नई दिल्ली18 घंटे पहलेलेखक: ऐश्वर्या शर्मा

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हर महिला की प्रेग्नेंसी एक-दूसरे से अलग होती है। यह 9 महीने का सफर कभी इमोशनली तो कभी फिजिकली तकलीफदेह होता है। लेकिन यह खट्‌टा-मीठा अनुभव हर महिला के लिए यादगार बन जाता है, शायद इसीलिए आजकल प्रेग्नेंसी को जमकर सेलिब्रेट किया जाने लगा है। कोई बेबी बंप के साथ फोटोशूट करवाता है तो कोई पार्टी देता है।

पहले केवल महिलाएं ही खुद को प्रेग्नेंट कहती थीं, लेकिन बदलते जमाने में आजकल पुरुष अपनी पत्नियों के साथ सोशल मीडिया पर ‘वी आर प्रेग्नेंट’ लिखकर सबसे गुड न्यूज शेयर करते हैं।

प्रेग्नेंसी अब ग्लैमरस बन चुकी है लेकिन कई बार यही प्रेग्नेंसी जानलेवा भी साबित होती है।

प्रेग्नेंसी कई तरह की होती है जिनमें मल्टीपल प्रेग्नेंसी, मोलर प्रेग्नेंसी, ट्यूबल प्रेग्नेंसी, ल्यूपस प्रेग्नेंसी और इंट्रायूट्राइन प्रेग्नेंसी शामिल हैं।

इंट्रायूट्राइन प्रेग्नेंसी सेफ प्रेग्नेंसी होती है क्योंकि इसमें भ्रूण यूट्रस में ही विकसित होता है, लेकिन एक प्रेग्नेंसी ऐसी भी होती है जिसमें बच्चा यूट्रस में विकसित नहीं होता। यह एक्टोपिक प्रेग्नेंसी कहलाती है। समय रहते इलाज ना किया जाए तो महिला की जान तक जा सकती है।

बॉलीवुड की मशहूर एक्ट्रेस काजोल और टॉम क्रूज की पत्नी व हॉलीवुड एक्ट्रेस निकोल किडमैन भी इस खतरनाक प्रेग्नेंसी को झेल चुकी हैं।

यूट्रस के बाहर होती प्रेग्नेंसी

नोएडा के कम्यूनिटी हेल्थ सेंटर में गायनोकॉलोजिस्ट डॉ. मीरा पाठक कहती हैं कि आमतौर पर प्रेग्नेंसी गर्भाशय यानी यूट्रस में होती है। यूट्रस के दोनों तरफ ओवरी होती है जो इसे फैलोपियन ट्यूब से जोड़ती है। हर महीने ओव्यूलेशन होने पर यानी पीरियड्स के बाद ओवरी से एग जिसे ओवम कहते हैं, वह रिलीज होता है जो फैलोपियन ट्यूब में फर्टिलाइज होकर यूट्रस में पहुंचता है।

लेकिन कई बार यह फर्टाइल एग फैलोपियन ट्यूब में ही फंस जाता है जिससे भ्रूण इसी नली में विकसित होने लगता है। यही एक्टोपिक प्रेग्नेंसी या ट्यूबल प्रेग्नेंसी कहलाती है।

फैलोपियन ट्यूब 4 से 5 इंच लंबी और 0.2 से 0.6 इंच तक चौड़ी होती है। जब भ्रूण बड़ा होने लगता है तो फैलोपियन ट्यूब के फटने का खतरा बढ़ जाता है।

पेट में ही ट्यूब फट जाती है

मैक्स हॉस्पिटल में गायनोकोलॉजिस्ट डॉ. सीमा जैन के अनुसार अगर किसी महिला को एक्टोपिक प्रेग्नेंसी हो तो धीरे-धीरे इस पतली-सी ट्यूब में भ्रूण बढ़ता जाता है। इस वजह से प्रेग्नेंसी ठहरने के 7वें हफ्ते के बाद पेट में कभी भी यह नली फट सकती है।

अगर यह फट जाए तो पेट के अंदर ब्लीडिंग होने लगती है जिसका मरीज को पता तक नहीं चलता। इंटरनल ब्लीडिंग होने से मरीज शॉक में जाने लगता है। इससे ब्लड प्रेशर कम होता है और बेहोशी आने लगती है। ये स्थिति जानलेवा होती है।

मिसकैरेज न होने पर ट्यूब निकालनी पड़ती है

एक्टोपिक प्रेग्नेंसी में अक्सर फर्टाइल एग तुरंत नष्ट हो जाता है जिसके बाद हल्का दर्द और ब्लीडिंग होती है।

ऐसे लक्षणों को मिसकैरेज माना जाता है। लेकिन कई बार स्थिति गंभीर हो जाती है और ऐसे 99% केस में फैलोपियन ट्यूब को सर्जरी से निकालना पड़ता है।

इसके बाद महिला प्रेग्नेंसी के लिए दूसरी ट्यूब पर निर्भर होती है जिससे महिला की प्रेग्नेंसी की संभावना घट जाती है।

लेकिन आजकल ‘लेप्रोस्कोपिंग मिल्किंग टेक्नीक’ अपनाई जा रही है जिससे फैलोपियन ट्यूब को निकालने की जरूरत नहीं पड़ती।

प्रेग्नेंसी टेस्ट आता पॉजिटिव

एक्टोपिक प्रेग्नेंसी का पता सोनोग्राफी में ही पता चलता है। अगर किसी महिला को यह प्रेग्नेंसी है तो उनका प्रेग्नेंसी किट से टेस्ट पॉजिटिव ही आता है। दरअसल, महिला के प्रेग्नेंट होते ही शरीर में बीटा ह्यूमन कॉरियोनिक गोनाडोट्रोपिन (HCG) नाम का हार्मोन बनता है। यह ब्लड और यूरिन दोनों से डिटेक्ट होता है।

अगर किसी महिला को यूट्रस के बाहर फैलोपियन ट्यूब में गर्भ ठहर जाए तो प्रेग्नेंसी टेस्ट कार्ड (PTC) में गहरी के बजाय हल्की लाइन आएगी। साथ ही महिला को ब्लड स्पॉटिंग और पेट में दर्द होता है। प्रेग्नेंसी कीट की मदद खुद प्रेग्नेंसी टेस्ट करने के बाद डॉक्टर से जरूर चेकअप करवाना चाहिए।

शुरुआत में नहीं दिखते लक्षण

एक्टोपिक प्रेग्नेंसी शुरुआत में सामान्य प्रेग्नेंसी की तरह ही लगती है। इसमें महिला को पीरियड्स बंद हो जाते हैं।

खून की कमी होती है, चक्कर आने लगते हैं, उल्टियां भी होती हैं, ब्रेस्ट सख्त होती है लेकिन साथ ही हल्का या तेज दर्द और ब्लीडिंग भी हो सकती है।

अगर फैलोपियन ट्यूब से ब्लड लीक होता है तो कंधे में दर्द हो सकता है या जहां भी खून जमा होगा, वहां की नसें प्रभावित होंगी।

गर्भनिरोधक भी दे सकता है दिक्कत

कुछ महिलाएं गर्भनिरोधक के लिए कॉपर टी यानी इंट्रा यूट्राइन डिवाइस यानी IUD लगवा लेती हैं। हालांकि इससे प्रेग्नेंट होने की आशंका बहुत कम होती है लेकिन अगर इसे सही तरीक से प्राइवेट पार्ट में न लगाया जाए तो प्रेग्नेंसी ठहरने का डर रहता है। यह प्रेग्नेंसी एक्टोपिक हो सकती है।

यौन संबंधी इंफेक्शन से भी एक्टोपिक प्रेग्नेंसी

अगर कोई महिला असुरक्षित यौन संबंध बनाती है और सेक्शुअल ट्रांसमिटेड इंफेक्शन जैसे गोनोरिया (gonorrhea) या क्लैमिडिया (chlamydia) की चपेट में आती है तो यह यौन संबंधी इंफेक्शन महिला की फैलोपियन ट्यूब और उसके आसपास के प्रजनन अंगों को प्रभावित करता है। इस वजह से भी महिला एक्टोपिक प्रेग्नेंसी का शिकार हो जाती हैं।

इस प्रेग्नेंसी से बचने के लिए मल्टीपल सेक्शुअल पार्टनर बनाने से बचना चाहिए और हमेशा कंडोम का इस्तेमाल करना चाहिए।

मां बनने की खुशी छिन सकती है

जिन महिलाओं की फैलोपियन ट्यूब में दिक्कत होती है और अगर उनकी कभी ट्यबूल सर्जरी हुई हो, उन्हें भी इस तरह की प्रेग्नेंसी झेलनी पड़ सकती है। यह प्रेग्नेंसी भले ही मिसकैरेज के रूप में सर्जरी करने के बाद खत्म हो जाए, लेकिन महिला को इनफर्टिलिटी की समस्या झेलनी पड़ सकती है। पर आईवीएफ से महिला फिर मां बन सकती है।

कई बार आईवीएफ की वजह से ही एक्टोपिक प्रेग्नेंसी हो जाती है। दरअसल आईवीएफ एक जटिल प्रक्रिया है। जैसे एक्टोपिक प्रेग्नेंसी महिलाओं के लिए मेडिकल के साथ इमोशनल प्रॉब्लम है, ठीक वैसे ही आईवीएफ में कई सेशन लेकर ट्रीटमेंट होता है। पर कई बार एब्नॉर्मल यूट्राइन कॉन्ट्रैक्शन के इनडक्शन के कारण प्रेग्नेंसी की प्रक्रिया उल्टी हो जाती है और भ्रूण यूट्राइन कैविटी से फैलोपियन ट्यूब में आ जाता है।

डाइट का रखें ध्यान

डायटीशियन सतवीर कौर कहती हैं कि एक्टोपिक प्रेग्नेंसी में ज्यादातर सर्जरी करनी पड़ती है लेकिन आजकल ऐसी कई दवाएं आ रही हैं जिससे यह प्रेग्नेंसी टिकती नहीं है। एक्टोपिक प्रेग्नेंसी के बाद महिलाओं को अपने खान-पान पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है।

महिलाओं को फाइबर से भरपूर चीजें खानी चाहिए जिससे कब्ज ना हो। साथ ही कच्चा पॉइश्चराइज्ड दूध पीना चाहिए जिससे इंफेक्शन से लड़ने में मदद मिले। इसके अलावा डाइट में फिश और अंडे की जर्दी को शामिल करना चाहिए।

लेप्रोस्कोपी ट्रीटमेंट के बाद महिला को चावल, एग वाइट, पालक, अदरक, कॉफी, सोया मिल्क और दालों को खाने से बचना चाहिए।

उत्तरी भारत में एक्टोपिक प्रेग्नेंसी की वजह से 3.5-7.5% महिलाएं अपनी जान गंवा देती हैं। कई बार एक्टोपिक प्रेग्नेंसी फैलोपियन ट्यूब के अलावा ओवरी में भी हो सकती है। पीरियड्स नहीं होने के 2 हफ्ते के अंदर महिला को डॉक्टर से जरूर मिलना चाहिए ताकि उनकी जिंदगी बच सके और सेहत समय रहते दुरुस्त हो जाए।

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