1 घंटे पहले

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“ऐ बंजारे, फिर कहीं चले जाने का इरादा है?”

“क्या करूं? बंजारा हूं तो यहां, वहां, जाने कहां निकलना ही पड़ता है। तुम चलोगी क्या मेरे साथ?”

“ना बाबा ना। जाने कब कहां चल दो। फिर ठहरे तुम बंजारे। दिल भी तो बंजारा होगा। पता नहीं अब तक कितनों को दे चुके हो।”

“कसम से किसी को नहीं दिया सिवाय तुम्हारे। वैसे कोई भरोसा नहीं इस बंजारे दिल का। किसी और पर आ गया तो मैं कुछ नहीं कर पाऊंगा,” बंजारे ने ठिठोली की।

“जान ले लूंगी तुम्हारी,” रूपा ने अपनी बड़ी-बड़ी आंखों से उसे देखा और वहीं पड़े पत्थर को उठाकर उस पर निशाना साध दिया।

“ओह हो, मैं तो मजाक कर रहा हूं। मेरी जान ले लोगी तो जियोगी कैसे,” बंजारा मुस्कुराया और रूपा को बांहों में भर लिया।

“तुमने मेरे साथ छल किया तो भी कौन सा जी पाऊंगी। मेरी धड़कनें तो रुक जाएंगी चाहे जिस बहाने से रुकें।”

“तुम्हारी सांस रुकी तो मैं यमराज से लड़ जाऊंगा। इसलिए समझ लो कि तुम्हारा मुझसे पीछा नहीं छूटेगा और न ही मैं तुम्हें छोडूंगा। तुम मेरे साथ न आओ तो भी तुम्हारा दिल अपने साथ ले जाऊंगा। तुम्हारी यादें, तुम्हारे साथ बिताया वक्त, तुम्हारा प्यार… तुमसे जुड़ी हर चीज अपने साथ ले जाऊंगा।”

“इतना ही प्यार करते हो तो फिर यहीं रुक जाओ। क्यों जा रहे हो किसी और ठौर?”

“नहीं रुक सकता। बंजारा हूं। मुझे तो कुछ दिनों बाद नया ठौर ढूंढना ही पड़ता है। तभी तो कह रहा हूं मेरे साथ चलो। इस बार तुम्हारे गांव में महीनों रुकना पड़ा। नहीं रुकता तो क्या तुमसे मिल पाता? तुमसे प्रेम कर पाता? अब जब हमारी नियति एक दूसरे से जुड़ ही गई है तो साथ चलो मेरे। ऐसे नहीं, ब्याह कर ले जाऊंगा पूरे सम्मान के साथ,” बंजारे ने रूपा की चोटी में फूल लगाते हुए कहा।

“मैं बंजारन नहीं, फिर कैसे चल सकती हूं तुम्हारे साथ? तुम्हारे कबीले के लोग मान जाएंगे? वे मान भी गए तो क्या मेरे बाबा मानेंगे? वह तो मेरा ब्याह किसी मास्टर से करना चाहते हैं। बाबा कहते हैं कि तूने भी 12वीं तक पढ़ाई की है तो पढ़े-लिखे से ही ब्याह करूंगा तेरा।

बाबा तो यह भी चाहते हैं कि मैं शहर जाकर और पढ़ूं। अब तुम ही बताओ, तुम जैसे बंजारे के हाथ में क्या बाबा मेरा हाथ देंगे?” रूपा ने बंजारे की कुर्ती में लटक रहे बटन को तोड़कर मुट्ठी में दबा लिया।

“अभी टांगती हूं बटन। सुई धागा ले आओ।”

“बटन की छोड़ो रूपा। तुम मुझे पढ़ा देना। घूमते-घूमते मैं भी शिक्षित हो जाऊंगा,” बंजारा हंसा।

“हम तो अपने साथ विचार और परंपरा को भी लिए चलते हैं। उन्हें बांटते हैं जगह-जगह। हमारे गीतों में खेत-खलिहान और नदी-नाले गाते हैं, पपीहा सुर छेड़ता है। हवा तान बुनती है। हमारी जिंदगी तो नदी की तरह बहती है। हम रुक नहीं सकते।

तुम भी बंजारन बन जाओ। फिट तुम भी आंखों में मोटा काजल लगाना, घाघरा, चोली और ओढ़नी पहनना। मेरी सुरमई आंखों वाली बंजारन को सब देखेंगे और मेरे भाग्य से जलेंगे,” बंजारे ने रूपा की आंखों में झांकते हुए कहा।

“नहीं जा सकूंगी,” रूपा की आंखों में झर-झर आंसू बहने लगे। “मैं इंतजार करूंगी अगर लौटने का वादा करो तो?”

“मैं वादा नहीं कर सकता। अगर लौटा भी तो न जाने कितने लंबे समय बाद इस ठौर हमारा बसेरा हो। तुम क्या कर पाओगी मेरा इतना लंबा इंतजार? नहीं रूपा, मैं कोई झूठी आस नहीं दे सकता तुम्हें।”

“रुक जाओ। बाबा के साथ खेती करना यहीं। मैं उन्हें मना लूंगी और पढ़ाऊंगी भी तुम्हें। मैं कुछ भी कर सकती हूं तुम्हारे लिए मेरे बंजारे,” रूपा उसके सीने से लग गई।

“मुझे जाना होगा। बंजारा हूं, पर एक बात का भरोसा करना कि मेरा दिल बंजारा नहीं होगा कभी, किसी और से प्रेम नहीं कर पाऊंगा कभी। तुम्हें ही जिंदगी भर चाहता रहूंगा।”

बंजारे का खेमा उठ गया। वीरान हो गई वह जगह जहां कुछ महीनों से रौनक थी। रौनक इसलिए, क्योंकि वहां रूपा का बंजारा रहता था। रूपा रोती रहती। याद करती रहती वे पल जो उसने बंजारे के साथ बिताए थे। कभी किसी पेड़ के नीचे तो कभी गांव की नदी के किनारे घंटों बैठे रहते थे वे।

जाते-जाते बंजारा उसे लाल रंग का घाघरा, रंग-बिरंगी चोली और शीशे-सितारों से सजी ओढ़नी दे गया। हाथों में पहनने वाला चूड़ा, हाथी दांत की चूड़ियां, पैरों में पहनने वाली कड़ियां और एक नथ दे गया।

बंजारा ये कह कर गया था रूपा से कि जब भी मेरी याद आए इन्हें पहन लेना।

रूपा अपने कमरे का दरवाजा बंद कर पहन लेती है बंजारे के दिए कपड़े और गहने। खूब रोती है। कैसे बताए बंजारे को कि उसकी याद तो हमेशा आती है। वह तो उसके दिल में बसता है तो उसे भूल कैसे सकती है।

बाबा रोज ही रूपा के ब्याह की बात करते। वह लड़का ढूंढ रहे थे गांव में ही। शहर भेजना नहीं चाहती उसकी मां रूपा को।

“रूपा मेरी आंखों के सामने रहे। इकलौती औलाद है, कोई ऐसा वर ढूंढना जो हमारे ही घर आकर रहे।”

“पढ़े-लिखे छोरे गांव में हैं ही कितने? ऊपर से घर जमाई बनने को कौन तैयार होगा रूपा की मां?”

“तो न हो पढ़ा-लिखा। बस मेरी छोरी को खुश रखे, उसे खूब प्यार करे।”

मां-बाबा की बात सुन रूपा का मन करता कि बता दे वह ब्याह करना ही नहीं चाहती और खुश तो उसे केवल बंजारा ही रख सकता है। प्यार तो वही कर सकता है उसे।

लेकिन कह कर भी क्या होगा? बंजारा तो चला गया है। कहां है, यह भी नहीं पता। लौटेगा या नहीं यह भी नहीं पता। पर रूपा का विश्वास उससे बार-बार कहता कि वह लौटेगा। वह करती रहेगी इंतजार।

बंजारा कौन सा खुश था रूपा के बगैर। उनका काफिला रूपा के गांव से बहुत दूर निकल आया था। हमेशा उदास रहता, जानता था कि बंजारा है उसे तो एक जगह घर बसा कर रहने की अनुमति भी नहीं मिलेगी। फिर वह न तो पढ़ा-लिखा है, न ही कोई नौकरी करता है। रूपा के पास जा नहीं सकता ऐसे!

“क्यों रे बैजू, दिल कहीं छोड़ आया क्या अपना? हमेशा इतना गुमसुम क्यों रहता है?” बड़ी बहन ने एक दिन अकेले में उससे पूछ ही लिया। उसकी बहन किसी दोस्त से कम नहीं थी। दूसरों का दर्द समझने का गुण था उसमें, फिर यह तो भाई था।

“यही समझ लो बहना। तीन महीने पहले जिस गांव में डेरा डाला था, वहीं मिली थी रूपा। हो गया प्रेम उससे। दिल तो उसका भी दुखाया है मैंने। जानता हूं, वह मेरा इंतजार कर रही होगी, पर क्या बंजारा भी कभी लौट सकता है पीछे?”

“क्यों नहीं?” अपनी ओढ़नी से बैजू के आंसू पूछते हुए उसकी बहन बोली।

बैजू हैरानी से उसे देखने लगा।

“हैरान मत हो। जानती हूं, प्रेम पर किसी का बस नहीं। मैं इस दर्द को झेल चुकी हूं, पर मुझ में हिम्मत नहीं थी कि रुक जाती अपने प्रेमी के पास। कब तक हम बंजारे अपने दिल की नहीं सुनेंगे। तू चला जा। रात को चुपचाप निकल जा। तुझे यकीन है न कि वह तेरा इंतजार कर रही होगी?”

“पर?” बैजू का स्वर कांप रहा था।

“मैं सब संभाल लूंगी। किस्मत रही तो फिर मिलेंगे कभी।”

रूपा उसी जगह खड़ी थी जहां बंजारे का खेमा लगा था। बंजारे को देख उसके सीने से लग गई। मैं जानती थी तुम लौटोगे। अब तुम मेरे साथ घर चलो। जो होगा देखा जाएगा। बाबा नहीं माने तो भाग जाऊंगी तुम्हारे साथ। फिर बंजारन बन घूमूंगी घाघरा, चोली और ओढ़नी पहन।”

बंजारा खुश था, हैरान था और प्रेम में था।

– सुमन बाजपेयी

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