नई दिल्ली19 घंटे पहलेलेखक: मरजिया जाफर

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ईद के चांद का दीदार हो गया। ईद की नमाज पढ़ने के बाद नमाजी एक दूसरे के गले मिलकर मुबारकबाद देते और सेवई से मुंह मीठा करते हैं। ईद का सेवई से क्या कनेक्शन है और कैसे सेवई ईद आइकन बन गई, आइए जानते हैं।

रिवायत में सेवइयों का जिक्र नहीं

मौलाना फरमान अली कहते हैं कि ईद पर सेवइयां खाने और खिलाने का ऐसा कोई खास रिवाज नहीं है। सऊदी अरब में ईद के मौके पर सेवई के बजाए खजूर, छुहारा या दूसरी मिठाइयां खाने का चलन है।

इस्लाम में सेवइयों का कोई इतिहास देखने को नहीं मिलता है। ईद की नमाज से पहले कुछ मीठा खाने का ‘हुक्म’ है जो सदियों से चला आ रहा है। हजरत मुहम्मद साहब भी ईद के दिन हलवा और शहद खाते थे।

इसके पीछे की वजह ये है कि ‘मीठी गिजा’ खाने से भूख देर से लगती है। सेवई का इस्तेमाल गिजा के तौर पर किया जाता है, मीठे से एनर्जी मिलती है।

ईद के मौके पर सेवई खूब पसंद की जाती है।

ईद के मौके पर सेवई खूब पसंद की जाती है।

भारत में सेवइयों की मिठास कुछ यूं घुली

इतिहासकार राना सफवी की किताब में सेवई से जुड़े किस्से का जिक्र है, पहली बार सेवइयों का जिक्र लाल किले की एक शाही दावत में मिलता है जहां 19वीं सदी में ईद के दिन बहादुर शाह जफर के दस्तरख्वान में दूध के साथ सेवई को अहम जगह दी गई।

सूत फेनी सेवई का ही रूप

अवध और बनारस की सेवइयां बिल्कुल बालों के समान पतली होती हैं और मैदे से बनी होती हैं। ऐसे में जाहिर है कि इस तरह की सेवई मशीनी युग के आगाज के बाद ही बाजारों में मिलने लगीं। लेकिन इसके पहले से ही हिंदुस्तान में अलग-अलग तरह की सेवइयां बनती थीं और उनके नाम भी अलग-अलग होते थे।

पंजाब और हरियाणा

पंजाब और हरियाणा में हाथों की उंगलियों से चावल या जौ के आकार की सेवइयां बनाई जाती हैं जिन्हें ‘जवें’ कहा जाता है, जो घर की बड़ी-बुजुर्ग महिलाएं बनाती हैं।

कर्नाटक

कर्नाटक में भी हाथों से चलाने वाले उपकरणों से ही सेवइयां बनाई जाती हैं जिसे ‘शेविगे’ कहते हैं। कर्नाटक में शेविगे चावल या रागी के आटे से बनाती हैं।

महाराष्ट्र

महाराष्ट्र में गेहूं के आटे से बने ‘शेविगे’ शादियों में दुल्हन के दहेज के साथ भेजे जाते हैं। इस तरह सेवाइयां बनाम शिवेगे सांस्कृतिक और पारिवारिक उत्सवों का हिस्सा बनी।

गुजरात

गुजरात में भी हाथों से काफी पतली और लंबी सेवइयां बनाई जाती हैं और उन्हें सुखा कर रखते हैं।

सिंधी और राजस्थानी

सिंधी और राजस्थानी इलाकों में सबसे बेहतरीन सेवइयां बनाई जाती हैं जो कि सैकड़ों साल पुरानी परंपरा है। ऐसी सेवइयों को फेनी भी कहते है, ये हाथों से खींच-खींच कर बनती हैं और दूध में भिगो कर खाई जाती हैं।

बहरहाल, सिंधी, राजस्थानी, मराठी और गुजराती परम्पराओं में ‘सुतरफेनी’ काफी मशहूर रही है। वहीं बनारस में तो करवा चौथ के दिन सरगी में सुतरफेनी खाने की रस्म है और कहीं ना कहीं ये रिवाज आपस में ऐसे घुलेमिले हैं और यहीं हमारी गंगा-जमुनी तहजीब को दर्शाता है जिसका असर खानपान में भी देखने को मिलता है।

राजस्थानी, मराठी और गुजराती परम्पराओं में सुतरफेनी मशहूर है।

राजस्थानी, मराठी और गुजराती परम्पराओं में सुतरफेनी मशहूर है।

ईद की डिश बन गईं सेवई

ईद के खास मौके पर सेवई घर पर बनने वाला मीठा बन गया। मीठी, नमकीन, मेवे और दूध की सेवई, इसके बेहतरीन अलग अलग जायके हैं। मेहमानों के लिए अब लच्छेदार सेवई परोसने का रिवाज चल निकला है।

लखनऊ में पकाई जाती है किमामी सेवई

अवध की ख़ास क़िस्म की बारीक किमामी सेवई बड़ी नाजों के साथ पकाई जाती है। जिन्हें पारंगत खानसामे काफी मशक़्कत से पकाते हैं। किमामी सेवई भुने खोए के साथ पकाई जाती हैं फिर उनमें एक तार की चाशनी या किमाम डालकर दम दिया जाता है।

केसर की रंगत, मेवे और मखाने की लज्जत से भरपूर किमामी सेवइ तैयार होती है। किमामी सेवइ को पकाने का तरीका थोड़ा मुश्किल है इसलिए काफी लोग इस व्यंजन को बना नहीं पाते इसलिए आसानी से बनने वाली शीर खोरमा ज़्यादा मशहूर है।

शीर खोरमा भारत और पड़ोसी देश पाकिस्तान समेत कई देशों में काफी मशहूर है। शीर खोरमा दूध के साथ बारीक या मोटी सेवइ को पकाकर और मेवों से सजाकर परोसा जाता है।

नजाकत के साथ बनी मीठी सेवइयां किसी भी खुशी के मौके में चार चांद लगा देती हैं। मीठी सेवइयां खाएं और जिंदगी की मिठास का भरपूर लुत्फ लें।

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