4 मिनट पहलेलेखक: किरण जैन

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दो दिन पहले (20 फरवरी) टीवी अभिनेता ऋतुराज सिंह की कार्डियक अरेस्ट से मौत हो गई थीं। वह 59 साल के थे। साल 2023 में सीरियल ‘अनुपमा’ एक्टर नितेश पांडे का भी कार्डियक अरेस्ट से ही निधन हुआ था। पिछले कुछ सालों में टेलीविजन की दुनिया में दिल का दौरा पड़ने या कार्डियक अरेस्ट से कई लोगों की मौत हुई हैं।

सीरियल ‘लापतागंज’ एक्टर अरविंद कुमार, ‘भाबीजी घर पर हैं’ फेम दीपेश भान, ‘कुमकुम भाग्य’ की अभिनेत्री जरीना रोशन खान, ‘कसौटी जिंदगी के’ फेम सिद्धांत वीर सूर्यवंशी समेत कई अन्य लोगों की मौत कार्डियक/ हार्ट अटैक के कारण हुई है।

ऑल इंडिया सिने वर्कस एसोसिएशन (AICWA) के प्रेसिडेंट सुरेश गुप्ता की मानें तो इंडस्ट्री में हार्ट अटैक से होने वाली मौत बहुत आम बात हो गई हैं। खराब लाइफस्टाइल, सेट पर दिन-रात की मजदूरी, सही समय पर पेमेंट ना मिलना, काम की कमी, पैसे की तंगी जैसी कई वजह से इंडस्ट्री के लोगों का स्ट्रेस लेवल बढ़ रहा है। इससे दिल पर बुरा असर पड़ रहा है। टीवी इंडस्ट्री का माहौल बहुत स्ट्रेसफुल है।

ऋतुराज सिंह के कार्डियक अरेस्ट के हालिया मामले ने इस मुद्दे को फिर से सुर्खियों में ला दिया है। दैनिक भास्कर ने कुछ टीवी एक्टर्स और पर्दे के पीछे जुड़े लोगों से इस मुद्दे पर बातचीत की। इन लोगों ने टीवी की दुनिया का काला सच सामने लाया। आइये जानते है क्या कहा उन्होंने-

इंडस्ट्री में काम का ओवरलोड है: AICWA प्रेजिडेंट सुरेश गुप्ता

इस इंडस्ट्री का माहौल बहुत स्ट्रेसफुल है। काम न मिलने के डर की वजह से लोग इसकी सच्चाई को बाहर नहीं लाते। एपिसोड टेलीकास्ट इशू होने पर, चैनल प्रोड्यूसर पर प्रेशर डालते हैं। वहीं प्रोड्यूसर अपने नीचे के प्रोडक्शन हाउस को निशाना बनाते हैं। ये लोग 2 दिन का काम एक दिन में करवाते हैं ताकि लोकेशन कॉस्ट, मजदूरों की फीस, इत्यादि बच जाए। कई टेक्नीशियन, स्पॉट बॉय 20-22 घंटे काम करते हैं। ऐसे कई एक्टर्स हैं जो 12 घंटे की शिफ्ट की बजाए 14-16 घंटे काम करते हैं। इस इंडस्ट्री में काम का ओवरलोड हैं। कई लोगों ने इस ओवरलोड की वजह से अपनी मेन्टल स्ट्रेस की बात भी रखी। लेकिन कुछ फायदा नहीं हुआ।

एक्टर्स की मौत के बारे में हर कोई बात करता हैं। लेकिन ऐसे कई मेंबर्स हैं जिन्हें स्ट्रेस की वजह से हार्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रॉक आया, शरीर में अलग-अलग बीमारियां आईं। इनमें से कुछ लोगों की जान तक गई है। पर्दे के पीछे जुड़े ज्यादातर लोगों को आर्थिक तंगी होती है। पैसों के खातिर वे अपना काम छोड़ नहीं पाते। मैंने ऐसे कई मोनोपोली के खिलाफ एक्शन लिए हैं जहां कुछ प्रोडक्शन हाउस एक्टर्स / यूनिट मेंबर्स को बैन करने की बात करते हैं। टीवी की दुनिया का ये काला सच है।

तजुर्बा होने के बावजूद लीड एक्टर्स के मुकाबले आधी फीस दी जाती हैं: जयति भाटिया

पिछले कुछ सालों से ज्यादातर टीवी सीरियल की शूटिंग नायगांव में हो रही है जोकि मुंबई से तकरीबन 2.5 घंटे की दूरी पर है। यानी कि हम दिन के 5 घंटे सिर्फ ट्रेवलिंग में लगा रहे हैं। साथ ही एक्टर्स, टेक्नीशियंस, लाइटमेन, स्पॉटबॉय, मेकअप आर्टिस्ट, हम सभी को कम से कम 12 घंटे की ड्यूटी पूरी करनी होती है। पूरे हफ्तें, हमारा यही रूटीन होता है। अब इससे स्ट्रेस लेवल तो बढ़ेगा ही। टेलीकास्ट के प्रेशर की वजह से कई एक्टर्स और यूनिट दिन-रात काम करते हैं। हमने अपने एसोसिएशन से इसकी शिकायत भी की थी जिसके बाद थोड़ा सुधार आया था। लेकिन, फिर से वही माहौल बन गया।

इसी बीच एक्टर्स को बॉडी भी बनानी है, खुद को हेल्दी भी रखना है। मैं ऐसे कई एक्टर्स को जानती हूं जो थकान होने के बावजूद जिम जाते हैं। जाहिर है, इसका अपोजिट रिएक्शन तो होगा ही। आज कल कम उम्र में लोगों को दिल का दौरा पड़ रहा है। हमारी टीवी इंडस्ट्री में ये बहुत आम हो गया है। कई लोग अपनी सेहत को खतरे में रखकर काम कर रहे है।

सिर्फ घंटों तक काम करना ही नहीं बल्कि पैसा भी हमारे स्ट्रेस की वजह है। इस इंडस्ट्री में मुझे 30 साल हो गए हैं। इतना तजुर्बा होने के बावजूद लीड एक्टर्स के मुकाबले आधी फीस दी जाती है। कई एक्टर्स बिलकुल अनुभवी नहीं होते, इसके बावजूद उन्हें अच्छी पेमेंट दी जाती है। इस बात का हमेशा डर लगा रहता है कि कहीं काम मिलना बंद ना हो जाए।

स्ट्रेसफुल सिचुएशन का हेल्थ पर बुरा असर पड़ता हैं: एक्टर सानंद वर्मा

इसमें कोई शक नहीं कि टीवी इंडस्ट्री में काम करना बहुत स्ट्रेसफुल होता है। इसमें डेडलाइन्स रहती हैं। आपको बहुत ज्यादा कंटेंट क्रिएशन करना होता है। अकसर ऐसा होता है कि आखिरी मोमेंट पर सीन्स आते हैं। बहुत ही हेक्टिक शेड्यूल रहता है।

कई बार लंबे डायलॉग्स आते हैं और इसी बीच पता चलता है कि आपका सीन तैयार है। बतौर एक्टर आपको सीन की तैयारी करने का टाइम नहीं मिलता। अब आप पर अच्छा परफॉर्म करने का भी प्रेशर है। ऑडियंस को तो नहीं पता ना कि आपके पास वक्त नहीं था। ये बहुत स्ट्रेसफुल सिचुएशन हैं जिसका हेल्थ पर बुरा असर पड़ता है।

इस इंडस्ट्री में कोई एडवांस में विजन नहीं बनाता। तैयारी बिलकुल नहीं रहती। फ्यूचर में आगे के एपिसोड कैसे होंगे, किसी को कुछ पता नहीं होता। हालांकि, ‘भाबीजी..’ के सेट का माहौल थोड़ा पॉजिटिव है। टीम बहुत कूल है। काफी रिलेक्स एनवायरनमेंट में काम होता है। किसी भी हालत में 12 घंटे से 1 मिनट भी ऊपर काम नहीं करना चाहिए। यदि इस रूल को स्ट्रिक्टली फॉलो करें तो शायद चीजें बदल सकती हैं।

टीवी बहुत डिमांडिंग प्रोफेशन हैं: अर्जुन बिजलानी

देखिए, हर चमकने वाली चीज सोना नहीं होती। टीवी बहुत डिमांडिंग प्रोफेशन है। इसमें कई तरह की इंसिक्योरिटी भी आती हैं, जिससे स्ट्रेस बढ़ता है। ज्यादातर डेली सोप एक्टर्स अक्सर अपनी निजी जिंदगी और समय को नजरअंदाज कर देते हैं। टीवी फेम और पैसा देता है, लेकिन तब तक, जब तक आपका कोई शो हिट चल रहा हो। इस इंडस्ट्री से जुड़े लोगों को समझना होगा कि सिर्फ फेम और पैसे के अलावा जीवन और करियर में और भी बहुत कुछ है।

टीवी में पैसा है लेकिन सुकून नहीं: राहुल शर्मा

इस इंडस्ट्री में क्रिएटिविटी और सही प्रोडक्टिविटी बिलकुल नहीं है। मैंने इससे स्ट्रेस्फुल वर्किंग एनवायरनमेंट कहीं नहीं देखा। टेलीविजन में पैसा है लेकिन सुकून नाम की चीज ही नहीं। इससे जुड़े लोगों को अब सिर्फ पैसे के अलावा, खुद की मेन्टल, फिजिकल हेल्थ के बारे में सोचने का वक्त आ गया है।

दिन में मुश्किल से 5-6 घंटे की नींद मिल पाती है: प्रोड्यूसर रविंद्र गौतम

जी हां, यह इंडस्ट्री तनावपूर्ण है, लेकिन न केवल कलाकारों के लिए, बल्कि क्रू मेंबर्स के लिए भी। यह तनावपूर्ण है क्योंकि ज्यादातर लोग साप्ताहिक ब्रेक के बिना दिन में 14-16 घंटे काम करते हैं। यह वास्तव में एक कठिन काम है। अभिनेताओं के लिए यह थोड़ा अधिक तनावपूर्ण हो जाता है क्योंकि उन्हें कैमरे पर आना होता है और अच्छा दिखना होता है। एक डेली सोप में यह कठिन हो जाता है, खास तौर पर तब जब सभी प्रमुख टीवी सेट अब मुंबई के बाहरी इलाके में बन गए हैं।

ट्रेवलिंग का समय प्रतिदिन लगभग 5 घंटे है। इसे 12 घंटे के काम के साथ मिला दें तो आपको मुश्किल से 5-6 घंटे की नींद मिल पाती है। यह न केवल शारीरिक रूप से थका देने वाला है बल्कि मानसिक रूप से भी आघात पहुंचाने वाला है। हम जिस बड़े बदलाव की तलाश में हैं, वह है कम से कम साप्ताहिक छुट्टी। बतौर प्रोड्यूसर, हम इस बात का ध्यान रखते हैं कि अपनी टीम मेंबर को महीने में 3-4 छुट्टी दें।

कैमरा के पीछे के लोगों का मानसिक तनाव ज्यादा होता है: डायरेक्टर संतोष त्रिपाठी

हर दिन हम सेट पर 14-16 घंटे बिताते हैं। लेकिन पेमेंट सिर्फ 12 घंटे की मिलती हैं। महीने में कम से कम 25 दिन तक ये ऐसा ही चलता रहता है। कोई कुछ नहीं कर सकता। कई बार रात के दो बजे पेकअप होता है और दूसरे दिन सुबह 7 बजे की हमारी शिफ्ट लगा दी जाती है। कैमरा के पीछे के लोगों का मानसिक तनाव बहुत ज्यादा होता है। पैसे की खातिर हम ये सब झेलते हैं। हमारी बस एक ही दरख्वास्त है कि प्रोड्यूसर पेकअप के टाइम को गंभीरता से ले।

बीच रात उठकर अपना फोन चेक करती हूं: कॉस्ट्यूम डिजाइनर सुगंधा सूद

बतौर स्टाइलिस्ट, प्री-प्रोडक्शन से लेकर ऑन-सेट तक, हम हर दिन काम करते हैं। दरअसल, टीवी में लास्ट मोमेंट में बदलाव आते हैं। मान लीजिए, रात में स्क्रिप्ट में बदलाव आ गया, तो हमें तुरंत कॉल आ जाएगा। सुबह उन्हें कोई और कॉस्ट्यूम चाहिए होता है। मैं अपना फोन बंद नहीं रख सकती। मुझे 24 घंटे मौजूद होना पड़ता है। मेरा स्ट्रेस लेवल इतना बढ़ गया है कि बीच रात उठकर अपना फोन चेक करती हूं। कहीं किसी प्रोड्यूसर का फोन तो नहीं आ गया। मेरी सेहत पर इसका बुरा असर पड़ रहा है।

कई बार तो 1 घंटे पहले पूरा शेड्यूल बदल जाता है। आखिरी मोमेंट पर मुझे भाड़े पर कपड़े लाने पड़ते हैं। कई बार ज्यादा पैसे देकर सामान खरीदना होता है। वहीं, एक दिन की छुट्टी नहीं ले सकते। मुझे 7 साल हो गए अपने घर दिवाली मनाए।

इतनी मेहनत करने के बावजूद प्रोड्यूसर के पीछे अपने पैसे के लिए भागो। हजारों कॉल करो तब आपकी पेमेंट क्लियर होता है। मेरी कुछ पेमेंट पिछले एक साल से पेंडिंग हैं। अब ऐसे में किसी भी भी हालत खराब तो होगी ही। टीवी में बदलाव लाना बहुत जरूरी।

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