6 घंटे पहले

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जैसे-जैसे अंधेरा घिरता जा रहा था, ध्रुव की पेशानी पर चिंता की लकीरें गहराती जा रही थीं। वह मज़बूती से हाथ स्टीयरिंग पर जमाए हुए था। एक पल की हिचकिचाहट के बाद उसने गाड़ी जंगल के रास्ते की तरफ़ मोड़ ही दी। वह उस ‘हॉन्टेड रिवर’ के क़रीब ही था।

पूरे पांच साल से लगातार वह हर साल इस ख़ास पूर्णिमा की रात को यहां आ रहा था, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल रहा था। उसके बचपन के दोस्त समीर की लाश इसी नदी के किनारे बने दलदल में पाई गई थी। उसका मन यह मानने को तैयार ही नहीं था कि यह कोई हादसा था। उसने अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश की पर कोई फ़ायदा नहीं हुआ। उसने जब आसपास के गांवों में तफ़्तीश की तो उसे पता चला कि इस जगह एक डायन घूमती है, जो पूर्णिमा की रात शिकार पर निकलती है। जो राहगीर उधर से गुज़रता है, उसकी मौत निश्चित है।

ध्रुव इन सब बातों में बिल्कुल भरोसा नहीं करता था लेकिन उसने छानबीन रोकी नहीं थी। अपने दोस्त की बरसी पर वह हर साल यहां आ ही जाता था। आसपास कोई गांव वाला उधर से गुज़रता तो उसको ख़ूब मना भी करता, लेकिन उसे फ़र्क़ नहीं पड़ता था। एहतियातन उसने गंगाजल, भभूत और रुद्राक्ष की अभिमंत्रित माला अपने पास रख रखी थी। हमेशा की तरह आज भी उसका विचार रात भर वहां बिताकर सुबह वापस आने का था।

जैसे-जैसे नदी पास आ रही थी, उसे एक आकृति और कुछ हलचल सी महसूस हुई। उसकी धड़कनें तेज़ हुईं। गंगाजल की बॉटल, भभूत, रुद्राक्ष सब जेब में रखकर वह धीरे से क़रीब आया।

उसने देखा, सादी सी सलवार-क़मीज़ पहने एक बहुत ही ख़ूबसूरत लड़की, जिसकी उम्र 20-22 से ज़्यादा नहीं होगी, दलदल में फंसी थी। वह एक पेड़ की टहनी को पकड़े थी और वहां अजीब सी आवाज़ें आ रही थीं। ध्रुव समझ गया, कुछ तो गड़बड़ है। वह पूरी सावधानी से कुछ दूरी पर खड़ा हो गया और मंत्र पढ़ने लगा।

“वहीं से देखते रहेंगे या हमारी मदद भी करेंगे।” लड़की की सुरीली पर दर्द में डूबी आवाज़ उसके कानों में पड़ी।

“कौन हो तुम और इतनी रात यहां क्या कर रही हो।”

“मेरा नाम प्रत्यक्षा है। यहीं पास के गांव में रहती हूं। मेरा स्कूबी न जाने कैसे यहां आ गया और उसको बचाते हुए मेरा पैर फिसला और मैं इस दलदल में फंस गई। अब अगर आप मेरा इंटरव्यू हाल्ट करके पहले हेल्प कर देंगे तो अच्छा रहेगा।”

ध्रुव की समझ में कुछ आ नहीं रहा था। लड़की की बड़ी-बड़ी सुंदर आंखों में आंसू थे। लेकिन बोलचाल एकदम नॉर्मल शहरी लड़की की तरह ही थी। गांव की कहीं से नहीं लग रही थी। न चाहते हुए भी उसकी आवाज़ कांप गई,

“स..स…स्कूबी कौन?”

लड़की ने उंगली से इशारा किया। एक बड़ा सा ब्राउन ग्रेट डेन नस्ल का कुत्ता कुछ ही आगे दलदल में कंटीली झाड़ियों के बीच फंसा घुरघुराहट की तरह आवाज़ें निकाल रहा था। ध्रुव को कुत्ते बहुत पसन्द थे। उसका प्यारा डॉगी एलन कुछ समय पहले ही गुज़र चुका था। वह फ़ौरन कुत्ते को बचाने आगे बढ़ा, फिर सोचा, शायद यह इस डायन की चाल है। एक बार वह दलदल में उतरा तो कभी बाहर नहीं जा पाएगा, उसके दोस्त की तरह। वह बेख़्याली में पीछे हटने लगा।

लड़की एकदम से बोली, “सुनिये सर, आप चाहे मुझे यहां छोड़ दें, मैं इस पेड़ की टहनी पकड़े रात गुज़ार लूंगी। सुबह कोई न कोई तो मुझे ढूंढ़ते आ ही जाएगा या हो सके तो आप ही कॉल कर देना मेरे पापा को। लेकिन स्कूबी को मत छोड़कर जाइये। वह घायल है और घबराया हुआ है। जितना वह झाड़ियों पर पैर जमाने की कोशिश कर रहा है, उतना घायल होता जा रहा है। यहां जोंक भी हैं। खून से और ज़्यादा अट्रैक्ट होंगी। वह सर्वाइव नहीं कर पाएगा सुबह तक। प्लीज़ सर… “

अब वह हिचकियों से रो रही थी। ध्रुव असमंजस में था, जिसे वह ढूंढ़ रहा था, वह सामने थी पर वह कुछ कर नहीं पा रहा था। दूसरी तरफ़ उस कुत्ते की आंखें जो कातर भाव से उस पर टिकी थीं।

“ओह्ह गॉड! अगर मैं यहां से चला गया तो ज़िन्दगी भर इन दोनों की आंखें मेरा पीछा करेंगी। रिस्क तो लेना ही होगा। हे भूतनाथ! महादेव सहायता करिये। हे मां! शक्ति दीजिये।”

उसने सावधानी से कार से रस्सी निकाली, एक छोर अपनी कार से फिक्स किया, दूसरा हिस्सा अपनी कमर पर बांधा, दलदल का जायज़ा लिया और बिन पैर चलाए, पेट के बल लेटकर रेंगते हुए आगे बढ़ने लगा। कुत्ते तक पहुंचकर उसने सावधानी से कांटे अलग किये, अपना बेल्ट उसकी कमर पर बांधा और बड़ी मशक्कत से उसे अपने साथ घसीटते हुए किनारे पर ले आया। दोनों बहुत थके थे पर कुत्ता अपनी मालकिन को देखकर लगातार भौंके जा रहा था।

“चिल मार यार। सांस ले लेने दे। जा रहा हूं उसके पास।” ध्रुव ने दुबारा ताकत इकट्ठा की और लड़की की तरफ़ बढ़ा। जब वह उसके क़रीब पहुंचा तो उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया, जिसमें अभिमंत्रित रुद्राक्ष की माला लिपटी थी। लड़की ने तुरन्त उसका हाथ पकड़ लिया। वह हैरान रह गया।

“डोन्ट वरी, मैं पैनिक करके आप पर अपना पूरा लोड नहीं डालूंगी। ताकि आप भी फंस न जाएं। रस्सी का एक हिस्सा मुझे दीजिये, मैं अपना वेट कैरी कर सकती हूं।” ध्रुव ने आज्ञाकारी बच्चे की तरह उसकी बात मान ली।

अब वे तीनों किनारे पर खड़े थे। लड़की के कपड़े जहां-तहां से फट गए थे, जिससे वह असहज हो रही थी। कुत्ता निढाल सा पास ही पड़ा हांफ रहा था।

“थोड़ा पानी मिलेगा।” लड़की ने कहा।

“ओह्ह हां।” कहते हुए ध्रुव ने गंगाजल की बॉटल निकाली और उसे पकड़ा दी। गट-गट-गट वह पूरा पानी पी चुकी थी। इस बीच ध्रुव ने उस कुत्ते पर थोड़ी सी भभूत छिड़क दी थी और बॉटल लेते समय लड़की को धीरे से छूकर उसके हाथ पर भी थोड़ी सी लगा दी थी।

“अब या तो ये इतनी पॉवरफुल डायन है, जिस पर यह सब असर नहीं करता, पर यह हो नहीं सकता। ये तो बहुत बड़े सिद्ध महात्मा ने दी है। शायद यह कोई आम लड़की ही है।” वह दुविधा में था कि लड़की की आवाज़ फिर आई-

“आप प्लीज़ मेरे पापा को कॉल कर दें, वे मुझे लेने आ जाएंगे। उनका नम्बर नाइन वन वन सेवन…. है। आपका बहुत शुक्रिया। आपने हम दोनों की जान बचाई है। वैसे तो मैं ख़ुद चली जाती पर रात बहुत है, स्कूबी घायल, थका और डरा हुआ है। बेहतर है हम यहीं किसी सेफ जगह पर इंतज़ार कर लें।”

“क्या तुम मेरी कार में लिफ्ट लेना पसन्द करोगी।” न जाने कैसे ध्रुव के मुंह से अपने आप फिसल गया, जिस पर वह पछताया भी।

“नहीं सर, आपकी गाड़ी ख़राब हो जाएगी। स्कूबी और मेरी हालत देखिये।”

“हालत तो मेरी भी ऐसी ही है।”

“तो आप चेंज कर लीजिये न स्पेयर ड्रेस तो होगी कोई। इनको पॉली बैग में रख लीजियेगा।”

“इसे कैसे पता कि मेरे पास कपड़ों की जोड़ी और पॉलीथिन बैग है।” ध्रुव के दिमाग़ में फिर खटका हुआ।

“नहीं हैं? कोई बात नहीं। फिर जल्दी से जल्दी घर जाकर चेंज कर लीजिये। इतनी रात इस जंगल में, पानी के किनारे रुकना ठीक नहीं।” लड़की ने कहा।

“ह्म्म्म। ज़ाहिर है, तुम लोगों को भी यहां नहीं छोड़ सकता। चलो, गाँव की बॉर्डर तक छोड़ दूँ।”

धड़कते दिल के साथ उसने उनको बैठा तो लिया था, पर हर पल चौकन्ना था। उसे लग रहा था, किसी भी पल वह कुत्ता और वह लड़की खूँखार तरीक़े से अपने दाँत और पंजे उसमें गड़ा देंगे। क्या ज़रूरत थी रिस्क लेने की। क्या पता, इस लड़की का सम्मोहन ही उससे यह सब करवा रहा हो उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़। क्या पता सुबह उसकी लाश कहाँ मिलेगी।

“एक्सक्यूज़ मी सर। मे आई आस्क, आप इस रूट पर कैसे पहुँचे। यह अक्सर सुनसान रहता है। लोग आते नहीं इधर।” लड़की ने थोड़ी देर बाद बात शुरु की।

“हाँ क्योंकि यह एरिया हॉन्टेड है। एक डायन जवान लड़कों का शिकार करती घूमती है।” ध्रुव ने नफ़रत से कहा।

“डायन। हाहाहा। यह भी ख़ूब कही आपने। जो भी औरत इस समाज के तयशुदा नियम क़ायदों और बंदिशों को न माने, वह डायन ही तो है। इतिहास औरतों के खून से रंगा हुआ है सर। क्या आप इस डायन के लीजेंड को सुनना चाहेंगे।”

“सुनाओ।” ध्रुव ने चौंककर कहा।

“बात 1890 की है। यहाँ का ब्रिटिश गर्वनर बहुत क्रूर और अय्याश आदमी था। गाँव की महिलाएं उसकी परछाई से भी बचती थीं। एक दिन उसने अपने माली को बुलाया और कहा, उसकी कोठी फूलों से सजा दे, उसकी पत्नी ब्रिटेन से आ रही है। वह उसे लेने जा रहा है, अगले दिन लौटेगा। सबने राहत की साँस ली कि पत्नी के आने से शायद उसका व्याभिचार रुक जाए। चूंकि फूल ताज़े ही लगाने थे और बहुत सारे चाहिये थे, माली की बेटी ने भी बाबा की मदद की। कोठी में कोई नहीं था, दोनों बेफिक्री से काम कर रहे थे। थोड़े ही तोरण बचे थे तो बेटी ने कहा कि दो घण्टे में काम ख़त्म करके आ जाएगी।

चूंकि गर्वनर अगले दिन आने वाला था, बाबा मान गए। लेकिन उनके जाते ही कोठी का दरवाज़ा बन्द हो गया। गवर्नर कहीं गया ही नहीं था। उसकी नज़र कबसे माली की बेटी पर थी। अपनी हवस मिटाकर उसने लड़की को जीप में डाला और बदहाल, मरणासन्न इसी नदी में फेंक दिया।

तब से कहते हैं उस लड़की की आत्मा यहीं भटकती है। उसने उस गर्वनर को खौफ़नाक मौत दी। अब भी वह मुसीबतज़दा लड़की का रूप लेकर राहगीरों को मदद के लिये पुकारती है। जो उसकी पुकार अनसुनी कर देते हैं, उनके साथ बहुत बुरा होता है। बरबाद हो जाते हैं। लेकिन जो मदद के बहाने उसका फ़ायदा उठाना चाहते हैं, उस पर बुरी नज़र डालते हैं, उनको वह वहीं डुबोकर मार देती है। लेकिन जो मानवता के नाते मदद करते हैं, मन में कोई खोट नहीं होता, उनको सुख-समृद्धि और मनचाही इच्छा पूरी कर देती है।”

लड़की के चुप होते ही ध्रुव के हाथ-पैर काँपने लगे थे। एकबारगी तो उसका मन कह रहा था, खूब धन-दौलत, बड़ी गाड़ी, बंगला मांग ले। लेकिन फिर उसने ख़ुद को डपटा, “होश के नाखून ले और इस बला को दफ़ा कर चुपचाप।”

“मेरा घर आने ही वाला है सर, वह बिल्डिंग देखिये। आप प्लीज़ कपड़े चेंज करके, डिनर करके जाइयेगा।”

“अरे नहीं, नहीं। मैं पहले ही बहुत लेट हो चुका हूँ।” ध्रुव ने जल्दी से कहा। उसने कार की स्पीड बढ़ा दी थी और सीधा उसके घर लाकर ही रोकी।

बाहर ही बड़ी सी सफेद दाढ़ी और काली फ्रेम के मोटे चश्मे में एक 55-56 साल का व्यक्ति बेचैनी से इधर-उधर टहल रहा था। वह कार की तरफ दौड़ा।

“बेटा, कहाँ चली गई थीं, यह क्या हाल बना रखा है। तुम मुझे ऐसे ही हार्ट अटैक दे दोगी एक दिन।” फिर वह अजनबी को शुक्रिया कहने मुड़े और चश्मे के पीछे से आँखें सिकोड़ते हुए बोले-

“ध्रुव शर्मा, सेंट जोसफ स्कूल, राइट।”

“अरे बॉटनी वाले सर, आई मीन सहगल सर आप।”

उसने जल्दी से गाड़ी से उतरकर उनके चरण-स्पर्श किये।

“बच्चे, बहुत बड़ा वाला थैंक्यू। मैं यहाँ बॉटनी के एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में दो साल से हूँ। यहाँ के रेयर पेड़ पौधों पर रिसर्च कर रहा हूँ। यह मेरी बेटी प्रत्यक्षा तुम्हारे ही शहर से एमबीए कर रही है। छुट्टियों में मिलने आती है और पता नहीं कहाँ कहाँ क्या खुराफातें करती रहती है। तुम आओ अंदर, नहा लो, कुछ खा लो। रात बहुत हो गई है।”

ध्रुव ने इतनी देर में पहली बार राहत की सांस ली। थकान की वजह से वहीं रुकना मुनासिब समझा। सुबह रवानगी में प्रत्यक्षा भी उसके साथ थी, उसे भी शहर जाना था। पीछे स्कूबी आराम से सोया था।

“सच बताइये, रात आप डर गए थे न।” वह शरारत से मुस्कुरा रही थी।

“नहीं, मैं डरता वरता नहीं हूँ। पर ऐसे रात को मत निकल पड़ा करो।”

“नहीं निकलती। इस स्कूबी के बच्चे के चक्कर में सब गड़बड़ हुई।”

आगे रास्ते भर ध्रुव प्रत्यक्षा के सलोने चेहरे, मीठी आवाज़ और प्यारी बातों में खोया रहा था। एक नए प्यार भरे सफर की शुरुआत हो गई थी। स्कूबी के चेहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कुराहट थी।

-नाज़िया खान

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