नई दिल्ली2 घंटे पहले

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मास्टरशेफ में जज रहे मशहूर शेफ कुणाल कपूर को दिल्ली हाईकोर्ट ने तलाक की इजाजत दे दी है। कुणाल ने पत्नी की क्रूरता के आधार पर कोर्ट में याचिका दी थी।

कोर्ट ने कहा कि कुणाल की पत्नी ने सार्वजनिक रूप से सबके सामने कुणाल का अपमान किया, निराधार आरोप लगाए। पति के प्रति उनके आचरण में गरिमा और सहानुभूति नहीं है। अपने इन लॉज के प्रति भी व्यवहार ठीक नहीं था।

ये सारी चीजें क्रूरता हैं। इसके आधार पर कोर्ट ने कुणाल की तलाक की याचिका को मंजूर कर लिया। दिल्ली हाई कोर्ट ने कुणाल के केस में कहा कि पत्नी का आचरण हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1) के दायरे में आता है।

धारा 13 में तलाक के लिए 9 आधार माने गए हैं-

  • पति या पत्नी ने शादी के बाद अपने साथी के अलावा किसी अन्य व्यक्ति से सहवास किया हो।
  • किसी एक पक्ष ने शादी के बाद अपने दूसरे पक्ष के प्रति क्रूरता की है।
  • लगातार 3 साल से अधिक समय के लिए उसके साथ नहीं रहे हैं।
  • पति और पत्नी में से कोई भी पक्ष अगर अपना धर्म परिवर्तन कर लेता है और हिंदू धर्म को छोड़ देता है।
  • लाइफ पार्टनर में किसी को भी कोई ऐसा मानसिक रोग हो गया है और लगातार इस तरीके के दौरे पड़ते हैं जिससे कि उसके साथ वादी का रहना संभव नहीं है।
  • पति या पत्नी में किसी को भी कुष्ठ रोग हो गया हो।
  • दोनों में से किसी को भी कोई यौन बीमारी हो और इससे दूसरे पार्टनर को भी बीमारी होने का डर हो।
  • पति या पत्नी ने संन्यास ले लिया हो।
  • पति या पत्नी में से किसी को पिछले 7 सालों से न तो उसे देखा गया हो और न ही उसके बारे में कहीं कुछ सुना गया हो।

धारा 13 (1) का उपबंध (2) क्रूरता की बात करता है। क्रूरता मानसिक भी हो सकती है और शारीरिक भी हो सकती है।

मानसिक क्रूरता जैसे गाली देना, बड़ों की इज्जत न करना, उनके साथ रहने से मना करना, किसी अन्य से संबंध होने का झूठा आरोप लगाना, यह सब मानसिक क्रूरता की कैटेगरी में आते हैं। इन सब के आधार पर तलाक दिया जा सकता है।

पति को उसके माता-पिता से अलग रहने का दबाब बनाना क्रूरता

अभी हाल में कलकत्ता हाई कोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि मानसिक क्रूरता के आधार पर पति तलाक के लिए याचिका दे सकता है। इस मामले में पत्नी अपने इन लॉज से अलग दूसरे घर में रहने के लिए पति पर दबाव बना रही थी।

वह सार्वजनिक रूप से पति को बेरोजगार और कायर कहती।

कोर्ट ने कहा कि भारतीय संस्कृति के अनुसार, बेटे का माता-पिता के साथ रहना, उनकी देखभाल करना नॉर्मल है। पत्नी का इस तरह का व्यवहार मानसिक क्रूरता है। इस आधार पर कोर्ट ने पति को तलाक की इजाजत दे दी।

पति को भी गुजारा भत्ता पाने का अधिकार

इंदौर फैमिली कोर्ट ने तलाक के बाद पत्नी को आदेश दिया कि वह पति को हर महीने 5,000 रुपए गुजारा भत्ता देगी। पति 12वीं पास और बेरोजगार है जबकि ग्रेजुएट पत्नी ब्यूटी पार्लर चलाती है।

उज्जैन के रहने वाले अमन ने पत्नी नंदिनी के परिवार वालों के खिलाफ उत्पीड़न की शिकायत थाने में दर्ज कराई थी। अमन का आरोप था कि शादी के एक महीने बाद ही पत्नी उसे फिजिकली और मेंटली टॉर्चर करने लगी।

उसने दहेज उत्पीड़न का झूठा केस किया।

कोर्ट ने अमन की शादी निरस्त करने की याचिका स्वीकार कर ली जबकि आदेश दिया कि पत्नी हर महीने पति को 5,000 रुपए गुजारा भत्ता देगी।

बड़ौदा यूनिवर्सिटी की असिस्टेंट प्रोफेसर नम्रता लुहार कहती हैं कि गुजारा भत्ता दो तरीके से पाया जा सकता है पहला, क्रिमिनल प्रोसिजर एक्ट सेक्शन 125 और दूसरा, हिंदू मैरिज एक्ट (HMA) सेक्शन 25 है।

इन दोनों एक्ट के तहत पत्नी गुजारा भत्ता मांग सकती है। CRPC के सेक्शन 125 के तहत पत्नी, बुजुर्ग माता-पिता और बच्चे मेंटेनेंस के लिए क्लेम कर सकते हैं।

हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के तहत स्त्री या पुरुष दोनों गुजारा भत्ता मिलने का दावा कर सकते हैं। केवल हिंदू मैरिज एक्ट में पति गुजारा भत्ता मांग सकता है।

पति के लिए गुजारा भत्ता पाने का इसके सिवा कोई दूसरा कानून नहीं है। क्रिमिनल प्रोसिजर एक्ट में कोई प्रावधान नहीं है जिसमें पति गुजारा भत्ता मांग सके।

हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के सेक्शन 24 के अनुसार, पति पत्नी से मेंटेनेंस क्लेम कर सकता है। यदि पति की आय पर्याप्त नहीं है और न आय का कोई स्रोत तो वह पत्नी से कानूनी प्रक्रिया में हुए खर्च का भी क्लेम कर सकता है।

पत्नी से परमानेंट एलिमॉनी भी मिल सकता है

नम्रता कहती हैं कि हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 25 के अनुसार, पति पत्नी से स्थायी जीवन निर्वाह यानी परमानेंट एलिमॉनी मांग सकता है। पति मासिक गुजारा भत्ता के अलावा वन टाइम फुल सेटलमेंट भी मांग सकता है।

परमानेंट एलिमॉनी दो तरह से होते हैं एक, वन टाइम पेमेंट और दूसरा रेकरिंग पेमेंट। कोर्ट चाहे तो एक या दोनों तरह के एलिमॉनी के लिए आदेश दे सकता है।

पत्नी भत्ता देने लायक है, साबित करना होगा

पति को मेंटेनेंस के लिए फैमिली कोर्ट में पत्नी की आय का प्रूव देना होगा। उसका बैंक अकाउंट, सैलेरी स्लिप, इनकम टैक्स रिटर्न भी दिखाना होगा।

यह ठीक वैसा ही है जैसा पत्नी पति से मेंटेनेंस के लिए क्लेम करती है। स्त्री को पति की आमदनी साबित करनी पड़ती है।

नम्रता कहती हैं कि स्त्री हो या पुरुष जितनी भी उसकी मासिक आमदनी है उसमें से उसके ऊपर आश्रित लोगों का खर्चा निकाला जाता है। जो नेट रकम उसके पास बचती है उसका एक तिहाई या आधा हिस्सा क्लेम करने वाले को दिया जा सकता है।

मान लीजिए कि किसी की सैलेरी 1,00,000 रुपए महीने है। यदि उस पर आश्रितों का खर्च 40,000 रुपए है तो शेष बचे 60,000 का एक तिहाई यानी 20,000 या फिर आधा यानी 30,000 रुपए मेंटेनेंस के रूप में मिल सकता है।

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