2 घंटे पहले

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वो उमस भरी गर्मियों के गुजरने के दिन थे। नहाकर बाथरूम से बाहर निकलो तो दोबारा पसीने से नहाना हो जाता। पानी से इतनी ठंडक महसूस नहीं होती थी जितनी पसीने से।

एनी अपनी सहेलियों के साथ इंटर्नशिप के लिए इस दुनिया में आई थी। पहले-पहल तो उसे यह एडवेंचर ट्रिप से कम नहीं लगा। लेकिन चार दिन में ही एडवेंचर की हवा निकल गई और उन्हें लगने लगा कि तीन महीने इस नर्क में कैसे कटेंगे।

धूल उड़ाती सड़कें। न कैब और न ही टाइम पर कोई दूसरा साधन। केवल बस और शेयर्ड ऑटो रिक्शा। वो भी दिन में चुनिंदा बार। बिजली है मगर इतनी मद्धम कि उसमें ज्यादा देर आंखें खोल लीं तो शर्तिया आंखों की रोशनी कम हो जाए। पंखे इतनी ही स्पीड में चलते हैं कि एक मिनट में उनके चक्कर आसानी से गिने जा सकते थे। बिजली चली जाए तो वापस कब आएगी, कुछ कहा नहीं जा सकता। कभी कुछ खाने का मन करे तो मैगी या पांच रुपए के बिस्किट से काम चलाओ। इसके अलावा यहां कुछ नहीं मिलता। करेले पर नीम चढ़ा ये कि इंटर्नशिप के पहले ही हफ्ते में एनी की सीनियर से बहस हो गई।

फील्ड विजिट के बाद डेटा एंट्री भी कर ली। अब कुछ काम नहीं है तो यहां बैठकर मक्खी मरना सीखेंगे? यह बात एनी ने तेज आवाज में कह दी थी। बस पांच मिनट की बहस और तब से उसके और विकास सर के बीच एक टेंशन सी बनी रहती।

एनी हमेशा से अपने बैच में टॉप करती। अपने ग्रुप की अनडेजिगनेटेड लीडर भी थी लेकिन विकास उनका डेजिगनेटेड रिपोर्टिंग मैनेजर था। इसलिए सारे काम विकास की ‘यस’ से ही होने थे।

एमएसडब्ल्यू के फाइनल सेमेस्टर में एनी के कॉलेज के ग्रुप मुश्किल भौगोलिक परिस्थितियों वाले अलग-अलग राज्यों में गए थे। एनी और उसका ग्रुप बेसिक हेल्थ सर्विस की कमी से जूझते, जंगलों और असाक्षर लोगों के बीच बसे गांव में थे, जहां के लोगों के लिए सड़कें और बिजली आज भी दुनिया के आठवें और नौवें आश्चर्य थे। बाकी सात आश्चर्य एनी और उसके ग्रुप की छह लड़कियां थीं।

खैर, विकास सर से कहासुनी का खामियाजा पूरे ग्रुप को भुगतना पड़ा। अब उनकी मॉनिटरिंग और सख्त हो गई। पहले तोे फील्ड विजिट में लड़कियां कुछ फॉर्म अपने मन से भर देतीं। लेकिन अब उनके दिन भर के काम की शाम को स्क्रूटनी होती और जिन फॉर्म पर विकास सर को डाउट होता वो रिजेक्शन लिस्ट में जाते। ये पूरा काम होने तक सभी को ऑफिस में ही रुकना होता। इसके बाद ही डेटा एंट्री और तब जाकर छुट्टी मिलती। पहले शाम के पांच बजे तक फ्री होते तो अब इसमें सात-आठ भी बज जाते।

हां, लेकिन एनी से बहस के बाद विकास सर इस ग्रुप को ऑफिस में जबरन नहीं बैठाते थे। कभी जल्दी काम खत्म हो जाता तो वो खुद कहते कि ऑफिस में बैठने से क्या होगा। जाओ, कहीं घूम आओ। आराम कर लो या कमरे पर जाकर कुछ पढ़ लो। ऑफिस भी क्या था, तीन कमरों, एक किचन और एक कॉमन वॉशरूम का सेट-अप था। बंद पड़े सरकारी स्कूल के कमरे उन्हें ठहरने के लिए मिले थे।

जिस दिन ग्रुप को जल्दी छुट्टी लेनी होती तो झक मारकर एनी को ही विकास सर से बात करने जाना पड़ता। विकास सर बिना उसकी ओर देखे पूरी बात सुनते और एक ही रटी-रटाई लाइन दोहराते कि जाओ लेकिन काम का और तुम लोगों के सीखने का हर्ज नहीं होना चाहिए।

‘नहीं होगा सर।’ इतना कहकर एनी लौट आती।

इंटर्नशिप खत्म होने में एक महीना बचा था और कड़ी धूप के बाद अब उमस आ रही थी यानी अब यहां बारिश हो सकती थी। एक रात अचानक दो-तीन लड़कियां चीखकर जाग गईं। तेज हवा और बारिश के बीच बिजली कड़क रही थी। ऐसी बारिश और ऐसी बिजली कड़कना उनमें से पहले कभी किसी ने नहीं देखा था। वो रात सबने अंधेरे कमरे में जागकर और कड़कती बिजलियां गिनते हुए काटी।

अगले दिन किसी का भी फील्ड विजिट का मन नहीं था। सबकी आंखों में नींद थी। विकास सर ने अपने सबऑर्डिनेट से बोला कि इन लड़कियों को बोलो कि रूम में जाकर आराम कर लें। ये सुनते ही सबकी आंखें खुशी से फैल गईं। शाम को विकास सर और पूरे ऑफिस के लौटने के बाद लड़कियां ज्यादा ऊधम-चौकड़ी नहीं मचा पाती थीं। आज अच्छा मौका था।

ऑफिस से निकलते ही बारिश होने लगी। रूम तक पहुंचने पर सब भीग गई थीं। इतने दिनों में आदत पड़ गई थी या बारिश की खुशी थी कि अब गर्मी ज्यादा परेशान नहीं करती थी। हां सड़कों पर कीचड़ और उसमें फुदकते मेंढ़क और रेंगते केंचुए जरूर सबको अजीब सी घिन और डर से भर देते।

आज काफी देर से लाइट नहीं थी तो अंधेरा होने से पहले ही लालटेन जलानी थी। एनी जैसे ही लालटेन साफ करने बाहर निकली उसकी चीख निकल गई। करीब 2 मीटर लंबा सांप सर्र से उसके पैरों के पास से होकर निकला था। अब सब लड़कियों की धमाल चौकड़ी बंद हो गई और सब की सब एक सुरक्षा घेरा बनाकर हाथ में लड़की-चप्पल-न्यूजपेपर-झाड़ू लेकर बैठ गईं। लालटेन को दरवाजे के पास ही रख दिया था ताकि दोबारा मेंढक, सांप या कोई और अनामंत्रित जीव आता दिखे तो लड़कियां सतर्क हो जाएं।

विकास सर और बाकी टीम के आने तक एनी बुखार में पड़ी थी और लड़कियों ने दोपहर में मैगी और चाय-बिस्किट के अलावा न कुछ खाया था और न ही बनाया था। आज किसी को नींद नहीं आने वाली थी और सबकी रतजगे की तैयारी थी।

विकास सर को पूरा किस्सा पता चला तो उन्होंने सब लड़कियों के लिए आलू-मटर-गाजर-गोभी और चावल की तहरी बनाई। पुदीने और हरी अमिया चटनी पीसी। एनी को जबरदस्ती खिलाना पड़ा था। सबको खिलाने के बाद उन्होंने अपने कमरे में सबके बिस्तर लगवा दिए। उनको पता था कि सांप का डर निकलने में कुछ टाइम लगेगा। उन्होंने कहा कि वह लालटेन जलाकर गेट पर रहेंगे। लड़कियां आराम से सोएं।

अगली सुबह सोनी ने एक सनसनीखेज खुलासा किया- विकास सर ने रात में एक घंटे तक एनी के सिर पर पानी की पट्टियां बदली थीं। जिस बात पर एनी को छोड़कर किसी को यकीन नहीं हुआ था।

खैर, इस दिन के बाद से एनी और विकास सर के बीच जमी बर्फ वैसे ही पिघल गई थी जैसे अगली सुबह एनी का बुखार उतरा था। लड़कियों और विकास सर के बीच दोस्ती भी हो गई थी। गांव में लोगों से बात करने और उनकी बात समझने में आने वाली प्रॉब्लम को विकास सर ने उनके फॉर्म में तीन-चार सवालों को बदलकर चुटकियों में सुलझा दिया था। अब लड़कियों को अच्छे रिस्पॉन्स मिलने लगे और उनका काम भी टाइम पर पूरा होने लगा।

हर शुक्रवार को ऑफिस से सारे जरूरी कागजात तहसील वाले ऑफिस में जाते। विकास सर वहां से वापसी में लड़कियों के लिए खाने-पीने का सामान लाने लगे। कई बार वह इन सबको अपने साथ तहसील वाले ऑफिस भी ले गए ताकि इनका एक्सपोजर बढ़े।

ऑफिस की कार का दूसरा इस्तेमाल लड़कियों का काम खत्म होने के बाद उनको इलाके की अलग-अलग जगहों पर घुमाने में भी होने लगा। यहीं से उन्होंने सबको म्यूजियम, मेमोरियल, झील, आर्कियोलॉजिकल साइट्स, जू, बटरफ्लाई पार्क, बी फार्म भी घुमाया।

जब एनी की अंगुली दरवाजे में दबने के बाद विकास सर ही थे जिन्होंने उसका असाइनमेंट पूरा करने में हेल्प की थी।

हां, इस दौरान दोनों के बीच फैमिली, कॉलेज, करियर, फ्यूचर प्लान, फेवरेट बुक्स, मूवीज को लेकर इतनी चीजें डिस्कस हुई थीं या पता नहीं डिफरेंट पॉइंट ऑफ व्यू की वजह से इतनी लड़ाइयां हुई थीं कि एनी के लिए अब वो ‘विकास सर’ न होकर केवल ‘विकास’ रह गया था। आखिर किसी से हर लाइन में सर-सर कहकर तो ठीक से नहीं लड़ा जा सकता न?

अब काम खत्म होने के बाद भी एनी विकास सर के पास ही ऑफिस में बैठी रहती। लड़कियों को लगा कि वो शायद विकास सर का काम सीखना चाहती है। लेकिन बात इतनी सीधी नहीं थी। उसे विकास का धीरे-धीरे और कम बोलना, उसका अक्खड़ मिजाज होना, सिर झुकाकर काम में डूबे रहना और मामूली चीजों को भी परफेक्शन की हद तक पूरा करना पसंद आने लगा था। बीच-बीच में विकास का उसे देखकर कहना- ‘अरे अभी तक तुम यहीं हो’, एनी की 12-14 घंटे ऑफिस में रहने की थकान भुला देता।

विकास को कुछ दोस्तों ने कहा- बच्ची सीरियस न हो जाए, जरा संभलकर। तब उसे समझ में आया कि सिर्फ एनी ही नहीं, वह भी उससे बेमतलब की बातें किया करता है। उसे पता था कि इस प्रोजेक्ट के बाद बेंगलुरु उसका इंतजार कर रहा है। फैमिली को संभालना है। एनी तो वापिस लौटकर कभी दिल्ली से बाहर जाएगी नहीं। शादी भी इसे दिल्ली में ही करनी है। इसलिए अब वह अपने आप में सिमटता चला गया। दिन भर में वह सिर्फ गिने-चुने लफ्ज खर्च करता। वह भी केवल एनी के साथ।

समय बीतते-बीतते तीन महीने पूरे होने को आए। सबके लिए कुछ न कुछ गिफ्ट खरीदकर विकास सर ने ऑफिस की कार में उनको रेलवे स्टेशन छोड़ा था।

एनी शायद मन ही मन कुछ ठान चुकी थी। उसने ही प्लेटफॉर्म की बेंच पर विकास और अपने बीच पंद्रह मिनट की चुप्पी तोड़ी थी- फिर मिलोगे?

विकास ने नजर भर उठाकर एनी को देखा और फिर नीचे देखने लगा। उसकी जुबान तक नहीं हिल सकी।

‘मत मिलना’। कहकर एनी बिना पीछे मुड़े डिब्बे में जाकर बैठ गई।

आठ साल क्या, वह उस कदकाठी, उस हाड़मांस के पुतले से आती अलग किस्म की खुशबू को पूरी जिंदगी नहीं भूल सकती। भले ही अब उसने दाढ़ी रख ली हो या कैप और गॉगल्स पहने हों।

बेंगलुरु के उस इलाके के इकलौते मॉल में एनी ने विकास को एलीवेटर पर चढ़ते देखा था। छह इंच का ही फासला था उसके और विकास के बीच। एनी की गोद में उसकी बेटी रीवा थी। शादी के बाद वह पति के साथ यहां शिफ्ट हो गई थी। उसे पता था कि ऐसा हो ही नहीं हो सकता कि विकास ने उसे न देखा हो।

-गीतांजलि

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