नई दिल्ली12 घंटे पहलेलेखक: ऐश्वर्या शर्मा

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बच्चे का मुस्कुराता चेहरा जितना मां-बाप को सुकून देता है, उतना ही उसका बीमार होना, रातों की नींद की उड़ा देता है।

बच्चों में अक्सर खांसी-जुकाम की समस्या देखी जाती है। दरअसल मां की कोख में 9 महीने तक बच्चे की अपनी अलग दुनिया होती है। लेकिन जब वह जन्म लेता है तो उसके आसपास का वातावरण और माहौल बिल्कुल अलग होता है। ऐसे में बच्चा अनजाने में कुछ ऐसी एलर्जी का शिकार हो जाता है जो कभी कभी जानलेवा हो सकती है।

बच्चे के आसपास की परिस्थितियां ही उन्हें बीमार करती हैं इसलिए पेरेंट्स को यह पता होना चाहिए कि बच्चों को कैसे एलर्जी से बचाया जा सकता है।

एलर्जी का इम्यून सिस्टम से गहरा नाता

सर गंगाराम हॉस्पिटल, दिल्ली के पैड्रिएटिक एलर्जी डिपार्टमेंट में सीनियर कंसल्टेंट और एलर्जी स्पेशलिस्ट डॉ. नीरज गुप्ता कहते हैं कि अक्सर लोगों को लगता है कि एलर्जी तब होती है जब बॉडी की इम्यूनिटी कम हो जो कि गलत है। ऐसा तब होता जब इम्यूनिटी हाइपर एक्टिव हो यानी हद से ज्यादा हो।

जिस तरह जन्म के बाद बच्चा आसपास के माहौल को अपना रहा होता है, ठीक इसी तरह बच्चे की बीमारियों से लड़ने की क्षमता भी धीरे-धीरे विकसित हो रही होती है।

कई बार बॉडी का इम्यून सिस्टम साधारण वातावरण में भी रिएक्ट करने लगता है क्योंकि वह डेवलप नहीं होता है। ऐसे में बच्चे में एलर्जी के लक्षण दिखने लगते हैं।

2 साल तक के बच्चों में एक्जिमा

एलर्जी 3 तरह की होती हैं। कुछ एलर्जी खाने से, कुछ दवाओं से तो कुछ सांस से जुड़ी होती हैं जो खराब हवा की वजह से होती हैं।

2 साल तक के बच्चों में एलर्जी अधिकतर एक्जिमा के रूप में दिखती है। इसमें बच्चे के शरीर में खुजली और चकत्ते होने लगते हैं। यह कोहनी, घुटनों, छाती कहीं भी हो सकते हैं। एक्जिमा फूड एलर्जी से संबंधित होता है। 2 साल की उम्र के बाद अक्सर बच्चों में ‘रेस्पिरेटरी एलर्जी’ होती हैं। जैसे नाक बहना, नजला, छींक आना, मुंह खोलकर सांस लेना, खर्राटे, छाती से आवाजें आना, खांसते हुए उल्टी होना। इस तरह की एलर्जी को रोकने के लिए डॉक्टर कभी-कभी बच्चों को नेबुलाइजर देते हैं।

3 साल के बाद आसपास के माहौल से होती एलर्जी

3 साल की उम्र के बाद बच्चों में एलर्जी के अन्य कारण भी सामने आने लगते है। इस उम्र में अधिकतर एलर्जी हवा में मौजूद कीटाणुओं और बाकी केमिकल्स से हो सकती है।

इस उम्र में बच्चे अक्सर मौसम बदलने के दौरान बीमार पड़ते हैं। खासकर गमिर्यों की शुरुआत में पेड़-पौधों से पोलन यानी पराग निकलता है जो एलर्जी का कारण बनता है।

वहीं, घरों में डस्ट माइट्स नाम का एक कीड़ा रहता है जो आंखों से नहीं दिखता। यह कीड़ा तकिये, चादर, गद्दा हर चीज में मौजूद होता है जो 24 घंटे एक केमिकल बनाता रहता है।

ऐसे में जब रात को बच्चे को बिस्तर पर सुलाया जाता है तो यह केमिकल सांस के जरिए शरीर में प्रवेश करता है और बच्चों को छींक या खांसी आने लगती है।

ऐसा कई बार सुबह के समय भी होता है क्योंकि तब तक कमरे में इस केमिकल की मात्रा बढ़ जाती है।

कई बार बच्चों को कॉकरोच से भी एलर्जी होती है। घर में अगर सीलन हो या साफ-सफाई की कमी हो तो फंगल एलर्जी भी हो सकती है।

कुछ एलर्जी पेट से संबंधित होती है। इससे बच्चों को दस्त या उल्टी होती है। कुछ में पित्त भी निकल सकती है।

ब्रेस्ट मिल्क की कमी एलर्जी का कारण

गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. नीरजा पौराणिक कहती हैं कि जो बच्चे नॉर्मल डिलीवरी से पैदा होते हैं उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता सिजेरियन डिलीवरी से पैदा हुए बच्चों से ज्यादा होती है इसलिए उनमें एलर्जी होने की आशंका ज्यादा होती है।

हर मां को नवजात को पहले 6 महीने ब्रेस्ट फीडिंग जरूर करानी चाहिए। मां का दूध बच्चों के लिए सुरक्षा कवच है जो एलर्जी को दूर रखता है।

लेकिन कुछ लोग ब्रेस्ट मिल्क को कम पिलाकर बच्चे को बेबी फूड देने लगते हैं, इससे एलर्जी की आशंका बढ़ जाती है।

वहीं, कई बार कुछ घरों में शिशु की सॉलिड डाइट देरी से शुरू की जाती है जबकि 6 महीने के बाद ही शिशु को सॉलिड आहार खिलाना चाहिए। जितनी देरी से बच्चे का यह आहार शुरू होगा, उतनी ही एलर्जी की आशंकाएं बढ़ती है।

पालतू जानवर से एलर्जी

छोटे बच्चों की एलर्जी का कनेक्शन पालतू जानवरों से भी है।

अगर बच्चे के जन्म से पहले घर में पालतू जानवर है तो बच्चे को एलर्जी नहीं होगी क्योंकि उसकी इम्यूनिटी पेट्स को अपना चुकी होती है लेकिन अगर बच्चे के जन्म के बाद कुत्ता, बिल्ली जैसे पेट्स को पाला जाए तो बच्चे को एलर्जी हो सकती है।

ज्यादा गोदी यानी अच्छी इम्यूनिटी

एलर्जी स्पेशलिस्ट डॉ. नीरज गुप्ता के अनुसार बच्चा जब ज्यादा से ज्यादा लोगों की गोद में जाता है तो उसका इम्यून सिस्टम मजबूत बनता है। वह कहते हैं कि इससे बच्चे की इम्यूनिटी ज्यादा तरह के माइक्रोब्स और कीटाणुओं के संपर्क में आती है जिससे वह मजबूत बनती है।

एक स्टडी में भी यह बात सामने आई कि जॉइंट फैमिली के बच्चे एकल परिवार में रह रहे बच्चों से ज्यादा स्वस्थ होते हैं।

बच्चे को पेरेंट्स जितना साफ-सफाई से रखेंगे, उसके एलर्जी होने के चांस बढ़ जाएंगे। इसलिए अगर बच्चा बाहर खेलने जाए, मिट्‌टी में लोट लगाए, फर्श पर दौड़ लगाए या लोग उसे गोद में लेना चाहें तो हाइजीन के बारे में ज्यादा ना सोचें।

घर में ना लगाएं झाड़ू

भारतीय घरों में रोज सुबह-शाम अगरबत्ती और धूपबत्ती जलाई जाती है। डॉ. नीरज के अनुसार यह बच्चे को बीमार कर सकती है। जो बच्चे रेस्पिरेटरी एलर्जी के शिकार होते हैं, उनके पेरेंट्स से पहला सवाल पूछा जाता है कि घर में कोई सिगरेट पीता है? जवाब-ना में मिलता है तो अगरबत्ती या धूपबत्ती जलाने की बात सामने आती है।

घरों के अंदर किसी तरह का धुआं नहीं होना चाहिए। एक अगरबत्ती 60 से 80 और धूपबत्ती 100 से 120 सिगरेट जलाने के बराबर धुआं देती है।

यही नहीं बच्चे को परफ्यूम से भी दिक्कत हो सकती है।

हमारे घरों में रोज सुबह झाड़ू लगाई जाती है जिससे धूल के कण हवा में उड़ने लगते हैं। यह डस्ट 4 घंटे में सेटल होती है इसलिए घर को झाड़ू की बजाय गीले पोछे या वैक्यूम क्लीनर से साफ करें।

टेस्ट से पता चलती है एलर्जी

बच्चे को एलर्जी है या नहीं, इसके लिए ब्लड टेस्ट और स्किन टेस्ट कराए जाते हैं। आजकल बच्चों को एलर्जन इम्यूनोथेरेपी दी जाती है जिसमें एलर्जी से बचने के लिए इंजेक्शन दिए जाते हैं।

अगर किसी बच्चे को एलर्जी हो तो पेरेंट्स को तुरंत डॉक्टर से जांच करवानी चाहिए क्योंकि अगर इनका समय रहते इलाज ना किया जाए तो यह गंभीर हो सकती हैं और इनसे जान भी जा सकती है।

एलर्जी से व्यक्ति को पल्स रेट ज्यादा होने या कम ब्लड प्रेशर जैसी दिल की समस्या और अस्थमा जैसी फेफड़ों से जुड़ी बीमारी हो सकती है।

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