4 घंटे पहले

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अदिति की निगाहें फिर उसी डैशिंग पर्सनालिटी वाले युवा बिजनेसमैन वीर पर अटक गईं। वो शोशल मीडिया पर वक्त बिताना बहुत पसंद करती है। उसके पैशन और बिजनेस दोनों के लिए जरूरी शोशल मीडिया से उसे बहुत लगाव है। वो एक उभरती कलाकार है और अपनी कलाकृतियों की बिक्री और प्रशंसा के लिए शोशल मीडिया उसकी जरूरत भी है और एकमात्र मनोरंजन भी।

लेकिन वो किसी अनजान लड़के को कभी फॉलो नहीं करती। एक बार कच्ची उम्र में शोशल मीडिया के माध्यम से ही प्यार हुआ था उसे। उस प्यार पर भरोसा करके इतनी खतरनाक खाई में गिरते-गिरते बची थी कि याद करके आज भी मन सिहर उठता है। अगर मम्मी-पापा इतने सतर्क न होते तो…

अब वो युवा हो गई है तो सतर्कता की जिम्मेदारी उसकी है। कम से कम वो तो ऐसा ही समझती है। पर ये जो दिल है न, बड़ा गुस्ताख होता है। जिस चीज के लिए जितना मना करो उसके पीछे उतना ही भागता है। ‘कौन सा मैं इससे रियल लाइफ में मिलने जा रही हूं’ ‘पोस्ट्स ही तो देखनी हैं, जानकारी वाली भी होती हैं, और मनोरंजक भी’ दिल ने सोचा और उंगलियों ने फॉलो का बटन दबा दिया। फॉलो बैक भी तुरंत हो गया।

“क्या हो रहा है?” नैना उसके रूम में आकर बेफिक्री से पसरी तो अदिति चौंक गई। उसे लगा जैसे वो कोई चोरी करते पकड़ी गई हो।

“ओए, होए, तो फॉलो कर ही लिया मिस्टर डैशिंग को?” नैना उसका चेहरा पढ़ने में जितनी माहिर थी उतनी ही उसे चिढ़ाने में।

“सिर्फ बिजनेस के हुनर सीखने के लिए किया है। आखिर मुझे अपनी कलाकृतियों की मार्केटिंग तो करनी ही होती है।” अब नैना उसे गले लगाकर खिलखिला पड़ी।

“ओए, उमर तो तेरी मैटिमोनियल पर लोगों को फॉलो करने की हो गई है और तू है कि इंस्टाग्राम पर फॉलो करने से छिपा रही है। वो भी अपनी फ्रेंड से। हद है यार…”

जब तक अदिति कुछ कहती, अपनी झेंप मिटाने के बहाने सोचती, नैना उसके हाथ से मोबाइल छीन ‘मिस्टर डैशिंग को एक अच्छा सा उसकी तारीफ वाला मैसेज टाइप कर चुकी थी। उसकी खूबसूरती और कलाकृतियों की तारीफ करता जवाब भी तुरंत हाज़िर था।

कुछ तो बात थी इस बंदे में। अदिति के दिल ने एक बार फिर दिल के सूने कमरे में बंद एहसासों के दरवाजे पर दस्तक देनी शुरू कर दी थी। इससे बातें करना अच्छा लगने लगा था। बातें साधारण होती थीं, लेकिन जब बातें कर रही होती, तो कुछ तो रूमानियत जुड़ जाती थी उसमें।

बाद में खुद अपनी ही चैट पढ़ पढ़कर सोचती रहती कि इतनी कैज़ुअल कॉमर्शियल बातों में ऐसा क्या है जो उसे गुदगुदा जाता है।

“जो है वो बातों में नहीं बंदे में है” नैना एक दिन उसका चेहरा पढ़कर बोली तो अदिति खीझ उठी। फिर तो दोनो की फाइटिंग में बेचारे तकिये को शहीद होना ही था।

इधर वीर की कहानी कुछ अलग ही थी। युवा बिजनेस मैन वीर के घर के हालात तब बहुत खराब हो गए थे जब वो बारह बरस का था और उसके पिता कार दुर्घटना में पैरालाइज़्ड हो गए थे। नौकरी गई और जमा-पूंजी उनके इलाज पर खर्च हो गई।

तेरह साल की उम्र में पढ़ाई छोड़कर परिवार पालने के लिए उसने बिज़नेस शुरू किया था। पर उसकी और उसकी मम्मी और बहन तारा की निष्ठा, मेहनत और किस्मत के साथ से वो अच्छे से बढ़ गया था। फिर पापा ने ठीक होने के बाद अपना पूरा जोर लगाया तो वो काफी ऊपर उठ गया।

घर के हालात तो पापा के नौकरी वाले समय से भी अच्छे हो गए थे, पर छोटी उम्र में असामान्य स्थिति जीने से वीर बहुत गंभीर प्रकृति का बन गया था। रिश्तो से उसका विश्वास उन बुरे दिनो में लोगों का रवैया देखकर उठ चुका था। इसीलिए वो शादी भी नहीं करना चाहता था। वो शोशल मीडिया से भी कोसो दूर था। मोबाइल और नेट से उसे सख्त एलर्जी थी।

उसके एकाउंट्स उसकी बहन तारा ने बनाए थे और वही अपडेट करती थी। क्योंकि उसे लगता था कि बिजनेस ग्रो करने के लिए ये जरूरी है। अदिति उसे पहली नजर में ही पसंद आ गई थी। उसकी पोस्ट देखकर जितना उसके रहन-सहन और स्वभाव का अंदाजा लगाया जा सकता था, वो भी अच्छा लगा तो तारा शरारती मन चंचल हो उठा।

उसने अदिति को फॉलो बैक कर दिया था। उसकी बिजनेस क्वेरीज वो वीर के सामने रख देती थी और वीर उसके उत्तर लिख देता था। पर जब उधर से बात बढ़ाते हुए कोई दूसरा प्रश्न आ जाता तो वीर आगे बातें करने लगता। पर अब उसे भी लगने लगा था कि मतलब के प्रश्न-उत्तर के बाद यों बिन मतलब की बातें करना उसे अच्छा क्यों लगने लगा है।

उसे तो वो ऐप खोलना भी नहीं आता था। धीरे-धीरे वो खुलने लगे और बात यहां तक पहुंची कि लगने लगा कि अगर कोई सच्चा हमसफर हो सकता है तो यही है।

तभी तारा के एक्साम्स शुरू हो गए और उसने शोशल मीडिया से दूरी बना ली। वीर को गुम देखकर अदिति परेशान हो गई, पर उसे खुद नहीं मालूम था कि वो इतनी परेशान क्यों है। उधर वीर की भी सीधे से तारा से कहने की हिम्मत नहीं पड़ी कि उस लड़की से बात करा दे।

कोई खलिश साल रही थी पर वो मानने को तैयार नहीं था कि ये अदिति से बात न कर पाने की खलिश है। वो जानता था कि तारा इतनी सी बात से इतनी उत्साहित हो जाएगी कि पता नहीं बात को कहां से कहां ले जाए।

जिस दिन तारा के एग्जाम खत्म हुए उसी दिन अदिति की एक कला प्रदर्शिनी थी। अब तक अदिति और वीर को ये एहसास हो चुका था कि एक-दूसरे से बातें करना उन्हें किस हद तक अच्छा लगने लगा है।

तारा ने अदिति की पोस्ट्स देखीं तो झट से वीर के सामने वहां चलने का आग्रह रख दिया। वीर का गुस्ताख दिल तो पहले ही जिद बांधे थी। पर बहन के सामने उसने नखरे जताते हुए हां की, “ठीक है, तू चाहती है तो चलते हैं।”

कला प्रदर्शिनी में वीर ने अदिति को पहली बार देखा। चलने-फिरने, बोलने के ढंग में आत्मविश्वास से युक्त भंगिमा, गहरी भावपूर्ण आंखें और बोलता सा चेहरा। वो घूम-घूमकर लोगों से मिल रही थी और अपनी पेंटिंग्स के बारे में उन्हें बता रही थी।

पर जैसे ही तारा उससे मिलने की जिद करने लगी, जाने क्यों वीर का आत्मविश्वास डोलने लगा। वो एक किनारे खड़ा था ताकि अदिति उसे देख न ले। तारा उससे मिलने आगे बढ़ गई, पर वीर उसी पल मुड़कर लौट गया। तारा ने अदिति से मुलाकात की, फिर भाई का परिचय कराने के लिए पीछे देखा तो वीर वहां न था। वो सोचती ही रह गई।

“अच्छा किया जो तूने मुझे सब बताया। मैं उससे बात करती हूं।” मां ने उत्साह से कहा।

“मां, लेकिन भैया ऐसे क्यों हैं? जहां तक मैंने नोटिस किया है, मुझे लगता है कि ये लड़की भैया को पसंद है। फिर क्यों वो ऐसे…”

“इसका कारण हमारे अतीत में छिपा है, बेटा। कहा न तू चिंता न कर, मैं बात करूंगी।”

“और बता बेटा, कैसी लगी कला प्रदर्शिनी?” सोते समय मां वीर के कमरे में आईं और सीधे उसकी आंखों में आखें डालीं।

“बिज़नेस मीटिंग थी मां उसके बारे में आपको क्या बताऊं?” वीर ने टालना चाहा।

“मेरा एक काम करेगा बटा?”

“कहो मां!”

“तू अपनी चाची और मामी को माफ करेगा?”

“क्यों, उनके यहां कोई फंक्शन है? तुम्हें जाना है? तुम सब जाओ। मैंने किसी को मना कब किया है मां?”

“नहीं, कोई फंक्शन नहीं है। मैं तो केवल माफ करने की बात कर रही थी।”

“वो माफी डिज़र्व नहीं करतीं। मैंने पहले भी कहा है।”

“पर तू मन की शांति डिज़र्व करता है बेटा।” मां ने उसका चेहरा अपने हाथों में ले लिया।

“तेरे हाथ में क्या है?” वीर का ध्यान मां के हाथो में रखे एक कागज़ पर गया।

“उन रिश्तेदारो की लिस्ट, जिन्होंने बुरे समय में हमसे मुंह नहीं मोड़ा था। इन्हें देखना और सोचना कि ये भी कम नहीं हैं। सोचना कि जो कांटे दूसरो ने हमें दिए हैं, उम्हें अपने दिल की दीवार से निकाल फेंकने से जो जगह बनेगी वो किसी सुंदर कलाकृति को टांगने के काम आ सकती है।”

वीर सोने के लिए लेटा तो पिताजी आ गए। उन्होंने उसके सिर पर हाथ फेरकर उसका माथा चूमा, “बेटा, नए जीवन का स्वागत कर। मुझे भी अच्छा लगेगा। तू कुछ लोगो की बुराई की सज़ा पूरी दुनिया को ही नहीं खुद को भी दे रहा है। वीर सोचता रहा… सोचता रहा…

आधी रात में वो तारा के कमरे में था। जगाने पर तारा हड़बड़ाकर उठ बैठी “क्या हुआ भैया?”

वीर फिर सकपका गया, “सॉरी, आधी रात है। वो मुझे ख्याल ही नहीं आया।”

तारा ठीक से जगी तो उसकी नज़र भैया के हाथ में मोबाइल पर गई। उसने मुस्कुराकर बिना कुछ कहे ऐप खोलकर अदिति की प्रोफाइल सामने कर दी।

वीर उसके सिर पर प्यार भरी टीप मारकर मोबाइल लेकर चला गया। उसके चेहरे पर संतोष भरी मुस्कान और उत्साह था। ‘आपकी प्रदर्शिनी आपकी तरह ही सुंदर थी’ वीर सोच रहा था सुबह उत्तर आएगा, लेकिन तुरंत आ गया ‘आप आए थे? मिले क्यों नहीं?’ अदिति के दिल की धड़कने भी बढ़ गई थीं।

– भावना प्रकाश

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