18 घंटे पहलेलेखक: मरजिया जाफर

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‘मुझे साउथ फिल्म इंडस्ट्री में कास्टिंग काउच का सामना करना पड़ा। मैंने साउथ की एक फिल्म के लिए ऑडिशन दिया और सिलेक्ट भी हो गई। मुझसे कहा गया फिल्म पाने के लिए आपको समझौता करना होगा। मैं वहां से यह कहकर निकल गई कि फिल्ममेकर को टैलेंट की नहीं बल्कि एक लड़की की जरूरत है और मैं वैसी लड़की नहीं हूं।’

ये शब्द फिल्म अभिनेत्री अंकिता लोखंडे के हैं जिन्होंने साउथ फिल्म इंडस्ट्री पर कास्टिंग काउच का आरोप लगाया है।

कास्टिंग काउच सभ्य समाज की डर्टी पिक्चर है। ये बात एक बार फिर ‘पवित्र रिश्ता’ फेम अंकिता लोखंडे के बयान ने साबित कर दिया है। बिग बॉस के घर से निकलने के बाद अंकिता ने एक इंटरव्यू में बेबाकी के साथ कास्टिंग काउच को लेकर चौंकाने वाले खुलासे किए।

काम के बदले शरीर का समझौता

कास्टिंग काउच ग्लैमर इंडस्ट्री में वो शब्द है जिससे जुड़े राज समय समय पर सामने आते रहते हैं। इस कड़ी में अंकिता लोखंडे का ताजा बयान खूब चर्चा में है। फिल्मों में काम करने के लिए प्रोड्यूसर के पास पहुंचीं लड़कियों को रोल के बदले उनके आगे भद्दी मांगें रखी जाती हैं।

ऑफर मिलता…जबरदस्ती…या शिकार

कास्टिंग काउच के बारे में ज्यादा कहने सुनने की जरूरत नहीं। बस इतना समझ लीजिए पर्दे पर हर तरह के किरदार को जिंदा रखने वालों की पिक्चर डर्टी है। जाहिर है इसमें या तो खुलेआम ऑफर के बदले फेवर मांगा जाता है, कभी जबरदस्ती होती या जाने अनजाने कोई शिकार बनता है।

बंद दरवाजों के बीच हो रहे इस घिनौने खेल का पर्दाफाश विक्टिम के बाहर आते ही हो जाता। यह समस्या सिर्फ ग्लैमर की दुनिया से नहीं बल्कि हर फील्ड में देखने को मिलती है।

स्टिंग ऑपरेशन में कई चेहरे बेनकाब

साल 2005 में एक न्यूज चैनल नें बॉलीवुड की हस्तियों का स्टिंग ऑपरेशन किया। इसमें शक्ति कपूर, अमन वर्मा जैसे लोग लड़की को छेड़ते नजर आए। टेप सामने आने के बाद इसे साजिश करार कर दिया गया। कास्टिंग मेन्टोर वीरेंद्र राठौर कहते हैं कि हमेशा हर चीज के दो पहलू होते हैं। ये बातें सभी के लिए समझना बहुत जरूरी है। कास्टिंग काउच का आरोप तब लगाया जाता है जब करियर की सेकंड इनिंग की शुरुआत होती है या करियर खत्म होने के कगार पर होता है। करियर की शुरूआत मैं ऐसे मामले कम ही होते हैं। आज फिल्म इंडस्ट्री में इतने पढ़े-लिखे लोग हो गए हैं कि कब क्या एक्शन लेना है सबको पता होता है। चूंकि फिल्म इंडस्ट्री का डार्क साइड ज्यादा चर्चा में रहता है इसलिए सच्चाई पूरी तरह से सामने नहीं आ पाती।दूसरा पहलू उन लोगों का है जो रेगुलर प्रोड्यूसर डायरेक्टर नहीं हैं। शौकिया फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हैं। ऐसे लोगों की बॉलीवुड में तादाद बहुत ज्यादा है। इन लोगों को फिजिकल फेवर का लालच ही फिल्म इंडस्ट्री में लाता है। फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखते ही उनका स्त्री को लेकर फायदा उठाने का इरादा सिर उठाने लगता है।

हो सकता है कि किसी एक्ट्रेस या आर्टिस्ट का ऐसे लोगों से सामना हुआ हो जो इस तरह के फेवर की डिमांड रखता हो। लेकिन नामी प्रोड्यूसर अपने प्रोजेक्ट को लेकर गंभीर होते हैं। उन्हें अपने काम के जरिये अपनी इमेज बनानी होती है और अपनी इमेज को लेकर बहुत सजग होते हैं।

इस लिए बड़े बड़े प्रोड्यूसर कभी भी अपने बिजनेस के साथ खिलवाड़ नहीं करते। वीरेंद्र राठौर कहते हैं, ‘मीटू मूवमेंट’ के समय पर मैंने कई मामलों को देखा। एक एक केस के बारे में तफ्सील से बात करना मुश्किल है लेकिन जो बड़े नाम बाहर आए उसमें से उन्हीं के खिलाफ एक्शन हुआ जिनके खिलाफ आरोप सही पाए गए। ऐसे व्यक्ति को 4 साल के लिए फिल्म इंडस्ट्री ने बैन कर दिया।

राजनीति में भी महिला यौन शोषण की शिकार

कास्टिंग काउच के समुद्र में सिर्फ बॉलीवुड ही नहीं गोते लगाता बल्कि हर क्षेत्र में महिला को किसी न किसी रूप यौन शोषण का शिकार होना पड़ता है। सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की रिपोर्ट के मुताबिक महिलाएं आम जीवन में परेशानियां तो झेलती हैं, लेकिन राजनीतिक दलों में भी उन्हें समस्याओं का सामना करना पड़ता। पुरुषों के वर्चस्व वाले सियासी दलों में महिलाओं की लाचारी साफ नजर आती है। महिलाएं कभी खुलकर अपनी परेशानी नहीं कह सकतीं। इन्हें यौन शोषण से लेकर भेदभाव तक सब कुछ झेलना पड़ता है। नतीजा महिलाओं को पॉलिटिक्स में वो ओहदा नहीं मिलता जिसकी वो हकदार हैं। नेता यौन उत्पीड़न जैसी घिनौनी हरकत पर भी सियासत करने से बाज नहीं आते।

पार्टी कार्यालय में दुष्कर्म

इन दिनों महिलाओं के साथ उत्पीड़न और यौन शोषण को लेकर पश्चिम बंगाल का संदेशखाली गांव चर्चा में है। गांव की कुछ महिलाओं ने टीएमसी के नेता पर यौन उत्पीड़न और जमीन पर कब्जा करने का आरोप लगाते हुए कहा कि, तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ता सुंदर लड़कियों को उठाकर पार्टी कार्यालय ले जाते हैं। वो उनके साथ दुष्कर्म करते हैं। जबकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुद एक महिला हैं। बावजूद इसके महिलाओं के साथ इस तरह की घटना शर्मसार करती हैं।

स्पोर्ट्स कोच भी बदनाम

स्पोर्ट में दुनिया बदलने की ताकत है, लेकिन यहां भी महिला खिलाड़ियों को भेदभाव और शोषण का सामना करना पड़ता है। जिसे हर संभव दबाने की कोशिश की जाती है।

पिछले साल बास्केटबॉल प्लेयर लिथारा के आत्महत्या के मामले ने तूल पकड़ा। वह केरल से थीं लेकिन बिहार की राजधानी पटना के गांधी नगर में रहती थीं। लिथारा के मामा ने कोच रवि सिंह पर मानसिक और यौन शोषण का आरोप लगाया। उनके पास से मलयालम में लिखा सुसाइड नोट भी बरामद

हुआ।

यह कोई पहला मामला नहीं है जब कोच पर इस तरह का आरोप लगा हो। उत्पीड़न झेलने वालीं कुछ महिला एथलीट ने आवाज उठाई, किसी ने सुसाइड किया तो कुछ ने खेल के मैदान से ही तौबा कर ली।

स्पोर्ट से तौबा

इटली में हुए ग्लोबल मीट की 100 मीटर रेस में भारत को पहली बार गोल्ड मेडल दिलवाने वालीं नेशनल एथलीट दुती चंद ने का कहना है कि गांव में बनीं खेल अकादमी में बच्चियों का शोषण ज्यादा होता है। कुछ कोच लड़कियों का यौन शोषण करने की कोशिश करते हैं। मुझे कुछ लड़कियों ने बताया था कि उनके कोच उन्हें नेशनल लेवल तक पहुंचाने के झूठे वादे कर उन्हें परेशान करते थे। लेकिन कोच के खिलाफ एक्शन लेने पर उन्हें इस बात की धमकी दी जाती है कि उनका करियर खत्म हो जाएगा। इस डर से कई लड़कियों ने स्पोर्ट्स से किनारा कर लिया तो कुछ डिप्रेशन का शिकार हो गईं।

ऑफिस, फैक्ट्री हर जगह महिलाओं के साथ यौन शोषण की घटनाएं आम हैं। जबकि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न को रोकने के लिए कानून बने हुए हैं। यौन शोषण करने वाले लोग इतने ताकतवर हैं कि वो सच को झूठ और झूठ को सच में बदलने में कामयाब हो जाते हैं। अपने ताकत के ही बल पर वो टैलेंट की या बलि चढ़ाते हैं या फिर स्त्री शरीर से उसका मोल भाव करते हैं। इन परिस्थितियों में ‘समझौता’ स्त्री के लिए एक खतरनाक शब्द बन जाता है।

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