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  • Phalgun Sankashti Chauth On 28th: On This Day, The Dwijapriya Form Of Ganesha Will Be Worshipped, Fasting Will Start In Sarvarthasiddhi Yoga And Worship In Vriddhi Yoga.

12 घंटे पहले

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28 फरवरी को बुधवार और संकष्टी चौथ का शुभ संयोग बन रहा है। तिथि और वार दोनों के ही स्वामी गणेश हैं। ये फाल्गुन महीने की पहली चतुर्थी रहेगी। इस दिन भगवान गणेश के ‘द्विजप्रिय’ रूप की पूजा होगी। साथ में देवी पार्वती का पूजन भी होगा।

सुहागन महिलाएं दिनभर व्रत रखकर शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत खोलेंगी। इस दिन भगवान गणेश के उस रूप की पूजा होती है जिसमें यज्ञोपवित यानी जनेऊ पहने हो। इसलिए इसे द्विजप्रिय चतुर्थी कहा जाता है।

मान्यताओं के अनुसार इस व्रत में गौरी-गणेश की पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर नहाने के बाद लाल कपड़े पहनकर गौरी-गणेश की पूजा के बाद व्रत का संकल्प लिया जाता है।

शुभ संयोग: सर्वार्थसिद्धि, वृद्धि और आनंद योग
गुरुवार को तिथि और ग्रह-नक्षत्र से मिलकर सर्वार्थसिद्धि, वृद्धि और आनंद नाम के तीन शुभ योग बनेंगे। इस शुभ संयोग में किए गए व्रत और पूजा-पाठ का शुभ फल और बढ़ जाएगा। शुभ संयोग में किया गया गणेश पूजन सुख और समृद्धि बढ़ाने वाला रहेगा।

चतुर्थी की शुरुआत 27 फरवरी की रात से ही शुरू हो जाएगी। ये तिथि 28 फरवरी को पूरे दिन और रात में रहेगी। ज्योतिष में बुधवार को शुभ दिन माना जाता है। इस संयोग में गौरी-गणेश की पूजा करना विशेष शुभ रहेगा, क्योंकि इस दिन के स्वामी गणेश ही हैं।

पौराणिक कथा: क्यों कहते हैं द्विजप्रिय
पौराणिक कथा के मुताबिक जब देवी पार्वती भगवान शिव से किसी बात को लेकर रूठ गईं तो उन्हें मनाने के लिए भगवान शिव ने भी ये व्रत किया था। इससे पार्वती जी प्रसन्न होकर वापस शिव लोक लौट आई थीं। इसलिए गणेश-पार्वती जी दोनों को यह व्रत प्रिय है इसलिए इस व्रत को द्विजप्रिय चतुर्थी कहते हैं।

संकष्टी चतुर्थी पूजा विधि
चतुर्थी पर सुबह जल्दी उठकर नहाने के बाद लाल कपड़े पहनकर व्रत का संकल्प लें। पूजा स्थान पर दीपक जलाएं। साफ आसन या चौकी पर भगवान गणेश और देवी गौरी यानी पार्वती की मूर्ति या चित्र रखें।

धूप-दीप जलाकर शुद्ध जल, दूध, पंचामृत, मौली, चंदन, अक्षत, अबीर, गुलाल, जनेऊ, दूर्वा, कुमकुम, हल्दी, मेहंदी, फूल और अन्य पूजन सामग्री से गौरी-गणेश की पूजा करें। पूजा के दौरान ॐ गणेशाय नमः और गौरी दैव्ये नम: मंत्रों का जाप करें। मिठाई और फलों का नैवेद्य लगाएं। आरती करने के बाद प्रसाद बांट दें।

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