4 घंटे पहले

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नदी की सुंदरता देखते ही बनती थी। लहरें जैसे कोई मधुर रागिनी छेड़ रही थीं। आसपास फैले पेड़ों से पंछियों के चहचहाने की आवाज़ ऐसी लग रही थी जैसे वे नदी की छेड़ी रागिनी पर संगीत की कोई ताल दे रहे हों। चंचल मदमस्त हवा बदन को ऐसे दुलरा रही थी जैसे…राजकुमारी चारुलता शरमा गई। उसका अनछुआ मन राजकुमार चिरंजीवी की कल्पना से ही विभोर हो उठा।

वो नदी के पानी में पांव डालकर बैठ गई और उससे अठखेलियां करने लगी। दासियां उसके कुछ पीछे खड़ी थीं। “राजकुमार आ गए हैं” धाय की आवाज़ सुनाई दी तो दिल की धड़कनों ने तो जैसे बगावत कर दी। चारुलता को लग रहा था कि उसकी धड़कनें नदी का पूरा किनारा सुन रहा होगा। उसकी पलकें झुक गईं और गाल लाल हो गए।

राजकुमार चिरंजीवी भी उसके बगल में अपने पांव नदी में डालकर बैठ गया। उसने एक निगाह चारुलता की ओर डाली तो निगाह ने बगावत कर दी। मुग्ध निगाह उधर से हटना ही नहीं चाहती थी। हिरन की कजरारी और मासूम आंखें, पलकें इतनी घनी कि अपने ही बोझ से झुकी जा रही थीं। सुबह की धूप से दमकते गालों पर शर्म की लाली सूरज की नवोदित किरणों जैसी आभा बिखेर रही थी। कमल की पंखुड़ियों से गुलाबी ओठ रह-रहकर लरज जाते थे। जाने कितनी देर चिरंजीवी चारुलता को ऐसे ही निहारता रहा। आखिर धाय ने कहा – “बहुत देर हो गई है। राजकुमारी को घर जाना है।”

राजकुमार जैसे होश में आया। उसने अपनी उंगली से चारुलता की ठुड्डी पकड़कर उठाई।“ आपकी इजाज़त है? चलूं आपके पिता से आपको मांगने के लिए?” चारुलता की पूरी देह मुस्कुरा उठी।

राजा चंद्रशेखर ने चिरंजीवी को गले से लगा लिया।

“वाह! ये सुंदरता इस दुनिया की नहीं लगती। मेरे पुरोहित को बुलाओ।” श्रवणेंद्रिय ने चित्रकार को धन की पोटली दी और मंत्री को आज्ञा।

चंद्रशेखर को तो जैसे सांप सूंघ गया। वो धम्म से आराम कुर्सी पर ऐसे बैठे जैसे कोई पेड़ कटकर जमीन पर गिर पड़ा हो। रानी और बेटी तक भी इस आपदा की सूचना पहुंची। राजा ने आनन-फानन में सभी विश्वसनीय मंत्रियों और सेनापतियों को जुटने का फरमान भेजा। “किस घर के भेदी ने ढा दी मेरी सोने की लंका? बेटी को घर की चारदीवारी में छिपाकर रखा। किसी समारोह में नहीं जाने दिया। किसी चित्रकार को राजमहल में कभी आने नहीं दिया। पर उसकी सुंदरता की चर्चा श्रवणेंद्रिय तक पहुंच ही गई। ये देखो ”विलाप करते राजा ने उसका पत्र दिखा दिया।“ ये दुष्ट कभी इजाज़त मांगने के लिए पत्र नहीं भेजता है। सीधे पुरोहित से शादी का दिन तय करवाकर फरमान भेजता है कि इस दिन बारात लेकर आ रहा हूं। बीस राजकुमारियों से शादी कर चुका है दुष्ट।” मंत्री बड़बड़ाया तो राजा गुस्से में उठकर खड़ा हो गया। “इतना कमज़ोर नहीं हूं मैं। जब तक सांस है, मेरी बेटी को नहीं ले जा सकता वो। भिजवा दो संदेश कि मेरी बेटी का विवाह उसकी मर्जी से तय हो चुका है और वहीं होगा। हर खबर पर मैं ये सोचता था कि कैसे पिता हैं जो उसका ऐसा पत्र पाकर उसे युद्ध के लिए नहीं ललकारते।” “ऐसा नहीं है महाराज, शुरू में तो उस राजा की दुष्ट आदतों का पता नहीं था लोगों को। इतने शक्तिशाली राजा का प्रस्ताव सबने अपना सौभाग्य समझा। पर कई शादियों के बाद भी जब वो नहीं रुका तब लोगों को एहसास हुआ तो विरोध की भी कोशिश की थी कई राजाओं ने। पर आप भी ये जानते हैं कि उससे लड़कर जीतना हमारे लिए संभव नहीं है।” बूढ़े मंत्री ने अपनी राय दी।“ पर अगर मरने के डर से मैं अपनी ही बेटी की सुरक्षा न कर सकूं तो मैं कैसा पिता! नहीं, भेज दो संदेशा उसे कि मुझे ये विवाह मंजूर नहीं है।”

चारुलता सब कुछ सुन रही थी। उससे और न रहा गया। वो कमरे में आ गई। “इतनी स्वार्थी नहीं हूं मैं पिताजी, और फिर जब मरना निश्चित है तो ऐसा युद्ध करने का क्या मतलब? और फिर आप एक नेक राजा हैं। आपके राज्य में प्रजा सुखी है और सभी बेटियां सुरक्षित। आप एक बेटी के लिए जान दे देंगे तो पूरी प्रजा उस दुष्ट राजा के अधीन हो जाएगी। एक बेटी के लिए आप इतनी बेटियों का जीवन दांव पर नहीं लगा सकते।” “तो क्या तुम्हें उस दुष्ट के साथ ब्याह दूं? उसके बाद मैं जी सकूंगा चैन से?” “मैंने ऐसा कब कहा पिताजी! अगर मरना ही है तो मैं मरूंगी। मेरे मरने से..” “नहीं, नहीं, तुम ऐसा करने की सोचोगी भी नहीं राजा गुस्से से लाल हो गया। “तो ठीक है पिताजी, मुझे ब्याह दीजिए उससे। क्या पता मैं ही उसकी सबसे प्रिय रानी बन जाऊं। आखिर आपने मुझे शिक्षा दी है। बाकी राजकुमारियों की तरह नहीं हूं मैं। फिर मेरी प्रजा की तरफ मेरे भी कुछ कर्तव्य हैं। मैं अपने सेनापतियों को उनकी सेना समेत निश्चित मृत्यु की ओर जाते नहीं देख सकती।” राजकुमारी ने राजा को मना ही लिया। राजा समझ गए कि वो कुछ और ही कहना चाह रही है। सबके सामने निष्कर्ष यही निकला कि धूमधाम से राजकुमारी की शादी श्रवणेंद्रिय से करने की तैयारी की जाए।

रात का दूसरा प्रहर था। चारुलता के कमरे में राजा-रानी हैरान परेशान से टहल रहे थे। तभी राजकुमार चिरंजीवी ने कमरे में कदम रखा।“राजकुमारी ने मुझे उसी दिन सूचना भिजवा दी थी। आप चिंता न करें। आपकी बेटी अब मेरी ज़िम्मेदारी है। भले ही हमारा विवाह संस्कार न हुआ हो पर मन से हम एक-दूसरे के हो चुके हैं।” राजकुमार ने राजा को आश्वस्त करना चाहा तो वो जैसे रो उठे – “पर ये तो बताओ कि आखिर तुम लोग करना क्या चाहते हो?” “सब बताता हूं। पहले आप लोग शांति से बैठ जाइए” तब राजकुमार ने कहना शुरू किया – “पिताजी हमारी सेना आपके साथ जोड़कर सम्मिलित युद्ध के लिए तैयार है। आखिर मेरी भी बहने हैं और इस दुष्ट राजा का आतंक बढ़ता जा रहा है। केवल एक समस्या है पर उस समस्या का हल भी निकाल लूंगा मैं। आखिर मुझे अपनी मां और भाई पर भी पूरा भरोसा है…”

“ये तुम्हारी गलतफहमी है” राजकुमार चिरंजीवी की सौतेली मां चिल्लाई। “तुम समझते हो कि मैं अपने बेटे को इस अभियान में शामिल होने दूंगी? कभी नहीं। बेटे को ही नहीं, मैं तो महाराज को भी इस अभियान का हिस्सा नहीं बनने दूंगी। हम सब जानते हैं कि हम दोनो राज्यों की सेनाएं मिलकर भी उस दुष्ट राजा की सेना की आधी भी नहीं हैं। एक राजकुमार के प्यार के लिए सब के सब आत्महत्या क्यों करें?” “तुम्हारी बेटियों के कारण” राजा चीखा। “माना कि चिरंजीवी तुम्हारा बेटा नहीं है। पर तुम्हारी भी एक बेटी है। कल को उसकी कुदृष्टि तुम्हारी बेटी पर भी पड़ सकती है। और फिर जब हम दो हो जाएंगे तो और कुछ राजा भी हमारे साथ आएंगे। क्योंकि उनकी हिम्मत बंध जाएगी।” “मेरी बेटी की चिंता न कीजिए आप। वो तो उस राजा की पत्नी बनकर खुद को धन्य महसूस करेगी। प्यार जैसे घटिया चीजों में पड़ना उसका स्वभाव नहीं है। वो राजा दुष्ट है अपनी प्रजा के लिए। अपनी दुष्टता के कारण ही इतना धन एकत्र कर लिया है उसने कि उसकी रानियां हर सुविधा में खेलती हैं। और जहां तक प्यार की बात है तो एक ही रानी तो बिरले ही राजा रखते हैं। सौत एक हो या बीस कोई फरक नहीं पड़ता अगर प्यार जैसी फालतू चीज़ की चाहत न हो। राजकुमार सिर झुकाकर चुपचाप वहां से निकल गया। राजा उसे हाथ के इशारे से रोकने की कोशिश करते रह गए।

श्रवणेंद्रिय के विश्वासपात्र सेवक-सेविकाएं चारुलता की सेवा में तैनात कर दिए गए थे। वो एक बार किसी राजकुमारी को पसंद कर लेता तो शादी तक उसे उसी के राजमहल में अपने सेवक-सेविकाओं की नज़र में नज़रबंद कर देता था।

चारुलता आज फिर नदी पर आई थी। पर उसके चेहरे पर उस दिन की तरह उत्साह और रूमानियत नहीं थी। उसके चहरे पर संशय था, डर था, तकलीफ थी। तभी एक सेविका एक पत्र लेकर आई। चारुलता ने बड़े उत्साह से वो पत्र ले लिया। पर उसे पढ़कर उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। पत्र हाथ से छूटा और उसने नदी में छलांग लगा दी। इससे पहले कि कोई सेवक उसे बचाने के लिए नदी में छलांग लगाता, सबने देखा कि एक मगरमच्छ उसे लिए जा रहा था। नदी का तल लाल हो चुका था।

उन राज्यों से बहुत-बहुत दूर एक भले राजा का राज्य था। राज्य में एक छोटा सा प्यारा सा घर। गृहस्वामी गुरुकुल में युद्धकला सिखाने वाला शिक्षक था। गृहस्वामिनी भी अक्षरज्ञान देने वाली शिक्षिका थी। लोग उनका बहुत आदर करते थे। काम पर निकलने से पहले दोनों ने आलिंगनबद्ध होकर एक-दूसरे का चुंबन लिया। ये उनका रोज़ का क्रम था। कब से? जबसे उनकी योजना सफल हुई थी तब से। चिरंजीवी जानता था कि उसकी मां और भाई युद्ध के लिए कभी नहीं मानेंगे। तभी उसने ये योजना बनाई थी। श्रवणेंद्रिय के सेवकों की उपस्थिति में वो चारुलता को पत्र लिखेगा, जिसमें उससे सहायत न कर पाने की माफी के साथ उसे भूलकर विवाह कर लेने की सलाह होगी। बस मगरमच्छ का यंत्र बनाना थोड़ा मुश्किल था पर प्यार करने वाले मुश्किलों से कब घबराते हैं।

-भावना प्रकाश

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