहा भट्‌ट बताती हैं कि यंग कपल्स को यह जानना जरूरी है कि पुरुष को चरमसुख की स्थिति में पहुंचने में 4-5 मिनट का समय लगता है जबकि महिलाओं की स्थिति में पहुंचने में 15-20 मिनट या इससे भी अधिक समय लग सकता है। 70% महिलाएं क्लाइमेक्स तक नहीं पहुंचती, पुरुष में 4 सेकेंड तो महिला में 10-20 सेकेंड ऑर्गेज्म रहता है।

क्योंकि सेक्शुअल एक्टिविटी में मन के तार दिलोदिमाग के साथ जुड़े रहते हैं जिसमें पारिवारिक और मानसिक परिस्थितियां शामिल हैं। वे इस सुख तक पहुंचने के रास्ते को आसान या मुश्किल दोनों बनाती हैं।

यौन संबंधों पर होने वाली एक रिसर्च के आंकड़े बताते हैं कि शारीरिक सुख को लेकर स्त्री कितनी सक्रिय हुई है-

ऑर्गेज्म से हार्ट अटैक रिस्क कम

डॉ. शर्मिला मजुमदार बताती हैं कि जो महिलाएं ऑर्गेज्म तक ज्यादा पहुंचती हैं या जिन्हें ऑर्गेज्म का सुख बार बार मिलता है उनमें हार्ट अटैक या स्ट्रोक का खतरा कम होता है।

रिसर्च में बताया गया है कि ऑर्गेज्म के समय जो सेक्शुअल प्लेजर मिलता है वह वैसा ही जैसे आप एक घंटे में 8-10 किमी की दूरी तय कर ली हो। ऑर्गेज्म कार्डियो एक्सरसाइज की तरह काम करता है।

डॉ. शीतल बताती हैं कि रेगुलर ऑर्गेज्म मिलने से पेल्विक मांसपेशियां मजबूत बनती हैं। इसका शरीर पर जबरदस्त असर होता है।

जिन महिलाओं की पेल्विक मांसपेशियां कमजोर होती हैं वो बार-बार यूरिन के लिए जाती हैं। लेकिन ऑर्गेज्म पाने वाली महिलाओं में यूरिन पर अधिक कंट्रोल रहता है।

महिलाओं के ऑर्गेज्म के फायदे क्या हैं, इसे ग्रैफिक से समझते हैं-

मेंटल हेल्थ बेहतर बने

स्निग्धा कहती हैं कि ऑर्गेज्म से शरीर में कई तरह के हार्मोंस की मात्रा बढ़ जाती है जो हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहतर है।

डोपामाइन, ऑक्सीटोसिन, नोरेपाइनफ्रिन और टेस्टोस्टेरॉन रिलीज होने से मूड और एनर्जी बदलती है। एंग्जाइटी और स्ट्रेस कम होता है। कोर्टिसोल हार्मोन जिससे स्ट्रेस बढ़ता है उसमें कमी आती है। ऑर्गेज्म के दौरान सेरोटोनिन की मात्रा बढ़ जाती है।

इससे मेलाटोनिन की मात्रा भी अधिक हो जाती है। इससे नींद की क्वालिटी भी अच्छी हो जाती है।

कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में हुई एक रिसर्च में बताया गया है कि ऑर्गेज्म तक पहुंचने से ब्रेन में डोपामाइन हार्मोन भी रिलीज होता है।

इस हार्मोन को हैप्पी हार्मोन कहा जाता है। पीरियड्स के दौरान होने वाली तकलीफ या माइग्रेन में इस हार्मोन से काफी राहत मिलती है।

ग्राफिक्स: सत्यम परिडा

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