प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘तनाव का प्रबंधन करना और कामकाज एवं जीवन के बीच संतुलन बनाने की क्षमता पूरी तरह से न्याय प्रदान करने से जुड़ी हुई है. दूसरों के घाव भरने से पहले आपको अपने घाव भरना सीखना चाहिए. यह बात न्यायाधीशों पर भी लागू होती है.”

उन्होंने न्यायिक अधिकारियों के 21वें द्विवार्षिक राज्यस्तरीय सम्मेलन का उद्घाटन करने के बाद, अपने एक हालिया व्यक्तिगत अनुभव को साझा किया. सम्मेलन का आयोजन कर्नाटक राज्य न्यायिक अधिकारी संघ ने किया था.

उन्होंने कहा कि एक अहम सुनवाई की ‘लाइव स्ट्रीमिंग’ के आधार पर हाल में उनकी आलोचना की गई. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, ‘‘महज चार-पांच दिन पहले जब मैं एक मामले की सुनवाई कर रहा था, मेरी पीठ में थोड़ा दर्द हो रहा था, इसलिए मैंने बस इतना किया था कि अपनी कोहनियां अदालत में अपनी कुर्सी पर रख दीं और मैंने कुर्सी पर अपनी मुद्रा बदल ली.”

उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर कई टिप्पणियां की गईं, जिनमें आरोप लगाया गया कि प्रधान न्यायाधीश इतने अहंकारी हैं कि वह अदालत में एक महत्वपूर्ण बहस के बीच में उठ गए.”

प्रधान न्यायाधीश ने उल्लेख किया, ‘‘उन्होंने आपको यह नहीं बताया कि मैंने जो कुछ किया वह केवल कुर्सी पर मुद्रा बदलने के लिए था. 24 वर्षों से न्यायिक कार्य करना थोड़ा श्रमसाध्य हो सकता है, जो मैंने किया है.”

उन्होंने कहा, ‘‘मैं अदालत से बाहर नहीं गया. मैंने केवल अपनी मुद्रा बदली, लेकिन मुझे काफी दुर्व्यवहार, ‘ट्रोलिंग’ का शिकार होना पड़ा…लेकिन मेरा मानना है कि हमारे कंधे काफी चौड़े हैं और हमारे काम को लेकर आम लोगों का हम पर पूरा विश्वास है.”

उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के समान ही तालुक अदालतों में (न्यायाधीशों को) सुरक्षा नहीं मिलने के संदर्भ में, उन्होंने एक घटना को याद किया, जिसमें एक युवा दीवानी न्यायाधीश को बार के एक सदस्य ने धमकी दी थी कि अगर उन्होंने उसके साथ ठीक से व्यवहार नहीं किया तो वह उनका तबादला करवा देगा.

कामकाज और जीवन के बीच संतुलन तथा तनाव प्रबंधन इस दो दिवसीय सम्मेलन के विषयों में से एक था. इस बारे में प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि तनाव प्रबंधन की क्षमता एक न्यायाधीश के जीवन में महत्वपूर्ण है, खासकर जिला न्यायाधीशों के लिए.

उन्होंने कहा कि अदालतों में आने वाले कई लोग अपने साथ हुए अन्याय को लेकर तनाव में रहते हैं. उन्होंने कहा, ‘‘प्रधान न्यायाधीश के रूप में, मैंने बहुत से वकीलों और वादियों को देखा है, जब वे अदालत में हमसे बात करते समय अपनी सीमा पार कर जाते हैं. जब ये वादी सीमा पार करते हैं तो इसका उत्तर यह नहीं है कि (अदालत की) अवमानना की शक्ति का उपयोग किया जाए, बल्कि यह समझना जरूरी होता है कि उन्होंने यह सीमा क्यों पार की.”

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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