नई दिल्ली2 घंटे पहलेलेखक: मरजिया जाफर

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आज एक ऐसी लड़की की कहानी जिसने छोटी उम्र में ही बड़ा नाम और काम दोनों बना लिए। कम उम्र में उसने न सिर्फ अपनी कंपनी बनाई बल्कि विदेशों में भी अपने बनाए प्रोडक्ट्स आज सप्लाई कर रही है। इसने न जाने कितनी महिलाओं को नौकरी दी। साथ ही देश के गांव में रह रही महिलाओं का हुनर पहचान कर उन्हें भी काम पर लगा दिया।

दैनिक भास्कर की ये मैं हूं सीरीज में आज जानिए दिल्ली की रहने वाली आरुषि की कहानी उन्हीं के लफ्जों में…

हेलो दोस्तों…

मेरा नाम आरुषि है, मैं एक्सपोर्ट के बिजनेस से जुड़ी हूं। फैशनेबल ड्रेस, कस्टमाइज जूलरी, डेकोरेटिव आइटम्स, बच्चों के कपड़े, एक्सेसरीज़ एक्सपोर्ट करती हूं। शुरू से ही मेरी दिलचस्पी बिजनेस में रही। मैं कॉलेज के दिनों में मां के साथ अमेजॉन और कई दूसरी ई-कॉमर्स साइट्स पर साड़ी और सूट की सेल किया करती थी। कॉम्पिटिशन ज्यादा होने की वजह से काम ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका। क्योंकि इस सामान से मार्केट भरा नजर आता है।

जिंदगी में कुछ अलग करने की चाहत थी, लेकिन रास्ता नहीं सूझ रहा था। जब कुछ समझ नहीं आया तो मैेंने ऑनलाइन सेलिंग का काम छोड़कर कॉलेज के बाद मैंने एक कंपनी में जॉब भी की, लेकिन वहां भी मेरा मन नहीं लगा। मैंने फुल टाइम बिजनेस करने का फैसला किया।

30 हजार रुपए में कंपनी रजिस्टर की

कुछ दिन नौकरी करने के बाद मेरा मन नौकरी से भी हट गया। मुझे वैसे भी नौकरी से ज्यादा लगाव कभी नहीं रहा। ये बात 2017 की है, जब मैंने नौकरी छोड़कर अपनी कंपनी बनाई, ‘लैविश’ नाम की इस कंपनी को मैंने महज 30 हजार रुपए से शुरू किया। शुरुआत में मैं अमेजॉन के साथ मिलकर इंटरनेशनल सेल करती रही।

एक-दो साल काम ऐसे ही चलता रहा। लेकिन बाद में मुझे कुछ इंटरनेशनल बायर मिल गए तो मैंने अपनी खुद की मैन्युफैक्चरिंग शुरू कर दी। जिसमें मैं अपने डिजाइन बनाने के साथ साथ बायर्स के बताए डिजाइन पर भी काम करती। मुझे अच्छे खासे ऑर्डर मिलने लगे, काम चल निकला।

यहां सिर्फ महिलाएं काम करती हैं

मेरी कंपनी में सिर्फ महिलाएं ही काम करती हैं। मैं इंडिया के गांव से भी कला को खोज कर उनके हुनर को तराशकर विदोशों में प्रोडक्ट्स बनाकर बेचती हूं। महिलाओं को अपने साथ जोड़ने का एक खास मकसद है। पहला ये कि उन्हें घर बैठे रोजगार मिल जाए और दूसरा उनके हुनर को दुनिया में पहचान मिले। भारत की हैंड मेड ज्वेलरी की विदेशों में काफी डिमांड है। राजस्थानी पोशाक, बंजारा ज्वेलरी की विदेशी महिला दिवानी हैं। उन्हें भारत की संस्कृति से बहुत लगाव है जिसकी वजह से वो लोग भारतीय पहनावे, गहने की ओर आकर्षित होते हैं।

मेरी मां सिंगल मदर हैं

मेरी सफलता के पीछे मेरी मां का बहुत बड़ा सपोर्ट रहा है। उन्होंने मुझे हमेशा आगे बढ़ने के लिए हौसला दिया है। मेरी मां ने मुझे और मुझसे पांच साल छोटी बहन को बहुत मुश्किलों से पाला। मां पेशे डॉक्टर हैं, इसलिए हम बहनों के पालन पोषण में कभी कोई कमी नहीं रही।

मैंने जो चाहा वो पाया। आज मैं 12 से ज्यादा देशों की यात्रा कर चुकी हूं, मैं अपने फैसले खुद लेती हूं। इसका यह मतलब नहीं कि मैं मां की बातों को तवज्जो नहीं देती बल्कि मेरी मां ने मुझे इतना आत्मनिर्भर बना दिया है कि मैं बड़े से बड़े फैसले खुद कर सकूं। मां हमारे संग मजबूती के साथ खड़ी रहती हैं।

सरनेम नहीं लगाती

ये मेरा खुद का फैसला था कि मैं अपने नाम के साथ सरनेम न लगाऊं। मेरे ऊपर किसी ने इसके लिए दबाव नहीं डाला। मेरी बहन भी मेरी तरह सिर्फ अपना पहला नाम ही इस्तेमाल करती है। मुझे लगता है कि जब आपके नाम से ही आपकी पहचान है तो सेकेंड नेम लगाने की क्या जरूरत है। इंसान का काम ही उसकी पहचान है। इसलिए मैं सरनेम लगाना जरूरी नहीं समझती।

लेकिन फिर लीगल डॉक्यूमेंटस में काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। स्कूल, कॉलेज हर जगह मुझसे सवाल पूछे गए। मगर फिर भी मैंने अपना फैसला नहीं बदला और सरनेम न लगाने के मजबूत सोच पर टिकी रही। मेरे सारे सार्टिफिकेट पर सिर्फ मेरा नाम है।

मैं वर्ल्ड सोलो ट्रैवलर हूं

मैं एक सोलो ट्रैवलर भी हूं। मुझे घूमने फिरने का बहुत शौक है। इस खूबसूरत दुनिया को कुदरत ने रंग बिरंगे रंगों से सजाया है।

मैंने कई देशों की यात्रा की है। विदेशों में जाकर मैंने बहुत कुछ सीखा। दूसरे देश की संस्कृति, पहनावा, खानपान, फैशन, तीज त्यौहार जिसकी झलक आपको मेरे काम में भी नजर आएगी।

दुनिया की हर जगह अपनी एक अलग पहचान और खासियत के लिए मशहूर है। मैं अब तक 12 देशों की यात्रा कर चुकी हूं और मेरा सफर अभी जारी है। कहते हैं ना जहां चाह वहां राह। मैें भारत के गांवों में छिपी सांस्कृतिक और कलात्मक प्रतिभा की खोज कर उनके हुनर को दुनियाभर में पहचान दिला रही हूं।

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