नई दिल्ली23 घंटे पहलेलेखक: ऐश्वर्या शर्मा

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करीना कपूर जल्द ही तब्बू और कृति सेनन के साथ फिल्म ‘क्रू’ में नजर आएंगी। इस फिल्म में मशहूर पंजाबी सिंगर दलजीत दोसांझ करीना के साथ तीसरी बार दिखेंगे। इससे पहले दोनों ने फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ और ‘गुड न्यूज’ में साथ काम किया।

एक इंटरव्यू में करीना ने बताया कि दलजीत से उनकी सेट पर कोई बात ही नहीं होती थी क्योंकि वह किसी से बात ही नहीं करते। वह अकेले बैठे रहते हैं लेकिन जब परफॉर्मेंस के लिए आते हैं तो सबको पीछे छोड़ देते हैं। करीना ने दलजीत को ‘इंट्रोवर्ट’ कहा, लेकिन यह भी कहा कि वह अपनी सारी एनर्जी पावरपैक परफॉर्मेंस के लिए बचा कर रखते हैं।

हाल ही में myers briggs kind indicator ने ग्लोबल सैंपल जुटाए और पाया कि दुनिया के 56.8% लोग इंट्रोवर्ट यानी अपने आप में सिमटे रहना या चुपचाप रहना पसंद करते हैं। जिसे मनोविज्ञान की भाषा में अंतर्मुखी कहा जाता है। लेकिन अंतर्मुखी व्यक्ति अपने काम पर फोकस करता है जिससे वह वर्कप्लेस पर ज्यादा सफल होते हैं।

इंट्रोवर्ट होने में कोई बुराई नहीं, लेकिन सोसाइटी इस तरह के लोगों को गलत समझ बैठती है। किसी को वह घमंडी तो किसी को खडूस लगते हैं।

इंट्रोवर्ट की परिभाषा

इंट्रोवर्ट यानी खुद में सिमटे रहना, किसी से खुलकर बात ना करना, लोगों से जल्दी घुलना मिलना नहीं और कम बोलना… कुछ लोग ऐसे व्यक्ति को उलझा हुआ समझते हैं तो कुछ उन्हें बेवकूफ भी समझते हैं। जरूरी नहीं हर कोई बातूनी हो। कुछ लोग चुपचाप रहना पसंद करते हैं और अपनी एनर्जी के लेवल को बनाए रखते हैं और उसे ही अपनी ताकत बनाते हैं।

कुछ लोगों का मानना है कि इंट्रोवर्ट लोगों को हैंडल करना मुश्किल होता है क्योंकि वह अपने मन की बात किसी को नहीं बताते। लेकिन ऐसा नहीं है। वह बोलते हैं लेकिन सोच समझकर बोलते है, उनकी बात का असर दूर तक होता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा को भी इंट्रोवर्ट कहा गया।

बोलने से ज्यादा सुनने पर करते विश्वास

अंग्रेजी में कहा जाता है- Be a great listener, अमेरिका के मशहूर बिजनेस लीडर Malcom Forbes ने एक बार कहा था कि “The artwork of dialog lies in listening” यानी बातचीत की खूबसूरती बात सुनने में ज्यादा है। इसलिए एक अच्छा श्रोता होना जरूरी है। इंट्रोवर्ट लोग बोलने में कम और सुनने में ज्यादा विश्वास करते हैं। यह उनका नॉर्मल स्वभाव होता है। वह अपने आसपास के माहौल को भी जल्दी भाप जाते हैं।

अकेलेपन को बनाते ताकत

मनोचिकित्सक राजीव मेहता कहते हैं कि अक्सर हमारा समाज इंट्रोवर्ट व्यक्ति को डरपोक, कमजोर या फिर घुन्ना कह देता है। लेकिन यह गलत धारणा है। ऐसे लोग बोलने वाले लोगों से ज्यादा मजबूत और ताकतवर होते हैं क्योंकि वह हर स्थिति को शांति और समझदारी से हैंडल करते हैं। यह अपने इसी शांत स्वभाव के चलते कभी गुस्सा या अपशब्द नहीं बोलते, इसलिए जब लोग इन्हें समझने लगते हैं तो इनकी रिस्पेक्ट करने लगते हैं।

यह भले ही अपने इमोशंस को दुनिया के सामने जाहिर नहीं करते हों, लेकिन इमोशनली ज्यादा मजबूत होते हैं। यह लोग जल्दी से घबराते नहीं हैं और ना ही किसी से डर कर जीते हैं। कम बोलने के कारण लोग इन्हें दब्बू भी समझ बैठते हैं लेकिन इनकी ताकत को नजरअंदाज करना नामुमकिन है।

लोगों से मिलते भी हैं और दोस्ती भी पक्की होती है

इंट्रोवर्ट व्यक्तित्व को सीधे शर्मीले स्वभाव से जोड़ दिया जाता है। इंट्रोवर्ट व्यक्ति को लेकर सबसे गलत धारणा है कि वह शर्मीले होते हैं, लोगों से नहीं मिलते और ना दोस्ती करते हैं। जबकि इसके विपरीत भले ही वह कम बोलते हों लेकिन शर्मीले नहीं होते। जहां जितना बोलने या घुलने मिलने की जरूरत होती है, वह उतना ही घुलते मिलते हैं।

यह भले ही सबसे दोस्ती ना करें लेकिन उनके जो भी 2-3 दोस्त होते हैं, वहां वह अपनी दोस्ती बखूबी निभाते हैं।

इंट्रोवर्ट और एक्स्ट्रोवर्ट बस नाम के शब्द

इंट्रोवर्ट सुनते ही जहन में व्यक्ति के शांत और शर्मीला स्वभाव की बात आती है। वहीं, एक्स्ट्रोवर्ट से मन में आता है कि व्यक्ति खुलकर बोलता और अपने विचार रखता है। पहली बार दोनों शब्दों का इस्तेमाल 1920 में कार्ल जंग नाम के एक मनोवैज्ञानिक ने किया। हालांकि वे अपने शोध में दोनों व्यक्तियों के स्वभाव के अंतर को नहीं बता पाए थे।

लंबे समय तक याद रहती हैं बातें

2007 में रूस में इंट्रोवर्ट लोगों पर एक रिसर्च हुई। इसमें शोधकर्ताओं ने पाया कि इंट्रोवर्ट लोगों की याददाश्त बहुत अच्छी होती है। वह लंबे समय तक घटनाओं और बातों को याद रखते हैं।

रिसर्च में वैज्ञानिकों की टीम ने पाया कि इंट्रोवर्ट लोगों के फ्रंटल लोब में ब्लड सर्कुलेशन ज्यादा होता है। फ्रंटल लोब, दिमाग का वह हिस्सा है जिसमें मेमोरी स्टोर होती है। यही हिस्सा प्लानिंग और प्रॉब्लम को सॉल्व करने में इस्तेमाल होता है। इसलिए इंट्रोवर्ट लोग योजना भी अच्छी बनाते हैं और आसानी से हर समस्या का हल ढूंढ लेते हैं।

क्यों कोई व्यक्ति बनता है इंट्रोवर्ट

मनोचिकित्सक अवनि तिवारी के अनुसार इंट्रोवर्ट होने में कोई बुराई नहीं। हर किसी का अपना व्यक्तित्व होता है। उनकी पर्सनैलिटी ही उन्हें दूसरों से जुदा बनाती है। किसी की पर्सनैलिटी इंट्रोवर्ट है- इसके पीछे 2 कारण हो सकते हैं। पहला जेनेटिक और दूसरा एन्वायमेंट। अगर किसी व्यक्ति के पेरेंट्स इंट्रोवर्ट हों तो काफी हद तक बच्चा भी इंट्रोवर्ट होता है। यह अनुवांशिक स्थिति है जो माता-पिता से बच्चे में आती है।

बच्चा जिस माहौल में पला-बढ़ा होता है, उसका असर भी उसकी पर्सनैलिटी पर होता है। इसमें उसकी एजुकेशन, बचपन में झेला दबाव और जिंदगी का कड़वे अनुभव भी शामिल होते हैं।

एक चुप सौ सुख

इंट्रोवर्ट लोग शांत रहते हैं। जल्दी से किसी को पलट कर जवाब नहीं देते। इसलिए वह अपनी जिंदगी में दूसरे लोगों के मुकाबले ज्यादा खुश रहते हैं क्योंकि लोगों को लगता है कि वह उनसे बोलकर एकतरफा ही बात करेंगे।

वहीं, लोग भी उनसे खुश रहते हैं क्योंकि वह दूसरों से उलझते नहीं है। यानी देखा जाए तो जो लड़कियां इंट्रोवर्ट होती हैं, वह ससुराल में ज्यादा खुश रहती हैं।

सोशल मीडिया इन्फ्लूएंसर लिंडा कहती हैं कि वह इंट्रोवर्ट हैं। मैरिड लाइफ में उनके इंट्रोवर्ट होने से बहुत फायदा मिलता है। जब हसबैंड या सास गुस्सा करती हैं तो वह चुप रहती है जिससे ना झगड़ा बढ़ता और ना घर में बेवजह की टेंशन होती। वह अपनी सारी एनर्जी अच्छा कंटेंट बनाने में लगाती हैं। पति की रुसवाई हो या सास का तिलमिलाना, दोनों हालातों में उन्हें अच्छा कंटेंट मिल ही जाता है।

एक्सट्रोवर्ट को समझा जाता चालू

हमारे समाज में अगर इंट्रोवर्ट को दब्बू, डरपोक, कमजोर समझा जाता है तो वहीं एक्स्ट्रोवर्ट की भी कोई अच्छी छवि नहीं है। खासकर अगर लड़की एक्ट्रोवर्ट है तो उसके साथ चालू शब्द जोड़ दिया जाता है। यानी समाज में खुलकर-हंसकर सबसे बात करने वाली लड़की तेज है।

वह खुद को खुलकर जाहिर करे, बड़े सोशल नेटवर्क का हिस्सा हो, अपनी बात बेबाकी से कहने वाली हो तो खुद लड़के ही उनसे बचने लगते हैं। और गलती से उनका रिश्ता किसी छोटी-सोच के परिवार में हो जाए तो बात-बात पर उन पर घर बर्बाद करने तक का आरोप लग जाता है क्योंकि लड़की का एक्स्ट्रोवर्ट होना किसी को हजम नहीं होता है।

व्यक्ति इंट्रोवर्ट हो या एक्सट्रोवर्ट…हर किसी को यह समझना जरूरी है कि हर कोई अलग और अपने आप में खास है। बेहतर है कि किसी को उसके बर्ताव से जज करने की बजाय वह जो हैं, उन्हें वैसा ही स्वीकार किया जाए।

एक्स्ट्रोवर्ट लोग भले ही अपने दिल का हाल खुलकर बयां करते हों लेकिन इंट्रोवर्ट भी किसी से कम नहीं। वह अपनी एनर्जी सही समय के लिए बचाकर रखते हैं। इसलिए जब भी आप किसी इंट्रोवर्ट से मिलें तो समझ जाएं कि वह व्यक्ति बहुत खास है।

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